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Showing posts from August, 2018

कहानी : जंगली सूअर और बच्चे

मई माह में चाची जी के देहांत के बाद गांव गया था। एक दिन सुबह कोई 8 बजे खेतों की ओर से मारो-पकड़ों की चीखती चिल्लाती आवाजें आईं। जिज्ञासा वश में भी आवाजों का अनुमान लगाता खेतों की ओर चला गया। देखा कोई 8-10 लड़के जिनकी उम्र 8-18 साल के बीच है हाथों में लाठी-डंडे लिए दौड़े जा रहे हैं। मैंने जोर की आवाज लगाकर पूछा। - क्या मामला है? तुम सब किसके पीछे पड़े हो? - जंगली सूअर है। उसी को खेद रहे हैं। उनमें से एक ने बताया। मैं चुप हो गया। खेत में पिता जी थे उनसे बातें करने लगा। मैंने पिता जी से पूछा। - आसपास जंगल तो है नहीं, यह जंगली सूअर यहां कहाँ से आ गया? पिता जी भी हैरान हुए। बोले कि पता नहीं कहां से आ जाते हैं। आलू और गंजी (शकरकंदी) को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। - क्या आपने जंगली सुअर देखा है? मैंने पिता जी से जोर देकर पूछा। इस पर वह बोले कि देखा तो नहीं, लेकिन कई लोगों की फसल उजाड़ जाते हैं। - क्या अपनी आलू को कभी नुकसान पहुंचाया है? मैंने फिर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि नहीं। जबकि मेरे खेतों के पास एक छोटा जंगल है। पास से बरसाती नहर निकली है। कुछ दशक पहले तक इस इलाके में जंगली सूअर पाए ज

कविता : बरसो मेघ खूब बरसो

हे मेघ बरसो खूब बरसो इतना कि दरिया उफ़न जाय ताकि साफ हो जाय उसके तन-मन की गंदगी तालाबों में भर जाय पानी ताकि भूमिगत जल का बढ़ जाये स्तर पक्षियों को मिले पानी भटकना न पड़े जानवरों को पानी की तलाश में किसान की फसलें भी लहलहा उठें उपवन भी हो जाय हराभरा मगर यह भी ध्यान रखना गिर न जाय किसी गरीब का घर बह न जाय किसी की झोपड़ी एक गुजारिश यह भी है मेघ उस जगह थोड़ा ज्यादा बरसना जहाँ से निकल रही हो गंदगी झूठ-फरेब-नफरत की सरिता इनके उद्गम पर ही खूब बरसना ताकि इन्हें मिले महासागर में जलसमाधि उस अंहकारी ज्वालामुखी पर झमाझम बरसना बादल ताकि वह तर हो जाय और फिजा में बहें सीली-सीली हवाएं उस कारखाने पर भी बरसना जहाँ बन रहा है तानाशाही बम उसे तुम ही नष्ट कर सकते हो एक बार फिर बन जाओ सुनामी बचा लो धरती को बंजर होने से हिरोशिमा-नागासाकी होने से उस गैस भंडार को बहा ले जाओ जिससे घटित होता है भोपाल कांड कुदरत को नहीं चाहिये परमाणु ऊर्जा वाला विकास कुदरत को चाहिए बादल जो उसे बना दे मेघालय उसकी गोद को कर दे हराभरा नदियों-झरनों से भर दे आँचल @ ओमप्रकाश तिवारी

कविता : बेहतर हो बागों में बहार ही कहिये

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद देशसेवा के लिए पत्रकारिता में राष्ट्रवाद पर शोध ग्रंथ लिखकर प्रोफेसर बने महोदय ने अपनी कक्षा में विद्यार्थियों से कहा कि सरकारी मंशा पर सवाल उठाना पत्रकार का काम ही नहीं है यह काम विपक्षी दल करता है विपक्षी दल की खबर लिखना पत्रकार का काम ही नहीं है सेना-जवान का गुणगान करिये बहुसंख्यक धर्म का बखान करिये धर्मगुरुओं का यशोगान करिये तंत्र पर कब्जाधारी कुछ भी करें तुम तो हमेशा वाह-वाह करिये किसी की संपत्ति कैसे भी बढ़ी तुम उत्थान का बखान करिये मौत का क्या है आ ही जाती है जज की मौत पर न सवाल करिये बेसिन से यदि गैस चुरा ले कोई ऐसी चोरियों पर ध्यान न दीजिए कमाया है धन देशहित में उसने  उसकी देशभक्ति का मान रखिये जानवरों में गाय को माता मानिए इन्हें छू दे कोई तो हाहाकार करिये  इनकी रक्षा में मरने वाले शहीद हैं इन्हें मारने वाले को शैतान कहिये गिर जाय गर बनता हुआ पुल कोई इसे विपक्षी दल की चाल कहिये बढ़ जाये गर ई-रिक्शे की बिक्री इसे देश में बढ़ता रोजगार कहिये पकौड़े तलना भी है कारोबार ही ऐसो को उद्यमियों मे