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Showing posts from January, 2008

Kahani----------Kudimar

कहानी कुड़ीमार -ओमप्रकाश तिवारी वह नहर के किनारे खड़े होकर उसमें बहते पानी को बड़े गौर से देख रहा है। उसे देखकर लगता है कि उसकी कोई चीज पानी में खो गई है। नहर का गंदा पानी मंथर गति से बह रहा है। नहर जो कि शहर के बीच से निकलती है, किसी गंदे नाले की तरह हो गई है। उसमें लोग कूड़ा-करकट भी फेंक देते हैं। हालांकि उसका पानी सिंचाई के लिए है। वह अकसर यहां आ कर खड़ा हो जाता है और घंटों नहर के पानी को बहते हुए देखता है। फिर अचानक चिल्ला पड़ता है। हां-हां मैं कुड़ीमार हूँ... मैंने कुड़ीमारी है... लेकिन सभी कुड़ीमार हैं...। वो शर्मा, वो कोहली, ढिल्लन, ढिल्लों, कपूर, चावला, मिश्रा, पांडेय, यादव सभी कुड़ीमार हैं... यह कुलदीप सिंह है। कुछ ही दिन पहले जेल से छूटकर आया है। तब से अकसर इस तरह बोलता रहता है। उसे लगता है कि उसके कान के पास कोई कुड़ीमार... कुड़ीमार...कहता रहता है। वह काफी देर तक इसे बरदाश्त करता है, लेकिन जब सहन नहीं होता तो चीख पड़ता है -हां-हां, मैं कुड़ीमार हूँ.. कुड़ीमार हूँ..। लोग समझते हैं कि जेल में रहकर उसका दिमाग खिसक गया है। वह पागल हो गया है। दरअसल, वह नहीं चाहता था कि उसे तीसरी