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Showing posts from September, 2008

अभियुक्त

इस कहानी को पहले तीन भागों में आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर चुका हूँ । अब आप लोगों की सुविधा के लिए पूरी कहानी एक साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ । मेरी बेचैनी : हालांकि वह सपना था, लेकिन उसे भुला पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है। ऐसा नहीं है कि मैं सपना नहीं देखता। सपना देखता भी हूँ और उन्हें सुबह होते ही या फिर एक-दो दिन में भूल भी जाता हूँ , लेकिन यह सपना मौका पाते ही मेरे दिलो-दिमाग पर हावी हो जाता है। इस सपने की कशिश, इसका मीठा दर्द और गुलाबी एहसास मेरे जेहन में हमेशा बना रहता है। मौका मिलते ही सोचने पर विवश कर देता है कि या इसका संबंध मेरी निजी जिंदगी से है? यह सवाल उठते ही मैं सपने के एक-एक तार को जोडने लगता हूँ । फिर भी ऐसी कोई तस्वीर नहीं बनती, जिससे यह लगे कि सपने का संबंध मेरी निजी जिंदगी से है। यह भी सच है कि कई सपनों का संबंध इंसान के जीवन से होता है। कई बार स्मृतियां, जिन्हें हम अपने चेतन में भूल चुके होते हैं, वे सपने के रूप में हमारी चेतना में शामिल हो जाती हैं। तो या मैं किसी को भूल रहा हूँ ? इतनी लंबी जिंदगी भी तो नहीं है। हो सकता है कि बचपन या किशोर-वय की कोई स्मृति है,

मौसम की पहली बरसात

कई दिनों से सूरज की आंच में तप रही थी धरती तवे पर रोटी की तरह पक रहे थे प्राणी बादलों को जरूर इन पर तरस आया होगा अपनी सेना लेकर आ गए मैदान में दे दी सूर्य को चुनौती घबराकर रोने लगा भाष्कर और मोतियों की तरह गगन से गिरने लगी बंूदें गर्मी से विकल मानव निकल आया घरों से रिमझिम बरसात में चुराने लगा नमक पसीने के रूप में जिसे छीन लिया था सूरज ने

झूठा निकला प्रस्तोता

टीवी स्क्रीन पर प्रस्तोता कहता है मुस्करा कर खबरों का सिलसिला जारी है लेकिन एक छोट से ब्रेक के बाद ब्रेक छोटा नहीं होता इसके दबाव में छोटी हो जाती हैं खबरें विज्ञापन के दावों की तरह प्रस्तोता भी झूठा निकला

मजबूर बाप

कोट-टाई पहने मंुह पर महंगी क्रीम पोते महंगे शैंपू से धुले बाल करीने से गर्दन और कंधों पर बिखेर कर लैपटाप की स्क्रीन पर उभरे शब्दों को देखकर अपने खिले चेहरे पर उदासी का भाव लाते हुए न्यूज चैनल की महिला एंकर ने पढ़ी यह खबर गरीबी से बेहाल एक बाप ने महज पांच सौ रुपये में बेच दिया अपना बेटा स्क्रीन पर उभरती है गरीब बाप की तस्वीर उसका घर उसका गांव दर्शक कुछ सोच पाता जान पाता स्क्रीन पर हाजिर हो जाती है मुस्कराती हुई एंकर कहती है खबरों का सिलसिला जारी है लेकिन एक एक छोटे से ब्रेक के बाद अब स्क्रीन पर एक दस साल का बच्चा खेल रहा है क्रिकेट मारता है शॉट टूटती है एक आलीशान घर की खिड़की खुश होता है घर का मालिक एक अन्य घर मालिक कहता है लड़क से मेरी खिड़की नहीं ताे़डेगा सचिन सचिन मारता है शॉट टूटती है खिड़की वह भी होता है खुश उनकी खुशी से हौंसला बुलंद होता है सचिन का वह मारता है शॉट टूटतीं हैं और खिड़कियां मकान मालिक कहते हैं सचिन कल को स्टार बनेगा तो अपना ही नाम होगा यह किसी बीमा कंपनी का विज्ञापन है जो कहना चाहती है दूरदर्शी लोग भविष्य की सोचते हैं जो अभी करेगा निवेश कल वही फायदे में रहेगा अभी निव