भाग एक
--------
सूरज जागने के लिए मसमसा ही रहा था कि रामनाथ उठ गया। परिवेश में ठंडी हवा तारी थी, जिससे रामनाथ का बिना कपड़े वाला बदन सिहर जा रहा था। पेडों पर चिड़ियां चहचहा रही थीं। एक्का दुक्का आदमी दिशा-मैदान के लिए हाथ में पानी का लोटा लिए बीड़ी का धुआं उगलते-निगलते और खांसते-खकारते जा रहे थे।
दिशा-मैदान से वापस आने के बाद रामनाथ पानी लेने के लिए नल पर चला गया। इस समय वहां पानी भरने के लिए चार-छह लोग पहले से ही खड़े थे। उन लोगों को सुबह-सुबह रामनाथ का नल पर आना अच्छा नहीं लगा। लोगों ने मुंह तो बिचकाया ही अपनी घृणा को दबा भी नहीं पाये।
- आज का दिन ठीक नहीं गुजर सकता। उनमें से एक ने अपने उद्गार व्य त किए।
- सुबह-सुबह कोढी-कलंदर का मुंह देखने के बाद दिन भर अन्न नहीं मिलता। दूसरे ने टिप्पणी की जो रामनाथ के दिल में तीर सी लगी। एक अनजान दर्द से उसका शरीर सिहर गया।
- हाथ-पैर नहीं हैं फिर भी घूमने की इतनी तमन्ना। एक की और झन्नाटेदार टिप्पणी जो रामनाथ को थप्पड़ सी लगी।
- आदमी को खुद ही सोचना चाहिए। दूसरों का दिन इस तरह से खराब नहीं करना चाहिए।
नल पर उपस्थित लोग इस तरह आपस में बोलते रहे। रामनाथ सोचता रहा। बीमार हो जाने से आदमी या इतना मनहूस हो जाता है? उसके मन में आया कि वह कहे कि न मिले तुम्हें खाना, न गुजरे तुम्हारा दिन सहीसलामत लेकिन मैं रोज सुबह आऊंगा, पर वह बोल नहीं पाया। शब्द उसके हलक में फंस कर रह गए। हाथ में बाल्टी लिए खड़ा रहा और सोचता रहा कि ईश्वर ने या जिंदगी दे दी है। हर कोई घृणा करता है। मुझे देखकर लोगों को उबकाई आती है। सब अपने कर्मों का फल है। ऐसा सोचकर उसने अपने जलते कालेजे को शांत करने की कोशिश की। लोग कहते हैं कि जो बहुत पाप करता है वहीं कोढी होता है। तो या मैं पूर्व जन्म में अत्याचार करने वाला जमींदार था या राजा? कुछ ऐसा ही रहा होऊंगा, पंडित राधेश्याम और जगेश्वर प्रसाद सिंह की तरह आदमी को जिंदा जलाने वाला और कमजोर लोगों को सताने तथा उनकी बहू-बेटियों की अस्मत लूटने वाला। यदि ऐसा होता तो धरती कोढ़ियों से भर जाती। हो सकता है मैंने इससे भी बड़ा पाप किया हो। भगवान भी बड़े अन्यायी हैं। पूर्व जनम की सजा अब दे रहे हैं...।
- बाल्टी मुझे दो, तुम घर चलो। घरवाली की आवाज सुनकर रामनाथ की तंद्रा टूटी। उसने अपने से लंबी घरवाली के चेहरे को गर्दन उठाकर देखा और चुपचाप घर की तरफ चल दिया।
वैसे तो अपमान सहने की उसकी आदत सी हो गई थी लेकिन अपमान करने वाला कोई बड़ा आदमी हो तो बर्दाश्त किया जाए। अब तो रोज कुआं खोदकर पानी पीने वालों ने भी उसका अपमान कर दिया था। इस कारण वह बेहद उदास हो गया। उसका मन खूब जोर-जोर से रोने को कह रहा था। लेकिन वह खुद को जज्ब किए हुए था। वह सोच रहा था कि बड़े-बड़े लोगों ने अपमानित किया और अब...। हे भगवान कैसी जिंदगी दे दी तूने। रामनाथ ने गहरी सांस ली।
घर के सामने आया तो छोटी वाली बेटी बकरियों को चारा डाल रह थी। बकारियां जल्दी-जल्दी जुगाली करते हुए चारा खा रही थीं। एकाएक उसके दिमाग में प्रश्न उठा। नल कितने में लग जाएगा? पंड़ित घनश्याम ने दो हजार में लगवाया था। यानी तीन बकरी बेचनी पड़ेगी और नल लग जाएगा। यदि तीन बेच दिया तो बचेंगी दो। फिर दो मंे या होगा? दो बहुत हैं। उनके बच्चे हैं। धीरे-धीरे फिर कई हो जाएंगी। रामनाथ को राह मिल गई। अपमान से मिले जख्म पर मरहम सा लगा और कह गए। - नल लगवा लेता हंू फिर बताता हंू सालों को।
जारी ....
--------
सूरज जागने के लिए मसमसा ही रहा था कि रामनाथ उठ गया। परिवेश में ठंडी हवा तारी थी, जिससे रामनाथ का बिना कपड़े वाला बदन सिहर जा रहा था। पेडों पर चिड़ियां चहचहा रही थीं। एक्का दुक्का आदमी दिशा-मैदान के लिए हाथ में पानी का लोटा लिए बीड़ी का धुआं उगलते-निगलते और खांसते-खकारते जा रहे थे।
दिशा-मैदान से वापस आने के बाद रामनाथ पानी लेने के लिए नल पर चला गया। इस समय वहां पानी भरने के लिए चार-छह लोग पहले से ही खड़े थे। उन लोगों को सुबह-सुबह रामनाथ का नल पर आना अच्छा नहीं लगा। लोगों ने मुंह तो बिचकाया ही अपनी घृणा को दबा भी नहीं पाये।
- आज का दिन ठीक नहीं गुजर सकता। उनमें से एक ने अपने उद्गार व्य त किए।
- सुबह-सुबह कोढी-कलंदर का मुंह देखने के बाद दिन भर अन्न नहीं मिलता। दूसरे ने टिप्पणी की जो रामनाथ के दिल में तीर सी लगी। एक अनजान दर्द से उसका शरीर सिहर गया।
- हाथ-पैर नहीं हैं फिर भी घूमने की इतनी तमन्ना। एक की और झन्नाटेदार टिप्पणी जो रामनाथ को थप्पड़ सी लगी।
- आदमी को खुद ही सोचना चाहिए। दूसरों का दिन इस तरह से खराब नहीं करना चाहिए।
नल पर उपस्थित लोग इस तरह आपस में बोलते रहे। रामनाथ सोचता रहा। बीमार हो जाने से आदमी या इतना मनहूस हो जाता है? उसके मन में आया कि वह कहे कि न मिले तुम्हें खाना, न गुजरे तुम्हारा दिन सहीसलामत लेकिन मैं रोज सुबह आऊंगा, पर वह बोल नहीं पाया। शब्द उसके हलक में फंस कर रह गए। हाथ में बाल्टी लिए खड़ा रहा और सोचता रहा कि ईश्वर ने या जिंदगी दे दी है। हर कोई घृणा करता है। मुझे देखकर लोगों को उबकाई आती है। सब अपने कर्मों का फल है। ऐसा सोचकर उसने अपने जलते कालेजे को शांत करने की कोशिश की। लोग कहते हैं कि जो बहुत पाप करता है वहीं कोढी होता है। तो या मैं पूर्व जन्म में अत्याचार करने वाला जमींदार था या राजा? कुछ ऐसा ही रहा होऊंगा, पंडित राधेश्याम और जगेश्वर प्रसाद सिंह की तरह आदमी को जिंदा जलाने वाला और कमजोर लोगों को सताने तथा उनकी बहू-बेटियों की अस्मत लूटने वाला। यदि ऐसा होता तो धरती कोढ़ियों से भर जाती। हो सकता है मैंने इससे भी बड़ा पाप किया हो। भगवान भी बड़े अन्यायी हैं। पूर्व जनम की सजा अब दे रहे हैं...।
- बाल्टी मुझे दो, तुम घर चलो। घरवाली की आवाज सुनकर रामनाथ की तंद्रा टूटी। उसने अपने से लंबी घरवाली के चेहरे को गर्दन उठाकर देखा और चुपचाप घर की तरफ चल दिया।
वैसे तो अपमान सहने की उसकी आदत सी हो गई थी लेकिन अपमान करने वाला कोई बड़ा आदमी हो तो बर्दाश्त किया जाए। अब तो रोज कुआं खोदकर पानी पीने वालों ने भी उसका अपमान कर दिया था। इस कारण वह बेहद उदास हो गया। उसका मन खूब जोर-जोर से रोने को कह रहा था। लेकिन वह खुद को जज्ब किए हुए था। वह सोच रहा था कि बड़े-बड़े लोगों ने अपमानित किया और अब...। हे भगवान कैसी जिंदगी दे दी तूने। रामनाथ ने गहरी सांस ली।
घर के सामने आया तो छोटी वाली बेटी बकरियों को चारा डाल रह थी। बकारियां जल्दी-जल्दी जुगाली करते हुए चारा खा रही थीं। एकाएक उसके दिमाग में प्रश्न उठा। नल कितने में लग जाएगा? पंड़ित घनश्याम ने दो हजार में लगवाया था। यानी तीन बकरी बेचनी पड़ेगी और नल लग जाएगा। यदि तीन बेच दिया तो बचेंगी दो। फिर दो मंे या होगा? दो बहुत हैं। उनके बच्चे हैं। धीरे-धीरे फिर कई हो जाएंगी। रामनाथ को राह मिल गई। अपमान से मिले जख्म पर मरहम सा लगा और कह गए। - नल लगवा लेता हंू फिर बताता हंू सालों को।
जारी ....
Comments
Ramnath ko mili rah use kahan tak le jayegi, iska intjar rahega.