कविता से संजय की मुलाकात उसकी दुकान पर हुई थी। कविता की जनरल स्टोर की दुकान
थी। वह दुकान पर बैठी थी और संजय कोई सामान लेने आया था। पहली ही नजर में दोनों एक
दूसरे को देखते रह गए। कुछ क्षण के बाद जब मुस्कराते हुए कविता ने मुंह मोड़ा था तो
संजय के दिल की धड़कनें तेज हो चुकी थीं। अचानक उसे लगा कि वह आसमान में उड़ रहा
है...।
कहानी
बारिश
सुबह से ही झमाझम बारिश हो रही थी। पिछले एक सप्ताह की उमस भरी गर्मी के बाद इस तरह की बरसात होना काफी सुखदायी अनुभव था। यही कारण था कि कई लोग बारिश में भीग रहे थे। मोतियों की तहर आसमान से टपकतीं बूंदें शरीर पर पड़ती तो मन किसी मयूर की तरह नाच उठता।
संजय छाता लगाए भीगने से बचने का प्रयास करता चला जा रहा था।
एकाएक सामने निगाह पड़ी तो दिल धक् से करके रह गया और होंठ मुस्कान में बरबस ही फैल गए। सामने वाले की भी ऐसी ही प्रतिक्रिया थी। दोनों एक दूसरे को रुक कर देखते ही रह गए। इसी बीच आसमान में बादल गड़गड़ाए और तेजी से बिजली चमकी। साथ ही हवा का एक झोंका आया और दोनों की छतरियां उड़ गईं...।
दोनों अपनी-अपनी छतरी को जब तक संभालते बारिश में भीग चुके थे।
- कैसी हैं आप? संजय ने चेहरे के पानी को हाथ से पोछते हुए पूछा।
- ठीक हूं, आप कैसे हैं? जवाब के साथ सवाल उधर से भी उछाल दिया गया।
- मैं भी ठीक हूं।
दोनों ठिठक गए। छाते को बंद कर लिया और बारिश में तर-बतर होते रहे। भीग जाने से कपड़े तन से चिपक गए थे जैसे डरा बच्चा मां की गोद में चिपकता है। तन बारिश में भीग रहा था और मन के आसमान पर बादल छा गए थे। इंतजार था तो उनके बरसने का...।
- बारिश में भीगना कितना अच्छा लगता है न?
उसकी तरफ देखते हुए संजय ने कहा। कदम रुक गए थे तो संवाद जरूरी हो गया था। दोनों नहीं चाहते थे कि कदम चलें। बहुत सारी बातें थीं जो वह करना चाहते थे और बहुत सारे सवाल थे जिनका वह उत्तर चाहते थे।
- हां, अच्छा तो लगता है। आदमी के जिंदगी में बरसात के क्षण आते ही कितने हैं। और जब आते हैं तो आदमी इन्हें जिंदगी भर के लिए समेट लेना चाहता है।
कविता से संजय की मुलाकात उसकी दुकान पर हुई थी। कविता की जनरल स्टोर की दुकान थी। वह दुकान पर बैठी थी और संजय कोई सामान लेने आया था। पहली ही नजर में दोनों एक दूसरे को देखते रह गए। कुछ क्षण के बाद जब मुस्कराते हुए कविता ने मुंह मोड़ा था तो संजय के दिल की धड़कनें तेज हो चुकी थीं। अचानक उसे लगा कि वह आसमान में उड़ रहा है...। सामान लेने के बाद भी वह दुकान पर खड़ा रहा और कविता से किसी न किसी बहाने से बातें करने में मशगूल रहा। इसके बाद वह अक्सर कविता की दुकान पर कई-कई बार जाने लगा। बाद में पता चला कि कविता संजय के ही मित्र रवि से प्यार करती है। इसके बाद संजय का दुकान पर जाना पहले तो कम हुआ और फिर एकदम से बंद हो गया।
- रवि कैसा है? सड़क पर जमे पानी को पैर से उछालते हुए संजय ने कविता से पूछा। दोनों अगल-बगल भीगते हुए धीरे-धीरे चल रहे थे। कई लोगों की निगाहें उन पर थीं पर वह इससे बेखबर थे। बारिश में भीगना उन्हें अच्छा लग रहा था और वह अच्छी तरह से भीग जाना चाहते थे...।
- ठीक ही होगा। कविता के जवाब से संजय चौंका।
- मतलब?
प्रत्युत्तर में कविता चुप रही।
- आपने उससे शादी नहीं की?
- उसने मुझसे नहीं की।
- क्या कह रही हैं आप?
- उसने किसी और लड़की से शादी कर ली।
- लेकिन आप दोनों तो प्यार करते थे?
- कम से कम मैं तो उससे करती ही थी।
- तो क्या रवि....।
- उसे अमीर बाप की बेटी मिल गई...।
- बहुत गंदा आदमी निकला।
- पुरुष ऐसे ही होते हैं।
- मैं समझ सकता हूं।
- कोई तो मिला जो समझने का दावा करता है। हालांकि पुरुषों के ऐसे दावों में धूर्तता छिपी होती है।
- बहुत संगीन आरोप है। मेरी सफाई का तो कोई औचित्य नहीं रह जाता, क्योंकि उसका भी कोई ऐसा ही मंतव्य निकाल लिया जाएगा। फिर भी ऐसे हालात में कोई भी लड़का जो कहता मैं भी कह देता हूं कि सभी पुरुष एक जैसे नहीं होते।
हां, इतनी और कहूंगा कि आदमी ही अच्छे-बुरे होते हैं। वह औरत भी हो सकती है और पुरुष भी। लेकिन यह भी सही है कि आदमी अपने अनुभव से ही कोई धारणा बनाता है। मैं तो इतना जानता हूं कि स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं।
- इस बात को पुरुष नहीं समझता न। वह अपने आपको शासक ही समझता है। उसके सारे क्रियाकलाप इसी मानसिकता से संचालित होते हैं।
- तो आपने शादी नहीं की?
- नहीं। कविता के जवाब के बाद संजय ने कविता की मांग को देखा। उसे कविता के कहे पर विश्वास नहीं हो रहा था। मांग खाली देखकर उसे लगा कि कविता सच कह रही है।
- आपने शादी की? कविता ने संजय से पूछा।
- नहीं। इस बार कविता ने संजय को गौर से देखा।
इसी बीच बादलों में गड़गड़ाहट हुई और जोर की आवाज के साथ बिजली चमकी। फिर हवा का एक तेज झोंका आया जो उन्हें कंपकंपाकर चला गया...। बारिश तेज हो गई थी। लेकिन आसमान से टपकी बूंदें उन्हें फूल जैसी लग रही थीं...।
- शादी क्यों नहीं की?
- आप अच्छी तरह से जानती हैं।
- भला मैं कैसे जान सकती हूं?
- शादी तो आपने भी नहीं की।
- जिंदगी जीने के लिए क्या शादी करना जरूरी होता है? कविता ने पूछा।
- शायद हां, शायद नहीं। लेकिन यह सच है कि बिना मकसद के जिया नहीं जा सकता और जीने के लिए किसी न किसी से प्रेम होना जरूरी है। शादी के बाद भी कई लोग एक दूसरे से प्रेम नहीं करते और कई लोग ऐसे भी होते हैं जो बिना शादी के ही प्रेम करते हैं और जिसे चाहते हैं उसके लिए जीते हैं बेशक उससे शादी न कर पाएं।
- काफी दार्शिनक जवाब है और पुरुषोचित भी।
- कई बार मैं सोचता हूं कि मछली पानी के लिए जितना तड़पती है क्या पानी भी उतना ही मछली के लिए तड़पता होगा?
- पानी से मछली का जीवन है। पानी के लिए मछली का तड़पना स्वाभाविक है। लेकिन मछली के होने न होने से पानी के अस्तित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए पानी मछली के लिए क्यों तड़पेगा?
- मैं दोनों में प्रेम की बात कर रहा था।
- एक दूसरे की परस्पर निर्भरता से ही प्रेम उपजता है और पल्वित भी होता है।
- एक बात पूछूं तो आप नाराज तो नहीं होंगी?
- यह तो बात पर निर्भर करेगा। मुस्कराते हुए कविता ने कहा।
- यह भी खूब रही। संजय भी मुस्करा पड़ा।
इस बीच बारिश की बूंदें धीमी हो गईं थी।
- क्या आपको कभी मेरी याद आई? बेहद संजीदगी से संजय ने कविता से सवाल किया।
- आपको मेरी याद आई?
कविता ने उल्टा सवाल दाग दिया।
- आप यकीन नहीं करेंगी, लेकिन यह सच है कि मैं आपको कभी भुला नहीं पाया।
- मेरी कोई खोज-खबर ली कभी?
- मैं तो यही मानता रहा कि आपने रवि से...।
- लेकिन मैं चाह कर भी आपसे नहीं मिल पाई। बहुत खोजने के बाद भी आपका पता नहीं चला। लेकिन दिल कहता था कि एक दिन हमारी मुलाकात जरूर होगी।
- मैं यह शहर छोड़ कर चला गया था।
दोनों चलते-चलते एक स्कूल के पास आ गए थे। बारिश रुक गई थी। स्कूल में छुट्टी हो गई थी। बच्चे स्कूल से निकल रहे थे।
दो बच्चे दौड़ते हुए उनके पास आए। एक मम्मी कहते हुए कविता से लिपट गया तो दूसरा डैडी कहते हुए संजय से। दोनों ने बच्चों को गोद में उठा लिया। उन्हें प्यार किया और चूमा। फिर एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कराए।
- मेरा बेटा है कुकू। कविता ने पहले कहा।
- मेरी बेटी है रिंकी।
(दोनों बच्चों ने एक दूसरे के अभिभावकों को नमस्ते किया।)
एक सवाल दोनों की आंखों में था, लेकिन जुबान पर नहीं आ रहा था। वह वापस घर की तरफ चल पड़े। इस दौरान उनके बीच मौन पसरा रहा। सबसे पहले कविता का घर आया। उसने दरवाजा खोला और कुकू को गोदी से उतार कर अंदर जाने को कहा। खुद दरवाजे पर खड़ी हो गई। उदासी दोनाें के चेहरों पर तारी थी। बिना कुछ बोले संजय जाने लगा तो कविता ने कहा कि घर में नहीं चलोगे?
- हां, अंकल अंदर आइए न। यह कुकू था। रिंकी अपने डैडी को अंदर लेकर आ न।
कुकू के अनुरोध पर रिंकी ने भी संजय को अंदर चलने के लिए कहा। उसके अनुरोध को संजय टाल नहीं पाया।
घर में आते ही कुकू और रिंकी खेलने लगे। कविता जल्दी से चाय बनाकर लाई। दोनों को समझ में नहीं आ रहा था कि बात कहां से आरंभ करें। कुछ देर पहले जो एक दूसरे से बातें कर रहे थे, अब अचानक एकदम से अजनबी हो गए थे।
- कुकू को मैंने गोद लिया है। कविता ने संवाद को आरंभ किया।
यह सुनते ही संजय के चेहरे की उदासी जाती रही। लगा जैसे कमल के फूल को धूप मिल गई हो। उसने चाय को खत्म करके कप को मेज पर रख दिया।
- रिंकी को मैंने भी गोद लिया है। संजय ने मुसकराते हुए कविता की तरफ देखा। उसके चेहरे पर खुशी और आश्चर्य के भाव आ-जा रहे थे।
बाहर फिर जोर की बारिश शुरू हो गई थी...। रिंकी और कुकू खेलने में मस्त थे। कविता और संजय आसमान से झर रहे मोतियों को आंखों से समेट रहे थे। कोई नहीं चाहता था कि बारिश रुके...।
- ओमप्रकाश तिवारी
कहानी
बारिश
सुबह से ही झमाझम बारिश हो रही थी। पिछले एक सप्ताह की उमस भरी गर्मी के बाद इस तरह की बरसात होना काफी सुखदायी अनुभव था। यही कारण था कि कई लोग बारिश में भीग रहे थे। मोतियों की तहर आसमान से टपकतीं बूंदें शरीर पर पड़ती तो मन किसी मयूर की तरह नाच उठता।
संजय छाता लगाए भीगने से बचने का प्रयास करता चला जा रहा था।
एकाएक सामने निगाह पड़ी तो दिल धक् से करके रह गया और होंठ मुस्कान में बरबस ही फैल गए। सामने वाले की भी ऐसी ही प्रतिक्रिया थी। दोनों एक दूसरे को रुक कर देखते ही रह गए। इसी बीच आसमान में बादल गड़गड़ाए और तेजी से बिजली चमकी। साथ ही हवा का एक झोंका आया और दोनों की छतरियां उड़ गईं...।
दोनों अपनी-अपनी छतरी को जब तक संभालते बारिश में भीग चुके थे।
- कैसी हैं आप? संजय ने चेहरे के पानी को हाथ से पोछते हुए पूछा।
- ठीक हूं, आप कैसे हैं? जवाब के साथ सवाल उधर से भी उछाल दिया गया।
- मैं भी ठीक हूं।
दोनों ठिठक गए। छाते को बंद कर लिया और बारिश में तर-बतर होते रहे। भीग जाने से कपड़े तन से चिपक गए थे जैसे डरा बच्चा मां की गोद में चिपकता है। तन बारिश में भीग रहा था और मन के आसमान पर बादल छा गए थे। इंतजार था तो उनके बरसने का...।
- बारिश में भीगना कितना अच्छा लगता है न?
उसकी तरफ देखते हुए संजय ने कहा। कदम रुक गए थे तो संवाद जरूरी हो गया था। दोनों नहीं चाहते थे कि कदम चलें। बहुत सारी बातें थीं जो वह करना चाहते थे और बहुत सारे सवाल थे जिनका वह उत्तर चाहते थे।
- हां, अच्छा तो लगता है। आदमी के जिंदगी में बरसात के क्षण आते ही कितने हैं। और जब आते हैं तो आदमी इन्हें जिंदगी भर के लिए समेट लेना चाहता है।
कविता से संजय की मुलाकात उसकी दुकान पर हुई थी। कविता की जनरल स्टोर की दुकान थी। वह दुकान पर बैठी थी और संजय कोई सामान लेने आया था। पहली ही नजर में दोनों एक दूसरे को देखते रह गए। कुछ क्षण के बाद जब मुस्कराते हुए कविता ने मुंह मोड़ा था तो संजय के दिल की धड़कनें तेज हो चुकी थीं। अचानक उसे लगा कि वह आसमान में उड़ रहा है...। सामान लेने के बाद भी वह दुकान पर खड़ा रहा और कविता से किसी न किसी बहाने से बातें करने में मशगूल रहा। इसके बाद वह अक्सर कविता की दुकान पर कई-कई बार जाने लगा। बाद में पता चला कि कविता संजय के ही मित्र रवि से प्यार करती है। इसके बाद संजय का दुकान पर जाना पहले तो कम हुआ और फिर एकदम से बंद हो गया।
- रवि कैसा है? सड़क पर जमे पानी को पैर से उछालते हुए संजय ने कविता से पूछा। दोनों अगल-बगल भीगते हुए धीरे-धीरे चल रहे थे। कई लोगों की निगाहें उन पर थीं पर वह इससे बेखबर थे। बारिश में भीगना उन्हें अच्छा लग रहा था और वह अच्छी तरह से भीग जाना चाहते थे...।
- ठीक ही होगा। कविता के जवाब से संजय चौंका।
- मतलब?
प्रत्युत्तर में कविता चुप रही।
- आपने उससे शादी नहीं की?
- उसने मुझसे नहीं की।
- क्या कह रही हैं आप?
- उसने किसी और लड़की से शादी कर ली।
- लेकिन आप दोनों तो प्यार करते थे?
- कम से कम मैं तो उससे करती ही थी।
- तो क्या रवि....।
- उसे अमीर बाप की बेटी मिल गई...।
- बहुत गंदा आदमी निकला।
- पुरुष ऐसे ही होते हैं।
- मैं समझ सकता हूं।
- कोई तो मिला जो समझने का दावा करता है। हालांकि पुरुषों के ऐसे दावों में धूर्तता छिपी होती है।
- बहुत संगीन आरोप है। मेरी सफाई का तो कोई औचित्य नहीं रह जाता, क्योंकि उसका भी कोई ऐसा ही मंतव्य निकाल लिया जाएगा। फिर भी ऐसे हालात में कोई भी लड़का जो कहता मैं भी कह देता हूं कि सभी पुरुष एक जैसे नहीं होते।
हां, इतनी और कहूंगा कि आदमी ही अच्छे-बुरे होते हैं। वह औरत भी हो सकती है और पुरुष भी। लेकिन यह भी सही है कि आदमी अपने अनुभव से ही कोई धारणा बनाता है। मैं तो इतना जानता हूं कि स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं।
- इस बात को पुरुष नहीं समझता न। वह अपने आपको शासक ही समझता है। उसके सारे क्रियाकलाप इसी मानसिकता से संचालित होते हैं।
- तो आपने शादी नहीं की?
- नहीं। कविता के जवाब के बाद संजय ने कविता की मांग को देखा। उसे कविता के कहे पर विश्वास नहीं हो रहा था। मांग खाली देखकर उसे लगा कि कविता सच कह रही है।
- आपने शादी की? कविता ने संजय से पूछा।
- नहीं। इस बार कविता ने संजय को गौर से देखा।
इसी बीच बादलों में गड़गड़ाहट हुई और जोर की आवाज के साथ बिजली चमकी। फिर हवा का एक तेज झोंका आया जो उन्हें कंपकंपाकर चला गया...। बारिश तेज हो गई थी। लेकिन आसमान से टपकी बूंदें उन्हें फूल जैसी लग रही थीं...।
- शादी क्यों नहीं की?
- आप अच्छी तरह से जानती हैं।
- भला मैं कैसे जान सकती हूं?
- शादी तो आपने भी नहीं की।
- जिंदगी जीने के लिए क्या शादी करना जरूरी होता है? कविता ने पूछा।
- शायद हां, शायद नहीं। लेकिन यह सच है कि बिना मकसद के जिया नहीं जा सकता और जीने के लिए किसी न किसी से प्रेम होना जरूरी है। शादी के बाद भी कई लोग एक दूसरे से प्रेम नहीं करते और कई लोग ऐसे भी होते हैं जो बिना शादी के ही प्रेम करते हैं और जिसे चाहते हैं उसके लिए जीते हैं बेशक उससे शादी न कर पाएं।
- काफी दार्शिनक जवाब है और पुरुषोचित भी।
- कई बार मैं सोचता हूं कि मछली पानी के लिए जितना तड़पती है क्या पानी भी उतना ही मछली के लिए तड़पता होगा?
- पानी से मछली का जीवन है। पानी के लिए मछली का तड़पना स्वाभाविक है। लेकिन मछली के होने न होने से पानी के अस्तित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए पानी मछली के लिए क्यों तड़पेगा?
- मैं दोनों में प्रेम की बात कर रहा था।
- एक दूसरे की परस्पर निर्भरता से ही प्रेम उपजता है और पल्वित भी होता है।
- एक बात पूछूं तो आप नाराज तो नहीं होंगी?
- यह तो बात पर निर्भर करेगा। मुस्कराते हुए कविता ने कहा।
- यह भी खूब रही। संजय भी मुस्करा पड़ा।
इस बीच बारिश की बूंदें धीमी हो गईं थी।
- क्या आपको कभी मेरी याद आई? बेहद संजीदगी से संजय ने कविता से सवाल किया।
- आपको मेरी याद आई?
कविता ने उल्टा सवाल दाग दिया।
- आप यकीन नहीं करेंगी, लेकिन यह सच है कि मैं आपको कभी भुला नहीं पाया।
- मेरी कोई खोज-खबर ली कभी?
- मैं तो यही मानता रहा कि आपने रवि से...।
- लेकिन मैं चाह कर भी आपसे नहीं मिल पाई। बहुत खोजने के बाद भी आपका पता नहीं चला। लेकिन दिल कहता था कि एक दिन हमारी मुलाकात जरूर होगी।
- मैं यह शहर छोड़ कर चला गया था।
दोनों चलते-चलते एक स्कूल के पास आ गए थे। बारिश रुक गई थी। स्कूल में छुट्टी हो गई थी। बच्चे स्कूल से निकल रहे थे।
दो बच्चे दौड़ते हुए उनके पास आए। एक मम्मी कहते हुए कविता से लिपट गया तो दूसरा डैडी कहते हुए संजय से। दोनों ने बच्चों को गोद में उठा लिया। उन्हें प्यार किया और चूमा। फिर एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कराए।
- मेरा बेटा है कुकू। कविता ने पहले कहा।
- मेरी बेटी है रिंकी।
(दोनों बच्चों ने एक दूसरे के अभिभावकों को नमस्ते किया।)
एक सवाल दोनों की आंखों में था, लेकिन जुबान पर नहीं आ रहा था। वह वापस घर की तरफ चल पड़े। इस दौरान उनके बीच मौन पसरा रहा। सबसे पहले कविता का घर आया। उसने दरवाजा खोला और कुकू को गोदी से उतार कर अंदर जाने को कहा। खुद दरवाजे पर खड़ी हो गई। उदासी दोनाें के चेहरों पर तारी थी। बिना कुछ बोले संजय जाने लगा तो कविता ने कहा कि घर में नहीं चलोगे?
- हां, अंकल अंदर आइए न। यह कुकू था। रिंकी अपने डैडी को अंदर लेकर आ न।
कुकू के अनुरोध पर रिंकी ने भी संजय को अंदर चलने के लिए कहा। उसके अनुरोध को संजय टाल नहीं पाया।
घर में आते ही कुकू और रिंकी खेलने लगे। कविता जल्दी से चाय बनाकर लाई। दोनों को समझ में नहीं आ रहा था कि बात कहां से आरंभ करें। कुछ देर पहले जो एक दूसरे से बातें कर रहे थे, अब अचानक एकदम से अजनबी हो गए थे।
- कुकू को मैंने गोद लिया है। कविता ने संवाद को आरंभ किया।
यह सुनते ही संजय के चेहरे की उदासी जाती रही। लगा जैसे कमल के फूल को धूप मिल गई हो। उसने चाय को खत्म करके कप को मेज पर रख दिया।
- रिंकी को मैंने भी गोद लिया है। संजय ने मुसकराते हुए कविता की तरफ देखा। उसके चेहरे पर खुशी और आश्चर्य के भाव आ-जा रहे थे।
बाहर फिर जोर की बारिश शुरू हो गई थी...। रिंकी और कुकू खेलने में मस्त थे। कविता और संजय आसमान से झर रहे मोतियों को आंखों से समेट रहे थे। कोई नहीं चाहता था कि बारिश रुके...।
- ओमप्रकाश तिवारी
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