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ख्वाबों के अफसाने का फसाना


 अमर आफिस से बाहर निकलने को था कि एक साथी और मिले। उन्होंने देखते ही कहा कि अरे साहब बिना मिले ही चले जा रहे हैं। यह उनका तकिया कलाम था। हमारा भी ख्याल रखना। अमर रुक गया। उनसे मिला और आवश्वासन दिया की ख्याल जरूर रखेगा। अमर इन साहब की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ था।

अंधेरे कोने

भाग 12

ख्वाबों के अफसाने का फसाना
रात के बारह बज रहे थे। अमर और नेहा बातें कर रहे थे। अभी तक छोटा बेटा भी जग रहा था। अमर के मोबाइल से एक फिल्मी गीत बजा तो उसने मोबाइल की स्क्रीन को देखा। फोन अनु का था। अमर ने फोन काट दिया। उसके ऐसा करने पर नेहा ने पूछा कि किसका फोन था? बात क्यों नहीं की?
- ऐसे ही किसी का था।
अमर ने नेहा को टाल दिया। वह इस समय अनु से बात नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि उसकी बातचीत से नेहा को लगे कि उनके बीच कोई खिचड़ी पक रही है।
अमर को पता था कि केवल काट देने से अनु पीछा नहीं छोड़ेगी इसलिए उसने फोन को साइलेंट मोड पर लगा दिया।
अनु भी कहां पीछा छोड़ने वाली थी। वह भी काल पर काल करने लगी। जब दस मिस्ड काल हो गई तो अमर ने फोन उठा लिया।
- फोन क्यों नहीं उठा रहे हो? उधर से अनु बरस पड़ी। इतनी देर से फोन कर रही हूं। क्या कर रहे थे?
- पत्नी के साथ ..।
- तो फोन नहीं उठा सकते थे? अनु ने अमर को वाक्य भी पूरा नहीं करने दिया।
- उठा सकता तो उठा लेता।
- उठा लेते तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता?
- कोई न कोई पहाड़ तो टूट ही पड़ता तभी तो नहीं उठाया। इतनी रात गए फोन करने का मतलब?
- काम ही ऐसा किए हो।
- क्या किया है?
- विज्ञापन एजंेसी वाले को गालियां क्यांे दी? वह तुमको काम दे रहा था और तुम हो कि उससे तमीज से बात भी नहीं कर सकते। मां-बहन की गाली दे रहे हो।
- अरे स्साला। वो तो कह रहा था कि उसे हिंदी नहीं आती?
- हां नहीं आती तुम्हारी तरह सबको हिंदी।
- स्साले को हिंदी नहीं आती तो फिर हिंदी की गालियों को कैसे समझ गया?
- बदतमीजी की भी एक सीमा होती है।
- बदतमीजी मैंने नहीं, उसने की है। हिंदी नहीं आती तो हिंदी वाले से मरना जरूरी है?
- तुमसे तो तमीज की उम्मीद ही नहीं की जा सकती।
- तो किसने कहा है कि उम्मीद करो।
- ओ गॉड। कह कर अनु खुद से ही बोली -कहां फंस गई? फिर अमर से मुखाबित हुई।
- जनाब बताने का कष्ट करेंगे कि काम लेने से मना क्यों कर दिया?
- क्योंकि वह अंग्रेजी में लिखने को कह रहा था।
- तो क्या दिक्कत थी?
- तुमको अच्छी तरह से मालूम है।
- मुझे कुछ नहीं मालूम है।
- मुझे अंग्रेजी नहीं आती।
- लेकिन मुझे आती है। तुम हिंदी में लिख देते। मैं उसका अंग्रेजी में अनुवाद कर देती। तुम्हारे इनकार करने से हमारे हाथ से काम चला गया।
- मैं अपना जमीन बेचकर कोई काम नहीं कर सकता। उसकी बातचीत की टोन भी ठीक नहीं थी।
- हम इस काम में नए हैं। जरूरत हमारी है। हमें लोगों को सहना पड़ेगा। वैसे भी ध्ंाधे में अकड़ नहीं चलती। कूल रहना पड़ता है। हम कोई स्टार नहीं हैं कि लोग हमारे आगे-पीछे घूमेंगे। 
- शायद तुम ठीक कह रही हो। इस तरह से मैंने नहीं सोचा।
- इस तरह से कब सोचोगे? पत्नी बच्चों के अलावा आपके जीवन में मैं भी हूं।
- सॉरी यार, आगे से ख्याल रखूंगा।
- मेहरबानी होगी। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हमें काम मिले इसलिए मैंने एक मार्केटिंग कंपनी हायर की है। जो मनोरंजन और विज्ञापन उद्योग में हमारी मार्केटिंग कर रही है। यदि तुम ऐसे ही मौके खोते रहे तो हमारे तो लाखों रुपये डूब जाएंगे।
अनु ने फोन काट दिया। वह बेहद गुस्से में थी। अनु का इस तरह का व्यवहार अमर को अच्छा नहीं लगा।
उसके दिमाग में आया कि यह लड़की मेरा इस्तेमाल कर रही है। यह मुझसे प्यार नहीं करती। यह मुझे बर्बाद कर देगी। मुझे इससे किनारा कर लेना चाहिए। यह तो अपने आपको पता नहीं क्या समझती है? अरे भाई मार्केटिंग कंपनी हायर किया है तो अपने लिए। खुद बात करो, लिखो मुझे क्यों घसीट रही हो? मुझे अंग्रेजी नहीं आती। मैं नहीं लिख सकता। मेरा कोई अपमान करे तो वह भी नहीं सह सकता।
बात करते-करते वह छत पर चला गया था। छत से नीचे आया तो नेहा ने पूछा।
- किसका फोन था?
- अनु मैडम थीं।
- क्या कह रही थीं?
- बिजनेस की बात कर रही थीं।
- इतनी रात को?
- बिजनेस का कोई समय नहीं होता। आम आदमी को खाने हगने और सोने से फुर्सत नहीं होती। बिजनेस करने वाले इन चीजों पर अपना वक्त जाया नहीं करते...। अमर के शब्दों की तुर्सी को नेहा ने भी महसूस किया।
- कुछ गड़बड़ हो गई क्या?
- नहीं, कुछ नहीं। तुम सो जाओ। कहते हुए अमर लेट गया। लेकिन नींद उसकी आंखों से दूर थी। वह करवट पर करवट बदलने लगा। उसकी यह हालत देखकर नेहा ने फिर पूछा कि क्या बात है?
- नींद नहीं आ रही है।
- ऐसा क्या कह दिया कि आपकी नींद ही उड़ गई? नेहा ने मजाक किया। अमर ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। वह इस बात को लेकर बेचैन था कि वह अब क्या करे? जिस क्षेत्र में उसने कदम रखा है, उसमंे वह चल नहीं पाएगा। अंग्रेजी भाषा की अज्ञानता पीछा ही नहीं छोड़ रही है। वैसे भी अभी तक जो काम मिला है वह अनु और उसके पिता की बदौलत मिला है। इसमें मेरी प्रतिभा का कोई योगदान नहीं है। ऐसे में सम्मान से कैसे जिया जा सकता है। मुझे कोई न कोई फैसला करना पड़ेगा। इन्हीं उलझनों में उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
अमर अपने अखबार के कार्यालय गया। अभी उसने इस्तीफा नहीं दिया था। हालांकि उसकी गतिविधियों से संपादक से लेकर सभी विभागों के लोग वाकिफ थे। सब मान चुके थे कि अमर अब यहां नौकरी नहीं करेगा। सीरियल में काम करने से जहां कुछ लोग खुश थे। वहीं कइयों को जलन हो गई थी। हालांकि वह किसी से कुछ भी कहने से बचते थे लेकिन मौका पाते ही यह कहने से नहीं चूकते थे कि अमर का वहां चल पाना मुश्किल है। देख लेना एक दो सीरियल के बाद बोरिया-बिस्तर गोल हो जाएगा। जिस प्रतिभा की वहां जरूरत होती है वह उसमें है ही नहीं। उसे तो अंग्रेजी आती ही नहीं। बिना अंग्रेजी के वहां गुजारा नहीं हो सकता। वह तो किसिंग सीन को मीडिया में हाइप मिलने के कारण उसे यह सीरियल भी मिल गया नहीं तो उसे कौन पूछता है? कितने सालों से सीरियल और फिल्मों की स्क्रिप्ट लिए घूम रहा था किसी ने घास ही नहीं डाली।
हालांकि ऐसा कहने वालों का विरोध करने वाले भी थे। उनका वह प्रतिवाद करते। उनका तर्क होता कि अमर में प्रतिभा है। यह और बात है कि वह आज तक सफल नहीं हो पाया। एक मौके की दरकार थी। अब जब मिल गया है तो वह सफल हो जाएगा। उसके साथ दिक्कत है कि वह चमचागीरी नहीं कर पाता। जबकि आदमी की सफलता के पीछे प्रतिभा कम इस योग्यता की अधिक जरूरत पड़ती है। इसी आफिस में उसने कितने संपादकों के साथ काम किया लेकिन किसी का पप्पू नहीं बना। यदि पप्पू बन जाता तो आज वह भी काफी आगे होता। वह पढ़ने-लिखने वाला बंदा है। आफिस की राजनीति मंे उसकी दिलचस्पी नहीं थी। कई लोग उसके खिलाफ सियासत करके अपनी तरक्की कर गये। ऐसा नहीं है कि उसे यह सब मालूम नहीं है लेकिन वह ऐसे लोगों से भी संबंध रखता है। वह जानता है कि फला बंदा खतरनाक है। अभी मित्र-यार या भाई साहब कह रहा है लेकिन मौका पाते ही काम लगा देगा फिर भी वह उससे प्यार से बोलते ही सब कुछ भूल जाता। यहीं वह मार खा जाता। लोग संपादक से उसकी शिकायत करके अपना नंबर बना जाते। बाद में तो वह किसी को सफाई भी नहीं देता था।
पूरा दफ्तर दो गुटों में बंटा था। एक वह जो अमर को नापसंद करता था और एक वह जो उसे पसंद करता था। नापसंद करने वाले इन दिनों मायूस थे। उनकी यही कामना थी कि अमर सफल न हो पाए। हालांकि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला था लेकिन वही ईर्षा तू न गई मेरे मन से...।
अमर कार्यालय पहुंचा तो सभी प्यार से मिले। सभी से मुलाकात करने के बाद ही वह संपादक से मिलने उनके केबिन में गया। उससे मिलकर संपादक भी खुश हुए। उन्होंने कहा भी कि मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। इस्तीफा देने की बात चली तो अमर ने कह दिया कि वह अभी त्यागपत्र नहीं देगा। उसने संपादक से निवेदन किया कि उसे दो-तीन माह का समय दिया जाए। वह चाहता है कि उसका पैर टीवी की दुनिया में जम जाए तो वह इस्तीफा दे देगा। उसकी इस बात को संपादक ने स्वीकार कर लिया। इससे अमर ने राहत की सांस ली। उसे लगा कि यदि टीवी की दुनिया में उसका निर्वाह ना हुआ तो वह अपनी अखबारी दुनिया में वापस आ सकता है।
संपादक जी से मिलकर वह बाहर आया तो एक साथी उसके गले लग गये। उसके नए कर्म क्षेत्र के लिए बधाई दी और सफलता की कामना की। अमर को कोई हैरानी नहीं हुई उनके व्यवहार से। वह जानता था कि इन जनाब की यही फितरत है। सामने कुछ और पीठ पीछे कुछ। संपादक से बात करने के लिए किसी को भी बलि का बकरा बना देना इनका सगल है। संपादक को फोन करके या मेल करके यह अपने साथियों की बुराई करते रहते हैं। फला आपके बारे में तो ऐसा कह रहा था। काम ठीक से नहीं करता। फला तो हमेशा नेट देखता रहता है। फला आफिस में ब्लॉग लिखता है। फला तो आफिस में ही कहानियां लिखता रहता है। फला की एडिंटिग ही सही नहीं है। फला की पढ़ी खबर तो बिना फिर से पढ़े लगा ही नहीं सकते। किसी खोजी कुत्ते की तरह साहब हमेशा कुछ न कुछ सूंघते रहते हैं ताकि उसे संपादक तक पहुंचाकर अपना नंबर बढ़वा सकें। इन्होंने अमर का भी कई बार काम लगाया है जबकि यह अमर का दोस्त ही नहीं शुभचिंतक होने का दावा करते हैं।
इनके बाद एक कनिष्ठ सहयोगी मिला। उसने अमर को नमस्कार के साथ बधाई दी और खी-खी करके हंसने लगा। इसका स्वाभाव भी उन्हीं वरिष्ठ जैसा ही है। इसने तो अमर की छवि ही चौपट कर दी थी। संपादक से कह दिया था कि वह बात-बात पर गालियां देते हैं। गुस्सा करते हैं। एक बार जब प्रमोशन की बारी आई संपादक ने अमर को अपना स्वाभाव बदलने की सलाह दी तो वह अवाक रह गया। यह सही था कि अमर गालियां देता है और गुस्सा भी होता है लेकिन किसी साथी के साथ उसने कभी बदतमीजी नहीं की थी। उसके पास कई लोगों की कमियों की फेहरिस्त थी लेकिन उसने कभी किसी की शिकायत नहीं की। कई तो ऐसे थे जो काम करने लायक ही नहीं थे लेकिन वह अपने इसी गुण के कारण संपादक के खास बने हुए थे।
एक महोदय तो ऐसे थे जो चार लाइन भी शुद्ध नहीं लिख सकते लेकिन वे संपादक के खास थे। उनका काम था कि कौन क्या कहता है, क्या करता है उसकी रिपोर्ट संपादक को दें। अमर जानता था कि ऐसे खोजी कुत्ते पालने का संपादकों को शौक होता है। यह ऐसी मानववृत्ति है जिससे इनसान बच ही नहीं पाता। हर अधिकारी अपने मातहतों की कमियां जानने के लिए ऐसे कुत्तों की सहायता लेता है। ये ऐसे कुत्ते होते हैं जो कभी भौंकते नहीं हैं। लोगों के बीच दुम हिलाते और रेंगते रहते हैं। यही नहीं संपादक की बुराई भी करेंगे ताकि लोग उन्हें संपादक का कुत्ता न समझें और कुछ ऐसा बक दे ताकि उसकी दिहाड़ी बन जाए।
अमर के एक वरिष्ठ साथी थे। अमर ने उनके अधीनस्थ कई सालों तक काम किया। उनका तकिया कलाम था कि हां, वह सब तो सही करता है पर थोड़ा ढीला है। अमर को उन्होंने इसी विशेषण से नवाजा था। इन साहब का चरित्र भी कमाल का है। यहां पर यह परिवार के साथ नहीं रहते। दोपहर को भोजन यह दूसरे के यहां ही करते थे। सुबह उठते ही तरोताजा होने के बाद यह अपने कमरे से निकल पड़ते हैं। किसी के यहां चाय पीएंगे तो किसी के यहां खाना खाएंगे। यह इनका प्रतिदिन का काम है। धीरे-धीरे लोगों को इनकी इस योजना की जानकारी हो गई तो लोग सावधान हो गये। फिर भी दोपहर के भोजन के लिए किसी न किसी को काट ही देते हैं। अपने साप्ताहिक अवकाश वाले दिन तो साहब रात के मुफ्त भोजन के लिए शहर के प्रसिद्ध मंदिर में लंगर खाने चले जाते हैं वह भी पैदल। पांच-छह किलोमीटर पैदल आना-जाना उनके जैसा चिरकुट ही कर सकता है।
एक बार उनके यहां एक साथी ने दोपहर का भोजन कर लिया। यह अपने आप में परिघटना बन गई, क्योंकि ऐसा करने वाला वह साथी अकेला था। अमर को पता चला तो उसने उस साथी को बधाई देते हुए कहा कि यार तुम तो गिद्ध के घोंसले से मांस निकाल लाए।
एक बार एक और साथी ने इन्हें मात दी थी। उसने संस्थान को ज्वाइन ही किया था कि इन्होंने उसे अपना रूममेट बना लिया। उसके साथ एक साथी और था। दोनों मिलकर खाना बनाते तो सभी खाते। उनके साथ यह साहब एक चालाकी यह करते कि दोपहर की सब्जी एक कटोरी में चुपके से किचन में कहीं छुपाकर रख देते। उसी को रात के खाने के लिए उपयोग करते। हिसाब-किताब के समय कहते कि मैं तो एक टाइम ही खाना खाता हूं। एक बार साथी ने उनकी सब्जी चुपके से गायब कर दी। उस दिन वह बेचारे केवल रोटी लेकर दफ्तर गये और दूसरे साथियों से सब्जी लेकर भोजन किया।
अमर आफिस से बाहर निकलने को था कि एक साथी और मिले। उन्होंने देखते ही कहा कि अरे साहब बिना मिले ही चले जा रहे हैं। यह उनका तकिया कलाम था। हमारा भी ख्याल रखना। अमर रुक गया। उनसे मिला और आवश्वासन दिया की ख्याल जरूर रखेगा। अमर इन साहब की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ था। यह साहब अब तक जितने भी संपादक आए सभी के खास रहे। केवल अपनी एक कला की बदौलत। अखबार का पहला संस्करण छप कर आते ही उसे पढ़ते और कोई गलती पकड़ कर उसकी शिकायत संपादक से कर आते। यही नहीं लोगों की लॉगिन में जाकर उसकी गलतियां खोजते और प्रिंट निकल कर संपादक को दिखा आते। अपने साथ काम करने वाले की ऐसी बाट लगाते कि उसका पूरा कैरियर ही चौपट हो जाता। ये साहब हर साल वेतन वृद्धि और समय से पदोन्नति पाते रहते। इन्हें यह भान भी नहीं था कि इन्होंने दूसरों की ऐसी गोभी खोद दी है कि उसकी फसल कभी तैयार ही नहीं होगी। दूसरे के कामों में बाल की खाल निकालना इनकी फितरत है और इनकी तरक्की का राज भी यही है। यह अमर से जूनियर थे लेकिन आज सीनियर हो गए हैं और उससे अधिक वेतन पा रहे हैं। ऐसे गुणों के धनी लोगों की यहां कमी नहीं है। एक से बढ़कर एक हैं। कई लोग तो दूसरे अखबार के भीतर की बातें संपादक को बताते हैं। यह और बात है कि वह यहां की बातें भी उधर बताते रहते हैं। कुछ लोग तो दूसरे अखबारों की कमियां और बुराइयों पर ही चर्चा करते रहते हैं। इसी बहाने संपादक के टच में रहते हैं। ऐसे लोगों की यही खेती है और इनकी फसल वह जमकर उगाते और काटते हैं। सभी का चरित्र जानने के बाद किसी को भी यह एसहसास हो सकता है कि वह विचित्र जीवों के बीच है। निश्चय ही उसे अखबार के दफ्तर में नहीं किसी म्यूजियम में होना चाहिए। अपने साथियों के साथ कितना तो अच्छा लगेगा कि लोग उन्हें टिकट लेकर देखने आएं..।
ये साथी अनमोल और दुलर्भ हैं। इनका संरक्षण किया जाना चाहिए...।
- सॉरी यार। अमर ने मोबाइल फोन ऑन करके कान से लगाया तो उधर से अनु की आवाज गूंजी। मुझे माफ कर दो। उस दिन मैं गुस्से मंे थी। पता नहीं क्या-क्या बोल गई। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मैं खुद भी परेशान रही। तुम्हें भी नाराज कर दिया।
- इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। तुम्हारी जगह कोई भी होता तो ऐसी ही प्रतिक्रिया करता। तुम्हारा गुस्सा तो वैसे भी जायज है। आखिर मार्केटिंग पर लाखों खर्च कर रही हो तो मेरी वजह से नुकसान होगा तो गुस्सा किस पर करोगी?
- शब्दों के मायने मैं भी समझती हूं। मैंने हमारी मार्केटिंग की बात की थी। उसमें तुम और मैं कहां से आ गया?
- जो सच है उसे तो सामने आना ही है। मैं कहां हिंदी का पत्रकार और लेखक। गरीब किसान का बेटा और तुम उद्योगपति की एकलौती बेटी। मैं तो भूल ही गया था कि मेरी औकात तो आपकी जूती बनने लायक भी नहीं है।
- अमर ऐसी बातें क्यों कह रहे हो? मेरे लिए तुम क्या हो मैं कह नहीं सकती। यदि तुमने इस तरह की बातें की तो मैं खुद को माफ नहीं कर पाउंगी। न ही जी पाउंगी। उस दिन के बाद से मेरी क्या हालत है मैं ही जानती हूं। तुम तो फोन ऑफ करके भूल गए। किसी पर क्या बीत रही है इससे तुम्हें क्या लेना देना। इतने दिनों में कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि मुझ पर क्या बीत रही है। आज चार दिन बाद तुमने मोबाइल ऑन किया है। चाहने वाले को मार देने के लिए बेरुखी से बड़ा कोई घातक हथियार नहीं हो सकता। तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?
अमर ने कोई जवाब नहीं दिया तो अनु ने बोलना जारी रखा।
- तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? यार इतना भी बड़ा अपराध नहीं कर दिया कि मेरी जान ले लो। मैं तुम्हारे बिना पानी की मछली की तरह तड़प रही हूं। यदि मुझे माफ नहीं किये और तुरंत आ कर नहीं मिले तो ठीक नहीं होगा।
- मेरी जान ले लोगी?
- नहीं अपनी दे दूंगी। फिर तुम पर दो जीवों को मरने के लिए बाध्य करने का केस चलेगा।
- दो जीवों का मतलब? अमर चौका था।
- मैं मां बनने वाली हूं।
- बधाई हो। अमर बिल्कुल शांत होकर कहा। हालांकि उसके दिमाग में खबबली मच गई थी।
- केवल बधाई से काम नहीं चलेगा। पापा बनने वाले हो। होने वाले बच्चे की मां की आकर देखभाल करो।
- तुम्हारे सीरियल का क्या होगा?
- मैंने हेरोइन बनने का सपना कभी नहीं देखा। वैसे भी मैं 32 साल की हूं। इस क्षेत्र के लिए मेरी उम्र निकल गई है। मां का रोल करने से अच्छा है कि रीयल लाइफ में मां बन जाएं। जिस कैरियर की तुम बात कर रहे हो यदि उसके चक्कर में पड़ी तो मां भी नहीं बन पाऊंगी। साइंस भी कहता है कि बढ़ती उम्र के साथ मां बनने के चांस खत्म होने लगते हैं। सो प्लीज मुझे और कोई सपना मत दिखाओ। अब मुझे मां बनने से कोई नहीं रोक सकता। रही बात सीरियल की तो उसकी कहानी घुमा दो। सीरियल में भी मुझे प्रेग्नेंट दिखा दो।
- लेकिन ऐसी हालत में काम?
- वो सब हो जाएगा। पहले तुम आ जाओ।
- लोग क्या कहेंगे?
- जानती हूं। लेकिन मेरे पास इसके सिवा कोई रास्ता नहीं है। वैसे भी बिना शादी के हम सेक्स कर सकते हैं तो बच्चा क्यों नहीं पैदा कर सकते?
- सेक्स और बच्चे में फर्क है।
- तुम मुझसे शादी तो कर नहीं सकते। ऐसे में मेरे सामने विकल्प यही है कि मैं बिना ब्याह किये तुम्हारे बच्चे की मां बनूं।
- क्या बिन ब्याही मां बनना जरूरी है?
- तो शादी कर लो न मुझसे?
- मैं तो शादीशुदा हूं।
- तो क्या हो गया? क्या लोग दो शादी नहीं करते?
- हमारा कानून इसकी इजाजत नहीं देता।
- कोई तो राह होगी?
- हम एक दूसरे को भूल जाएं।
- मेरे लिए इस जन्म में यह संभव नहीं है। क्या तुम कर पाओगे?
- फिर आर्बाशन करा दो।
- अमर!!! अनु जोर से बोली फिर शब्दों पर जोर देते हुए बोली कि इतनी घटिया...!!! आगे के वाक्य को अधूरा छोड़ दिया।
अमर चुप रहा। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो अनु ने कहा।
- सॉरी यार। कोई इस तरह से कहता है तो बहुत तकलीफ होती है। गुस्सा आ जाता है। तुम समझ सकते हो। आई लव यू अमर। विलीव मी।
अमर सुनता रहा और अनु बोलती रही।
- मैं यह तो नहीं कह सकती कि तुम अपनी पत्नी को तलाक देकर मेरी मांग सजा दो। मैं जानती हूं कि तुम उनसे बहुत प्यार करते हो। फिर बच्चों की भी जिम्मेदारी है। मैं अपना सपना पूरा करने के लिए इतने लोगों के सपनों का कत्ल तो नहीं कर सकती।
- कभी-कभी बातें अच्छी करती हो? काफी देर बाद अमर बोला।
- यार मैं उतनी बुरी नहीं हूं जितनी तुम समझते हो।
- मैं तो कुछ भी नहीं समझता।
इनकी बात चल ही रही थी कि अमर का छोटा बेटा करन आ गया। चार साल के इन जनाब को फोन पर बातें करने का बहुत शौक है। मोबाइल लेने की जिद करने लगे। अमर ने अनु को बताया कि छोटे साहब बात करेंगे तुमसे। अनु भी तैयार हो गई।
- हैलो - मैं करन बोल रहा हूं। आप कौन बोल रहे हो? सवाल सुन अनु असमंजस में पड़ गई। बच्चे को क्या बताए? इनसे क्या रिश्ता जोड़े?
- मैं अनु बोल रही हूं।
- कौन अनु? अनु के लिए प्रश्न का उत्तर देना और कठिन हो गया।
- मैं आपके पापा की दोस्त हूं।
- कौन दोस्त?
माइ गॉड ये बच्चा है कि सवालों का पिटारा। अनु ने खुद से ही कहा।
- मैं आपके डैडी के साथ सीरियल में काम करती हूं।
- अच्छा, आप मेरी नई मां हैं?
- ये तुमसे किसने कहा? अनु सकपका गई। इस बच्चे को यह बात कैसे पता चल गई।
- मुझे सब मालूम है।
- क्या मालूम है?
- आप मेरे डैडी से प्यार करती हो?
- हां, लेकिन तुमको कैसे मालूम?
- मैं रोज सीरियल में देखता हूं। तुम मेरे डैडी से शादी करने वाली हो।
- नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है वो तो सीरियल..।
- मुझे आप अच्छी लगती हो लेकिन मम्मी को नहीं। वह कहती हैं कि आप अच्छी नहीं हो।
- मम्मी ऐसा क्यों कहती हैं?
- मालूम नहीं।
- और क्या कहती हैं आपकी मम्मी?
- मम्मी कहती हैं कि नई मम्मी मुझे बहुत मारेगी।
- मम्मी झूठ बोलती हैं। मैं आपसे बहुत प्यार करुंगी। तुम्हें दीदी दूंगी।
- हां, मम्मी बहुत झूठ बोलती हैं। बच्चे ने हंसते हुए कहा। लो मम्मी आ गईं बात कर लो। करन ने फोन नेहा को पकड़ा दिया। बात करने से पहले नेहा ने अमर से पूछा कि किससे बातें कर रहा था? अमर ने बताया कि अनु मैडम हैं। चूंकि फोन पकड़ लिया था तो नेहा को मना करते नहीं बना। उसने भी हैलो कर दिया। दोनों ने एक दूसरे को नमस्ते किया लेकिन इसके बाद किसी को नहीं सूझ रहा था कि क्या बात करें। हालात को अनु ने संभाला
- आपका बेटा तो बड़ा नॉटी है।
- बहुत बदमाश है। फोन करते देख ले फिर तो बिना बात किये नहीं मानता।
- बड़ी प्यारी बातें करता है।
- सवाल पर सवाल करके भेजा खा जाता है।
- नहीं सवाल तो बड़े प्यारे करता है।
- वह आपका दीवाना है। आपका सीरियल देखे बिना नहीं सोता।
- सीरियल में तो अपने डैडी को देखता होगा?
- साहब खुश हैं कि डैडी शादी करने वाले हैं। नई मम्मी कब आएंगी। मुझे प्यार करेगी की नहीं। मेरी तो जान खा जाता है। मैं भी कह देती हूं कि नई मम्मी बहुत मारेंगी। वह सिर्फ पापा को प्यार करेंगी। फिर कहेगा कि आप झूठ बोलती हो। कहां तक समझाएं। मेरे तो सिर में दर्द हो जाता है। आप लोगों के सीरियल ने मेरी परेशानी बढ़ा दी है।
- सीरियल आपको अच्छा नहीं लगता?
- लगता है। लेकिन इसके मारे सही से देखने को नहीं मिलता।
- अमर आपको बहुत प्यार करते हैं। अनु ने विषय बदला।
- यही तो मेरी खुशनसीबी है। कहां मैं और कहां अमर। लेकिन कोई डोर है जो हमें इस रिश्ते से बांधे हुए है।
- आपको अमर पर कभी शक नहीं होता?
- उन पर और शक? बेचारे भर निगाह किसी लड़की को देखते भी नहीं। मेरी सहेलियां तो मुझसे कहती हैं कि भाई साहब बड़े शर्मिले हैं। इस स्वाभाव के आदमी पर क्या शक करना?
- हो, सकता है वह आपके सामने अपनी ऐसी छवि बनाए हों?
- नहीं मुझे नहीं लगता।
- मर्द हैं। सुंदर हैं। लड़कियों के बीच काम करते हैं। ऐसे में आप इतने विश्वास से कैसे कह सकती हैं?
- एक बार एक लड़की इनके पीछे पड़ गई। इन्हांेने पहली मुलाकात में ही बता दिया कि मैं शादीशुदा हूं। बच्चों का पिता हूं। लड़की कुछ दिन तक आती-जाती रही हाय-हैलो भी रही लेकिन धीरे धीरे उसने कन्नी काट ली।
- हो सकता है वह सुंदर न रही हो?
- मुझ से तो सुंदर ही थी। कंुआरी भी थी।
- फिर कोई लड़की पीछे पड़ जाये तो?
- उसके हाथ निराशा ही लगेगी। अमर मुझे हो सकता है कि प्यार न करते हों लेकिन बच्चों को तो करते ही हैं। फिर वह अपने कर्तव्य को भी अच्छी तरह जानते हैं। वह अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते। मैं यह भी जानती हूं कि वह दोहरी जिंदगी नहीं जी सकते।
- लेकिन कहते हैं न कि इश्क-मुश्क पर कोई जोर नहीं चलता।
- जब मेरी नसीब में यही लिखा होगा तो क्या कर सकती हूं।
- मान लो कोई लड़की अमर से प्यार करने लगे और वह अमर के बच्चे की मां बनने वाली हो तो आप क्या करेंगी?
- मैं क्या करूंगी? सोचते हुए। कह नहीं सकती। इस तरह से मैंने कभी सोचा नहीं।
- मान लो ऐसे हालात बन जाएं तो?
- जब बन जाएंगे तो देखा जाएगा।
- आप अमर से नाराज हो जाएंगी?
- अमर मेरे भगवान हैं। कोई भक्त अपने देवता से नाराज होता है? बेशक भगवान उसे कष्ट में रखें।
- उस लड़की को तो आप खूब गालियां देंगी?
- हो सकता है, लेकिन इसमंे उसका क्या दोष? जब अपना सिक्का ही खोटा निकल जाए।
- क्या आप अपना प्यार बांटने के लिए तैयार हो जाएंगी?
- आप ऐसे सवाल क्यों पूछ रहीं हैं? नेहा सचेत हो गई। संदेह शुरू से ही था लेकिन वह प्रकट नहीं करना चाहती थी। पर जब अनु इसी प्रसंग पर अटक गई तो उसने सवाल कर ही दिया।
- यों ही।
- नहीं मुझे तो दाल में काला नजर आ रहा है? कहीं आपकी निगाह मेरे पति पर तो नहीं है? नेहा ने सीधे सवाल कर दिया। हालांकि यह कहते हुए उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं। लेकिन उसने बात को हंसते हुए कहा ताकि मामला हंसी-मजाक जैसा ही लगे।
- अरे नहीं। अनु सकपका गई। शब्द उसके हलक में अटक गये। उसे जवाब देने के लिए शब्द नहीं सूझ रहे थे। बातचीत में ऐसा मोड आ जाएगा उसने कल्पना भी नहीं की थी।
- आप तो मुझ पर ही हमलावर हो गईं?
- आपकी बातों से मुझे ऐसा लगा। नेहा ने हंसते हुए कहा।
- नहीं, हम केवल दोस्त हैं? अनु ने सफाई दी।
- दोस्ती की सीमा तो नहीं पार की? नेहा ने चुटकी ली।
- आप भी न ...। अनु शर्मा गई।
- अरे नहीं। लड़कियां पहले दोस्ती करती हैं। फिर गलती करती हैं। उसके बाद पीछे पड़ जाती हैं। कहेंगी अब मुझे झेलो लेकिन लड़के झेलते नहीं हैं। घरवाली से ऊबे मर्द ऐसी लड़कियों या औरतों को टेस्ट चेंज करने का जरिया मानते हैं। जिंदगी की एकरसता में थोड़ी हलचल और फिर वही लौट के बुद्दू घर चले आते हैं। नेहा ने अनु में भय नहीं आतंक पैदा करने की कोशिश की। अनु को लगा कि विषय नहीं बदला गया तो उसका सिर फट जाएगा।
- आपसे बातें करके बहुत अच्छा लगा। मिलकर और लगेगा। कभी मुलाकात करते हैं।
- जरूर, क्यों नहीं? वैसे भी अमर से आपकी दोस्ती हो गई है तो हमें तो मिलना ही है।
- हां, ठीक कह रही हैं आप। अनु ने कहा। देखिये जिंदगी किस मोड़ पर हमें मिलाती है।
दोनों ने संवाद खत्म करके मोबाइल फोन ऑफ कर दिया।
- बहुत तेज हैं आपकी दोस्त। नेहा ने अमर से कहा।
- पैसे वाले बिना मतलब के न तो बोलते न ही किसी से बात करते हैं। उनके दिमाग में हमेशा निवेश और लाभ का द्वंद्व चलता रहता है। बात और व्यवहार को भी वह निवेश ही समझते हैं। अमर ने कहा।
- हां, मुझे लगता है कि निवेश तो उन्होंने कर दिया है लाभ की प्रतीक्षा में हैं। नेहा ने गंभीरता से कहा।
- इस निवेश में उन्हें लाभ मिलेगा? अमर ने नेहा से सवाल किया।
- जहां लाभ की उम्मीद न हों, वहां निवेश कौन करता है?
- निवेश में खतरा भी तो होता है।
- खतरे से डरने वाले कहां आगे बढ़ पाते हैं?
- और जो आगे बढ़ जाते हैं वह खतरे से नहीं डरते।
- मालूम है मुझे। लेकिन मैंने भी निवेश किया है। अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी है। अब लाभ कमाने की बारी है तो कोई कंपनी मुझे धोखा नहीं दे सकती। मैं भी ब्याज सहित मूलधन वसूल करके ही रहूंगी...। नेहा ने विश्वास से लेकिन थोड़ा गुस्से के लहजे में कहा।
- आप निश्चिंत रहें। आपका मूलधन और ब्याज कोई छीन नहीं सकता। अमर ने मुस्कुराते हुए कहा।
- यदि किसी ने मुझे घटा पहुंचाने की कोशिश की तो मैं उसे कंगाल कर दूंगी। नेहा ने गुस्से में कहा और उठकर किचन में चली गई। वहां जाकर देर तक बर्तनों से खटपट करती रही...।
अमर वक्त काटने के लिए टीवी चालू कर देता है। न्यूज चैनल लगाया तो उस पर कोई निवेश सलाहकार निवेशकों को कंपनियों में पैसा निवेश करने के लिए सलाह दे रहा था। पूछने वालों की लाइन लगी थी। किस कंपनी में निवेश करूं? किसका शेयर अच्छा है? किसमें मुनाफा है? किसमें रिस्क अधिक है। कौन कंपनी भरोसेमंद है। आदि सवाल फिर सलाहार की सलाह। फला कंपनी में निवेश करें, अच्छी है। फला कंपनी का भविष्य अच्छा है।
बाजार-निवेश और लाभ.. कहते हुए अमर ने चैनल बदल दिया। इस चैनल पर देश में सूखे पर रिपोर्ट दिखाई जा रही है। सूखती फसलें-दरारों से भरी धरती। मायूस-उदास किसानों के चेहरे। मुस्कुराते प्रधानमंत्रीµपार्क और मूर्तियां लगवाने वाली मुख्यमंत्री। किसान की मौत, बिलखता परिवार। मुआवजा की घोषणा करती सरकार। अमर ने आंख बंद कर ली। उसे लगा कि उसका सिर फट जाएगा। वह थोड़ी देर आंखें मूंदे रहता है तो देखता क्या है कि किसानों के खेतों में भी भीमकाय मशीनें आ गई हैं। किसान घरों से निकल कर परिवार सहित अपने खेतों में आ गए हैं। वह मशीनों के आगे लेट रहे हैं। उनके लेटते ही खेतों की दरारें चौड़ी हो जाती हैं। किसान उसी में समा जाते हैं। मशीन चलती है। भूमि को समतल कर देती है। देखते-ही-देखते खेतों में कारखाने उग आते हैं। उंची-उंची इमारतें बन जाती हैं। आलीशान कोठियां फ्लैट-स्वीमिंग पूल बन जाते हैं। चौड़ी सड़कें। उस पर भागतीं कारें। पार्क और उनमंे नेताओं की मूर्तियां। कूड़े के ढेर। उसमें अपनी जिंदगी खोजते छोटे-छोटे बच्चे। झुग्गी बस्तियां। उसमें कीड़े मकोड़ों की तरह रेंगते लोग। सूखी नदियां। बहता गंदा पानी। बड़े-बड़े मॉल। खरीदारी करते लोग। कारखानों से निकलते उदास चेहरे। महंगी एसी कारों में भागते लोग। मिनी स्कर्ट और ब्रा पहने आंखों पर काला चश्मा लगाए घूमती लड़कियां। मोबाइल फोन पर बात करते लड़के...। लड़कियों की नंगी कमर में हाथ डाले लड़के...।
- चाय पी लो। नेहा ने कहा तो अमर का कोलाज बिखर गया। उसने आंखें खोलीं। टीवी पर अब भी सूखे की रिपोर्ट आ रही थी। फसल तबाह होने के कारण एक किसान ने खुदकुशी कर ली थी। टीवी स्क्रीन पर उसके परिजन बिलख रहे थे। उधर प्रदेश की दलित महिला मुख्यमंत्री पार्कों में अपनी और पार्टी के चुनाव चिन्ह की मूर्तियों का अनावरण कर रही थी ...।
प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर जा रहे थे। जी-7 ने उन्हें मंदी पर बातचीत के लिए विशेष तौर पर बुलाया था। वहीं पर वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से भी मिलने वाले थे।
वित्तमंत्री कह रहे थे हमारी आर्थिक विकास दर आठ फीसदी से ज्यादा ही रहेगी...।
कृषि मंत्री का बयान था कि सूखे के बावजूद देश में खाद्यान्न की कमी नहीं है। कोई भूख से नहीं मरेगा...।
गृहमंत्री चेता रहे थे कि आतंकी हमला कर सकते हैं। नक्सली गतिविधियां बढ़ गई हैं। इनसे सख्ती से निपटना होगा...।
अमर ने टीवी बंद कर दिया। चाय लेकर छत पर चला आया। सूर्य देवता अस्तगामी थे। अमर को ध्यान आया कि किसी ने कहा था कि डूबते सूरज को नहीं देखना चाहिए। उसने अपनी निगाह दूसरी तरफ करनी चाही लेकिन और दिशाओं में  ऐसा कुछ था ही नहीं कि वह उधर देखता। घूम फिर कर निगाह फिर डूबते सूरज पर टिक गई। जाने वाले तुम तो अपना हश्र जानते हो। यहां अस्त तो कहीं उदय। यह और बात है कि उदय होते हुए आपको सब नमस्कार करते हैं और अस्त होेते हुए देखना भी नहीं चाहते...। अमर ने डूबते हुए सूरज को देखते कहा।
- ओमप्रकाश तिवारी 

omprakash tiwari by andhere kone novel
 

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डर ---- तेज बारिश हो रही है दफ्तर से बाहर निकलने पर उसे पता चला घर जाना है बारिश है अंधेरा घना है बाइक है लेकिन हेलमेट नहीं है वह डर गया बिना हेलमेट बाइक चलाना खतरे से खाली नहीं होता दो बार सिर को बचा चुका है हेलमेट शायद इस तरह उसकी जान भी फिर अभी तो बारिश भी हो रही है और रात भी सोचकर उसका डर और बढ़ गया बिल्कुल रात के अंधेरे की तरह उसे याद आया किसी फिल्म का संवाद जो डर गया वह मर गया वाकई डरते ही आदमी सिकुड़ जाता है बिल्कुल केंचुए की तरह जैसे किसी के छूने पर वह हो जाता है इंसान के लिए डर एक अजीब बला है पता नहीं कब किस रूप में डराने आ जाय रात के अंधेरे में तो अपनी छाया ही प्रेत बनकर डरा जाती है मौत एक और डर कितने प्रकार के हैं कभी बीमारी डराती है तो कभी महामारी कभी भूख तो कभी भुखमरी समाज के दबंग तो डराते ही रहते हैं नौकरशाही और सियासत भी डराती है कभी रंग के नाम पर तो कभी कपड़े के नाम पर कभी सीमाओं के तनाव के नाम पर तो कभी देशभक्ति के नाम पर तमाम उम्र इंसान परीक्षा ही देता रहता है डर के विभिन्न रूपों का एक डर से पार पाता है कि दूसरा पीछे पड़ जाता है डर कभी आगे आगे चलता है तो कभी पीछे पीछे कई

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