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कहानी कोढ़ी का नल

भाग दो
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बहुत पहले यहां जंगल हुआ करता था। जिसमें ढाक के पेड़ बहुतायत में थे। इनके अलावा बबूल और कटाई की झांडियां थीं। जहां इनका वास नहीं था वह जमीन ऊसर थी। उसमें रेह पैदा होती थी। जिसमें घास भी नहीं उगती। इस बौने जंगल में जहां सांप-बिच्छू रहते थे, वहीं जंगली सूअर और गीदड़ जैसे प्राणी भी रहते थे। इन्हीं के बीच दो घर मनुष्यों के थे, जिन्हें दूसरे गांव के लोग वनप्राणी कहते थे। जब जमींदारी का जमाना था तो इनके पूर्वज कहीं से आकर यहां बस गए थे। पहले यह एक ही घर थे, लेकिन खानदान की वृद्धि हुई तो दो हो गए। इन्हें वनप्राणी इसलिए कहा जाता था, योंकि इन्होंने यहां बसने के बाद और किसी इनसान को बसने ही नहीं दिया। जिसने भी कोशिश की उसे मुंह की खानी पड़ी। हालांकि जंगली जानवरों से मुकाबले के लिए इन्हें समाज की जरूरत थी, लेकिन वन संपदा का बंटवारा न हो जाए इसलिए यह लोग इस जगह को आबाद नहीं होने दे रहे थे।
समय के साथ यह वनप्राणी भी बदले। इन्हें भी समाज की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद इन्होंने यहां पर लोगों को बसने की इजाजत दी।
यहां पर बसने वाले दूसरे गांवों के फालतू लोग थे। फालतू इसलिए कि इन्हें अपने गांवों में बाहर ही बसने की इजाजत थी। ये दलित थे, जिन्हें अछूत समझा जाता था। अधिकतर लोग इनका छुआ पानी तक नहीं पीते थे। इनमें से अधिकतर भूमिहीन थे। यह लोग अपने गांव से उत्पीड़ित थे। इस जंगल में खुली जगह की आस में आकर बसने लगे। हालांकि यह वनप्राणी भी सवर्ण थे और इन्हें भी दलितों से कोई लगाव नहीं था, लेकिन इनकी मजबूरी थी कि और किसी जाति का व्यि त यहां पर बसने को तैयार नहीं था।
यहां बसने सबसे पहले आया था शरीर से अपंग रामनाथ। उसके पूरे शरीर में कोढ़ था और वह कोई भी काम कर पाने में असमर्थ था। उसकी पत्नी थी और दो सुंदर बेटियां। जिनके सहारे वह जीवन व्यतीत कर रहा था। अपने मूल गांव से यहां आकर बसने में उसकी जाति और बीमारी ही खास वजह थी।
पहले का दो घरों वाला वनगंज अब तीस घरों वाला चमनगंज हो गया है। पहले के दो घरों को छोड़ दिया जाए तो यहां के सभी निवासी रामनाथ की जाति के ही हैं। ऊपरी तौर पर लोगों में भले ही एकता दिखती हो लेकिन रामनाथ के प्रति लोगों में घृणा की ही भावना है। इसकी वजह है उसकी बीमारी।
वैसे तो रामनाथ किसी से कोई वास्ता नहीं रखता है लेकिन इसका या किया जाए कि इन सबके पीने के पानी के लिए केवल एक ही साधन है, वह है सरकारी नल। यह भी इनके वोट बैंक की वजह से ग्राम प्रधान ने लगवा दिया, नहीं तो पहले वनप्राणियों के खेत की सिंचाई वाले खंडहर हो चुके कुएं से ही इनका काम चलता था। यहां से पानी भरने के बदले में इन्हें समय-समय पर वनप्राणियों के यहां बेगार करनी पड़ती थी।
रामनाथ के लिए पहले वाली ही स्थिति सही थी। जब से सरकारी नल लगा है तब से उसकी मुसीबतें बढ़ गई हैं।
जारी .....

Comments

अगली पोस्ट की प्रतिक्षा रहेगी।
Udan Tashtari said…
बढ़िया चल रही है कहानी-आगे इन्तजार है.

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