अन्तिम भाग
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उसने नल की तरफ देखा। अब वहां चिड़ियां नहीं थीं। उसने इधर-उधर निगाह दौडाई। चिड़ियां पास के नीम के पेड पर फुदक-फुदक कर चहक रही थीं। नल पे़ड की छाया में निर्विकार भाव से खड़ा था। उसका हत्था नीचे की तरफ लटका हुआ था...।
रामनाथ नल पर गया। अपनी चादर को भिगोया और वापस आकर चारपाई पर गीली चादर को ओढकर लेट गया। गीले कपड़े से उसे गर्मी से थोडी राहत महसूस हुई। हल्की-हल्की हवा भी चलने लगी थी और सूरज भी पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ने लगा था।
गर्मी से थोडी राहत मिली तो रामनाथ नींद की आगोश में समा गया।
दो पथिकों के वार्तालाप ने उसकी नींद को तोडा। पथिक कहीं से आ रहे थे। उन्हें प्यास लगी थी। नल को देखा तो पानी पीने लगे।
- यार किसी पुण्यात्मा ने यह नल लगवाया होगा। राहगीरों को पानी पीने से तृप्ति मिली तो उनके उद्गार बाहर आ गए।
- सो तो है ही भाई। आज के जमाने में तो लोग नल घर के अंदर लगवाते हैं। बाहर लगवा भी दिए तो हत्था निकाल कर रख देते हैं। दूसरे राहगीर ने पहले वाले की बात को आगे बढ़ाया और आगे बढ़ लिए।
रामनाथ के कानों में पुण्यात्मा शब्द गूंज रहा था। वह सोचने लगा कि मैं भी पुण्यात्मा हूँ । तो मैं पापी नहीं हूँ । वह भावुक होने लगा। लेकिन तुरंत उसके दिमाग में यह विचार आया कि या मुझे पुण्यात्मा कहने वाले लोग यदि यह जानते कि यह नल मेरा है यानी एक कोढी का तो या तब भी यह लोग पुण्यात्मा कहते? यही नहीं तब शायद यह लोग इस नल का पानी ही न पीते? रामनाथ इन्हीं विचारों में उलझा था कि उसे नल केपास से बाल्टी रखने की आवाज आई। उसने नल की तरफ देखा तो वहां पर अपने पड़ोसी की लड़की को बाल्टी लिए खड़ी पाया। रामनाथ को आश्चर्य हुआ। वह उठकर बैठ गया। सोचने लगा कि यह बच्ची मेरे नल पर पानी भरने आई है। ऐसी या बात हो गई। या इसके घरवालों ने भेजा है? लगता है कि गलती से आ गई है। शायद इसे अपने पिता की भावनाएं नहीं मालूम हैं। इसके पिता तो मेरा मुंह भी नहीं देखना चाहते। यह मेरे नल से पानी भरेगी?
रामनाथ चिंतामग्न था और लड़की दो बाल्टी पानी भर कर चली गई। सूरज ढल गया था। गर्मी कम हो गई थी। मंद-मंद हवा चलने लगी थी। रामनाथ को फिर नींद आ गई। इस बार उसकी आंख खुली तो देखा नल पर भीड़ लगी है। लाइन में बाल्टियां रखी हुई हैं। पंक्तिबद्ध लोग अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उसी लाइन में रामनाथ की घरवाली भी खड़ी है...। रामनाथ को आश्चर्य हुआ। अपनी ही नल पर पानी भरने के लिए लाइन में लगना पड़े...। उसे गुस्सा आ गया। अपनी चीज का उपयोग करने के लिए लाइन में खड़ा होना पड़े वह भी उन लोगों के बीच जो उससे नफरत करते हैं...। अभी सब को भगा देता हूँ । गुस्से के मारे वह पसीने से भीग गया...।
- विमली की अम्मा। वह गुस्से में चीख पड़ा। उसकी आवाज सुनकर नल पर खड़े सभी लोग सहम गए...।
रामनाथ की आवाज सुनकर उसकी घरवाली उसके पास आ गई तो वह एक बर फिर चीखा।
- यह सब या है?
नल पर खड़े लोग फिर सहम गए...। कई लोग तो अपनी बाल्टी उठाने लगे...।
- सरकारी नल खराब हो गया है। इसलिए...।
- हमने ठेका ले रखा है या? रामनाथ ने अपनी घरवाली की बात को बीच में ही काट दिया।
- पागल हो गए हो या?
- हां, मैं पागल हो गया हूँ । यह कहकर रामनाथ उठा और नल की तरफ चल पड़ा।
- देखो, किसी को कुछ मत कहना। रामनाथ को नल की तरफ जाते देख उसकी घरवाली ने उसे समझाने के लहजे में कहा। जवाब में रामनाथ कुछ नहीं बोला। उसे नल पर आता देख सभी लोग अपना-अपना बर्तन उठाकर चलने का उपक्रम करने लगे तो बोल पड़ा।
- आप लोग पानी भर कर ही जाएं। बस मुझे जरा यह गमछा गीला करना है और दो घूंट पानी पीना है, यदि आप लोग इजाजत दें तो....।
कोई कुछ नहीं बोला। जो जहां था खड़ा रहा। रामनाथ पानी पीने लगा तो एक ने नल चला दिया। रामनाथ ने गमछा भिगोया और घर की तरफ चल पड़ा।
लौटते हुए वह खुश था...। सूर्य की गर्मी से तप रही धरती पर वह नंगे पैर चल रहा था, लेकिन उसे तपन का एहसास भी नहीं हो रहा था...। -समाप्त-
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कहानी - कोढ़ी का नल - भाग एक
कहानी - कोढ़ी का नल - भाग दो
कहानी - कोढ़ी का नल - भाग तीन
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उसने नल की तरफ देखा। अब वहां चिड़ियां नहीं थीं। उसने इधर-उधर निगाह दौडाई। चिड़ियां पास के नीम के पेड पर फुदक-फुदक कर चहक रही थीं। नल पे़ड की छाया में निर्विकार भाव से खड़ा था। उसका हत्था नीचे की तरफ लटका हुआ था...।
रामनाथ नल पर गया। अपनी चादर को भिगोया और वापस आकर चारपाई पर गीली चादर को ओढकर लेट गया। गीले कपड़े से उसे गर्मी से थोडी राहत महसूस हुई। हल्की-हल्की हवा भी चलने लगी थी और सूरज भी पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ने लगा था।
गर्मी से थोडी राहत मिली तो रामनाथ नींद की आगोश में समा गया।
दो पथिकों के वार्तालाप ने उसकी नींद को तोडा। पथिक कहीं से आ रहे थे। उन्हें प्यास लगी थी। नल को देखा तो पानी पीने लगे।
- यार किसी पुण्यात्मा ने यह नल लगवाया होगा। राहगीरों को पानी पीने से तृप्ति मिली तो उनके उद्गार बाहर आ गए।
- सो तो है ही भाई। आज के जमाने में तो लोग नल घर के अंदर लगवाते हैं। बाहर लगवा भी दिए तो हत्था निकाल कर रख देते हैं। दूसरे राहगीर ने पहले वाले की बात को आगे बढ़ाया और आगे बढ़ लिए।
रामनाथ के कानों में पुण्यात्मा शब्द गूंज रहा था। वह सोचने लगा कि मैं भी पुण्यात्मा हूँ । तो मैं पापी नहीं हूँ । वह भावुक होने लगा। लेकिन तुरंत उसके दिमाग में यह विचार आया कि या मुझे पुण्यात्मा कहने वाले लोग यदि यह जानते कि यह नल मेरा है यानी एक कोढी का तो या तब भी यह लोग पुण्यात्मा कहते? यही नहीं तब शायद यह लोग इस नल का पानी ही न पीते? रामनाथ इन्हीं विचारों में उलझा था कि उसे नल केपास से बाल्टी रखने की आवाज आई। उसने नल की तरफ देखा तो वहां पर अपने पड़ोसी की लड़की को बाल्टी लिए खड़ी पाया। रामनाथ को आश्चर्य हुआ। वह उठकर बैठ गया। सोचने लगा कि यह बच्ची मेरे नल पर पानी भरने आई है। ऐसी या बात हो गई। या इसके घरवालों ने भेजा है? लगता है कि गलती से आ गई है। शायद इसे अपने पिता की भावनाएं नहीं मालूम हैं। इसके पिता तो मेरा मुंह भी नहीं देखना चाहते। यह मेरे नल से पानी भरेगी?
रामनाथ चिंतामग्न था और लड़की दो बाल्टी पानी भर कर चली गई। सूरज ढल गया था। गर्मी कम हो गई थी। मंद-मंद हवा चलने लगी थी। रामनाथ को फिर नींद आ गई। इस बार उसकी आंख खुली तो देखा नल पर भीड़ लगी है। लाइन में बाल्टियां रखी हुई हैं। पंक्तिबद्ध लोग अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उसी लाइन में रामनाथ की घरवाली भी खड़ी है...। रामनाथ को आश्चर्य हुआ। अपनी ही नल पर पानी भरने के लिए लाइन में लगना पड़े...। उसे गुस्सा आ गया। अपनी चीज का उपयोग करने के लिए लाइन में खड़ा होना पड़े वह भी उन लोगों के बीच जो उससे नफरत करते हैं...। अभी सब को भगा देता हूँ । गुस्से के मारे वह पसीने से भीग गया...।
- विमली की अम्मा। वह गुस्से में चीख पड़ा। उसकी आवाज सुनकर नल पर खड़े सभी लोग सहम गए...।
रामनाथ की आवाज सुनकर उसकी घरवाली उसके पास आ गई तो वह एक बर फिर चीखा।
- यह सब या है?
नल पर खड़े लोग फिर सहम गए...। कई लोग तो अपनी बाल्टी उठाने लगे...।
- सरकारी नल खराब हो गया है। इसलिए...।
- हमने ठेका ले रखा है या? रामनाथ ने अपनी घरवाली की बात को बीच में ही काट दिया।
- पागल हो गए हो या?
- हां, मैं पागल हो गया हूँ । यह कहकर रामनाथ उठा और नल की तरफ चल पड़ा।
- देखो, किसी को कुछ मत कहना। रामनाथ को नल की तरफ जाते देख उसकी घरवाली ने उसे समझाने के लहजे में कहा। जवाब में रामनाथ कुछ नहीं बोला। उसे नल पर आता देख सभी लोग अपना-अपना बर्तन उठाकर चलने का उपक्रम करने लगे तो बोल पड़ा।
- आप लोग पानी भर कर ही जाएं। बस मुझे जरा यह गमछा गीला करना है और दो घूंट पानी पीना है, यदि आप लोग इजाजत दें तो....।
कोई कुछ नहीं बोला। जो जहां था खड़ा रहा। रामनाथ पानी पीने लगा तो एक ने नल चला दिया। रामनाथ ने गमछा भिगोया और घर की तरफ चल पड़ा।
लौटते हुए वह खुश था...। सूर्य की गर्मी से तप रही धरती पर वह नंगे पैर चल रहा था, लेकिन उसे तपन का एहसास भी नहीं हो रहा था...। -समाप्त-
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