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Showing posts from 2009

यादें

मित्र, आपके शहर से गुजर रहा था ट्रेन में बैठा ट्रेन भाग रही थी उससे भी तेज गति से भाग रही थीं मेरी यादें यादें जो ढूह बन गईं थीं भरभरा कर गिर रही थी कितने हसीन थे वो दिन, वो पल जब हम बैठकर घंटों बातें किया करते थे वे दिन और आज का दिन यादों का पहाड़ सीने पर लिए जी रहे हैं फिर रहे हैं इस शहर से उस शहर सच बताना मेरे दोस्त बीते दिनों की यादों में कभी मेरा चेहरा उभरता है? मेरे दिल में तो मचता है हाहाकार और आंखों से टपक पड़ते हैं आंसू सोचता हूं क्या बीते दिन लौटेंगे? काश! लौट पाते बीते दिन! मेरे यार, क्या हमारी यादें जंगल बन जाएंगी? हम क्या इन्हें गुलशन नहीं बना सकते ? (बिछड़े दोस्तों के नाम )