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यादें

मित्र,
आपके शहर से गुजर रहा था
ट्रेन में बैठा
ट्रेन भाग रही थी
उससे भी तेज गति से भाग रही थीं मेरी यादें

यादें जो ढूह बन गईं थीं
भरभरा कर गिर रही थी

कितने हसीन थे वो दिन, वो पल
जब हम बैठकर
घंटों बातें किया करते थे
वे दिन और आज का दिन

यादों का पहाड़
सीने पर लिए जी रहे हैं
फिर रहे हैं
इस शहर से उस शहर

सच बताना मेरे दोस्त
बीते दिनों की यादों में
कभी मेरा चेहरा उभरता है?
मेरे दिल में तो मचता है हाहाकार
और आंखों से टपक पड़ते हैं आंसू

सोचता हूं
क्या बीते दिन लौटेंगे?
काश! लौट पाते बीते दिन!

मेरे यार, क्या हमारी यादें जंगल बन जाएंगी?
हम क्या इन्हें गुलशन नहीं बना सकते ?

(बिछड़े दोस्तों के नाम )

Comments

Anonymous said…
मार्मिक अभिव्यक्ति।
kps gill said…
tiwari g namaskar, jindgi mein ya to tenth class mein masti ki thi, ya phir jalandhar. wo din, wo pal, wo lamhe, wo masti, wo mast andaaz puri jindgi yaad rahenge. Bhulkar bhi un dino ko nahi bhula payenge. yaad bahut aati hai, par...
kps gill said…
Tiwari g namaska. Life mein ya to tenth class mein jamkar masti ki thi ya jalandhar mein. wo din, wo pal, wo lamhe, wo masti, wo masti ka mahol kabhi nahi bhul sakte. Yaad to bahut aate hain wo din, par...
kps gill said…
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tiwari ji, maja aa gaya. dil ko chhoo gayee aapki kavita
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