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Showing posts from October, 2008

कहानी - कोढ़ी का नल

अन्तिम भाग -- उसने नल की तरफ देखा। अब वहां चिड़ियां नहीं थीं। उसने इधर-उधर निगाह दौ डाई। चिड़ियां पास के नीम के पेड पर फुदक-फुदक कर चहक रही थीं। नल पे़ड की छाया में निर्विकार भाव से खड़ा था। उसका हत्था नीचे की तरफ लटका हुआ था...। रामनाथ नल पर गया। अपनी चादर को भिगोया और वापस आकर चारपाई पर गीली चादर को ओ ढकर लेट गया। गीले कपड़े से उसे गर्मी से थो डी राहत महसूस हुई। हल्की-हल्की हवा भी चलने लगी थी और सूरज भी पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ने लगा था। गर्मी से थोडी राहत मिली तो रामनाथ नींद की आगोश में समा गया। दो पथिकों के वार्तालाप ने उसकी नींद को तो डा। पथिक कहीं से आ रहे थे। उन्हें प्यास लगी थी। नल को देखा तो पानी पीने लगे। - यार किसी पुण्यात्मा ने यह नल लगवाया होगा। राहगीरों को पानी पीने से तृप्ति मिली तो उनके उद्गार बाहर आ गए। - सो तो है ही भाई। आज के जमाने में तो लोग नल घर के अंदर लगवाते हैं। बाहर लगवा भी दिए तो हत्था निकाल कर रख देते हैं। दूसरे राहगीर ने पहले वाले की बात को आगे बढ़ाया और आगे बढ़ लिए। रामनाथ के कानों में पुण्यात्मा शब्द गूंज रहा था। वह सोचने लगा कि मैं भी पुण्यात्मा हूँ ।

कहानी कोढ़ी का नल

भाग तीन - क्या सोच रहे हो? कितनी बार कहा है कि नल पर मत जाया करो। लेकिन मेरी सुनते ही नहीं। रामनाथ की घरवाली ने पानी से भरी बाल्टी जमीन पर रखते हुए कहा। - क्यों न जाऊं? नल या उनके बाप का है? या मैं आदमी नहीं हूँ ? रामनाथ अभी तक जिस गुस्से को पानी की तरह पी रहे थे उसे पत्नी पर उलच दिया। - कहावत है कि शूद्र की गगरी दाना, शूद्र पड़ा उताना। आजकल कमाई हो रही है तो इनकी आंखों पर चर्बी चढ़ गई है। - तब मैं कोढ़ी नहीं था जब यह लोग यहां आकर बसे थे और हमसे ही मांग कर पानी पीने थे? रामनाथ ने पत्नी से सवाल किया। हालांकि यह प्रश्न वह उन लोगों से पूछना चाहते थे। - आदमी का मतलब निकल जाता है तो उसकी चाल ऐसे ही बदल जाती है। - कोई बात नहीं। ईश्वर ने चाहा तो कभी मेरा भी व त आएगा। तू एक काम कर, मेरा गमछा भिगा दे। मैं बाजार होकर आता हूँ । - बाजार किसलिए? - दवा लेनी है और वैसे ही चिक (मांस बेचने वाला कसाई) से पैसा लेकर नल (हैंडपंप) ले आता हूँ । अब नहीं दिखाना इनको अपना मुंह । - नल तो बहुत महंगी आएगी। इतने पैसे? - हां, तीन बकरी बेचनी पड़ेगी। - फिर बचेंगी क्या ? - जो बचेंगी बहुत हैं। अब मुझसे सहा नहीं जाता

कहानी कोढ़ी का नल

भाग दो --- बहुत पहले यहां जंगल हुआ करता था। जिसमें ढाक के पेड़ बहुतायत में थे। इनके अलावा बबूल और कटाई की झांडियां थीं। जहां इनका वास नहीं था वह जमीन ऊसर थी। उसमें रेह पैदा होती थी। जिसमें घास भी नहीं उगती। इस बौने जंगल में जहां सांप-बिच्छू रहते थे, वहीं जंगली सूअर और गीदड़ जैसे प्राणी भी रहते थे। इन्हीं के बीच दो घर मनुष्यों के थे, जिन्हें दूसरे गांव के लोग वनप्राणी कहते थे। जब जमींदारी का जमाना था तो इनके पूर्वज कहीं से आकर यहां बस गए थे। पहले यह एक ही घर थे, लेकिन खानदान की वृद्धि हुई तो दो हो गए। इन्हें वनप्राणी इसलिए कहा जाता था, योंकि इन्होंने यहां बसने के बाद और किसी इनसान को बसने ही नहीं दिया। जिसने भी कोशिश की उसे मुंह की खानी पड़ी। हालांकि जंगली जानवरों से मुकाबले के लिए इन्हें समाज की जरूरत थी, लेकिन वन संपदा का बंटवारा न हो जाए इसलिए यह लोग इस जगह को आबाद नहीं होने दे रहे थे। समय के साथ यह वनप्राणी भी बदले। इन्हें भी समाज की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद इन्होंने यहां पर लोगों को बसने की इजाजत दी। यहां पर बसने वाले दूसरे गांवों के फालतू लोग थे। फालतू इसलिए कि इन्हें अपने गांव

कहानी कोढ़ी का नल

भाग एक -------- सूरज जागने के लिए मसमसा ही रहा था कि रामनाथ उठ गया। परिवेश में ठंडी हवा तारी थी, जिससे रामनाथ का बिना कपड़े वाला बदन सिहर जा रहा था। पेडों पर चिड़ियां चहचहा रही थीं। एक्का दुक्का आदमी दिशा-मैदान के लिए हाथ में पानी का लोटा लिए बीड़ी का धुआं उगलते-निगलते और खांसते-खकारते जा रहे थे। दिशा-मैदान से वापस आने के बाद रामनाथ पानी लेने के लिए नल पर चला गया। इस समय वहां पानी भरने के लिए चार-छह लोग पहले से ही खड़े थे। उन लोगों को सुबह-सुबह रामनाथ का नल पर आना अच्छा नहीं लगा। लोगों ने मुंह तो बिचकाया ही अपनी घृणा को दबा भी नहीं पाये। - आज का दिन ठीक नहीं गुजर सकता। उनमें से एक ने अपने उद्गार व्य त किए। - सुबह-सुबह कोढी-कलंदर का मुंह देखने के बाद दिन भर अन्न नहीं मिलता। दूसरे ने टिप्पणी की जो रामनाथ के दिल में तीर सी लगी। एक अनजान दर्द से उसका शरीर सिहर गया। - हाथ-पैर नहीं हैं फिर भी घूमने की इतनी तमन्ना। एक की और झन्नाटेदार टिप्पणी जो रामनाथ को थप्पड़ सी लगी। - आदमी को खुद ही सोचना चाहिए। दूसरों का दिन इस तरह से खराब नहीं करना चाहिए। नल पर उपस्थित लोग इस तरह आपस में बोलते रहे। रा