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Showing posts from 2017

यूं ही जहरीली नहीं होती जा रही हवा

जो खबरें हैं वे गायब हैं खबरें गढ़ी जा रही हैं बनाई जा रही हैं किसी के अनुकूल किसी के प्रतिकूल अपनी पसंद की उसकी पसंद की खबर जो होनी चाहिए थी कुछ दंगाइयों ने कर लिया अपहरण खबर वह बन गई जो दंगाई चाहते थे खबर वह बन गई जो आतंकी चाहते थे हर रोज अखबार के पन्नों में खबर के नाम पर परोस दिया जाता है तमाम तरह की गढ़ी गई खबरें ठोक पीटकर बनाई गई खबरें आदेश-निर्देश से लिखी-लिखाई गई खबरें कौन चाहता है इन्हें पढऩा समाचार न विचार केवल एक किस्म का अचार टीवी चैनलों पर बहस का शोर कूपमंडूक लोग फैला रहे होते हैं ध्वनि प्रदूषण बहुत कष्ट और शोक के साथ बंद कर देना पड़ता है टीवी कई-कई दिन नहीं देखते हैं टीवी पर समाचार नहीं देखना और सुनना है झूठ का व्याभिचार सूचना विस्तार के युग में गायब कर दी गई है सूचना हर पल प्रसारित की जा रही है गैरजरूरी गैर वाजिब सूचना सूचना के नाम पर अफवाहों का पैकेज प्रसारित किया जा रहा है अंधाधुंध चौबीस घंटे रिफाइंड करना मुश्किल हो गया है काम की खबरों को शक होने लगा है अखबार में छपी मुस्कराती तस्वीर पर सवाल उठता है कि क्यों हंस रहा है क्या

डूबते सूरज की ओर

समय का ख्याल आते ही सियाराम साइकिल की गति बढ़ाने के लिए जल्दी-जल्दी पैंडल मारने लगे। पेट में चूहे कूद रहे थे। प्यास भी लग गई थी। वह शीघ्र घर पहुंच कर पहले पानी फिर कुछ खाना चाह रहे थे। जैसे ही वह पैंडल जल्दी-जल्दी चलाने की कोशिश करते चेन उतर जाती। इसके अलावा सड़क में जगह-जगह बने गढ्डे अलग से परेशान कर रहे थे। गढ्डों की वजह से साइकिल तेज चलाना और मुश्किल हो रहा था। कहने को यह हाइवे है, लेकिन सड़क की हालत गांव की पगडंडी से भी बदतर है। गड्डों में सड़क को खोजना पड़ता है.... डूबते सूरज की ओर ------------- सियाराम ने साइकिल पर बैठकर पैर से जैसे ही पैंडल पर जोर लगाया खटाक करके चेन उतर गई...। सियाराम को बहुत गुस्सा आया। मन ही मन गाली देते हुए साइकिल से उतरे और चेन को ठीक करने लगे। चेन चढ़ा ही रहे थे कि किसी ने पूछ लिया। - साइकिल खराब हो गई का? सियाराम ने चेन छोड़कर आवाज की तरफ देखा और मुस्करा कर बोले कि हां। - किसी कबाड़ी को बेच दो यार। अब यह चलाने लायक नहीं है। - पुरानी होने पर कोई घरवाली को बदल देता है का? सियाराम ने उस आदमी से चुहल की। - अरे भाई, दुनिया मोटरस

बारिश

कविता से संजय की मुलाकात उसकी दुकान पर हुई थी। कविता की जनरल स्टोर की दुकान थी। वह दुकान पर बैठी थी और संजय कोई सामान लेने आया था। पहली ही नजर में दोनों एक दूसरे को देखते रह गए। कुछ क्षण के बाद जब मुस्कराते हुए कविता ने मुंह मोड़ा था तो संजय के दिल की धड़कनें तेज हो चुकी थीं। अचानक उसे लगा कि वह आसमान में उड़ रहा है...। कहानी बारिश सुबह से ही झमाझम बारिश हो रही थी। पिछले एक सप्ताह की उमस भरी गर्मी के बाद इस तरह की बरसात होना काफी सुखदायी अनुभव था। यही कारण था कि कई लोग बारिश में भीग रहे थे। मोतियों की तहर आसमान से टपकतीं बूंदें शरीर पर पड़ती तो मन किसी मयूर की तरह नाच उठता। संजय छाता लगाए भीगने से बचने का प्रयास करता चला जा रहा था। एकाएक सामने निगाह पड़ी तो दिल धक् से करके रह गया और होंठ मुस्कान में बरबस ही फैल गए। सामने वाले की भी ऐसी ही प्रतिक्रिया थी। दोनों एक दूसरे को रुक कर देखते ही रह गए। इसी बीच आसमान में बादल गड़गड़ाए और तेजी से बिजली चमकी। साथ ही हवा का एक झोंका आया और दोनों की छतरियां उड़ गईं...। दोनों अपनी-अपनी छतरी को जब तक संभालते बारिश में भी

लड़की

लड़की के दोनों भाई कुर्सी पर बैठ गए तो पिता चारपाई पर लेट गए। उनकी शरीर में अथाह पीड़ा उतर आई। लगा किसी ने शरीर का सारा खून निचोड़ लिया है। लड़की के चाचा भी एक चारपाई पर पसर गए। सभी थके थे, लेकिन स्वयं को किसी अज्ञात भार से मुक्त समझ रहे थे...। पिता की यह चौथी और अंतिम बेटी थी। इसलिए बेटी की विदाई की जहां उन्हें पीड़ा थी, वहीं यह सोचकर हल्का महसूस कर रहे थे कि चलो बेटियों के भार से मुक्ति मिली...।   कहानी ---- लड़की ----- - ओमप्रकाश तिवारी सुबह होते ही घर के मर्द बारातियाें को चाय-नाश्ता कराने में मशगूल हो गए। औरतें उसे तैयार करने में जुट गईं। कहने को सभी को उसे विदा करने की खुशी है, लेकिन सभी उदास हैं। वह तो रोए ही जा रही है। पिछले एक हफ्ते से रो रही है फिर भी आंसू हैं कि सूखने का नाम नहीं ले रहे। बहनें सोच रही हैं कि इस बेटी को विदा करने के बाद माता-पिता बेटियों के भार से मुक्त हो जाएंगे...। बुआ सोच रही हैं कि भैया ने इस बेटी को विदा करके गंगा नहा लिया..। मां सोच रही हैं कि उनके कलेजे का टुकड़ा अपने घर जाकर सुखी रहे। एक अज्ञात भार उतरने का जहां उन्हें सं

आंचल में सूरज की चाहत

  अमर ने पलट कर घर के दरवाजे की तरफ देखा। करन को गोद में लिए नेहा खड़ी थी। उसका चेहरा सपाट था। खुश थी कि उदासी अमर समझ नहीं पाया। बेटों को देखा। वह हाथ हिलाते हुए खुश थे। कार चल पड़ी तो अमर ने अनु के चेहरे को देखा। अनु का चेहरा दप दपा रहा था...। अंधेरे कोने भाग 13---------अंतिम आंचल में सूरज की चाहत अमर से बात करने के बाद अनु उदास हो गई। उसे यकीन हो गया कि अमर उसके हाथ से निकल गया। उसका किसी काम में मन नहीं लगा। वह सोफे पर बैठी-बैठी अमर की यादों में खो गई। उसे अमर की अच्छाइयां और बुराइयां याद आने लगीं। - क्या बात है अनु? परेशान हो? रमेश ने अनु से पूछा तो उसकी तंद्रा भंग हुई। - नहीं डैडी, ऐसी कोई बात नहीं है। अनु ने रमेश को टालने के लिए कहा। - कैसे कोई बात नहीं है। कोई यों ही उदास और परेशान नहीं होता। रमेश ने अनु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। - डैडी हम किसी को इतना क्यों चाहने लगते हैं कि लगने लगता है कि उसके बिना जिंदगी अध्ूारी हो गई। एक अंजाने आदमी से मुलाकात होती है और हम हम नहीं रह जाते। खुद को भूल कर किसी और के लिए जीने लगते हैं। अपना हर काम

ख्वाबों के अफसाने का फसाना

  अमर आफिस से बाहर निकलने को था कि एक साथी और मिले। उन्होंने देखते ही कहा कि अरे साहब बिना मिले ही चले जा रहे हैं। यह उनका तकिया कलाम था। हमारा भी ख्याल रखना। अमर रुक गया। उनसे मिला और आवश्वासन दिया की ख्याल जरूर रखेगा। अमर इन साहब की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ था। अंधेरे कोने भाग 12 ख्वाबों के अफसाने का फसाना रात के बारह बज रहे थे। अमर और नेहा बातें कर रहे थे। अभी तक छोटा बेटा भी जग रहा था। अमर के मोबाइल से एक फिल्मी गीत बजा तो उसने मोबाइल की स्क्रीन को देखा। फोन अनु का था। अमर ने फोन काट दिया। उसके ऐसा करने पर नेहा ने पूछा कि किसका फोन था? बात क्यों नहीं की? - ऐसे ही किसी का था। अमर ने नेहा को टाल दिया। वह इस समय अनु से बात नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि उसकी बातचीत से नेहा को लगे कि उनके बीच कोई खिचड़ी पक रही है। अमर को पता था कि केवल काट देने से अनु पीछा नहीं छोड़ेगी इसलिए उसने फोन को साइलेंट मोड पर लगा दिया। अनु भी कहां पीछा छोड़ने वाली थी। वह भी काल पर काल करने लगी। जब दस मिस्ड काल हो गई तो अमर ने फोन उठा लिया। - फोन क्यों नहीं उ

करुणा और दया के मुखौटे

लोग मार खाकर भी काम कर रहे थे, क्यांेकि उन्हें कहीं रोजगार नहीं मिलता था। ऐसा नहीं था कि मजदूरी अच्छी देता था लेकिन जो भी काम मांगने आता उसे निराश नहीं करता था। कुछ लोग मार खाने या उसका यह रूप देखकर काम पर न आते लेकिन अधिकतर आते...। अंधेरे कोने   भाग 11 करुणा और दया के मुखौटे  ऐसा नहीं था कि अंग्रेजी नहीं आने के कारण अमर को पहली बार नुकसान हुआ था। इस अंग्रेजी के कारण तो उसने बड़ी जिल्लतें और अपमान झेले हैं। कितनी बार उसे इसकी वजह से नौकरी नहीं मिली। मिली तो चली गई। एक बार तो इसकी वजह से नौकरी तो गंवाया ही। इसी की वजह से नौकरी भी नहीं मिली। उसे एक बार फिर से एक फैक्ट्री में मजदूरी करनी पड़ी थी। फैक्ट्री मालिक दिखावे के लिए दयावान लेकिन अंदर से पूरा हैवान और शैतान था। मजदूरों को केवल शोषण ही नहीं करता था वह उन्हें मारता-पीटता भी था। गाली तो ऐसे देता था जैसे किसी देवता के लिए आरती गाता हो। शहर का नामी उद्योगपति था। शहर के नामी मंदिरों की कमेटी का चेयरमैन था। धर्मार्थ ट्रस्टों का भी चेयरमैन था। शहर में कोई धार्मिक कार्य बिना उसके सम्पन्न नहीं होता था। अखबारो