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आंचल में सूरज की चाहत


 अमर ने पलट कर घर के दरवाजे की तरफ देखा। करन को गोद में लिए नेहा खड़ी थी। उसका चेहरा सपाट था। खुश थी कि उदासी अमर समझ नहीं पाया। बेटों को देखा। वह हाथ हिलाते हुए खुश थे। कार चल पड़ी तो अमर ने अनु के चेहरे को देखा। अनु का चेहरा दप दपा रहा था...।

अंधेरे कोने

भाग 13---------अंतिम

आंचल में सूरज की चाहत
अमर से बात करने के बाद अनु उदास हो गई। उसे यकीन हो गया कि अमर उसके हाथ से निकल गया। उसका किसी काम में मन नहीं लगा। वह सोफे पर बैठी-बैठी अमर की यादों में खो गई। उसे अमर की अच्छाइयां और बुराइयां याद आने लगीं।
- क्या बात है अनु? परेशान हो? रमेश ने अनु से पूछा तो उसकी तंद्रा भंग हुई।
- नहीं डैडी, ऐसी कोई बात नहीं है। अनु ने रमेश को टालने के लिए कहा।
- कैसे कोई बात नहीं है। कोई यों ही उदास और परेशान नहीं होता। रमेश ने अनु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
- डैडी हम किसी को इतना क्यों चाहने लगते हैं कि लगने लगता है कि उसके बिना जिंदगी अध्ूारी हो गई। एक अंजाने आदमी से मुलाकात होती है और हम हम नहीं रह जाते। खुद को भूल कर किसी और के लिए जीने लगते हैं। अपना हर काम गलत और उसका हर काम सही क्यों लगने लगता? अपनी ही सांसें बेगानी लगने लगती हैं। लगता है कि सांसें दूसरे के शरीर से निकल रही हैं। वह नहीं रहेगा तो हमारी सांसें रुक जाएंगी। बस इसी एहसास को समझने की कोशिश कर रही थी।
- कुछ समझ में आया?
- नहीं।
- इसे समझ पाना आसान नहीं है बेटी। नेचर ने स्त्री-पुरुष को कुछ इस तरह से बनाया है कि वह एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। यही कारण है कि जब कोई एक किसी दूसरे को चाहने लगता है तो उसे यह एहसास होने लगता है कि वह संपूर्ण हो गया है। उसका  अधूरापन दूर हो गया है। कभी-कभी यह चाहत एकतरफा भी होती है। और जब दोनों तरफ से होती है तो बेचैनी और बढ़ जाती है। ऐसी हालत में कोई एक ही परेशान नहीं होता। बेचैनी दोनों तरफ होती है। तड़पते दोनों हैं। इस बेचैनी और तड़प को ही तो प्यार कहते हैं। प्रेम में यह भावना न हो तो वह प्रेम नहीं होता। जो प्रेमी युगल इस स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता। वे सारे बंधन और सारी रुकावटों को लांघ कर एक दूसरे से मिलते हैं। बिल्कुल सरिता और सागर की तरह। दोनों के प्रेम में कितनी रुकावटें आती हैं। लेकिन हिमालय से निकलने वाली नदी जाकर समुद्र से मिलती ही है। इस बीच रास्ते में उसे कितने कष्टों को सहना पड़ता है। सहती है और बांधाओं को पार करती है।
- सारी बांधाएं नदी ही क्यों पार करती है? समुद्र अपनी जगह से क्यों नहीं हिलता?
- किसने कहा कि नहीं हिलता। वह नदी की जलराशि को बढ़ाने के लिए बादल बनकर बरसता है। तुम्हें लगता है कि समुद्र अपनी जगह से नहीं हिला लेकिन वह तो अपने अस्तित्व को बदल देता है। बादल बनकर बरसता है। बिजली बनकर चमकता है। तुमने कभी बरसात देखी है। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक में समुद्र की बेचैनी और उसकी चाहत ही प्रतिध्वनित होती है।
वह अपने प्यार के लिए कुछ भी करने को बेताब होता है। इससे उसकी तड़प को समझा जा सकता है। वह अपनी प्रेमिका को हर संभव मदद करने की उत्कंठा से भरा होता है। उसके बादल बन कर बरसने से ही नदी को हौसला मिलता है। समुद्र ऐसा न करे तो नदी कभी भी उस तक न पहंुच पाए। अपने प्यार के लिए जितना कष्ट सरिता उठाती है उससे कम सागर नहीं उठाता। दोनों की बेचैनी और तड़प ही उन्हें एक दूसरे से मिलाती है।
- मैं तो नदी बन गई लेकिन अमर समुद्र नहीं बन पाया। अनु ने खुद से ही कहा।
- तुमने कुछ कहा? उसे चुप देख रमेश ने पूछा।
- डैडी क्या मेरी तरह अमर भी?
- क्यों नहीं बेटी। वह भी तुमसे प्यार करता है। यह तुम बेशक न समझो लेकिन मैंने उसकी आंखों में तुम्हारे लिए जो चाहत देखी है उसकी तुलना समुद्र की नदी के प्रति जो चाहत है उससे ही की जा सकती है। 
- तुम अभी किससे बात कर रही थी?
- अमर से।
- क्या कहा उसने?
- मुझे इग्नोर कर रहा है।
- ऐसा क्यों कर रहा है?
- एक बात पर मैं उस पर गुस्सा हो गई थी।
- केवल गुस्सा होने से तो ऐसा नहीं कर सकता। तुम ध्यान से सोचो कि कहीं ऐसी कोई बात तो नहीं कह दी जिससे वह हर्ट हुआ हो। अनु तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि तुम्हारी और अमर की सामाजिक-अर्थिक और सांस्कृतिक  पृष्ठभूमि बिल्कुल अगल है। तुम्हें अपने पैसे का गुरूर हो सकता है तो उसे अपने स्वाभिमानी होने का। यदि तुमने अपना गुरूर दिखाया तो उसका मुकाबला उसके स्वाभिमान से हो जाएगा। ऐसे में हार तुम्हारी होगी। उसकी तुम्हारे प्रति चाहत नफरत में बदल जाएगी। वह तड़पकर मर जाएगा लेकिन तुम्हारे सामने झुकेगा नहीं। 
रमेश ने कहा तो अनु चुप रही। वह सोचने लगी कि गुरूर तो मैंने दिखा दिया अब वह अपना स्वाभिमान दिखा रहा है। तो क्या बात बिगड़ गई है?
- अमर कब आ रहा है? अनु चुप रही तो रमेश ने पूछा।
- पता नहीं।
- क्यों?
- नाराज हो गया है।
- क्यों?
- उसने एक एड एजेंसी वाले को गालियां दी थीं। और काम लेने से भी मना कर दिया था। जिससे लाखों का नुकसान हुआ। मुझे पता चला तो मैंने उससे गुस्से में बात की। तब से वह मुझसे बात ही नहीं कर रहा है।
- हंू तो यह बात है।
- गलती मेरी ही है। मुझे इस तरह रिएक्ट नहीं करना चाहिए था। अनु ने खुद को समझाते हुए कहा।
- तो सॉरी बोल दो।
- बोला तो पर वह पिघलता ही नहीं।
- क्या कह रहा है?
- कहा ही तो कुछ नहीं। बेटे से बात करा दी। पत्नी से बात करा दी।
- तुम्हें क्या लगता है?
- वह अपने बीवी-बच्चों में खुश है।
- ऐसा हो नहीं सकता। वह खुद तड़पकर तुम्हें तड़पा रहा है। वह तुम्हें एहसास दिलाना चाहता है कि तुम्हारे लिए वह कितना महत्वपूर्ण है।
- हो सकता है लेकिन मुझे लगता है कि वह अपने परिवार में खुश है।
- तो तुम उसकी खुशी छीन लो।
- कैसे?
- पैसे वालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता। नथिंग इज इम्पॉसिबल। एवरीथिंग इज पॉसिबल फॉर कैप्टलिस्ट। ओके।
- डैडी, प्यार कोई व्यापार नहीं है। ना ही वस्तु है कि उसे खरीदा या बेचा जा सके।
- आई नाउ बेटी, इसीलिए कह रहा हूं कि हम इमोशनल नहीं होते। हम प्रोफेशनल होते हैं। हमारा ध्यान हमेशा अपने लाभ पर होता है। लाभ कमाने के लिए हम कुछ भी करते हैं। किसी भी सीमा को पार करते हैं। यदि ऐसा न करें तो हम भी उन्हीं करोड़ों लोगों की तरह हो जाएं। न खाने को रोटी न रहने को घर...।
- डैडी, आई लव हिम। मैं उसे प्यार करती हूं। मैं उसे रत्ती भर भी नुकसान नहीं पहंुचा सकती। मैं उसे परेशान भी नहीं देख सकती। आप यह समझ लो कि चोट उसे लगेगी तो दर्द मुझे होगा। आपने ऐसा-वैसा कुछ किया तो वह मरे या न मरे मैं जरूर मर जाउंगी। उसके बिना मैं अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती...।
- तुम प्यार करो यार लेकिन इमोशनल मत बनो। तुमने उससे रिलेशन बनाया क्योंकि यह तुम्हारी फीजिकल जरूरत थी। इसे इस एंगल से सोचो। तो तुम्हें परेशानी नहीं होगी।
- डैडी फीजिकल रिलेशन के लिए इमोशनल फीलिंगस का होना जरूरी होता है।
- हां, लेकिन स्त्री-पुरुष प्यार ही एक दूसरे की फीजिकल डिमांड को पूरा करने के लिए करते हैं। बस नाम लव का दे देते हैं। बिना वासना के प्यार नहीं होता। विदाउट सेक्स नो लव। वैसे भी जेंट्स एक बार जब वीमेन से फीजिकल रिलेशन बना लेता है तो उसका इंट्रेस्ट यानी रुचि उसमें नहीं रह जाता। आफ्टर सेक्स नो इंट्रेस्ट। फिर उसकी निगाहें दूसरी औरत को तलाशने लगती हैं।
- ऐसे तो पति-पत्नी का रिश्ता ही बेमानी हो जाता है?
- पति-पत्नी के बीच बच्चे भी होते हैं। मेरा मानना है कि बच्चे ही पति-पत्नी को पूरी जिंदगी जोड़ते हैं। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो पति-पत्नी शारीरिक रूप से इस स्थिति में आ जाते हैं कि फिर वे एक दूसरे की जरूरत बन जाते हैं। इस तरह यह रिश्ता निभ जाता है। इसके अलावा यह भी हकीकत है कि बहुत से लोग शादी के बाद भी इधर-उधर मंुह मारते रहते हैं। शादी का रिश्ता सामाजिक सुरक्षा देता है लेकिन मनुष्य हमेशा दायरों से बाहर निकलता रहता है। और तुम्हारे युग में तो शादी जैसे रिश्ते की कोई अहमियत ही नहीं रह गई है। इसे तुम भुगत चुकी हो। नजदीक से देख चुकी हो। आने वाली पीढ़ी लिव इन रिलेशनसिप की तरफ बढ़ रही है। वहां लव और सेक्स के बाद आगे बढ़ो। दो-चार साल एक के साथ बहुत है। फिर दूसरे पार्टनर के साथ।
- आप कहना चाहते हैं कि पति-पत्नी के बीच प्यार नहीं होता। वे सेक्स के लिए जुड़ते हैं। चूंकि समाज उनके सेक्स को मान्यता देता है इसलिए एक साथ रहते हैं लेकिन मौका पाते ही किसी और से भी फिजिकल रिलेशन बना लेते हैं।
- प्यार होता है। लेकिन नहीं भी होता है। चूंकि वह शादी करके कई प्रकार के बंधनों, सामाजिक मूल्यों आदि में बंधे होते हैं तो उन्हें प्यार न होते हुए भी इस रिश्ते को निभाना पड़ता है। कभी प्यार में तो कभी मजबूरी में, कभी एक दूसरे पर दया करते हुए। कभी समाज के लिए तो कभी बच्चों के लिए...।
- मैं भी तो अमर के बच्चे की मां बनने वाली हूं।
- क्या? तुम उसके बच्चे की मां बनने वाली हो? तुम क्या कह रही हो जानती हो?
- हां।
- तुमने उसे बताया?
- हां।
- क्या बोला?
- बधाई दी फिर कहने लगा तुम्हारे कैरियर के लिए ठीक नहीं है।
- तुमने क्या कहा?
- मैंने कहा मुझे कैरियर की परवाह नहीं है। मैं मां बनना चाहती हूं।
- तुम मां क्यों बनना चाहती हो?
- मुझे बेबी चाहिए। मैं पूर्ण होना चाहती हंू। मेरी उम्र भी हो गई है। आगे चलकर मैं मां नहीं बन पाउंगी। कुदरत ने औरत को जो नियामत बख्शी है मैं उसका आनंद लेना चाहती हंू।
- तुम नहीं जानती की तुम क्या चाह रही हो। बिना शादी के हमारा समाज इस बच्चे को स्वीकार नहीं करेगा।
- उसने भी यही कहा कि समाज क्या कहेगा? कल को लोगों को क्या जवाब दोगी?
- सही कहा। बिना मैरिज के बेबी। हमारी सोसाइटी एक्सप्ट नहीं करती।
- सोसाइटी की किसे परवाह है। यह मेरी लाइफ है इसमें सोसाइटी कहां से आ गई?
- क्योंकि हम एक सोसाइटी में रहते हैं।
- इस सोसाइटी में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसे बहुत से लोग स्वीकार नहीं करते लेकिन सब चल रहा है। कई औरतों को तो अपने बेबी के असली फादर का ही नहीं पता होता। जो उसका फादर होता है वह उसकी मां का इसबैंड नहीं होता...।
- जानता हंू यह सच है लेकिन।
- वह मुझसे शादी तो कर सकता है?
- तुम जानती हो कि वह शादीशुदा है।
- पहली पत्नी को तलाक दे सकता है?
- हां, तलाक दे सकता है। तुम इसके लिए हालात पैदा करो।
- कैसे?
- उसके घर चली जाओ। उसकी वाइफ को बताओ की तुम उसके पति के बच्चे की मां बनने वाली हो।
- इससे क्या होगा?
- इससे होगा यह कि उसकी वैवाहिक जिंदगी में आग लग जाएगी। उसकी पत्नी उसका जीना हराम कर देगी। वह दुखी होकर तुम्हारी शरण में आ जाएगा। उसे तलाक देगा और तुमसे शादी कर लेगा।
- लेकिन वह अपने बीवी बच्चों से बहुत प्यार करता है।
- प्यार तो तुमसे भी करता है।
- करता तो था लेकिन अब तो शक होने लगा है?
- तुम तो करती हो?
- हां।
- देखो तुम्हारे पास पैसा है। उसके पास रिश्ता है। पैसे के आगे रिश्ता कोई मायने नहीं रखता। तुम अपने पैसे की ताकत का इस्तेमाल करो। उसके घर जाओ। उसके परिवार को सुख-सुविधाओं से लैस कर दो। उनको ऐसे सपने दिखाओ की वह तुम्हें स्वीकार करने के लिए विवश हो जाएं। तुमने अभी तक अपना इमोशन इन्वेसमेंट किया है। अब मनी भी निवेश कर दो। आइएम श्योर। घाटे में वही रहेगी। वह अपनी बीवी को तलाक न भी दे लेकिन तुमसे प्यार करना और तुम्हें स्वीकार करना उसकी मजबूरी होगी। हां, एक चीज का ख्याल रखना। सत्ता की चाभी हमेशा अपने पास रखना। यदि उसे तुम्हारी संपत्ति मिल गई तो तुम उसके लिए किसी टिशू पेपर से ज्यादा अहमियत नहीं रखोगी। यह समझ लो वह पतंग है और तुम्हारी संम्पत्ति डोर है। तुम डोर से पतंग उड़ाने वाली हो। पतंग कट भी गई तो अपने साथ ज्यादा डोर लेकर नहीं जाएगी। बची डोर से तुम दूसरी पतंग उड़ा सकती हो।
दोपहर बाद अनु की चमचमाती महंगी कार अमर के घर के सामने रुकी तो आस पड़ोस के लोगों की निगाहें उसी पर ठहर गईं। उस समय अमर के छोटे नवाब गली में खेल रहे थे। खिलौनों में उनका प्रिय खिलौना हमेशा कार रही है। चमचमाती कार अपने दरवाजे पर खड़ी देखा तो खेल छोड़कर मुख्य दरवाजे पर खड़ा हो गया और भरपूर निगाहों से कार को देखने लगा।
टाइट जींस, तंग टी-शर्ट पहने आंखों पर काला चश्मा लगाए अनु कार से बाहर निकली। गली में अब तक कार देखकर ही दंग रह गये लोगों का मंुह खुला का खुला रह गया। पुरुषों और लड़कों के मुंह से निकला क्या कंटान माल आया है। महिलाओं ने ईर्षा जनित प्रतिक्रिया व्यक्त की। कौन आ गई? पता भूल गई है क्या? लेकिन अमर के छोटे नवाब बिल्कुल भी अश्चर्यचकित नहीं हुए। अनु ने जैसे ही चश्मे को आंख से उतारकर सिर पर टिकाया वह पहले धीरे से बोले-नई मम्मी फिर जोर से बोले -नई मम्मी।
- ओह आर यू करन? कहते हुए अनु ने छोटे नवाब को उठा लिया।
- हां, मुस्कुराते हुए उन्होंने जवाब दिया।
- यहां क्या कर रहो हो? अनु ने पूछा।
- खेल रहा था।
- डैडी हैं?
- हां, अंदर आओ। कहते हुए करन अंदर चल पड़े। उनके पीछे अनु। घर में प्रवेश करते ही वह सीधे अमर के पास पहुंची उस समय अमर सो रहा था।
- डैडी उठो, नई मम्मी आई हैं। इतना कहकर वह मम्मी को खोजने निकल गये। मम्मी छत पर थीं। वह फटाफट जीना चढ़ने लगे। आधी दूर पहुंचते ही चिल्लाएµ
- मम्मी-मम्मी-नई मम्मी आई हैं? नेहा ने उनकी बात को ध्यान नहीं दिया। वह अपनी पड़ोसन से गप्पे मार रही थीं। करन उनके पास पहुंच गया।
- मम्मी नीचे चलो नई मम्मी आई हैं। अब चौकने की बारी नेहा की थी।
- दिमाग खराब हो गया है। हमेशा बकवास करता रहता है। नेहा ने करन को डांट लगाई।
- नीचे चलो आई हैं। करन हाथ पकड़ कर खींचने लगा। पड़ोसन भौंचक्की थी। यह नई मम्मी कौन है? उनकी आंखों में यह सवाल तैरने लगा। नेहा समझ गई। उसने सफाई दी। अमर जिस लड़की के साथ सीरियल में काम कर रहे हैं उसे ही यह साहब नई मम्मी कहते हैं।
नेहा नीचे आई तो देखा घर में अनु खड़ी है। अमर सो रहा है। सामना होते ही दोनों ने एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। नेहा ने अमर को जगाया। अमर आंख मलते हुए उठा तो सामने अनु को देखकर चौंक गया।
- तुम? वह बेड से खड़ा हो गया।
- हां, मैं। अनु ने मुस्कुराते हुए कहा।
- बिना बताये, अचानक?
- सरप्राइज। तुम तो सोच भी नहीं सकते थे कि इस तरह मैं यहां पहुंच जाउंगी।
- सब ठीक तो है न?
- ठीक होता तो मैं यहां क्यों होती?
- क्यों? क्या हुआ? फोन पर भी तो कह सकती थी।
बात करते हुए ही अमर ड्राइंग रूम में आ गया। उसके पीछे-पीछे अनु और नेहा भी आ गई। करन कार के पास चला गया। अतीत क्रिकेट की प्रैक्टिस करने गया था तो प्रतीत ट्यूशन पढ़ने गये थे।
अमर ने बैंक से कर्ज लेकर यह मकान ले तो लिया था लेकिन इसकी अभी सजावट नहीं कर पाया था। सस्ता सोफा ले लिया था। और पर्दे भी सस्ते वाले टंगे थे। उसे एक बार को लगा कि अनु इस हालात में उसे न देखती तो बेहतर होता। फिर सोचा कि जो भी है सामने आना ही चाहिए। इसमें बुरा ही क्या है? फिर उसे याद आया कि एक बार उसे एक लड़की चाहने लगी थी। हालांकि उसने उसे भी बता दिया था कि वह शादीशुदा है। फिर भी उसकी चाहत कम नहीं हो रही थी। एक दिन वह अमर के घर आ गई। उस समय अमर किराये के कमरे में रहता था। उस दिन अमर उसे नहीं मिला। वह कहीं बाहर गया हुआ था लेकिन उसके घर की हालत देखकर लड़की के प्यार का भूत उतर गया। उस दिन के बाद से अमर को रोज कई घंटे तक फोन करने वाली कई दिनों बाद भी फोन नहीं किया। अमर उसके बारे में सोचता और मुस्करा देता। कभी-कभी अमर ही उस लडकी को फोन करता तो वह इधर-उधर की बातें करके फोन काट देती। अमर हंस कर रह जाता।
- ऐसी कोई खास बात नहीं है। मन में आया चलो दो-चार दिन के लिए मैं भी घूम आती हूं।
- लेकिन वहां का काम?
- काम का क्या है। होता ही रहता है। आदमी को कुछ वक्त अपने लिए भी तो निकालना चाहिए।
- सही बात है। इसी बीच अमर ने नेहा का अनु से और अनु का नेहा से परिचय कराया। हालांकि दोनों एक दूसरे को पहचान गई थीं। फिर भी औपचारिकता निभाना अमर ने जरूरी समझा।
अमर और अनु बातें करते रहे। नेहा चाय बनाने चली गई।
- आप तो यहां पत्नी के पास हो। कभी सोचा कि मेरी क्या हालत होती होगी?
- ये तो आपका ही फैसला है।
- जानती हूं लेकिन प्यार करने की इतनी बड़ी सजा नहीं मिलनी चाहिए।
- बिना जुदाई के प्यार की अहमियत नहीं पता चलती।
- ठीक कह रहे हो।
इसी बीच नेहा चाय-पानी लेकर हाजिर हो गई। उसके आते ही दोनों चुप हो गये। इसी दौरान करन आकर अमर की गोद में चढ़ गया। कान में फुसफुसाया कि कार में बैठना है। पहले तो अमर ने उनकी बात को टालने का प्रयास किया लेकिन जब वह अपनी बात की रट लगाए ही रखा तो उसने टालने के लिए कहा कि आंटी से बोलो। उन्हीं की कार है। वही बैठाएंगी। इतना सुनना था कि अनु ने करन को गोद में ले लिया और बाहर ले आकर कार में बैठा दिया। करन को लगा जैसे उनकी कई जन्मों की मुराद पूरी हो गई है। कार का एक-एक पार्ट देखने के बाद स्टेयरिंग पर बैठकर उसे चलाने का प्रयास करने लगे।
थोड़ी देर में अमर के दोनों बड़े बेटे अतीत-प्रतीत भी आ गये तो सभी ने शहर घूमने का प्लान बनाया। पूरा परिवार शहर के प्रसिद्ध मंदिर गया। वहां दर्शन करने और घूमने के बाद सभी ने एक रेस्टोरेंट में रात का भोजन किया और घर आ गये।
अमर के घर में कमरे दो थे। एक में अमर नेहा सोते थे तो दूसरे में बड़े बेटे। अनु के लिए बेटों को अपना कमरा खाली करना पड़ा। तय पाया गया कि बेटे ड्राइंग रूम में सो जाएंगे। लेकिन अनु ने कहा कि वह बच्चों के साथ ही कमरे में लेट जाएगी।
दरअसल, अनु अमर के बच्चों से बात करना चाहती थी। वह उनसे घुल-मिल जाना चाहती थी। हुआ भी यही। वह दोनों बेटों के साथ देर रात तक बातें करते रही। उसके लिए सुविधा की बात यह थी कि बच्चे अंग्रेजी अच्छी तरह से समझते थे। इसलिए उसे संवाद बनाने में दिक्कत नहीं हो रही थी। बातों में अनु ने दोनों बेटों को यह आश्वासन दे दिया कि कल वह दोनों को मोटरसाइकिल खरीद देगी। इस पर दोनों चौंक गये।
- दोनांे को बाइक?
- हां, भाई।
- लेकिन डैडी नहीं मानेंगे।
- क्यांे?
- कहेंगे कि हमारी उम्र बाइक चलाने की नहीं है।
- तुम लोग चला तो लेेते हो?
- हम चला तो लेते हैं लेकिन हमारी एज अभी 18 इयर नहीं है न। इसलिए डैडी कहते हैं कि यह इनलीगल है।
- डैडी कहते तो ठीक हैं लेकिन सब चलता है। हेलमेट लगा कर रखना। किसी को पता नहीं चलेगा।
- वही तो मैं कहता हूं पर डैडी मानते ही नहीं।
- कोई बात नहीं मान जाएंगे।
- हां, आप कहो तो शायद मान जाएं।
- क्यों? मेरे कहने से क्यों मान जाएंगे? अनु ने जानबूझ कर यह सवाल किया।
- आपकी बात थोड़े न टाल पाएंगे। मुस्कुराते हुए प्रतीत ने कहा।
- क्यों नहीं टाल पाएंगे? अनु ने पूछा। हालांकि बच्चों की शरारत को वह भी समझ गई थी।
- मुझे पता है। नहीं टाल पाएंगे। प्रतीत ने मुस्कुराते हुए कहा।
- ओके अपनी-अपनी गर्लफं्रेड का नाम बताओ। अनु ने विषय बदल दिया। दोनों इस सवाल पर चुप हो गये।
- क्यों तुम लोगों की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?
- नहीं। दोनों ने एक साथ कहा।
- ऐसा तो हो नहीं सकता बच्चे। मुझे बेवकूफ न बनाओ। मैं जब तुम लोगों की एज की थी तो मेरे कई फ्रेंड थे।
- कई ब्याय फ्रेंड!!! दोनों ने एक साथ पूछा।
- हां, भाई।
- अब कितने हैं?
- एक।
- नाम बताओ?
- पहले तुम बताओ? अनु ने दोनों को बातों में उलझा कर उनके गर्लफ्रेंड का नाम जान लिया लेकिन अपने ब्यायफ्रेंड का नाम नहीं बताया। हां बातों-बातों में यह जरूर कह दिया कि रील लाइफ का फ्रेंड ही मेरी रीयल लाइफ में भी है। इस पर दोनों बच्चे एक साथ बोल पड़े-डैडी।
- नो-नो दिस इज रांग। अनु ने खंडन किया लेकिन शब्द साथ नहीं दिये। उसकी हरकत पर दोनों हंस पड़े।
अगले दिन अमर के विरोध के बावजूद दोनों के लिए बाइक आ गई। वह भी उनकी पसंद की। इसके अलावा घर की भी कायाकल्प कर दी गई। पुराने सोफे हटाकर नये आ गये। ड्राइनिंग टेबल, जो अमर आजतक नहीं खरीद पाया था वह भी आ गई। नेहा के साथ अनु ने लाखों रुपये की शॉपिंग भी कर आई।
चार दिन अनु रही। इस दौरान उसने अमर के घर की हर वह कमी दूर कर दी जिसकी यह लोग महसूस करते थे। उनकी इस सम्पन्नता को पूरा मोहल्ला हैरान-परेशान होकर देख रहा था।
पांचवें दिन दिल्ली जाने के लिए अनु तैयार हो गई तो अमर को तैयार हुआ न देख हैरान रह गई। वह बड़ी देर तक इंतजार करती रही कि अमर अब तैयार होगा। अब तैयार होगा लेकिन जब वह तैयार नहीं हुआ तो उसे कहना ही पड़ा।
- अमर सीरियल में अब हमारी वाली कहानी आ गई है। उसकी शूटिंग होनी जरूरी है। नहीं तो सीरियल का प्रसारण नहीं हो पाएगा।
- मुझे लगता है कि मेरे चरित्र को खत्म कर देना चाहिए।
- क्या कह रहे हो? अनु धम्म से सोफे पर गिर पड़ी। जानते हो जब से तुम स्क्रीन पर नहीं आ रहे हो टीआरपी गिर गई है। आयोजक-प्रायोजक और चैनल वाले सभी परेशान हैं। तुम कह रहे हो कि तुम्हारा चरित्र खत्म कर दिया जाए। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?
- मेरा आपकी इस दुनिया में मन नहीं लगता।
- नेहा जी, समझाइए इन्हें। इनके मन की चली तो हम सभी बर्बाद हो जाएंगे।
अमर के इस रवैये से अनु ही नहीं नेहा और दोनों बेटे भी हैरान थे। उधर अमर के सामने एक दृश्य कौंध गया।
- मैडम ने इस पायजामा छाप को पता नहीं कहां से पकड़ लाया। अंग्रेजी नहीं आती तो जरूरी था इस प्रोफेशन में आना। किसी स्कूल या कालेज में हिंदी पढ़ाते।
- अब हम लोगों को हिंदी पढ़ा रहा है न।
- हां, वो कहते हैं न कि खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान। रानी के छूने से राजा हो गया है।
- साहब कोई डॉयलॉग न अंग्रेजी में बोलते हैं न ही लिखते हैं। चलो खुद नहीं बोलते तो दूसरे के लिए तो लिख दो। अंग्रेजी मिक्स डॉयलॉग के बिना सही माहौल ही नहीं बनता। शुद्ध हिंदी बोलते हुए करेक्टर भी अजीब लगता है। एक्टर भी कितना अनकंफरटेबल फील करते हैं।
- लिखें तो तब न जब अंग्रेजी आती हो।
यह बातें सीरियल के निर्देशक और सहायक निर्देशक के बीच हो रही थीं। इनसे कुछ दूरी पर बैठा अमर अखबार पढ़ रहा था। ऐसा नहीं था कि उन्हें पता नहीं था अमर के बारे मंे। वह भी जानते थे कि वे जो कुछ भी बोल रहें हैं अमर को सुनाई दे रहा है। अमर सुने यही इनका मकसद भी था। अमर के होतेे यह लोग सीरियल मेें मनचाहा बदलाव नहीं कर पा रहे थे। किसी भी बदलाव के लिए यह लोग अनु से बात करते तो वह साफ कह देती कि अमर से बात करो। यह लोग अमर से बात करते तो वह उनके तर्क से सहमत न होता। कई बार हो भी जाता। लेकिन अक्सर इनके सुझाव अमर को बचकाने ही लगते। लिहाजा वह इन्हें मना कर देता। इससे यह लोग उसे पसंद नहीं रकते थे। उसकी स्क्रिप्ट, उसकी कहानी उसके डायलॉग में कमियां निकालते। अनु को बताते लेकिन अनु भी इस तरफ ध्यान न देती।
अमर को ऐसी बातंे कोई एक बार नहीं, दिन में कई बार सुनने को मिलतीं। सेट पर अंग्रेजीदा लोग उसे पायजामा कहते। शिक्षक कहते। और न जाने क्या-क्या नाम रखकर उसका मजाक उड़ाते। कलाकार भी उसे पसंद नहीं कर रहे थे। क्योंकि वह कथा-पटकथा और संवाद हिंदी में लिखता। कलाकारों की डिमांड होती कि इन्हें देवनागरी में नहीं रोमन लिपी मेें लिखा जाए। इस पर अमर साफ कहता कि यदि किसी कलाकार को हिंदी पढ़नी नहीं आती तो उसे हिंदी सीरियल में काम करने की जरूरत नहीं है। इस वजह से कई कलाकारों की छुट्टी हो चुकी थी। कुछ यदि रह गये थे तो उनके लिए अनु रोमन में लिखने वाला लेखक रख लिया था। वह अमर के लिखे को रोमन में लिखता तब इन कलाकारों का काम चलता। अनु खुद इसी श्रेणी में थी।
- कहां खो गये? अनु ने उसे झकझोर दिया। आप जानते हैं कि यहां तक पहुंचने के लिए हमने कितने पापड़ बेले हैं। और आप हैं कि एक ही झटके में सब खत्म कर देना चहाते हैं। हमें बर्बाद कर देना चाहते हैं। आप स्वार्थी हो रहे हैं। आप ‘हमारे’ बारे में नहीं सोच रहे हैं। इन बच्चों के सपनों के बारे में नहीं सोच रहे हैं। आप नहीं जानते कि आपके इस निर्णय से कितने लोग प्रभावित होंगे। उसमें ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस दुनिया को अभी देखा ही नहीं। यह कहते हुए अनु का हाथ अपने पेट पर स्वतः ही चला गया।
- डैडी आपको जाना चाहिए। प्रतीत ने कहा। अमर ने उसकी तरफ देखा फिर नेहा की तरफ। मानो पूछ रहा हो कि तुम्हारी क्या राय है।
- मुझे भी लगता है कि आपको जाना चाहिए। अमर को अपनी तरफ प्रश्नवाचक निगाह से देखते देख नेहा ने कहा।
- ठीक है। जब तुम सबकी यही राय है तो। आप चलिए मैं कल ट्रेन से आ जाउंगा। अमर ने अनु से कहा।
- लेकिन मेरे साथ चलने में क्या परेशानी है? अनु ने सवाल किया।
- कोई परेशानी नहीं है।
- तो फिर टेªन से क्यों?
- डैडी, कहां टेªन से परेशान होंगे। आंटी के साथ कार से चले जाइए। प्रतीत ने फिर सलाह दी। अमर ने फिर नेहा कि तरफ देखा।
- जैसे कल वैसे आज। यदि जाना ही है तो...।
नेहा ने दुविधा में ही बात कही। दरअसल वह भी नहीं तय कर पा रही थी कि अमर को क्या करना चाहिए। वह अमर के जाने से भी डर रही थी और रुकने से भी। असमंजस की स्थिति में ही अमर को जाने के लिए कह दिया।
अमर मान गया। वह भी जीने के लिए तैयार हो गया। बेटों ने उसके बैग को कार में रख दिया। अमर आकर कार मंे बैठ गया। अनु ड्राइविंग सीट पर बैठ गई। अमर ने पलट कर घर के दरवाजे की तरफ देखा। करन को गोद में लिए नेहा खड़ी थी। उसका चेहरा सपाट था। खुश थी कि उदासी अमर समझ नहीं पाया। बेटों को देखा। वह हाथ हिलाते हुए खुश थे। कार चल पड़ी तो अमर ने अनु के चेहरे को देखा। अनु का चेहरा दप दपा रहा था...।
लेकिन अमर के कानों के पास गंूज रहा था।
- साहब कोई डॉयलॉग न अंग्रेजी में बोलते हैं न ही लिखते हैं।
-खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान।
- रानी के छूने से राजा हो गया है।
अमर ने धीरे से अपने कानों पर हाथ रख लिया लेकिन उक्त वाक्य फिर भी गूंजते रहे....।
- ओमप्रकाश तिवारी

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कविता ...... सन्तान मोह और मानव सभ्यता ....... क्या दो जून की रोटी के लिए जिंदगी पर जिल्लतें झेलता है इंसान? पेट की रोटी एक वजह हो सकती है यकीनन पूरी वजह नहीं हो सकती दरअसल, इंसान के तमाम सपनों में सबसे बड़ा ख्वाब होता है परिवार जिसमें माता-पिता नहीं होते शामिल केवल और केवल बच्चे होते हैं शामिल इस तरह हर युवा संतान की परिधि से बाहर हो जाते हैं माता-पिता जरूरी हो जाते हैं अपने बच्चे जब उनके बच्चों के होते हैं बच्चे तब वह भी चुपके से कर दिए जाते हैं खारिज फिर उन्हें भान होता है अपनी निरर्थकता का लेकिन तब तक हो गई होती है देरी मानव सभ्यता के विकास की कहानी संतान मोह की कारूण कथा है जहां हाशिये पर रहना माता-पिता की नियति है संतान मोह से जिस दिन उबर जाएगा इंसान उसी दिन रुक जाएगी मानव सभ्यता की गति फिर न परिवार होगा न ही घर न समाज होगा न कोई देश छल-प्रपंच ईर्षा-द्वेष भी खत्म बाजार और सरकार भी खत्म जिंदगी की तमाम जिल्लतों से निजात पा जाएगा इंसान फिर शायद न लिखी जाए कविता शायद खुशी के गीत लिखे जाएं... #omprakashtiwari

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डर ---- तेज बारिश हो रही है दफ्तर से बाहर निकलने पर उसे पता चला घर जाना है बारिश है अंधेरा घना है बाइक है लेकिन हेलमेट नहीं है वह डर गया बिना हेलमेट बाइक चलाना खतरे से खाली नहीं होता दो बार सिर को बचा चुका है हेलमेट शायद इस तरह उसकी जान भी फिर अभी तो बारिश भी हो रही है और रात भी सोचकर उसका डर और बढ़ गया बिल्कुल रात के अंधेरे की तरह उसे याद आया किसी फिल्म का संवाद जो डर गया वह मर गया वाकई डरते ही आदमी सिकुड़ जाता है बिल्कुल केंचुए की तरह जैसे किसी के छूने पर वह हो जाता है इंसान के लिए डर एक अजीब बला है पता नहीं कब किस रूप में डराने आ जाय रात के अंधेरे में तो अपनी छाया ही प्रेत बनकर डरा जाती है मौत एक और डर कितने प्रकार के हैं कभी बीमारी डराती है तो कभी महामारी कभी भूख तो कभी भुखमरी समाज के दबंग तो डराते ही रहते हैं नौकरशाही और सियासत भी डराती है कभी रंग के नाम पर तो कभी कपड़े के नाम पर कभी सीमाओं के तनाव के नाम पर तो कभी देशभक्ति के नाम पर तमाम उम्र इंसान परीक्षा ही देता रहता है डर के विभिन्न रूपों का एक डर से पार पाता है कि दूसरा पीछे पड़ जाता है डर कभी आगे आगे चलता है तो कभी पीछे पीछे कई

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