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डूबते सूरज की ओर

समय का ख्याल आते ही सियाराम साइकिल की गति बढ़ाने के लिए जल्दी-जल्दी पैंडल मारने लगे। पेट में चूहे कूद रहे थे। प्यास भी लग गई थी। वह शीघ्र घर पहुंच कर पहले पानी फिर कुछ खाना चाह रहे थे।
जैसे ही वह पैंडल जल्दी-जल्दी चलाने की कोशिश करते चेन उतर जाती। इसके अलावा सड़क में जगह-जगह बने गढ्डे अलग से परेशान कर रहे थे। गढ्डों की वजह से साइकिल तेज चलाना और मुश्किल हो रहा था। कहने को यह हाइवे है, लेकिन सड़क की हालत गांव की पगडंडी से भी बदतर है। गड्डों में सड़क को खोजना पड़ता है....


डूबते सूरज की ओर
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सियाराम ने साइकिल पर बैठकर पैर से जैसे ही पैंडल पर जोर लगाया खटाक करके चेन उतर गई...।
सियाराम को बहुत गुस्सा आया। मन ही मन गाली देते हुए साइकिल से उतरे और चेन को ठीक करने लगे। चेन चढ़ा ही रहे थे कि किसी ने पूछ लिया।
- साइकिल खराब हो गई का?
सियाराम ने चेन छोड़कर आवाज की तरफ देखा और मुस्करा कर बोले कि हां।
- किसी कबाड़ी को बेच दो यार। अब यह चलाने लायक नहीं है।
- पुरानी होने पर कोई घरवाली को बदल देता है का? सियाराम ने उस आदमी से चुहल की।
- अरे भाई, दुनिया मोटरसाइकिल और कार से चलने लगी है। तुम हो कि अभी इस कबाड़ साइकिल के पीछे ही पड़े हो।
- दुनिया में तो बहुत कुछ हो रहा है। लोग बहुत कुछ कर रहे हैं। देखते ही देखते लोग खाकपति से लखपति और लखपति से करोड़पति बन जा रहे हैं। इन सब से मेरी तुलना कैसे हो सकती है? सियाराम ने लंबी सांस ली और चेन ठीक करके साइकिल पर बैठ गए।
- लगता है कचहरी से आ रहे हो?
- हां भाई।
- का हुआ?
- होना क्या है। फिर तारीख मिल गई है।
- कब तक मिलती रहेगी तारीख?
- अब का बताएं। अपने वश में तो कुछ है नहीं। 18 साल हो गए। अभी तक बहस तक नहीं हुई है।
- मेरी मानो तो समझौता कर लो।
- किससे?
- जिससे मुकदमा लड़ रहे हो।
- एक हाथ से ताली बजती है का?
- प्रयास करके तो देखो। आदमी चाहे तो क्या नहीं हो सकता। मुकदमा वगैरह के मामले में ज्यादा सेखी नहीं बघारनी चाहिए। इतना कह कर वह आदमी मुख्य सड़क से निकली संपर्क सड़क पर मुड़ गया। दरअसल, बातचीत करते हुए दोनों बाजार से काफी दूर आ गए थे। इस बीच उस आदमी का गांव आ गया तो वह अपने रास्ते हो लिया। उस आदमी के कहे शब्द बड़ी देर तक सियाराम के कानों में गूंजते रहे।
समय का ख्याल आते ही सियाराम साइकिल की गति बढ़ाने के लिए जल्दी-जल्दी पैंडल मारने लगे। पेट में चूहे कूद रहे थे। प्यास भी लग गई थी। वह शीघ्र घर पहुंच कर पहले पानी फिर कुछ खाना चाह रहे थे।
जैसे ही वह पैंडल जल्दी-जल्दी चलाने की कोशिश करते चेन उतर जाती। इसके अलावा सड़क में जगह-जगह बने गढ्डे अलग से परेशान कर रहे थे। गढ्डों की वजह से साइकिल तेज चलाना और मुश्किल हो रहा था। कहने को यह हाइवे है, लेकिन सड़क की हालत गांव की पगडंडी से भी बदतर है। गड्डों में सड़क को खोजना पड़ता है।
सियाराम पर उनके पड़ोसियों ने कोई आठ मुकदमें कर रखे हैं। जिसमें से हर महीने किसी न किसी की तारीख पड़ती ही है। सियाराम हर माह अपने गांव से 27 किलोमीटर दूर अदालत में पेशी भुगतने जाते हैं। यह सिलसिला पिछले 18 सालों से बदस्तूर चला आ रहा है।
तारीख वाले दिन सियाराम सुबह ही उठते हैं। दिशा-मैदान जाते हैं। नित्यक्रिया करते हैं। जानवरों को चारा वगैरह डालते हैं। नहाते-धोते हैं और पूजा-पाठ करके दो-चार रोटियां खा कर साइकिल से घर से निकाल पड़ते हैं। घर से तीन किलोमीटर साइकिल से जाते हैं। इसके बाद कसबे के एक परिचित के यहां साइकिल खड़ी करते हैं। फिर टैक्सी या बस पकड़ कर शहर जाते हैं। जिला मुख्यलय कचहरी में पेशी भुगतने।
जब भी वह घर से अदालत के लिए निकलते हैं उन्हें एक आदमी का यह कथन याद आ जाता है।
- तुम क्या मुकदमा लड़ोगे। अपनी औकात देखी है। इतने साल लगेंगे कि साल गिनना भी भूल जाओगे। चुप मार कर मामला यहीं निपटा लो।
उस समय उस आदमी को सियाराम के जवान बेटे ने बेईज्जत करके भगा दिया था। हालांकि वह आदमी कह तो सच ही रहा था लेकिन उसके कहने की टोन सियाराम और उनके बेटे को अच्छी नहीं लगी थी। गांव वाले पंचायत के नाम पर सियाराम को ही दबा रहे थे। ऐसे में उनके पास अदालत का दरवाजा खटखटाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था।
आज सुबह वह दो रोटी खाकर पेशी भुगतने शहर चले गए थे। आज दो मुकदमों की तारीख थी। अदालत में अपनी बारी का इंतजार करते रहे। लंबी प्रतीक्षा के बाद नंबर आया तो फिर मिल गई तारीख...।
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गांव का चौराहा। चाय की दुकान पर कई लोग बैठे थे। उनके हाथों में चाय के कप के अलावा आज के अखबार के एक-एक पन्ने थे। उनके बीच कोर्ट के एक निर्णय पर बहस छिड़ी थी। लगभग सभी एक सुर में कह रहे थे कि जिस तरह से अदालत निर्णय दे रही है उससे लगने लगा है कि न्याय हमारे देश में अब भी जिंदा है। इन दिनों अदालत ने कुछ फैसले ऐसे सुनाए हैं कि लोगों की आस्था फिर से न्याय के प्रति बढ़ गई है। अब क्या पैसे वाला और क्या नेता, कोई भी कानून से बड़ा नहीं रह गया है। अदालत ने किसी को नहीं बख्शा है। जिसने अपराध किया उसे सजा दी है। पैसा और सत्ता की ताकत को भी उसकी औकात बता दी है।
इसी बीच उन्हीं में से किसी ने कहा कि तभी तो नेता लोग न्यायिक सक्रियता का राग अलापने लगे हैं। कहने लगे हैं कि न्यायपालिका को अपने हद में रहना चाहिए।
लेकिन इस आदमी की बात को किसी ने नहीं सुना। सभी इसी चर्चा में मशगूल रहे कि अदालत किसी को नहीं छोड़ेगी। वहां देर है लेकिन अंधेर नहीं है।
इन्हीं के बीच गांव का एक आदमी बैठा इनकी बातों को सुन रहा था। वह इनकी बातों से सहमत नहीं था। वह इन्हें मूर्ख नहीं तो अज्ञानी जरूर समझ रहा था, लेकिन इनकी बातों पर वह हंस नहीं रहा था। उसे गुस्सा भी नहीं आ रहा था, लेकिन जब बात अधिक खिंच गई तो वह बोल पड़ा।
- देर होना क्या अंधेर नहीं है? यदि समय से न्याय न मिला तो क्या वह न्याय रह जाता है?
उसके सवाल पर चुप्पी छा गई। लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे। इसी बीच दुकान के बाहर शोर मचा।
- अरे उठाओ भाई।
- चोट तो नहीं लगी?
- डाक्टर के पास ले चलना होगा।
- लगता है, धुस्स चोट आई है।
- पैर टूट गया लगता है।
- सिर में चोट लगी है।
- हाथ भी टूट गया लगता है।
- कोई पानी लाओ भाई।
यह सभी लोग सियाराम को उठाए हुए थे। सियाराम बेहोश थे। उन्हें अभी-अभी एक मोटरसाइकिल वाला टक्कर मार कर भाग गया था। वह सड़क से सीधे खाईं में आ गिरे थे।
लोगों ने सियाराम को खाईं से निकाल कर एक जगह लिटाया। एक आदमी ने उनके मुंह पर पानी के छींटे मारे तो उन्होंने आंखें खोलीं।
- कैसे हो काका?
एक युवक ने पूछा। सियाराम एकटक सभी को देखते रहे। उनके मुंह से आवाज नहीं निकली।
- इनके घर खबर दे दो भाई। किसी ने अपनी राय दी। उसकी बात का सुनना था कि सियाराम ने उठने का प्रयास किया। इसमें वह सफल हुए। उठकर खड़े हो गए। दो कदम चले तो लोगों ने खुशी व्यक्त की।
-बच गए। बहुत बड़ी अनहोनी होने से टल गई। कइयों ने एक साथ कहा।
- चोट नहीं आई है।
- किस्मत से ही बच गए।
- भगवान की बड़ी कृपा थी।
- थोड़े में ही बड़ी ग्रह कट गई। नहीं तो उसने तो उठाकर फेंक ही दिया था।
- मेरे घर तो खबर नहीं भिजाई? सियाराम ने लोगाें से पूछा।
- अभी नहीं। भिजवानी है क्या?
- डाक्टर को दिखाना है क्या?
- नहीं। मैं ठीक हूं। घर चला जाऊंगा। घर वाले बेकार ही परेशान हो जाएंगे।
- इसीलिए तो घर किसी को भिजवाया नहीं।
- थोड़ी देर और होश में न आते तो आपके बेटों को फोन कर देता। यह देखो मोबाइल हाथ में निकाल लिया था। एक युवक ने अपनापन दिखाया।
- तेरे पास नंबर कहां है? उसकी डींग की किसी ने हवा निकालनी चाही।
- इस मोबाइल में है। चाचा कई बार इससे फोन कर चुके हैं। क्यों चाचा? उसने सियाराम से समर्थन हासिल कर लिया।
दरअसल, सियाराम उसके मोबाइल से मिस्ड काल करवाते हैं अपने इकलौते बेटे के पास। फिर बेटा उन्हें फोन करता है। उसकी योजना अभी भी मिस्ड काल करने की ही थी।
सियाराम चाय-पानी पीकर साइकिल को ठीक-ठाक कराकर घर के लिए चल पड़े। वह दुाकन से थोड़ी ही दूर गए थे कि दुकान में चुपचाप बैठे आदमी ने अदालत के फैसलों पर बहस कर रहे लोगों से बोला।
- हमारी न्यायपालिका कितनी सक्रिय है और वहां कितना न्याय मिलता है जरा इनसे से पूछिए।
उसका इशारा सियाराम की तरफ था। जो अपनी पुरानी साइकिल से घर की तरफ जा रहे थे। खडंजे की सड़क पर खड़-खड़ कर रही थी...।
यह भी महज संयोग ही था कि इस समय वह पश्चिम दिशा की तरफ जा रहे थे और उनके ठीक सामने सूरज डूबने वाला था....।
kahani
omprakash tiwari

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