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कहानी : पीएम हाउस में मोर नाचा...

कहानी

- ओमप्रकाश तिवारी

पीएम हाउस में मोर नाचा

सुबह नींद मोबाइल की धुन बजने से खुली। आंख मिचमिचाते हुए मोबाइल के मुंह को खोला तो उधर से एक मित्र की आवाज आई-अरे क्या कर रहे हो?

-आज का अखबार देखा?

-नहीं, क्या हो गया? अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ है क्या?

-अरे नहीं

-फिर क्या देश से गरीबी मिट गई?

-सुबह-सुबह क्या बकवास कर रहा है?

-बकवास मैं कर रहा हूं कि तू। कितनी बढ़िया नींद आ रही थी, जगा दिया।

-अरे जागो प्यारे मोहन, यह जागने का वक्त है।

-क्यों? क्या देश से बेरोजगारी खत्म हो गई?

-अरे नहीं यार।

-फिर क्या अमेरिका ने किसी देश पर हमला किया है?

-ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।

-तो फिर क्या हुआ है?

-पीएम हाउस में मोर नाचा है प्यारे मोहन।

-तू पागल हो गया है क्या? मोर जंगल में नाचता है बच्चे।

-इसीलिए तो कह रहा हूं प्यारे मोहन, जागो, उठो और अखबार पढ़ो।इतना कहकर दोस्त ने फोन काट दिया और मेरी भी नींद भी भाग गई। स्साले मोर को क्या हो गया? जंगल छोड़कर पीएम हाउस में आ गया। सोचते हुए चारपाई से उठा। दरवाजे पर गया और अखबार उठा लाया। पहले पन्ने पर ही पीएम हाउस में नाचते मोर की तस्वीर छपी थी।

-अरे वाह। यह तो कमाल हो गया। पूरा का पूरा सिद्धांत और दर्शन ही बदल गया। मेरे मुंह से ये शब्द अनायास ही निकल पड़े। तस्वीर के साथ समाचार भी छपा था। शीर्षक था-पीएम हाउस में मोर नाचा। लिखा था कि आज जब प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाने से पहले अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से विदा ले रहे थे तो उसी वक्त पीएम हाउस में एक मोर नाचने लगा। मोर को नाचते देख पीएम हाउस में अफरा-तफरी मच गई। हर कोई यही कह रहा था कि मोर यहां कैसे आ गया? प्रेस फोटोग्राफरों और टीवी कैमरा वालों के लिए यह ऐतिहासिक क्षण था। सभी नाचते हुए मोर की तस्वीर अपने कैमरे में कैद करने लगे। कुछ उत्साही टीवी पत्रकार और कैमरामैन तो मयूरनृत्य को लाइव दिखाने लगे। सबसे पहले की होड़ में चैनल वाले टूट पड़े और उसके पत्रकार मोर के बारे में कुछ भी बोले जा रहे थे। चैनलों के स्टूडियो में बैठी एंकर भी अजीबोगरीब सवाल पूछे जा रही थी। ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी कि पीएम हाउस की सुरक्षा में सेंध। मोर पीएम हाउस में घुसा और नृत्य कर रहा है। सुरक्षा बलों के बयान लिये जा रहे हैं। नेताओं से टिप्पणी मांगी जा रही है। स्टूडियो में विशेषज्ञ बुला लिए । गहन परिचर्चा भी आरंभ हो गई है। चैनल देखकर ऐसा लग रहा है कि देश पर घोर विपदा आ गई है। एक चैनल की एंकर ने अपने संवाददाता से सवाल किया कि क्या अब भी प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाएंगे? संवाददाता ने कहा कि इस संबंध में जानकारी तो नहीं मिल पाई है लेकिन मेरा मानना है कि पीए को अपनी यात्रा रद्द कर देनी चाहिए। यात्रा से पहले अपशगुन हुआ है। अभी मोर घुस आया है। अगर आतंकवादी घुस आता तो क्या होता। एंकर ने फिर सवाल किया कि यदि आतंकवादी घुस आता तो क्या होता? कितना नुकसान पहुंचता? क्या मार दिया जाता? वह अपने मकसद में कामयाब हो जाता? संवाददाता फिर बोला कि कुछ भी हो सकता था। वह अपने मकसद में कामयाबा भी हो जाता। पकड़ा भी जा सकता था।

टीवी चैनलों की इस गहमा-गहमी के बीच पीएम अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से विदाई लेते रहे। हर कोई उन्हें झुककर सलाम कर रहा है। फूलों का गुलदस्ता भेंट कर रहा है और तस्वीरें खिंचवा रहा है, लेकिन मोर के नाचने से यहां पर व्यवधान पड़ा। चूंकि मीडिया मयूरनृत्य पर मोह गया तो नेतानृत्य की तस्वीर कौन खींचे? ऐसे में नेताओं की त्योरी चढ़ गई। सुरक्षाबलों को आदेश हुआ कि मोर को जल्दी भगाओ। इसपर जवाब मिला कि चैनल वाले लाइव दिखा रहे हैं। वह जवाब मिलना था कि एक नेता चीखा। इसीलिए तो कह रहा हूं कि मोर को भगाओ, नहीं तो वे मूर्ख लोग पता नहीं क्या-क्या करेंगे? कहां प्रधानमंत्री इतने महत्वपूर्ण दौरे पर जा रहे हैं। हम लोग मिलने आए हैं। ऐसी शुभ घड़ी पर इस कार्यक्रम को दिखने की बजाए मयूरनृत्य का सीधा प्रसारण कर रहे हैं। कुछ जवान मोर को भगाने के लिए गए तो मीडिया वालों ने विरोध कर दिया। बोले यार! इतनी बढ़िया बाइट्स मिल रही है। क्यों चैपट कर रहे हो जो इसे लाइव दिखा रहे हैं। उनकी टीआपी बढ़ जाएगी। ऐसे में भैये वह मोर नहीं हमारे लिए तो भगवान है। इसकी आरती कर लेने दे भाई।जवान बोले कि लेकिन नेताजी विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं कि उनके कार्यक्रम को लाइव करो। यह सुनना था कि कई टीवी चैनल के पत्रकार हंसकर बोले कि उनसे बोलो कि ऐसा ही नृत्य वह भी करें। उनका भी सीधा प्रसारण कर देंगे। अभी तो आप जाओ और इसे नाचने दो। इसके जवाब में एक जवान ने चुटकी ली कि भाई नृत्य तो वह भी कर रहे हैं लेकिन आप लोगों को उनकी नाच शायद अच्छी नहीं लग रही है।मोर को बिन भगाए वापस लौटे तो एक नेता चीखा कि क्या हुआ?

-मीडिया वाले मोर को भगाने नहीं दे रहे हैं।

-तो इन सालों को भी भगा दो। नमक हराम, कमीने कहीं के।

-जवान जाने लगा तो नेता फिर चीखा। साले ऐसे न मानें तो मोर को गोली मार दो।

-लेकिन सर, मोर तो राष्ट्रीय पक्षी है और वह मीडिया वाले।

-तो क्या हुआ? हम किसी की परवाह नहीं करते। नेता गुस्से में बोला।इसी बीच पीएम वहां से निकलकर बाहर आए। वह अपनी कार में बैठे ही थे कि मीडिया भी उनके पीछे भागा।मयूरनृत्य का सीधा प्रसारण बंद।जब मीडिया वाले चले गए तो मारे ने भी नाचना बंद कर दिया। इधर-उधर निगाह दौड़ाया और घास की झाड़ियों में गुम हो गया।समाचार पढ़कर जम्हाई ले रहा था कि मित्र का फोन फिर

-अखबार पढ़ा क्या?

-हां पढ़ा।

-तो यह बताओ कि पीएम हाउस में मोर क्यों नाचा?मुझसे कोई उत्तर देते नहीं बना, मैं चुप रहा। फिर मुझे लगा कि मित्र से ही पूछ लेना चाहिए।

-इसका उत्तर तो तू ही बता सकता है बच्चे।

-साजिश! प्यारे मोहन साजिश।

-किसकी।

-पाकिस्तान की।

-वह भला क्यों?

-क्योंकि प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जा रहे थे। पाकिस्तान नहीं चाहता कि हमारे रिश्ते अमेरिका से ठीक

-वह भला क्यों?

-क्योंकि यदि अमेरिका हमारा दोस्त बन जाएगा तो पाकिस्तान किसके दम पर हमें धमकाएगा। क्यों? सही कह रहा हूं न?

-अब तू कह रहा है तो सच ही कह रहा होगा।दोस्त ने फोन काट दिया। मैं सोच में पड़ गया। पीएम हाउस में मोर क्यों नाचा? क्या कारण हो सकता है? यही सब सोचते-सोचते मुझे नींद आ गई। सपने में मेरी मुलाकात पीएम हाउस में नृत्य करने वाले मोर से होती है। मैं उससे सवाल करता हूं।

-हे मेरे देश के राष्ट्रीय पक्षी! आपने पीएम हाउस में नृत्य क्यों किया?

-क्योंकि आपके प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जा रहे थे।

-महोदय, उनकी अमेरिका यात्रा से आपके नृत्य का क्या संबंध?

-है भले मानुस! क्या तुम इतना नहीं जानते कि पूरी दुनिया में अमेरिका के इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।-जानता हूं

-तो, श्रीमन् जी बेवकूफों जैसा सवाल क्यों कर रहे हैं?

-वत्स, बेवकूफ तो तुम हो जो जंगल छोड़कर पीएम हाउस में नाच रहे हो।

-नहीं श्रीमान! आपका आरोप निराधार और बेबुनियाद है। आपको ज्ञात होना चाहिए कि धरती पर जंगल कितने बचे हैं। कितने प्राणी विलुप्त हो गए हैं। हमारी जाति भी संकट में है। सी संकट के निदान के लिए मैं पीएम हाउस गया था। सोचा था बढ़िया नृत्य करुंगा तो पीएम प्रसन्न हो जाएंगे। लेकिन वहां तो पहले से ही नृत्य करने वाले मौजूद थे। उनके आगे मेरी एक न चली। हां, मीडिया वालों ने अपने चैलनों पर दिखाकर मेरे महत्व को रेखांकित जरूर किया, लेकिन उन्होंने भी मुझे आतंकवादी बनाकर प्रस्तुत किया। खैर, इससे क्या फर्क पड़ता है। मुझे कवरेज तो मिल ही गई। अब यह खबर अमेरिका तक तो पहुंच ही जाएगी। हो सकता है अमेरिका हमारी जाति के लिए भी कुछ करे। किसी पैकेज-वैकेज की घोषणा करे। ताकि हम विलुप्त होने से बच जाएं।

-वत्स! तुम तो बड़े समझदार निकले।

-श्रीमान जी, जब मैं बहुत छोटा था तो मुझे एक आदमी जंगल में पकड़कर ले गया। मैं अपने माता-पिता और दोस्तों के लिए बहुत तड़पा, लेकिन उसने मुझे पिंजरे में कैद करके रखा। धीरे-धीरे मुझे भी अच्छा लगने लगा। मां-बाप को भूल गया। इस तरह आदमियों वाले गुण मुझमें आते गए। बाद में तो मुझे पिंजरे से आजाद कर दिया। फिर भी मैं जंगल में नहीं गया। क्यों कि मैं जान गया था कि जंगल रह ही नहीं गए हैं। हमारी जाति संकट में है। ऐसे में उसी आदमी के साथ रहने में ही मुझे अपनी भलाई दिखी। सोचा इसके लिए वहां रहकर ही मैं अपनी जाति के लिए कुछ कर सकता हूं। धीरे-धीरे उसकी सारी आदतें मुझमें आ गई। बिना दुम के भी दुम हिलाने की उसकी कला मुझे बहुत पसंद आई। वह इसी कला से बड़े से बड़ा काम करवा लेता। एक दिन मैंने भी सोचा कि मैं भी इसी कला का प्रदर्शन करके अपनी जाति को बचाऊंगा। बस यही सोचकर पीएम हाउस पहुंच गया। अब देखो, क्या परिणाम सामने आता है।

-परिणाम! परिणाम तो अच्छा ही आएगा वत्स।-मैं वत्स नहीं, तुम्हारी पत्नी हूं। इतना दिन चढ़ गया और अभी तक सो रहे हो। पत्नी की आवाज सुनकर मैं जागा तो बड़ी देर तक खुद पर यकीन नहीं हो रहा था।

कहानीकार: ओमप्रकाश तिवारी

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