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Showing posts from 2018
कुछ सियासी बातें अर्थव्यवस्था के विकास का अर्थशास्त्र बताता है कि इसका फल वर्गों में मिलता है। मसलन विकास का 80 फ़ीसदी धन देश के एक फ़ीसदी लोगों के पास संग्रहित हो जाता है। परिणामस्वरूप हर महीने 30-40 अरबपति उत्पन्न हो जाते हैं। साथ ही जो पहले से अमीर हैं वे और अमीर हो जाते हैं। दूसरी ओर विकास का 20 फीसदी धन देश के 80 फीसदी में बंटता है। इनमें भी किसी को मिलता है किसी को नहीं मिलता है। इससे जो गरीब हैं वह और गरीब हो जाते हैं। इस वजह से कई तरह की सामाजिक विसंगतियां उभरतीं हैं। दूसरी ओर देश का चुनाव जाति और धर्म पर लड़ा जाता है। इन दोनों का ही आर्थिक विकास में कोई भूमिका नहीं होती है। लेकिन यही लोग सरकार बनाते हैं। या कहें कि इसी आधार पर सरकार बनती है। इस तरह सरकार बनने और बनाने की प्रक्रिया और सरकार चलाने और चलाने की प्रक्रिया बिल्कुल अलग और भिन्न है। सरकार बनने का बाद सरकार चलाने की प्रथमिकता बदल जाती है। सरकार के केंद्र में वह आ जाता है जिसने वोट देकर सरकार नहीं चुनी होती है बल्कि चंदा देकर अपने पसंद के व्यकितत्व, विचार और दल की सत्तासीन किया होता है। इस तरह मुफ्त का बहुमूल्य मत व्यर

कुछ कविताएं और रचनाएं

[05/07, 10:23 pm] Usha Tiwari: बेचैनियों के अंधड़ से बचने के लिए रात भर ताक पर बैठी रही नींद इंतजार करती रही आंखों के समुन्दर में उठती लहरों के बीच कई बार पलकों पर बैठी कानों के पास आकर बोली समा जाने दो मुझे अपनी तप्त आंखों में शांत कर ले दिमाग में उठे तूफान को सुबह होगी सूर्योदय भी होगा क्यों परेशान है एक सूर्यास्त से। @ओमप्रकाश तिवारी [07/07, 1:18 pm] Usha Tiwari: नापसंद करने वालों की सूची बनाई तो दोस्तों की तादाद ही कम हो गई नफरत करने वालों की सूची बनाई तो तार तार हो गए गहरे रिश्ते कई इसे जिन्दादिली कहो या समझदारी समझौता परस्ती कहो या दुनियादारी फिर भी मिटती नहीं है हस्ती हमारी @ ओमप्रकाश तिवारी [08/07, 3:30 am] Usha Tiwari: मुसाफिर के जाने के बाद कई लोग सामने आएंगे अफसाना सुनाने यकीन मानिए कलम तोड़ देंगे उसकी वाहवाही में खूबियों पर तो पूरी किताब लिख देंगे वश यही नहीं बताएंगे कि गुनहगार वे भी हैं उसके पैरों में पड़े छालों के लिए पथ पर उसके कांटे उन्होंने भी रखे थे कहीं पत्थर रखे तो कहीं गड्ढे खोदे थे मुस्कुराये थे उसके हर एक जख्म पर अब आंस

कहानी : जंगली सूअर और बच्चे

मई माह में चाची जी के देहांत के बाद गांव गया था। एक दिन सुबह कोई 8 बजे खेतों की ओर से मारो-पकड़ों की चीखती चिल्लाती आवाजें आईं। जिज्ञासा वश में भी आवाजों का अनुमान लगाता खेतों की ओर चला गया। देखा कोई 8-10 लड़के जिनकी उम्र 8-18 साल के बीच है हाथों में लाठी-डंडे लिए दौड़े जा रहे हैं। मैंने जोर की आवाज लगाकर पूछा। - क्या मामला है? तुम सब किसके पीछे पड़े हो? - जंगली सूअर है। उसी को खेद रहे हैं। उनमें से एक ने बताया। मैं चुप हो गया। खेत में पिता जी थे उनसे बातें करने लगा। मैंने पिता जी से पूछा। - आसपास जंगल तो है नहीं, यह जंगली सूअर यहां कहाँ से आ गया? पिता जी भी हैरान हुए। बोले कि पता नहीं कहां से आ जाते हैं। आलू और गंजी (शकरकंदी) को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। - क्या आपने जंगली सुअर देखा है? मैंने पिता जी से जोर देकर पूछा। इस पर वह बोले कि देखा तो नहीं, लेकिन कई लोगों की फसल उजाड़ जाते हैं। - क्या अपनी आलू को कभी नुकसान पहुंचाया है? मैंने फिर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि नहीं। जबकि मेरे खेतों के पास एक छोटा जंगल है। पास से बरसाती नहर निकली है। कुछ दशक पहले तक इस इलाके में जंगली सूअर पाए ज

कविता : बरसो मेघ खूब बरसो

हे मेघ बरसो खूब बरसो इतना कि दरिया उफ़न जाय ताकि साफ हो जाय उसके तन-मन की गंदगी तालाबों में भर जाय पानी ताकि भूमिगत जल का बढ़ जाये स्तर पक्षियों को मिले पानी भटकना न पड़े जानवरों को पानी की तलाश में किसान की फसलें भी लहलहा उठें उपवन भी हो जाय हराभरा मगर यह भी ध्यान रखना गिर न जाय किसी गरीब का घर बह न जाय किसी की झोपड़ी एक गुजारिश यह भी है मेघ उस जगह थोड़ा ज्यादा बरसना जहाँ से निकल रही हो गंदगी झूठ-फरेब-नफरत की सरिता इनके उद्गम पर ही खूब बरसना ताकि इन्हें मिले महासागर में जलसमाधि उस अंहकारी ज्वालामुखी पर झमाझम बरसना बादल ताकि वह तर हो जाय और फिजा में बहें सीली-सीली हवाएं उस कारखाने पर भी बरसना जहाँ बन रहा है तानाशाही बम उसे तुम ही नष्ट कर सकते हो एक बार फिर बन जाओ सुनामी बचा लो धरती को बंजर होने से हिरोशिमा-नागासाकी होने से उस गैस भंडार को बहा ले जाओ जिससे घटित होता है भोपाल कांड कुदरत को नहीं चाहिये परमाणु ऊर्जा वाला विकास कुदरत को चाहिए बादल जो उसे बना दे मेघालय उसकी गोद को कर दे हराभरा नदियों-झरनों से भर दे आँचल @ ओमप्रकाश तिवारी

कविता : बेहतर हो बागों में बहार ही कहिये

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद देशसेवा के लिए पत्रकारिता में राष्ट्रवाद पर शोध ग्रंथ लिखकर प्रोफेसर बने महोदय ने अपनी कक्षा में विद्यार्थियों से कहा कि सरकारी मंशा पर सवाल उठाना पत्रकार का काम ही नहीं है यह काम विपक्षी दल करता है विपक्षी दल की खबर लिखना पत्रकार का काम ही नहीं है सेना-जवान का गुणगान करिये बहुसंख्यक धर्म का बखान करिये धर्मगुरुओं का यशोगान करिये तंत्र पर कब्जाधारी कुछ भी करें तुम तो हमेशा वाह-वाह करिये किसी की संपत्ति कैसे भी बढ़ी तुम उत्थान का बखान करिये मौत का क्या है आ ही जाती है जज की मौत पर न सवाल करिये बेसिन से यदि गैस चुरा ले कोई ऐसी चोरियों पर ध्यान न दीजिए कमाया है धन देशहित में उसने  उसकी देशभक्ति का मान रखिये जानवरों में गाय को माता मानिए इन्हें छू दे कोई तो हाहाकार करिये  इनकी रक्षा में मरने वाले शहीद हैं इन्हें मारने वाले को शैतान कहिये गिर जाय गर बनता हुआ पुल कोई इसे विपक्षी दल की चाल कहिये बढ़ जाये गर ई-रिक्शे की बिक्री इसे देश में बढ़ता रोजगार कहिये पकौड़े तलना भी है कारोबार ही ऐसो को उद्यमियों मे

कविता/ समय साक्षी

समय साक्षी ---------- सूर्यालोकित स्वर्गलोक की रंगीनियां उसे भी पसंद हैं लुभाती और ललचाती भी हैं लेकिन प्रभावित नहीं कर पातीं चमकती किरणों की सचाइयों को जनता है वह कहां से मिलती है  उनकी आभा को ऑक्सीजन कभी कभी सोचता है वह जाहिल ही क्यों नहीं बना रहा आस्था के समुद्र में डुबकी लगाता किसी का देवालय बनाने किसी का पूजाघर तोड़ने की बहसों और साजिशों में व्यस्त रहता अपने धर्म के लिए आक्रामक रहता दूसरे के धर्म के लिए कुतर्क गढ़ता रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाने के लिए किसी संन्यासी से योग सीखता फिर केंचुए की तरह रेंगते हुए चढ़ जाता स्वर्ग की सीढ़ियां और बन जाता विदूषक कथित सर्वशक्तिमान किसी नरपिशाच का लेकिन नहीं वह तो लिखना चाहता है आज के समय की पंचपरमेश्वर पर लिख नहीं पा रहा अब और ताकतवर हो गए हैं तमाम अलगू चौधरी रेहन पर रखे बैलों का निचोड़ रहे हैं कतरा कतरा न एक अलगू चौधरी हैं न कम है बैलों की संख्या उसे तलाश है किसी पंचपरमेश्वर की जो उसके कथा के चरित्रों के साथ कर सके न्याय वह बार बार सोचता है कथा सम्राट प्रेमचंद होते तो कैसी पंचपरमेश्वर लिखते क्या बांच प

तो सभी धर्मों की सार्वजनिक गतिविधियों पर रोक लगे

वैसे तो हमारा संविधान धार्मिक आज़ादी का हक देता है। किसी भी नागरिक का यह मौलिक अधिकार भी है। लेकिन कई बार सरकारें और उसके समर्थित संगठन व लोग नागरिक अधिकारों का हनन करते हैं। उसमें भी दिक्कत तब होती है जब किसी समुदाय विशेष को निशाने पर लिया जाता है। कुछ नेताओं के हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य की वजह से देश का बंटवारा हो गया। लेकिन यह नफरत गयी नहीं। कुछ संगठनों ने आज़ादी के बाद से ही नफरत फैलानी शुरू कर दी थी। कालांतर में वह सियासी दल बनाकर सत्ता में आ गए। उनके लिए संविधान कोई मायने नहीं रखता। नागरिककों के मूल अधिकारों का हनन वे अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं और ऐसा ही व्यवहार करते हैं। इसके लिए उनके पास अपने तर्क और तथ्य भी हैं जो वह स्वयं गड़ते हैं और कुतर्क करते है। जब इससे भी नहीं पर पाते तो हिंसक हो जाते है। मूलतः वे हिंसक ही हैं। मानवीयता का तो केवल चोला पहने हैं। यदि सार्वजनिक जगह में नमाज नहीं पढ़नी चाहिए तो शोभायात्रा या नगर कीर्तन भी नहीं निकलना चाहिए। एक के लिए धार्मिक आज़ादी दूसरे के लिए पाबंदी नहीं होनी चाहिए।