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Showing posts from July, 2017

कशिश और तपिश

आपने तो अच्छा विश्लेषण किया मेरा। लेकिन आपको जानना चाहिए कि मैं ऐसा क्यों हंू? शायद इसके लिए मेरे हालात जिम्मेदार हों लेकिन मैं निराशावादी नहीं हूं। मैं भाग्यवादी भी नहीं हूं। जो हो रहा है भाग्य में लिखा था, यह मानकर नहीं चलता। ईश्वर की मर्जी है, जो करेगा, भगवान करेगा। जो देगा भगवान देगा। ऐसे बेवकूफी भरे तर्कों-शब्दों की जगह मेरे शब्दकोश में नहीं है।   अंधेरे कोने   भाग सात कशिश और तपिश ----------- अमर कमरे मंे अकेला है। अनिल ड्यूटी पर गया है। सागर नौकरी की तलाश में गया है। अमर को जालंधर जाना था लेकिन उसने जाना दो दिन के लिए टाल दिया है। उसने यह फैसला क्यों लिया, वह खुद भी नहीं समझ पाया। समय गुजारने के लिए वह टीवी देख रहा है। आम चुनाव के बाद सत्ता में वापसी करने वाली पार्टी का वित्तमंत्री बजट भाषण पढ़ रहा है। वित्तमंत्री भाषण अंग्रेजी में पढ़ रहा है। टीवी चैनल वाले उसका हिंदी तर्जुुमा करके अपने दर्शकों के सामने परोस रहे हैं। अमर की निगाह टीवी पर थी लेकिन दिमाग कहीं और था। वह सोच रहा था कि जिस देश में 70 प्रतिशत लोग हिंदी भाषी हों उस देश का वित्तमंत्री वजट भाषण अंग्रेजी
मेरी मसूरी यात्रा इस पार-उस पार और गगन विचरण की फितरत जिज्ञासु, शंकालु और प्रश्नाकुल बने रहना इंसानी फितरत है। यह हर किसी में कम ज्यादा हो सकती है लेकिन होती हर किसी में है। जिसमें अधिक होती है वह हमेशा समुद्र के उस पार, जमीन के नीचे और गगन विचरण करना चाहता है। आज हम दुनिया को जितना भी जान पाते हैं, हमारे बीच आज जो भी ज्ञान का भंडार है, मानव सभ्यता ने जो विकास किया है, उसमें इंसानी फितरत के इन तीन गुणों-अवगुणों की अहम भूमिका है। अमेरिका और भारत की खोज इसी का परिणाम है। तो पहाड़ोें की रानी के नाम से विख्यात मसूरी भी इसी इंसानी फितरत का नतीजा है। आज जहां मसूरी बसी है और लाखों सैलानी हर साल प्रकृति के नजारे का लुत्फ उठाने पहुंचते हैं, वहां कभी घना जंगल था। बताते हैं कि सहारनपुर से दूरबीन पर दिखने वाली भद्राज मंदिर की चोटी ने गोरों को यहां आने के लिए प्रेरित किया। वर्ष 1814 में ब्रिटिश सर्वेयर जनरल जॉन एंथनी हॉजसन और उनकी टीम के तीन अन्य सदस्यों ने उस समय के गोरखा शासकों से स्वीकृति लेकर कालसी से होते हुए भद्राज पहुंचे थे। उन्हें यह पहाड़ी इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे

अंधेरे कोने : छंटनी की तलवार तले जीवन का पौधा

रात के तीन बज रहे थे। इसे सुबह के भी तीन बजना कह सकते हैं। अमर ने आसमान की तरफ देखा तो वहां अर्धवृत्ताकार चांद चमक रहा था। उसकी रोशनी मंे प्रकृति स्वच्छंद स्नान कर रही थी। और दिन होता तो अमर चांद और उसकी चांदनी को भाव-विभोर होकर देखता और उसे सिद्दत से महसूस करता।  अंधेरे कोने भाग छह छंटनी की तलवार तले जीवन का पौधा कार्यालय से निकलकर अमर सड़क पर आ गया। उसके साथ उसके कार्यालय के ही चार सहकर्मी और थे। इस समय वे अखबार का अंतिम संस्करण छोड़कर घर जाने के लिए निकले थे। रात के तीन बज रहे थे। इसे सुबह के भी तीन बजना कह सकते हैं। अमर ने आसमान की तरफ देखा तो वहां अर्धवृत्ताकार चांद चमक रहा था। उसकी रोशनी मंे प्रकृति स्वच्छंद स्नान कर रही थी। और दिन होता तो अमर चांद और उसकी चांदनी को भाव-विभोर होकर देखता और उसे सिद्दत से महसूस करता। उसे चांदनी रात बहुत पसंद है लेकिन आज उसे चांदनी रात में शीतलता की जगह गरमी महसूस हुई। उसने देखा उसके सहकर्मी अभी अखबार की किसी खबर पर माथा-पच्ची कर रहे हैं। अमर उनसे थोड़ा आगे होकर चलने लगा। ऑफिस से निकलने वाला यह अंतिम जत्था था, वह भी पैदल। इससे पह