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Showing posts from 2020

संतान मोह और मानव सभ्यता

कविता ...... सन्तान मोह और मानव सभ्यता ....... क्या दो जून की रोटी के लिए जिंदगी पर जिल्लतें झेलता है इंसान? पेट की रोटी एक वजह हो सकती है यकीनन पूरी वजह नहीं हो सकती दरअसल, इंसान के तमाम सपनों में सबसे बड़ा ख्वाब होता है परिवार जिसमें माता-पिता नहीं होते शामिल केवल और केवल बच्चे होते हैं शामिल इस तरह हर युवा संतान की परिधि से बाहर हो जाते हैं माता-पिता जरूरी हो जाते हैं अपने बच्चे जब उनके बच्चों के होते हैं बच्चे तब वह भी चुपके से कर दिए जाते हैं खारिज फिर उन्हें भान होता है अपनी निरर्थकता का लेकिन तब तक हो गई होती है देरी मानव सभ्यता के विकास की कहानी संतान मोह की कारूण कथा है जहां हाशिये पर रहना माता-पिता की नियति है संतान मोह से जिस दिन उबर जाएगा इंसान उसी दिन रुक जाएगी मानव सभ्यता की गति फिर न परिवार होगा न ही घर न समाज होगा न कोई देश छल-प्रपंच ईर्षा-द्वेष भी खत्म बाजार और सरकार भी खत्म जिंदगी की तमाम जिल्लतों से निजात पा जाएगा इंसान फिर शायद न लिखी जाए कविता शायद खुशी के गीत लिखे जाएं... #omprakashtiwari

कहानी : पीएम हाउस में मोर नाचा...

कहानी - ओमप्रकाश तिवारी पीएम हाउस में मोर नाचा सुबह नींद मोबाइल की धुन बजने से खुली। आंख मिचमिचाते हुए मोबाइल के मुंह को खोला तो उधर से एक मित्र की आवाज आई-अरे क्या कर रहे हो? -आज का अखबार देखा? -नहीं, क्या हो गया? अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ है क्या? -अरे नहीं -फिर क्या देश से गरीबी मिट गई? -सुबह-सुबह क्या बकवास कर रहा है? -बकवास मैं कर रहा हूं कि तू। कितनी बढ़िया नींद आ रही थी, जगा दिया। -अरे जागो प्यारे मोहन, यह जागने का वक्त है। -क्यों? क्या देश से बेरोजगारी खत्म हो गई? -अरे नहीं यार। -फिर क्या अमेरिका ने किसी देश पर हमला किया है? -ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। -तो फिर क्या हुआ है? -पीएम हाउस में मोर नाचा है प्यारे मोहन। -तू पागल हो गया है क्या? मोर जंगल में नाचता है बच्चे। -इसीलिए तो कह रहा हूं प्यारे मोहन, जागो, उठो और अखबार पढ़ो।इतना कहकर दोस्त ने फोन काट दिया और मेरी भी नींद भी भाग गई। स्साले मोर को क्या हो गया? जंगल छोड़कर पीएम हाउस में आ गया। सोचते हुए चारपाई से उठा। दरवाजे पर गया और अखबार उठा लाया। पहले पन्ने पर ही पीएम हाउस में नाचते मोर की तस्वीर छपी थी। -अरे वाह। यह तो कमाल हो गय

कविता : आईना तुम आईना नहीं रहे...

आईना अब तुम आईना नहीं रहे तुम्हारी फितरत ही बदल गयी है डर गए हो या हो गए हो स्वार्थी गायब हो गई है तुम्हारी संवेदनशीलता बहुत सफाई से बोलने और दिखाने लगे हो झूठ जो चेहरा जैसा है उसे वैसा बिल्कुल भी नहीं दिखाते बल्कि वह जैसा देखना चाहता है वैसा दिखाते हो हकीकत को छिपाते हो बदसूरत को हसीन दिखाने का ज़मीर कहां से लाते हो? क्या मर गयी है तुम्हारी अन्तर्रात्मा?  किसी असुंदर को जब बताते हो सुंदर तब बिल्कुल भी नहीं धिक्कारता तुम्हारा जमीर?  आखिर क्या-क्या करते होगे किसी कुरूप को सुंदर दिखाने के लिए क्यों करते हो ऐसी व्यर्थ की कवायद?  क्या हासिल कर लेते हो?  कुछ भौतिक सुविधाएं?  लेकिन उनका क्या जो तुम पर करते हैं विश्वास और बार बार देखना चाहते हैं अपना असली चेहरा जैसा है वैसा चेहरा दाग और घाव वाला चेहरा काला और चेचक के दाग वाला चेहरा गोरा और कोमल त्वचा वाला चेहरा स्किन कहने से क्या चमड़ी बदल जाएगी?  काली से गोरी और गोरी से काली खुरदुरी से चिकनी और चिकनी से  खुरदुरी हो जाएगी?  नहीं ना जानते तो तुम भी हो मेरे दोस्त फिर इतने बदले बदले से क्यों हो?  क्यों नहीं जो जैसा है उसे वैसा ही दिखाते और बताते ह

कविता

डर ---- तेज बारिश हो रही है दफ्तर से बाहर निकलने पर उसे पता चला घर जाना है बारिश है अंधेरा घना है बाइक है लेकिन हेलमेट नहीं है वह डर गया बिना हेलमेट बाइक चलाना खतरे से खाली नहीं होता दो बार सिर को बचा चुका है हेलमेट शायद इस तरह उसकी जान भी फिर अभी तो बारिश भी हो रही है और रात भी सोचकर उसका डर और बढ़ गया बिल्कुल रात के अंधेरे की तरह उसे याद आया किसी फिल्म का संवाद जो डर गया वह मर गया वाकई डरते ही आदमी सिकुड़ जाता है बिल्कुल केंचुए की तरह जैसे किसी के छूने पर वह हो जाता है इंसान के लिए डर एक अजीब बला है पता नहीं कब किस रूप में डराने आ जाय रात के अंधेरे में तो अपनी छाया ही प्रेत बनकर डरा जाती है मौत एक और डर कितने प्रकार के हैं कभी बीमारी डराती है तो कभी महामारी कभी भूख तो कभी भुखमरी समाज के दबंग तो डराते ही रहते हैं नौकरशाही और सियासत भी डराती है कभी रंग के नाम पर तो कभी कपड़े के नाम पर कभी सीमाओं के तनाव के नाम पर तो कभी देशभक्ति के नाम पर तमाम उम्र इंसान परीक्षा ही देता रहता है डर के विभिन्न रूपों का एक डर से पार पाता है कि दूसरा पीछे पड़ जाता है डर कभी आगे आगे चलता है तो कभी पीछे पीछे कई

राजनीति क्या होती है, अच्छी और बुरी राजनीति को कैसे पहचानें #What is pol...

शख्सियत : प्रकृति के सुकुमार कवि थे सुमित्रानंदन पंत, छायावादी रचनाकार क...

शख्सियत : शरद जोशी, जिन्हें सुनने के लिए लेना पड़ता था टिकट, जिनके दम पर ...

कहानी : कोरोना काल में ताली-थाली से चटनी-रोटी तक # Story : corona kaal p...

कहानी : कोरोना काल में ताली-थाली से चटनी रोटी तक। भाग दो। #hindi story#c...

कहानी : वे पल #विपरीत हालात में सुकून खोजने का मनोविज्ञान #hindistory

सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानी टोबा टेक सिंह..

मंटो की कहानी #खोल दो... #story #mnto #khol do

वरिष्ठ पत्रकार अजय शुक्ल की व्यंग्य रचना, सत्तू जी की फेक न्यूज़

रिपोर्ताज, उफ़ नहीं कि उजड़ गए, लोग सचमुच के गरीब हैं...

रिपोर्ताज, सरकारी वादे और मजदूरों के इरादे...

ओमप्रकाश तिवारी की कहानी-उसे मालूम था.. #कहानी #story #hindistory

व्यंग्य : गिल्लू भैया बोले-पक्ष में हों तो दाग अच्छे लगते हैं #Stains lo...

कोरोना काल और संस्कृति : मुस्कुराइए कि अब कोई नहीं देखेगा...Corona perio...

शख्सियत : हिंदी साहित्य का बड़ा कोना खाली कर गए डॉ. नन्दकिशोर नवल...

व्यंग्य : जब गिल्लू भैया को लोकल ज्ञान दिया सिल्लू भैया ने..

कहानी : प्रेम पहेली #story # Love puzzle #Written by Omprakash Tiwari

शख्सियत : साहित्यकार शानी, काला जल उपन्यास लिखकर अमर हो गए..

कोरोना महामारी से इन सात महिला नेताओं ने पुरुष नेताओं से बेहतर प्रबंधन क...

राजनीति क्या होती है, अच्छी और बुरी राजनीति को कैसे पहचानें #What is pol...

शख्सियत : प्रकृति के सुकुमार कवि थे सुमित्रानंदन पंत, छायावादी रचनाकार क...

मनोवृत्ति: क्या अंतर है अमेरिका के अमीरों और भारत के गरीबों के पलायन में...

व्यंग्य : गिल्लू भैया बोले- देश पटरी पर आ गया...

व्यंग्य : गिल्लू भैया बोले-पक्ष में हों तो दाग अच्छे लगते हैं #Stains lo...

#व्यंग्य : गिल्लू भैया का राष्ट्र चिंतन...#Gillu Bhaiya's nation contemp...

#ओमप्रकाश तिवारी की कविता ..#चलते-चलते थक गए हैं पांव..Feet are tired wh...

कहानी : कुड़ीमार #कन्या भ्रूण हत्या की मानसिकता और हालात को रेखांकित करन...

कहानी : कुड़ीमार #कन्या भ्रूण हत्या की मानसिकता और हालात को उकेरने वाली रचना

प्रसिद्ध रूसी लेखक अंतोन चेखव की कहानी कमजोर और ताकतवर.. #Anton Chekhov#...

#कहानी #story : खेल #sports #ओमप्रकाश तिवारी

#शख्सियत #बलराज साहनी #चलचित्र पर आम आदमी का चेहरा #personality #blrajsahni

#मजदूर दिवस पर विशेष : #तीन पहियों पर चलती जिंदगी.. #Special on Labor D...

#संस्कृति #Culture: खुद्दार हैं वे कि मुफ्त की नहीं खाते.. They don't ea...

#युवा मन #young mind : किसी को आलस्य क्यों आता है ? #Why does anyone hav...

#श्रद्धांजलि #Tribute #इरफ़ानखान #irfankhan #सितारों की दुनिया में चला गय...

#श्रद्धांजलि : ऋषि कपूर, छोटे कद के बड़े अभिनेता.. #Tribute: Rishi Kapoor..

#Book review : संवेदनाओं को समृद्ध करती हैं मंडी का महाजाल संग्रह की कह...

#कहानी#story : तोता, बिल्ला और अम्मा..#Parrot, badge and mother.. हार कर...

#नजरिया #Vision : उनसे क्या मोलतोल करना जिन्हें जिंदगी ही तोल रही हो.. ...

#कविता #poeme : सब्जी वाले.. #Vegetable ones ..#poetry hindipoemes

#शख्सियत #personality : अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल, नारी अस्मिता की जीवंत मिसाल..

#शख्सियत #personality : अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल, नारी अस्मिता की जीवंत मिसाल..

#शख्सियत #personality : अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल, नारी अस्मिता की जीवंत मिसाल..

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#शख्सियत #personality : अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल, नारी अस्मिता की जीवंत मिसाल..

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#कविता #poeme #उम्मीद #hope #poetry

#श्रद्धांजलि #Tribute #इरफ़ानखान #irfankhan #सितारों की दुनिया में चला गय...

#युवा मन #young mind : किसी को आलस्य क्यों आता है ? #Why does anyone hav...