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आग का दरिया है डूब कर जाना है ...

बाहर शाम से ही बादल घिर आए थे। दोनों बिस्तर में जैसे ही लेटे बाहर जोरदार बिजली चमकी और बादलों की गड़गड़ाहट देर तक सुनाई दी। धीरे-धीरे पानी की बंूदें आसमान से गिरनी शुरू हुईं जो बाद में तेज हो गईं। पूरी रात कभी तेज तो कभी धीमी बारिश होती रही। बीच-बीच में बिजली चमकती और बादल गड़गड़ाते रहे...। 
 
हिंदी.भारत@इंडिया
 

 
भाग आठ
आग का दरिया है डूब कर जाना है ...
 
अनु ने कार नोएडा फ्लाईओवर के बीचों बीच रोक दी। इसके नीचे पुल था जहां से दिल्ली से उत्तर पूर्व जाने आनेवाली रेलगाड़ियां आती-जाती हैं। बगल में मेट्रो रेल लाइन का एलीवेटर है। यमुना बैंक से अक्षरधाम होते हुए मयूर विहार फेस-वन से नोएडा सिटी सेंटर तक जाती है मेट्रो। दिल्ली वालों का हसीन सपना। जिसके दम पर एक पार्टी की महिला नेता तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गई। लेकिन इस चमक दमक वाली मेट्रो परियोजना ने अब तक सैंकड़ों मजदूरों की जान ले चुकी है। मजदूरों के शोषण से तैयार और तैयार हो रही यह परियोजना दिल्ली वालों को तत्काल सुविधा बेशक दे रही है लेकिन भविष्य में जो घाव और दर्द देगी उससे दिल्ली वालों की कई पीढ़ियां नहीं भुला पाएंगी।
अभी तो यह कामगारों की जान ले रही है। मजदूरों का खून पी रही है। उनके पसीने की कीमत नहीं दे रही है। आगे चलकर यह दिल्ली वालों के खून-पसीने की कमाई को चूसेगी। जिस घटिया तरीके से इसका निर्माण हो रहा है और हुआ है उससे इस आशंका को बल मिलता है कि भविष्य में ऐसे हादसे होंगे कि विकास के नाम पर ही लेागों की रूह कांप जाएगी। लोग कहेंगे कि हमें ऐसा विकास नहीं चाहिए। यह आदमी भी अजीब होता है। वह हर पल विकास की कीमत चुकाता है लेकिन फिर भी इसके पीछे भागता रहता है। उसकी विकासयात्रा चलती रहती है और हजारांे-लाखों लोगों की जिंदगी पिरामिड बन जाती है।
अनु आसमान से गिर रही पानी की बूंदों की संगीत में खुद को एकाग्र करने की कोशिश में है तो अमर पुल पर खड़ा सड़क और उन पर चलने वाले वाहनों को देख रहा है। वाहनों का रेला सड़क पर आ-जा रहा है। वह सोचता है कि दिल्ली में इतने वाहन हैं यदि यह फ्लाईओवर नहीं बना होता तो विकास मार्ग का क्या हाल होता? जहां यह सड़क बनी है कभी यहां यमुना का पुश्ता हुआ करता था। हर साल बरसात में यहां तक पानी आता था। यहां से खड़े होकर अमर ने कितनी बार यमुना नदी की अपार जलराशि को देखा है। हफ्ते दो हफ्ते बाद यह किनारा फिर सूखने लगता। मानो यमुना का गुस्सा शांत हो गया हो और आराम करने के लिए अपने घर लौट गई हो। एकाध माह में ही यमुना अपने पाट में फिर बहने लगती। यमुना के किनारे के खेत सूखने लगते और उनमें खेती होने लगती।
इन खेतों में किसान फूलांे की खेती करते। अमर जब शकरपुर की फैक्ट्री में मजदूरी करता था तो कितनी बार दिशा-मैदान के बहाने खेतों को निहारने चला आता। खेतों में विभिन्न तरह के फूल उसे अच्छे लगते। खास करके गुलाब के फूल देखकर तो वह एक कशिश भरी उदासी में डूब जाता। किसी चेहरे को याद करता लेकिर कोई स्पष्ट तस्वीर न बन पाती। वह और उदास हो जाता। सूरज डूब जाता और अंधेरा गहराने लगता। एक अंधेरा अमर के अंदर भी छा जाता। 
फूलों की महक से पूरा परिवेश गमकता रहता। कुछ खेतों में चारे आदि की फसलें होंती लेकिन अधिकतर में फूलों की खेती होती। ठंड के मौसम में तो गंेदें के फूलों से पूरा इलाका ऐसे खिल उठता, जैसे किसी फूलों के स्वर्ग में आ गये हों। तब अमर अक्सर रोज शाम को इस इलाके में घूमने आता।
खेतों की पगडंडियों पर चलते हुए वह यमुना के पास तक चला जाता। शाम होने लगती तो वह वापस चला आता। आज ये खेत उदास हैं। खेतों में मेट्रो के पिलर उग आए हैं। रेलवे लाइन उस पार खेल गांव बन रहा है। स्टेडियम बनाया जा रहा है। करोड़ों रुपये वाले फ्लैट हैं तो करोड़ों लोगों की आस्था वाला अक्षरधाम मंदिर है। यमुना के बिल्वुफल किनारे तक मेट्रो का यमुना बैंक स्टेशन है। उसकी पार्किंग है, जिसमें कारें और मोटर साइकिलें खड़ी रहती हैं। पहले खेत वाले इधर भैंसा गाड़ी जिसे बुग्गी कहते, से आते थे। अब इस इलाके में मेट्रो दौड़ रही है और कारें मोटर सालइकिलें, ऑटो दौड़ रहे हैं। बचे-खुचे खेतों में अब भी फूलों की खेती हो रही है लेकिन अधिकतर भागों में मेट्रो ने कब्जा कर लिया है। अमर सोचता है कि क्या अब यमुना नदी का पानी यहां तक नहीं आएगा? यदि आ गया तो कैसे हालात होंगे? मेट्रो स्टेशन का क्या होगा? अक्षरधाम मंदिर और खेल गांव का क्या होगा? शायद यहां तक अब यमुना का पानी नहीं आएगा, क्योंकि पिछले दो-तीन सालों से तो बरसात ही नहीं हो रही है। पानी ही नहीं बरसेगा तो यमुना अपने घर से बाहर क्यों निकलेगी? पहले कम से कम बारिश के मौसम में यमुना का पानी साफ तो हो जाता था। पानी के आसपास फैलने से भूमिगत जल का स्तर भी ठीक हो जाता था। लेकिन अब ऐसा शायद ही हो पाये। इसका असर भूमिगत जल  स्तर पर तो पड़ेगा ही आगे चलकर इलाके के लोगों को पीने के पानी की दिक्कत भी हो जाएगी।
यात्रा करने के लिए उपके पास मेट्रो तो होगी, जिसमें चलते हुए वह डरेंगे और उनकी जेब भी हल्की कर रही होगी। लेकिन पीने के लिए पानी नहीं होगा। तब कैसा होगा इलाके के लोगों का जीवन। पानी के लिए लड़ते-झगड़ते-मार-पीट करते लोग और इलाके से पलायन करते लोग। विकास की ऐसी कीमत उन्हें चुकानी होगी। जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। यही नहीं बहुतेरे तो यह भी नहीं समझ पाएंगे कि उन पर यह आफत आई क्यों?
बारिश तेज हो गई। अनु बाहें फैलाकर बरसात के संगीत को अपने में समेट रही है। उसे देखकर अमर मुस्कुराया। प्रकृति हर किसी को अनांदित करती है लेकिन इनसान ऐसी हरकतें करता रहता है जिससे कुदरत को नुकसान होता है और फिर प्रकृति की प्रकृति बदल जाती है। फिर इनसान परेशान होता है। रेलिंग के सहारे खड़ा अमर भी भीग रहा है। हवा तेज चल रही है। इसलिए हल्की-हल्की ठंड भी लग रही है। उसे याद अया कि जब यमुना के इस पुश्ते पर झुग्गियां हुआ करतीं थी तो उसने भी एक झुग्गी डाल ली थी। हालांकि इस पुश्ते पर झुग्गियां उसके सामने ही बनी लेकिन तब उसने एक झोपड़ी नहीं बनाई। वह तो तीन साल बाद जब पुश्ते पर जगह नहीं रह गई तब उसने किसी से एक झुग्गी खरीदी। उसे लगा कि ऐसा करके वह अपनी बचत को बढ़ा सकता है। तब वह और उसका भाई यहीं शकरपुर की एक की फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। उसका वेतन सात सौ पचास रुपये था तो भाई का एक हजार। ओवर टाइम वगैरह लगाकर दोनों भाई महीने में चार-पांच हजार रुपये कमा लेते थे। जिस माह ओवर टाइम न लगता उनकी आमदनी 1750 पर टिक जाती। ऐसे मंे खर्च चलना मुश्किल हो जाता। दोनों भाई का यहां रहना और गांव में भी खर्चा भेजना पड़ता था। कमरेे का किराया ही सात सौ पचास रुपये था। दोनों भाई ने सोचा झुग्गी में रहने से किराया बच सकता है। यही सोचकर झुग्गी ले ली।
झुग्गी बना ही रहा था कि पुलिस वाला आ गया। दो सौ रुपये लेने के बाद झुग्गी बनाने दिया। झुग्गी बना लिया। रहने के लिए उसमें आ गये। पहली ही रात को बारिश आ गई। हालांकि उन्होंने झुग्गी पर बरसाती डाल रखी थी। लेकिन गलती यह हो गई थी बगल वाले की झुग्गी की पन्नी अपनी झुग्गी की पन्नी के नीचे डाल दी। जब बारिश हुई तो बगल वाले की झुग्गी का पानी इनके पन्नी के नीचे से इनकी झुग्गी में गिरने लगा।
वह ठंड की रात थी। दोनांे भाई रजाई ओढ़े लेटे थे। पानी टपकना शुरू हुआ तो पहले यही सोचते रहे कि नई झुग्गी है। थोड़ी देर में पानी टपकना बंद हो जाएगा लेकिन थोड़ी देर में टपकने के बजाय बरसने लगा। दोनों अपनी-अपनी रजाई लपेटकर एक कोने में बैठ गये। इनकी हालत ऐसी थी जैसे खुले आसमान के नीचे हों। बारिश जोर की हुई और सारा पानी इनके ऊपर गिरता रहा। दोनों भाई भीग गये और भीग गया बिस्तर-ओढ़ना व अन्य सामान।
किसी तरह ठंड में ठिठुरते हुए रात काटी। सुबह पन्नी को देखा तो गलती समझ में आई। दोनों भाई अपने पर गुस्सा  करते हुए बिस्तर-ओढ़ना सुखाने लगे। झुग्गी में रहने की पहली रात का अनुभव इतना कड़वा था कि उन्होंने कहा कि लोग झुग्गी में रह कैसे लेते हैं? यह तो ठंड का महीना है। किसी तरह काट लिया जाएगा लेकिन गर्मियों में कैसे रहते होंगे लोग? एक पन्नी से सूरज की तपिश को रोकना क्या संभव है? गर्मी में तो सीमेंट की छतें जवाब दे जाती हैं फिर बरसाती पन्नी की क्या औकात? उस पर से यहां बिजली भी नहीं होती। दोनों भाई सोचकर ही घबरा गये।
दूसरे ही दिन एक और घटना घटी। यह लोग सोकर उठे तो देखा झुग्गी के दरवाजे पर कोई पन्नी में टट्टी करके रख गया है। यह क्या तमाशा है? कौन हो सकता है? उसे हमसे क्या दिक्कत हो सकती है? दोनों भाई ने सोचा लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया। लगता है लोग हमें यहां रहने नहीं देना चाहते? भाई ने कहा था। शायद कह कर अमर ने उसकी बात से सहमति जताई थी।
दरअसल, दोनों भाई मजदूरी करते थे लेकिन उनकी जीवन-शैली श्रमिकों वाली नहीं थी। वह साफ-सुथरे कपड़े पहनते। चूंकि अमर ने पढ़ाई शुरू कर दी थी तो उसके पास किताबें भी होतीं। वह अखबार भी लेते थे। झुग्गी में रहने वाला कोई अखबार ले और इस तरीके से रहे तो झुग्गी वाले पचा नहीं पाते। झुग्गी वाले इन्हें शक की निगाह से देखते थे। वे इन्हें घुसपैठिया समझते थे। अपनी जगह का नहीं मानते थे। सबसे अधिक अशंकित झुग्गी का प्रधान हो गया था। प्रधान यहां दारू की दुकान चलाता था। उसके यहां तरह-तरह के लोगों का आना-जाना था। प्रधानी की आड़ में वह गलत काम करता था। झुग्गी के युवकों को गलत काम में लगाना, मसलन नशीले पदार्थों की तस्करी, चोेरी, जेब कतरी, चरस-स्मैक हेरोइन तक की बिक्री करवाता था। लड़कियों और महिलाओं से धंधा करवाता था। उसका नेटवर्क बहुत लंबा-थौड़ा था और पहुंच भी उंची थी। उसके यहां अक्सर पुलिस वाले आते-जाते रहते थे। छुटभैया टाइप के नेता भी आते-जाते रहते। एक पार्टी का झंडा उसकी झोपड़ी पर बारहों महिना लगा रहता।
झुग्गी बस्ती की समस्याओं को लेकर वह अक्सर इसी झंड़े तले धरना-प्रदर्शन करता और जुलूस निकालता। झुग्गी वाले अपनी किसी भी समस्या का निदान उससे करवाते। लोगों के घरेलू झगड़े भी वह निपटाता।
एक दिन की घटना है। सुबह के आठ बज रहे होंगे कि झुग्गी बस्ती से एक आदमी चीखता हुआ भागा।
- मुझे बचा लो। यह मुझे मार डालेगी। वह व्यक्ति बिल्कुल नंगा था। शरीर पर अंडरवियर तक नहीं थी। वह बेतहाशा भाग रहा था। उसके पीछे प्रधान की घरवाली एक डंडा लिए भाग रही थी। उसके मुंह से तमाम तरह की गालियों की बौछार हो रही थी। वह व्यक्ति भाग कर बगल की बस्ती में राशन की दुकान करने वाले अपने मित्र के यहां गया। उसके घर में जाकर लंुगी पहनी। प्रधान की घरवाली वहां भी गई लेकिन लाला ने उस गली देकर भगा दिया। धमकी भी दी कि वह थाने जा रहा है। रिपोर्ट लिखवाएगा और उसकी पोल-पट्टी खोल देगा।
किसी समय लाला की दुकान से ही झुग्गी वाले राशन-पानी लेते थे लेकिन प्रधान ने जब से झुग्गी बस्ती में दुकान कर ली तब से लाला का धंधा मंदा हो गया था। इस बात से लाला भी खार खाये बैठा था। अब उसके पास मौका था। उस व्यक्ति को ले जाकर थाने में रिपोर्ट लिखवा दी। पुलिस ने कहने को महिला को गिरफ्तार कर लिया लेकिन अगले ही दिन वह छूटकर आ गई। उसके बाद वह व्यक्ति झुग्गी बस्ती में नहीं रह पाया। डर के मारे भाग गया। वह आदमी लाला का मुखबिर था। प्रधान की गतिविधियों की जानकारी लाला को देता था। इसी बात को लेकर प्रधान की बीवी ने उसे दौड़ाया था। अमर ने झुग्गी लाला से ही खरीदी थी इसलिए उसे लेकर प्रधान चौकन्ना हो गया था। उसकी कोशिश थी कि यह लोग यहां टिक न पाएं।
झुग्गियों में वैसे तो गरीब ही रहते हैं लेकिन इन्हीं की आड़ में अपराधी भी शरण ले लेते हैं। ऐसे लोग अमर जैसे लोगों से खतरा महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि यदि यह रहेगा तो उनके धंधे पर असर पड़ सकता है।
लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। झुग्गी वालों ने भी देखा कि यह भी हमारे जैसे ही हैं बस थोड़ा सा अलग हैं। लेकिन इनसे खतरा नहीं है क्योंकि इनकी रुचि बस्ती के लोगों में नहीं है। यह अपने काम से काम रखते हैं।
यह सही भी था। अमर दोनों भाई समय से फैक्ट्री चले जाते। यदि वहां ओवरटाइम लगता तो यह लोग दूसरे दिन शाम को ही झुग्गी पर लौटते। जी हां, दो दिन एक रात। यानी 36 घंटे लगातार ड्यूटी करते। इतनी मेहनत करने के बाद ही दोनों भाई महीने में चार-पांच हजार कमा पाते। श्रम की यह पराकाष्ठा थी लेकिन इनके पास भी विकल्प नहीं था। अमर जरूर बेचैन था। वह राह तलाश रहा था लेकिन उसकी पढ़ाई बाधा बन रही थी। एक तो वह ग्रेजुएट नहीं था, दूसरे उसे अंग्रेजी नहीं आती थी। इसकी वजह से उसे दूसरी नौकरी नहीं मिल पा रही थी।
इसी कारण वह दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार द्वारा बीए करने लगा था। उसने सोचा था कि बीए करने के बाद एमए करेगा या फिर बीए के बाद पत्रकारिता का कोर्स करके कोई नौकरी खोजेगा। इसके अलावा उसने सोचा था कि एमए करके पीएचडी करेगा और किसी कालेज में प्रोफेसर वगैरह की नौकरी करेगा। लेकिन दोनों विकल्पों में मेहनत और समय की दरकार थी। मरता क्या न करता उसने तय किया कि यदि यहां से निकलता है तो यह करना ही पड़ेगा। इसलिए उसने ठान लिया।
फैक्ट्री  में मजदूरी करता। कोर्स की पढ़ाई करता। रविवार को क्लास अटेंड करने जाता। इस तरह वह तीन सालों मैं बीए पास कर गया। इसी बीच उसकी संगत कुछ पत्रकारों सेे हो गई। वह उनके बीच उठने बैठने लगा। और कब वह लेख-वगैरह लिखने लगा पता ही नहीं चला।
जब तक उसने बीए की पढ़ाई पूरी की उसके लेख हिंदी के अखबारों में छपने लगे थे। हालांकि इससे उसकी पढ़ाई बाधित हुई और वह अच्छे नंबर से पास नहीं हो पाया। लेकिन इससे एक राह उसे मिल गई। उसे लगा कि वह इस माध्यम से एक न एक दिन पत्रकार बन सकता है।
हुआ भी यही। उसकी मेहनत रंग लाई और वह एक अखबार में दो हजार महीने वाली नौकरी पाने में सफल रहा। इसके बाद उसने फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी।
यह ऐसा अखबार था जो बिकता नहीं था। इसका मालिक कोई दस अखबार निकलता था और बिकते एक भी नहीं थे। निकालने का मकसद केवल सरकारी विज्ञापन हड़पना था। अमर ने यहां चार-पांच माह तक काम किया फिर एक दूसरे अखबार में चला गया। यह नया-नया लांच हुआ था। इसमें दो साल काम करने के बाद एक प्रतिष्ठित अखबार में चला गया। जिसमें अभी तक जमा हुआ है।
- इतना अच्छा मौसम है और तुम पता नहीं कहां खोए हुए हो? अनु ने अमर का कंधा पकड़कर लगभग झकझोर दिया।
- मैं भी मौसम का आनंद ले रहा हंू। अमर ने सकपका कर कहा। उसकी निगाह अनु पर गई। भीगने से उसकी हालत हिंदी फिल्मों की आधुनिक हीरोइनों जैसी हो गई थी। पतला शर्ट भीग कर शरीर से चिपक गया है। जिसके नीचे से ब्रा साफ दिख रही थी। वह भी इतनी पतली थी कि उसके अंदर से दूधिया वक्ष सफेद रोशनी वाले बल्ब की तरह चमकने लगे थे। उन्हें देखते ही अमर के शरीर में सिहरन हुई। उसकी इस प्रतिक्रिया से और खुद से बेखबर अनु उससे पूछ रही थी।
- फिर कहां खो गये यार? एंज्वाय दिस टाइम। यह समय फिर नहीं आएगा।
- हां, यह समय तो सचमुच में नहीं आएगा। बारिश में एक जवान लड़की का इतने करीब से भीगते देखना तो अपने आप में ही सौभाग्य की बात है। अमर ने यह वाक्य केवल सोचा। कहा नहीं।
- कमॉन यार। अनु ने अमर का हाथ पकड़ कर उसे गोल-गोल घुमाने लगी।
इधर यह अपनी मस्ती में मस्त थे तो सड़क पर चलने वाले लोग अपने अपने वाहनों से ही इन्हें निहारते हुए आगे बढ़ रहे थे। तेजी से निकलने वाले वाहन भी इनके पास आकर धीमे हो जाते और रेंगते हुए आगे बढ़ते। लेकिन अमर और अनु लोगों की प्रतिक्रिया से बेखबर होकर अपनी क्रिया में लग्न थे।
इसी बीच एक टीवी चैनल की ओबी वैन पुल पर आकर रुकी। रुकी क्या उसमें बैठी रिपोर्टर ने ड्राइवर को वैन रुकने के लिए कहा। कैमरामैन को आदेश दिया कि दोनों जो भी कर रहे हैं उसे शूट करो। अच्छी खबर मिल सकती है।
- अच्छी नहीं मैडम, गरमा-गरमा खबर मिलेगी। कैमरामैन अपना काम करते हुए बोला।
- हां, मुझे भी लगता है। रिपोर्टर गंभीर हो गई थी। उसकी भी इच्छा हो रही थी कि वह भी भीगे।
- इस साल मौसम की यह पहली बारिश है। भीगने में मजा आ रहा होगा। रिपार्टर ने सवाल किया। उसके दिल की बात जुबां पर आ गई।
- बारिश मंे भीगने पर मजा आता ही है मैडम। मौसम की पहली बारिश हो और इतनी मूसलाधार हो तो कहना ही क्या!
- मैं इनकी कुछ बाइट्स लूं?
- बारिश में माइक काम नहीं करेगा। बारिश रुकने दो। यह कौन सा भागे जा रहे हैं।
- चले ही जाएं तो?
- नहीं जाएगे मैडम? अभी तो यह बहुत कुछ करेंगे। कैमरामैन दार्शनिक अंदाज में बोला
- बहुत कुछ करेंगे मतलब?
- आग का दरिया है डूब कर जाना है। इन्हें नहीं पता कि यह क्या कर रहे हैं। और क्या करने वाले हैं। बरसात में आग लगा रहे हैं। ये बूंदें इन पर शोले की तरह गिर रही हैं। इन्हें तो एहसास भी नहीं कि यह भीग रहे हैं या जल रहे हैं।
- बारिश में इतने मदहोश हैं कि कुछ भी कर सकते हैं। इन्हें दीन-दुनिया की खबर नहीं है। इन्हें यह भी पता नहीं है कि इनकी हरकतों को हम कैमरे में कैद कर रहे हैं। आते-जाते लोग भी अपने मोबाइल के कैमरे से फोटो खींच रहे हैं।
- साले कुछ आगे बढ़ें तो हमारा भी यहां रुकना सफल हो जाए। कैमरामैन ने कहा।
- लड़का ढीला है। ड्राइवर ने अपनी राय व्यक्त की। रिपोर्टर ने पलट कर उसकी तरफ देखा।
- और लड़की? रिपोर्टर ने सवाल किया।
- वह तो कंटान है। ड्राइवर ने उन्हें देखते हुए कहा।
- कंटान बोले तो?
- पटाखा। पानी में आग लगा देने वाली। देखना जो भी करेगी वही करेगी। लड़के के बस की नहीं है। वह डर रहा है। वह अपने आसपास से बा-खबर है।
- और लड़की?
- वह तेज है। प्यासी है और इस बारिश में जल रही है। वह बे-खबर है।
- लड़कियों के प्रति तुम इतना गंदा सोचते हो? रिपोर्टर ने बनावटी में गुस्से में कहा।
- सॉरी मैडम। आपने पूछा तो मैंने कहा दिया। लेकिन हम तो सोचते ही हैं यह तो कर जाएंगे...।
और तभी अनु ने अमर के अधरों पर अपने दहकते होंठो को रख दिया। कैमरा चलता रहा.... ट्रैफिक रुक गया... बहुत सारे मेाबाइल कैमरे ऑन हो गये... बरसात होती रही... दो तन भीग रहे थे... जल रहे थे... कई सांसें रुकी पड़ी थीं...। आहें निकल रही थीं... कई जोड़ी आंखें जो देख रही थीं उस पर विश्वास नहीं हो रहा था। बड़ी दूर तक जाम लग गया... जो नजदीक थे वह तो जानते थे कारण... लेकिन पीछे वाले चिल्लाने लगे... कई तो गाड़ी में से निकल कर बाहर आ गये। जोश में आगे बढ़े... इन्हें देखकर वह भी फ्रीज हो गये। किसलिए निकले थे, एहसास ही नहीं रहा। पांच मिनट में ही एक किलोमीटर तक जाम लग गया। कुछ ने पुलिस को फोन भी कर दिया..। 
- यार सड़क पर हद से आगे मत बढ़ो। देखो जाम लग गया। अमर ने अनु को हटाते हुए कहा।
दोनों ने इधर-उधर देखा। वाहनों की रफ्तार रुक गई थी। उनकी गति इनकी गति में विलीन हो गई थी...।
- देखो, तुमने क्या कर दिया?
- मैंने क्या किया? जो किया मौसम ने किया?
अनु ने लापरवाही से कहा। हालांकि शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया था।
- सड़क पर हम तमाशा बन गये।
- तो क्या हुआ? किस ही किया है। सेक्स नहीं किया है। अनु ने ठिठाईसे कहा। अमर की आंखों के सामने अनायास ही गली में रतिरत श्वान की तस्वीर कौंध गई।
ये अलग क्या हुए बारिश भी रुक गई। वाहनांे ने गति पकड़ ली। मौका मिलते ही कैमरामैन के साथ टीवी चैनल की रिपोर्टर इनके सामने थी। उसने अपना परिचय देने की भी जहमत नहीं उठाई। सीधा माइक अनु के मुंह के सामने लगा दिया।
- मौसम की पहली बारिश में भीग कर कैसा लगा?
अपने सामने किसी रिपोर्टर को देखकर इनकी हालत पतली हो गई थी। ये भौचक थे कि यह कहां से आ गई?
- मैं एक्सप्लेन नहीं कर सकती। खुद ही भीग कर देख लो? अनु ने झुंझलाहट में जवाब दिया और अपनी कार में जाकर बैठ गई। अमर भी जल्दी से कार में बैठ गया। दोनों वहां से चलते बने। लेकिन उनकी यह हरकत रिपोर्टर को अच्छी नहीं लगी।
- एक्सप्लेन तो तुम्हारा बाप भी करेगा मैडम। साली कुतिया, बीच सड़क पर रंगरलिया मना रही है और बोल रही है जैसे महारानी हो। रिपोर्टर ने अपनी घृणा व्यक्त की।
- देख नहीं रही हो कितनी महंगी कार है। ड्राइवर ने कहा।
- अमीर बाप की बिगड़ी औलाद है। इन्हीं लोगों ने तो देश का कल्चर खराब कर दिया है। होटल और पब में ऐश करके दिल नहीं भरा तो इस तरह सड़क पर गुलछर्रे उड़ा रहे हैं। इन्हें तो सबक सिखाना ही पड़ेगा। जल्दी चलो आफिस। गरमा-गरमा खबर चलवाते हैं। शाम तक महारानी को छिपने की भी जगह नहीं मिलेगी।
- ये रिपोर्टर कहां से आ गई? अनु ने सवाल किया।
- बीच सड़क पर ऐसी हरकत करोगी तो रिपोर्टर क्या पुलिस भी आ जाएगी।
- इन्होंने फिल्म तो नहीं बना ली होगी?
- बना ही ली होगी।
- फिर तो टीवी पर दिखा देंगे?
- यदि विजुअल बना लिए होंगे तो जरूर दिखाएंगे।
- तुमको क्या लगता है? विजुअल बना लिए होंगे?
- लगता तो है।
- चैनल पर दिखा दिया तो?
अनु के इस सवाल का जवाब अमर को भी नहीं सूझा। वह कोई जवाब नहीं दे पाया। तमाम तरह की आशंकाओं ने उसे घेर लिया था। यदि तस्वीर सहित यह खबर प्रसारित हो गई तो पूरी दुनिया देखेगी। फिर वह लोगों को क्या जवाब देगा? कहां मुंह दिखाएगा? नौकरी भी जा सकती है।
- रुकवाया नहीं जा सकता इसे?
- किसे?
- अरे यही खबर और क्या? तुम तो पत्रकार हो कुछ करो।
- इस चैनल में मेरा कोई परिचित नहीं है। वैसे भी यह चैनल ऐसी मसालेदार खबरें खोजता रहता है। अब रुक पाना मुश्किल है। हां पैसे देकर शायद सौदा पट जाए।
- पैसा लेकर खबर नहीं दिखाएगा? अनु आश्चर्यचकित थीµ
- पैसा लेकर खबर प्रसारित की जाती है और रोकी भी जाती है। यह सब तो आज के मीडिया का धंधा है। आपने गलती की। उस रिपोर्टर से बात करनी चाहिए थी।
- हां, गलती तो हो गई। लेकिन अब क्या किया जा सकता है। वह भी वहां से चली गई होगी।
- चली ही नहीं गई होगी। हमारी जड़ें भी खोद रही होगी। थोड़ी देर में हमारी हालत तूफान में उखड़े पेड़ की तरह हो जाएगी।
- कुछ हो नही सकता क्या?
- चैनल मालिक ही कुछ कर सकता है।
- तो बात करो न। अनु ने अपना मोबाइल अमर की तरफ बढ़ा दिया। अमर ने मोबाइल पकड़ते हुए सवाल किया।
- चैनल मालिक का नंबर है?
- नहीं।
- फिर?
- आपके पास तो होगा?
- नहीं।
- डैडी से बात करें क्या?
- क्या कहोगी?
- जो किया बयान कर दूंगी।
- फिर उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
- जो भी हो, लेकिन फिलहाल तो वही हमें इस संकट से उबार सकते हैं।
- हां, कम से कम यह तो वह भी नहीं चाहेंगे कि उनकी बेटी की तस्वीर इस तरह पूरी दुनिया के सामने आए।
- ठीक कह रहे हो। मैं डैडी से बात करती हूं। वैसे चैनल का मालिक है कौन?
अमर ने चैनल मालिक का नाम बताया तो अनु खुशी से चहक उठी
- फिर तो समझो काम हो ही गया।
- कैसे?
- यह अंकल तो मेरे यहां अक्सर आते रहते हैं। डैडी के अच्छे दोस्त हैं।
- फिर तो जल्दी करो। अमर ने अनु को उत्प्रेरित किया।
- अनु ने तुरंत अपने डैडी को फोन किया और पूरी बात बिस्तार से बताई। अनु के डैडी ने उसे आश्वासन दिया कि खबर नहीं चलेगी लेकिन उन्होंने अनु से सवाल किया कि उसने ऐसी ओछी हरकत क्यों की? वह सब मैं आपको बाद में बताउंगी। पहले आप इसे रुकवाइये।
- अब जाकर चैन आया। डैडी से बात करने के बाद अनु ने कहा।
अब तक दोनों अनु के घर पहंुच गये थे। अनु ने कार कोठी के अंदर पार्क की और अंदर चली आई। उसके साथ अमर भी। बारिश में दोनों भीगे थे। कपड़े गीले थे। लिहाजा पहले कपड़ा बदलने की जरूरत दोनों महसूस कर रहे थे।
अनु के घर पर केवल बहादुर था। अनु के मम्मी-डैडी ऑफिस से अभी नहीं आये थे। अनु ने बहादुर को कॉफी बनाने को कहा और अपने कमरे में चली गई। अपने साथ अमर को भी ले गई।
- तुमको मेरे कपड़े पहनने पड़ेंगे। अनु ने अमर से मुस्कुराते हुए कहा। या फिर डैडी का कुरता-पायजामा लाउं?
- जो मर्जी पहनाओ यार। अब तो मैं तुम्हारे रहमो करम पर हूं।
- फिर तो मेरे ही कपड़े पहन लो। और इमेजिंग करो ...।
अनु अपनी एक जींस की पैंट और टी शर्ट वर्डरोब से निकालकर अमर को पकड़ा दिया। खुद भी एक सेट कपड़ा लेकर बाथरूम में चली गई। उसके बॉथरूम में जाने के बाद अमर पैंट और टी शर्ट को उलट-पलट कर देखता रहा। वह असमंजस में था कि क्या करे? क्या इन कपड़ों को पहने या भीगे वस्त्र ही पहने रहे। थोड़ी देर में सूख जाएंगे। क्या जरूरत है किसी लड़की के कपड़े पहनने की। पहनने के बाद पता नहीं कैसा महसूस करेंगे....।
- अभी तक सोच ही रहे हो? अनु कैप्री और टी-शर्ट पहन कर बाहर आ गई। जल्दी करो यार बैठकर कॉफी पीते हैं।
- थोड़ी देर में सूख ही जाएंगे क्या बदलना?
- भीगे कपड़ों मंे कंफरटेबल नहीं फील करोगे।
- सहज तो इन कपड़ों में भी नहीं रह पाउंगा।
वह बात कर ही रहे थे कि बहादुर कॉफी लेकर आ गया। अनु ने उससे कॉफी ली और दो हजार रुपये पकड़ाते हुए बोली कि जाओ इनके लिए एक पैंट-शर्ट ले आओ। इनका कपड़ा भीग गया है। बदलने के लिए दूसरा कपड़ा नहीं है। पैसे लेकर बहादुर चला गया। उसक बाद अमर ने कहा कि इसकी क्या जरूरत थी। यह तो ऐसे ही सूख जाएगा।
- बीमार पड़ने का इरादा है क्या? कहते हुए अनु उठी और दरवाजे में सिटकिनी लगा दी। उसने सड़क पर जो हदें केवल पार की थीं यहां कमरे के एकांत में उसे तोड़ डाला।
समुद्र में ज्वार भाटे की तरह कमरे में एक तूफान आया और धीरे-धीरे शांत हो गया।
दोनों अपने को सहेज रहे थे कि अनु का मोबाइल बज गया।
अनु ने मोबाइल ऑन करके कानों से लगाया तो उधर से उसकी सहेली थी।
- क्या बकवास कर रही है। अनु के चेहरे पर घबराहट थी।
- ऐसा हो नहीं सकता। वह ऐसा नहीं कर सकती। कहते हुए उसने टीवी चालू कर दिया। अनु टीवी के पास गई तभी अमर समझ गया कि खबर रुकी नहीं चल गई है। अनु ने एक न्यूज चैनल लगा दिया। उस पर कोई और खबर चल रही थी। एक-एक करके उसने सभी चैनल देख डाले। किसी पर भी उसकी खबर नहीं थी। उसने एक चैनल पर रुकते हुए कहा कि इसी का नाम बता रही थी लेकिन इस पर तो कोई और खबर चल रही है।
- वो रिपोर्टर तो इस चैनल की नहीं थी? फिर इस चैनल पर खबर कैसे चल सकती है? अनु ने अमर से सवाल किया।
- उसके चैनल पर आप ने खबर रुकवा दी तो उस लड़की ने वह खबर इस चैनल को बेच दी। अमर ने उसे समझाया।
- बेच दी?
- हां।
- यार क्या-क्या होता है मीडिया में?
- पैसे के लिए सब कुछ हो जाता है। थोड़ी देर में तो यह सभी चैनलों पर होगी। जिस खबर में सेक्स का मामला जुड़ा हो उसे तो मीडिया वाले ऐसे लपकते हैं जैसे बिल्ली चूहे पर झपटती है।
वह बात कर ही रहे थे कि टीवी स्क्रीन पर उनकी तस्वीर उभरी। दोनों किस करने में मसगूल थे।
एंकर कह रहा था।
दिल्ली में इस साल मानसून देरी से आया। लेकिन आया तो गर्मी से बेहाल लोगों ने इसका खूब लुफ्त उठाया। इस प्रेमी जोड़े ने तो समाज की सारी मर्यादाओं को तोड़ डाला। सारी नैतिकताएं, वर्जनाएं ही ध्वस्त कर दी। बीच सड़क पर दोनों ऐसे एकाकार हुए कि मूर्ति बन गये। जिस समय यह प्रेमलाप में मग्न थे उस सयम वहां पर टैªफिक थम गया...।
टीवी स्क्रीन पर टैªफिक जाम की तस्वीर थी। इनसेट में इनकी किस करती तस्वीर चलती रही। बैक ग्राउंड से एंकर की आवाज आती रही।
एक किलोमीटर तक जाम लग गया। उन दोनों की तस्वीर को लोागों ने अपने-अपने मोबाइल सेटों से भी खींचीं हैं। हमारे पास लोगों की खींचीं तस्वीरें भी आई हैं। हम उन्हें भी दिखाते लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि यह कपल कोई आम नहीं है। लड़की शहर के एक जानेमाने उद्योगपति की बेटी है और लड़का पत्रकार व साहित्यकार है।
हम आपको बता दें कि आज शाम सात बजे हम इसी पर अपना विशेष प्रोग्राम दिखाएंगे -बारिश-प्रेम और नैतिक मूल्य। तो देखना न भूलिए आज शाम सात बजे-बारिश-प्रेम और नैतिक मूल्य। अब समय है एक कमार्शियल ब्रेक का। हमें इजाजत दीजिए तब तक आप इन तस्वीरों को देखें और तय करें कि इस प्रेमी युगल की यह हरकत कहां तक उचित है? स्क्रीन से एंकर गायब हो गया। अधरपान करते अमर और अनु की तस्वीर विभिन्न एंगलों से स्क्रीन पर चलती रही। फोटो कभी लार्ज तो कभी इनलार्ज होती रही।
- ओ माई गॉड। ये चैनल वाले भी न तिल का ताड़ बना देते हैं। बाताओ इसमंे क्या खबर थी? बात कर रहा है नैतिकता की और तस्वीरें दिखा रहा है पूरी बेशर्मी से। माना कि हमसे गलती हुई है लेकिन तब हमें कितनों ने देखा था। अब इस तरह टीवी पर इन तस्वीरों को दिखाकर कौन सी नैतिकता दिखाई जा रही है? अब तो जिसने नहीं देखा वह भी देख रहा है। माना कि हम गलत थे लेकिन अब यह चैनल क्या सही कर रहा है? यह हमारा निजी मामला था। इस तरह यह सार्वजनिक कैसे कर सकता है?
- अभी थोड़ी देर पहले हमने जो किया वह निजी था। उसे कोई सार्वजनिक नहीं कर सकता। क्योंकि उसे हमने अपने घर में कमरे में किया कैमरे के सामने नहीं। लेकिन वहां सड़क पर हमने जो किया वह सार्वजनकि किया। सबने देखा। वह निजी कहां रह गया? अमर ने तर्क दिया।
- मैं इस चैनल के खिलापफ कोर्ट जाउंगी
- जहां मर्जी वहां घसीटो। फिलहाल तो वह घसीट रहा है। और हम कुछ नहीं कर सकते। समझ में नहीं आ रहा है कि लोग पूछेंगे तो क्या जवाब देंगे। बीवी बच्चों को क्या जवाब देंगे? अमर माथा पकड़ कर बैठ गया।
अमर की आंखों में कई दृश्य डूबने-उतराने लगे। देखता है कि वह आफिस गया तो लोग उसे देखकर मुस्कुरा रहे हैं। कार्यालय के लोग उसका हाल चाल हंसकर पूछ रहे हैं। जो कभी सीधे मुंह बात नहीं करता था वह भी हालचाल पूछ रहा है। सीट पर बैठते ही संपादक का फोन आ गया। वह संपादक के केबिन में गया तो संपादक ने फरमान सुना दिया कि अमर तुम जा सकते हो। संस्थान ने तुम्हें टर्मिनेट कर दिया है। उसने पूछ लिया कि क्यों? इस पर संपादक फट पड़ा। यार बेशर्मी की भी हद होती है। तुमने जो कुछ भी किया उससे संस्थान का नाम बदनाम हुआ है। तुम जैसे आदमी को संस्थान नहीं रख सकता।
वह घर जाता है। पत्नी नेहा का रो-रोकर बुरा हाल है। उसे देखते ही वह फट पड़ती है। यहां क्यों आए हो? वहीं जाओ। उसी चुडै़ल के पास। बड़े साधु बनते थे। हमेशा नजर नीचे किये रहते थे। उपर उठाये तो ऐसी की सबको शर्मसार कर दिया।
उधर गांव के लोग उसके मां-बाप का जीना हराम कर दिये हैं। उन्हें देखते ही लोग टिप्पणी करने लग जाते हैं। बेटा बह गया। जाति से बाहर हो गया। इनके हाथ का पानी भी पीने लायक नहीं रहा। क्या बेशर्मी है? खुलेआम सड़क पर ऐसी हरकत। क्या यही संस्कार दिया गया था उसे? उसके बच्चो से कोई शादी नहीं करेगा। घरवाली होते हुए भी कुत्ते की तरह यहां वहां मुंह मार रहा है।
तभी मोबाइल बजा। उसकी विचार श्रंखला टूटी स्कीन पर देखा। अनिल का फोन था। अब इसे क्या जवाब दूं? उसने सोचा और फोन उठाया ही नहीं। मोबाइल बजकर बंद हो गया। इससे पहले कि वह फिर बजता उसने उसे ऑफ कर दिया। जब तक इसका माकूल उत्तर नहीं ढंूढ़ लेता तब तक यह बंद रहेगा।
अनु ने भी अपने मोबाइल का स्वीच ऑफ कर दिया। लोगों से बचने का फिलहाल यही तरीका उन्हें सूझा था।
अब तक रमेश के पास कई फोन आ चुके थे। आपकी बेटी ने क्या कर दिया? आप इतने बड़े बिजनेसमैन होकर मीडिया को मैनेज नहीं कर पाये। रमेश के लिए यह सब असहनीय था। पहली बार उनकी बेटी ने उन्हें नीचा दिखाया था। आजतक उन्होंने जो चाहा वह किया और जो पाना चाहा उसे पाया लेकिन जिंदगी में पहली बार उन्हें मात मिली वह भी अपनी बेटी की वजह से। वह बेटी जो सीधी-साधी थी लेकिन जब हद से बाहर निकली तो कोई सीमा ही नहीं रह गई।
बिक्रम को पता चला तो उसने भी कविता और रमेश को फोन किया और उलाहना दी। मुझे बहुत कहते थे अब देख ली अपनी बेटी की करतूत।
कविता के पास कई महिलाओं के फोन आए। कुछ एक ने क्लीपिंग भी भेजी। यह सब क्या है कविता? एक ही बेटी थी उसे भी इस तरह पाला? पति से तलाक लेकर इस तरह की हरकतें कर रही है? तू तो कहती थी कि मेरी अनु बहुत इनोसेंट है। वह तो बोल्ड निकली। बोल्ड से बोल्ड लड़कियां ऐसी हरकत करने की सोच भी नहीं सकतीं। क्या कमाल किया है। बेटी की शादी कर दो वही ठीक रहता है। पति के साथ रहती तो ऐसी हरकत सड़क पर तो न करती। क्या बेशर्मी है? पता नहीं क्या-क्या कह जाती महिलाएं। हालांकि सबकी अपनी कंुठा थी। कई महिलाओं की यह भी भावना थी कि हाय मैं ऐसा क्यों न कर पाई? क्या बिंदास है यह लड़की। कविता की तरक्की से उनकी सोसाइटी की महिलाएं उनसे जलती थीं। ऐसे में जाहिर है कि वह कोई सही बात तो कहने वाली नहीं थी। यही हाल रमेश का था। उनके प्रतिद्वंद्वी उद्योगपति काफी खुश हो रहे थे। उन्हें फोन करके हमदर्दी जताने वाले, सूचना देने वालों का मकसद उसे चिढ़ाना और इस हद तक मानसिक रूप से पजल करना था कि वह कोई उल्टी सीधी हरकत कर बैठें। लेकिन रमेश सुलझे हुए व्यक्ति हैं। सफलता उन्हें ऐसे ही नहीं मिली है। उनका मूल मंत्र है अपनी कमजोरी को ताकत बना लो। वह इस परिघटना में अपनी ताकत खोजने लगे थे। यही कारण है जब गुस्से में कविता ने उनसे कहा कि इस लड़की ने हमारी इज्जत को खाक में मिला दिया। चारों तरफ हमारी निंदा हो रही है। हमारे दुश्मन खुश हो रहे हैं। कहां घर में पड़ी रहती थी। किताबों में डूबी रहती थी और कहां आज यह हरकत। पति से इसलिए तलाक ले लिया कि उसके कई लड़कियों से संबंध थे। वह पत्नी बदलने का खेल खेलता था। और आज खुद क्या कर रही है? इससे तो अच्छा विक्रम की ही हरकतें थीं। कम से कम पर्दे के अंदर तो थीं। इसने तो हमें नंगा कर दिया। सबके सामने सड़क पर।
इस पर रमेश ने कविता को समझाया था कि देखो वह जवान है। बारिश में भीग रही थी। वह जिससे प्यार करती है वह उसके पास था। वह फिसल गई। उसके अंदर सेक्स संबंधी भावनाओं का बांध था जो मौसम का साथ पाते ही टूट गया। इसमें उसकी गलती नहीं है। उसके साथ वो जो घोंचू हिंदी का लेखक था, वह स्थिति को संभाल सकता था। लेकिन नहीं, साला बनता लेखक है और हरकत ऐसी। मेरी बेटी भी न जाने कैसे उल्लू के पट्ठे को दिल दे बैठी। बेवकूफ दो कौड़ी का हिंदी लेखक। ऊपर से शादीशुदा, तीन बच्चों का बाप। मीडिया वाले सारे गड़े मुर्दे उखाड़ेंगे। दोनों की जिंदगी के किताब  के सारे पन्ने खोलकर पूरी दुनिया के सामने पढ़ेंगे। यह सब जानता हूं लेकिन फिर भी हमें काबू में रहना है। जो बाजी हाथ से निकल गई है उसे अपने पाले में लाना है। यह तभी होगा जब हम कूल रहें। कोई न कोई राह निकल ही आएगी।
रमेश और कविता आफिस से घर आ गये। उस समय अमर और अनु चुपचाप बैठे थे। उन्हें माश टीवी के प्रोग्राम के प्रसारण का इंतजार था। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बातें करें। फोन उनके भी बज रहे थे। सवाल यही कि क्या कर दिया यार? जो असली दोस्त थे वह चिंतित थे और मजे लेने वाले मजे ले रहे थे। अमर के तो कई दोस्तों ने कहा भी कि वाह यार? क्या कुड़ी पटाई है। कहां हाथ फेरा है। मजे लो बेटा। कई वाकई चिंतित थे। उन्होंने उससे कहा कि उसने लड़की पटाई यह तो ठीक है लेकिन सड़क पर इस तरह किस करने की क्या जरूरत थी? जब लड़की राजी है तो जगह की कमी है क्या? सड़क पर इस तरह नहीं करना चाहिए।
वहीं अनु की सहेलियां फोन करके कह रही थीं। क्या यार ये भोदूं कहां से पकड़ लिया? तू तो बड़ी सति सावित्री बन रही थी। खोल से बाहर निकली तो हिंदी फिल्मों की हीरोइनों को भी फेल कर दिया। कुछ भी हो यार, क्या हॉट सीन है। मुझे तो जलन हो रही है। मैंने ऐसा सीन क्यांे नहीं क्रिएट किया। इस तरह तमाम बातें। अभी तक कइयों ने उन्हें उनकी क्लिपिंग और फोटो भी भेज चुके थे।
रमेश और कविता घर पहुंचते ही अनु के कमरे में चले गये। उन्हें देखने के बाद अनु के सब्र का बांध टूट गया। वह डैडी कह कर रमेश से लिपट गई। सॉरी डैडी। आइ एम वेरी सॉरी। मुझे नहीं मालूम कि यह सब कैसे हो गया? मैं तो बारिश में भीग रही थी। अचानक लगा कि मेरे अंदर भयानक तूफान आ गया है। जैसे किसी सरोवर का बांध टूट गया हो। अमर भी पास ही था। वह अपनी दुनिया में खोया था। मैंने जबरन उसे भी घसीट लिया। उसे भी बरबाद कर दिया। सब कुछ मेरी वजह से हुआ।
रमेश ने अनु को अपने से अलग किया। उसे उसके बेड पर ही बैठा दिया। संत्वाना दी कि वह घबराये नहीं, सब ठीक हो जाएगा। अमर उनके आने के बाद खड़ा हो गया था। वह अब भी खड़ा था। वह डर रहा था कि उसके प्रति इन लोेगों का पता नहीं कैसी प्रतिक्रिया होगी।
रमेश उसकी तरफ मुखाबित हुए।
- तुम तो संभाल सकते थे मिस्टर राइटर?
रमेश का इतना कहना था कि अनु उनके बीच में आ गई।
- नहीं डैडी, इनका कोई दोष नहीं है, यदि यह भी मेरी तरह हो जाते तो सिचुएशन और बल्गर हो जाती। प्लीज डैडी बिलीव मी। प्लीज। आई रिक्योस्ट यू।
इसी बीच अमर का फोन बज उठा। उधर से नेहा थी। अमर को लगा कि उसे फोन नहीं उठाना चाहिए लेकिन फिर सोचा जरूर नेहा को भी बात पता चल गई है तभी उसने फोन किया है। फोन नहीं उठाने से वह गलत समझ जाएगी। उसने फोन ऑन करके कान से लगा लिया। उधर से नेहा कि रोती हुई आवाज। - यह क्या कर दिया आपने?
- क्या कर दिया? अमर ने अनजान बनते हुए कहा।
- यही जो टीवी पर दिखाया जा रहा है?
- अच्छा ओ। टीवी वाले पागल हो गये हैं। मैंने तुमको बताया नहीं था कि मेरा एक दोस्त टीवी सीरियल बनाता है। उसी से मिलने आया था। उसने मुझे अपने सीरियल में काम दे दिया। उसी की श्ूाटिंग हो रही थी। टीवी वाले कुछ और ही समझकर तिल का ताड़ बना बना रहे हैं।
- सच कह रहे हो न?
- हां, यार। एक दो दिन में टीवी वालों को भी पता चल जाएगा। तुम चिंता मत करो।
- कैसे न करूं? मेरा पति किसी और लड़की के साथ इस तरह की हरकत करे तो मेरा क्या होगा? आपके सिवा कौन है मेरा?
- तुम चिंता न करो, सब ठीक हो जाएगा। यार तुमको मुझ पर यकीन नहीं है। ऐसी हरकत मैं कभी कर सकता हंू? तुमने सोच भी कैसे लिया?
- ये टीवी वाले दिखा रहे हैं तो मैं क्या करूं?
- टीवी वालों को तो मसाला चाहिए। इन्होंने शूटिंग को सही मानकर दिखा दिया। इनकी भी गलती नहीं है। इन्हें भी नहीं मालूम था कि सीरियल की शूटिंग हो रही है। यहां मौसम की पहली बारिश हुई है न। इसलिए इन्होंने ऐसा दिखा दिया। तुम चिंता न करो।
अमर ने पत्नी को समझा कर फोन काट दिया। उसके फोन बंद करते ही रमेश खुशी से उछल पड़े।
- अरे वाह यार राइटर। मान गये यार। तुम तो बड़े जीनियस निकले। पूरी समस्या का क्या निदान निकाला है। सीरियल की शूटिंग। इसका कोई तोड़ नहीं है कविता। देखो मैं कई बार कहता था कि हिंदी वाले भी जीनियस होते हैं। मेरी बात कितनी सच थी और साबित भी हो गई। साले कहते हैं कि हिंदी वाले तो कूड़ा लिखते हैं। उनके विचार भी कूड़ा होते हैं। सालों को टैलेंट की पहचान ही नहीं है। अनु तुम घबराओं नहीं, सब ठीक हो जाएगा। मीडिया वाले जो दिखाते हैं। छापते हैं, लिखते हैं कहते हैं उन्हें अपना काम करने दो। अब इसका मजे लो। देखो मैं कहता हूं न कि अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाओ। यही क्लिपिंग तुम्हारी ताकत बन जाएगी।
- मैं समझी नहीं?
- इसमें समझना क्या है। कल हम एक प्रेस कांफ्रेंस करेंगे। उसमें तुम दोनों ऐलान करोगे कि यह एक सीरियल की शूटिंग थी। तुम सीरियल बना रही हो। उसमें तुम नायिका हो और अमर नायक।
- अरे हां डैडी, यह तो मैं सोच ही नहीं पाई। आपने क्या कमाल का आइडिया निकाला है? अनु रमेश के गले लग गई। कविता मुस्कुराते हुए अमर को देख रही थी। अमर के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी।
- आइडिया मेरा नहीं है। तुमने सुना नहीं अमर ने अभी अपनी पत्नी की बोलती कैसे बंद कर दी। आई होप कि वह संतुष्ट हो गई होगी। क्यों अमर?
अमर ने सिर हिलाकर हां में कहा।
- जब इस तर्क से एक पत्नी सहमत हो सकती है तो लोगों का क्या है। वह तो होते ही बेवकूफ हैं। जो लोग इस मामले को लेकर बवाल कर रहे हैं, कल वही चुप हो जाएंगे। इसके बाद उनके पास भी कोई जवाब नहीं होगा।
- फिर भी डैडी आप चाहें तो इस खबर को छपने और टीवी चैलनों पर प्रसारित होने से रुकवा सकते हैं। अनु ने कहा।
- हां, यह हो सकता है। मीडिया मेरी बात नहीं मानेगा तो उसका लाखों का नुकसान होगा। मेरी कंपनी का करोड़ों रुपयों का विज्ञापन मीडिया वालों को जाता है। यदि उन्हें पता चल गया कि तुम मेरी बेटी हो तो तस्वीर छापने-दिखाने की छोड़ो वह तो खबर भी नहीं दिखाएंगे। क्यों अमर आई एम राइट?
- जी!
- यह पत्रकार है इसलिए जानता है हमारी ताकत को। लेकिन मुझे क्या जरूरत है खबर रुकवाने की? मीडिया को करने दो जो करता है। वैसे मैंने अपने मैनेजर को मामले को मैनेज करने के लिए बोल दिया है। एक लाइन का फैक्स सभी मीडिया हाउसों को मिल गया होगा। सभी परेशान होंगे कि खबर छापें कि नहीं? दिखाएं कि नहीं? एक खबर के लिए लाखोें का नुकसान कोई भी मीडिया नहीं करना चाहेगा। इसके बाद भी यदि कोई खबर दिखाता और छापता है तो निश्चित ही उसे मैं विज्ञापन नहीं दूंगा। इसमें नुकसान उसी का है। हां, यदि दिखाता है तो भी अब फायदा मेरा ही है। पब्लिसिटी होनी चाहिए। उसका स्वरूप चाहे जैसा हो। यह आज का नियम है। तुम सीरियल बनाओ। वह हिट होगा। करोड़ों कमाओगे। तुम दोनों सेलिब्रेटी बन जाओगे इसी एक खबर से।
- डैडी। कहते हुए अनु रमेश से लिपट गई।
- तुम भी न। अभी कितने लाल-पीले हो रहे थे और अब? कविता ने कहा।
- तब सालों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था। लेकिन मैं सोच रहा था कि जो साला कभी फोन नहीं करता वह आज क्यों फोन कर रहा है? सभी मुझे उत्तेजित करके कोई गलत कदम उठवाना चाहते थे। लेकिन सालों को पता नहीं था कि मैं कितना कूल हूं। मैं अपने खिलाफ गई परिस्थितियां पक्ष में करने की हमेशा कोशिश करता हूं। आज तक का रिकार्ड रहा है कि इसमें सफल भी रहा हूं। इस बार भी सफल रहूंगा। क्योंकि अब मेरे साथ एक जीनियस आदमी है। एक ऐसी बौद्धिक पूंजी जिसकी कोई कीमत नहीं है। तुम नहीं जानती कविता। आज की दुनिया ज्ञान की दुनिया है। जिसके पास ज्ञान है वही धनी है। मैं तो भौतिक रूप से धनी हूं। लेकिन अमर के पास जो पूंजी है वह अनमोल है...।
रमेश ने अमर को गले लगाते हुए कहा। अमर सोच रहा था कि यह आदमी कितना चालाक है तभी तो सफल है। मैं बेवकूफ अचानक बौद्धिक पूंजी वाला अनमोल आदमी हो गया। यह सोचते हुए वह मुस्कुरा रहा था..।
नेहा ने फोन रखा तो उसके बड़े बेटे ने पूछा।
- डैडी ने क्या कहा मम्मा?
- कह रहे हैं कि एक सीरियल की शूटिंग का दृश्य है। जिसे टीवी वाले दिखा रहे हैं। कल तक सब ठीक हो जाएगा।
- डैडी टीवी सीरियल में रोल कर रहे हैं?
- हां, कह तो यही रहे थे।
- अरे वाह! कमाल हो गया। मैं तो कह ही रहा था कि डैडी ऐसा नहीं कर सकते।
- अच्छा, अभी तो कह रहा था कि किसी लड़की का किस कर लिया तो क्या हो गया। मॉम तुम तो मोटी हो गई हो। कपड़े भी सही नहीं पहनती हो। हमेशा औरत बनी रहती हो। मार्डन बनो-जींस सींस पहनो। क्या साड़ी-सलवार पहने रहती हो। मम्मी नहीं, लड़की बनो। अब कह रहा कि डैडी ऐसा नहीं कर सकते। अमर के छोटे बेटे अतीत ने बड़े बेटे प्रतीत को आड़े हाथ लिया।
- हां, कह रहा था तो? क्या गलत कर रहा था? मम्मा को बन ठन कर रहना चाहिए। जमाने के साथ चलना चाहिए।
- अच्छा तू बकवास मत कर। नेहा ने दोनों को डांट दिया। इसी बीच प्रतीत के दोस्त का फोन आ गया। वह टीवी पर दिखाये गये दृश्य के बारे में बात कर रहा था।
- यार तेरे डैडी दूसरी शादी करेंगे क्या? उनका किसी लड़की से अफेयर है क्या? तेरी मम्मी का क्या होगा? तुम सब किसके साथ रहोगे? यार यह ठीक नहीं हुआ?
- ओए, क्या ठीक नहीं हुआ? मेरे डैडी ऐसे नहीं हैं। वह हमंे नहीं छोड़ सकते समझा। उनका कोई अफेयर वफेयर नहीं हैं, समझा। वह तो सीरियल की शूटिंग कर रहे हैं। टीवी वालों ने समझा कि ऐसे ही मस्ती कर रहे हैं। साले गलत खबर दिखा रहे हैं। देखना कल तक यही साले सफाई देंगे। तू अपनी हमदर्दी अपने पास रख। तुझे चिंता करने की जरूरत नहीं है। वैसे कभी फोन नहीं करता और आज चला है हमदर्दी जताने। कहते हुए बेटे ने फोन काट दिया। साला बकवास करता है।
फोन काटते ही गांव से फोन आया। फोन पर अमर की मां थी। बेटे ने फोन नेहा को दे दिया। अमर की मां ने भी छूटते ही पूछाµ
- ई का सुनत अही?
- का सुन रही हो?
- प्रतीत के पापा कौनो लड़की के साथ पकड़े गये हैं। टीवी वाले दिखा रहे हैं।
- आपको किसने बताया? नेहा ने यह सवाल इसलिए किया क्योंकि वह जानती थी कि गांव वाले घर में टीवी तो है नहीं फिर यह खबर इन्हें इतनी जल्दी कैसे मिल गई।
- अरे हिंया फोन पर फोन आवत बा।
- सब झूठ है। वह सीरियल की शूटिंग कर रहे हैं।
- फिलम बनवाइ लागे का?
- हां, रोल कर रहे हैं। आप चिंता न करो।
- हिंया तो दूसरइ अफवाह बा।
- सब गलत बा। अभी मेरी उनसे बात हुई है। ऐसी कोई बात नहीं है।
- न होई तो अच्छई बा। हम तो बहुत घबराई गई रहे।
- नाही घबरा न। उनका किसी से कोई चक्कर नहीं है। वह बहुत दिनों से लगे थे। अब जाकर उन्हें सफलता मिली है।
- इस दुनिया में तो यह सब चलता ही है अम्मां। अतीत ने जोर से कहा।
- हां, अम्मां सब चलबई करत है। हींया सब बात का बतंगड़ बना दिये हैं। केका का समझाएं।
- तू चिंता न करा। जेका जवन कहई का बा कहइ दा।
- ठीक आहई।
फोन कट गया। एक खबर ने अमर के गांव से लेकर शहर तक जान पहचान वालों में खलबली मचा दी। गांव में चर्चा छिड़ गई कि रामअवध के बेटे ने दूसरी शादी कर ली। वह किसी लड़की के साथ रंगरलियां मनाते पकड़ा गया। गांव में इस अफवाह का सामना करना अमर के माता-पिता के लिए भारी पड़ने लगा।
टीवी चैनल पर ‘मानसून’ और रोमांस’ कार्यक्रम का समय हो गया था। रमेश, कविता अमर और अनु यह शो देखने के लिए उत्सुक थे। जिज्ञासा इस बात की थी कि शो में क्या दिखाया जाता है। शो का समय हो गया था। इससे पहले चैनल अपने हर कामर्शियल ब्रेक के दौरान इस शो का प्रेमो दिखा रहा था। जिसमें किसिंग सीन को वाइड और इनलार्जर करके दिखाया जा रहा था। एक ही टीवी न्यूज चैनल नहीं, लगभग सभी न्यूज चैनलों पर इस घटना पर विशेष कार्यक्रम तैयार कर लिया गया था। सभी का प्रसारण टाइम लगभग प्राइम टाइम ही था। चैनलों को एक ऐसी खबर मिल गई थी जिस पर एक घंटा खेलकर वह अपनी टी.आर.पी. बढ़ा सकते थे। बेशक वह नैतिकता के बारे में खेलते लेकिन उनका मकसद खबर बेचना था।
अपने निर्धारित समय पर शो शुरू हुआ। भूमिका में दिखाया गया कि दिल्ली में मानसून की जोरदार बारिश हो रही है। यह मानसून की पहली बारिश है। इस बरसात में एक युवती एक फ्लाईओवर पर अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ खड़ी है। पास ही उसकी महंगी कार खड़ी है। युवती बारिश मंे भीगती हैै। काफी देर तक वह खुद में मग्न प्रकृति के संगीत के साथ थिरकती है। लेकिन अचानक वह अपने ब्वायफ्रेंड के करीब जाती है। उसे अपनी तरफ खींचती है और लिप किस करने लगती है। लड़का प्रतिरोध करता है लेकिन वह कामयाब नहीं होता। यह युगल अपने इस प्रेमालाप मंे रत था तो इन्हें देखने के लिए टैªफिक जाम हो गया। सड़क पर करीब एक किमी तक वाहनांे की लाइनें लग गईं। इस युगल की सांसें रोक देने वाली हरकत ने सड़क की धड़कन रोक दी
‘कविता विला’ मंे सभी इस दृश्य को सांसें थाम कर देखते हैं। इस बीच अनु का रसोइया यानी बहादुर इन्हें काफी देने आता है तो उसकी निगाह भी टीवी पर चली जाती है। उसकी समझ में नहीं आता है कि रमेश और कविता अपनी ही बेटी को किसी लड़के के साथ इस हाल में सरेआम टीवी पर क्यों देख रहे हैं। साथ में दोनों बैठे हुए भी हैं लेकिन कुछ बोल नहीं रहे। वह कुछ समझ नहीं पता तो खुद से ही कहता है कि यह कौन सी नई बात है। मैंने तो पहले ही देख लिया था। जब यह साहब पहली बार घर आया था। अनु दीदी उसे किस कर रहीं थीं। मैं तो तभी समझ गया था। दीदी भी न कितनी सीधी साधी बनती हैं। लेकिन इन साहब पर तो पूरी तरह लट्टू हैं। वह सोचते हुए चला गया।
टीवी पर कामर्शियल ब्रेक का समय हो गया था। ब्रेक तो चला उसके बाद स्क्रीन पर न केवल दृश्य बदल गया बल्कि खबर भी दूसरी चलने लगी। कविता विला में तो सब हैरान थे ही जहां भी लोग इस कार्यक्रम को देख रहे थे। हैरान थे। चैनल ने बिना बताये अचानक प्रोग्राम दिखाना क्यों बंद कर दिया?
इसी बीच अमर ने रमेश को देखा। वह थोड़ा पेरशान थे और अपने मोबाइल से किसी का नंबर मिला रहे थे। नंबर मिलते ही वह बोले कि आपने मीडिया वालों को खबर न चलाने का निर्देश दे दिया क्या? उधर से हां में जवाब मिला तो उन्होंने तत्काल कहा कि सभी मीडिया हाउसों को तत्काल निर्देश दो कि उन्हें खबर प्रसारित करने और छापने से कोई ऐतराज नहीं है। जिसे जितनी कवरेज देनी है दे। चाहे जिस एंगल से। इस मामले में हम अपना पक्ष कल रखेंगे। अभी इन्हें खेलने दो। लेकिन सर, उधर से इतना ही कहा गया था कि इधर से रमेश ने कहा, लेकिन के लिए समय नहीं है। जितनी जल्दी हो सके आप यह काम करें। ओके। रमेश अपने मैनेजर से बात कर रहे थे। खबर रुकते ही वह समझ गये कि मैनेजर ने अपना काम कर दिया है। उनकी परेशानी की वजह यह थी कि यदि खबर ही नहीं दिखाई गई, छापी गई तो उन्होंने जो सोचा है उसका क्या होगा। इतना अच्छा मौका है बेटी को टीवी सीरियल की दुनिया में हिट कराने का वह उसे ऐसे कैसे जाने दें?
- लेकिन डैडी। खबर रुक गई तो अच्छा ही है न?
- तुम नहीं समझोगी बेटी। आज के समय में अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए प्रोपोगंडा करना पड़ता है। मान लो तुम सीरियल बनाती। फिर उस पर लाखों रुपये प्रचार पर खर्च करती। तब कहीं जाकर तुम्हंे दर्शक और प्रायोजक मिलते। लेकिन इस खबर के प्रसारण के बाद तुम दोनों सेलिब्रेटी हो जाओगे। फिर तुम कुछ भी करो सब हिट। तुम्हारे बारे में लोग जानना चाहेंगे। इसी बहाने तुम अपना बिजनेस कर जाओगी। तुम्हारा सीरियल अभी बना नहीं है। लेकिन उसके लिए प्रायोजक मिलने लगेंगे। कल जैसे ही तुम यह घोषणा करोगी कि यह सीन तुम्हारे सीरियल का हिस्सा है। चैनल भी इसे प्रसारित करने के लिए तुम्हारी जान खा जाएंगे। यह करोड़ों की पब्लिसिटी है। इसे ऐसे क्यों हाथ से जाने दें? मीडिया वाले तो विज्ञापन रुक जाने के डर से खबर नहीं दिखाएंगे लेकिन नुकसान तो हमें हो जाएगा न?
- लेकिन हमारी बदनामी तो नहीं होगी?
- कैसी इंसल्ट यार। यह सब सोलहवीं सदी की बातें हैं। आज का समय है बाजार में आपका नाम होना चहिए। सही या गलत चाहे जिस तरीके से। यह खबर प्रसारित होने से तुम दोनांे को कौन नहीं जानने लगेगा? सबकी रुचि तुममें हो जाएगी। इसे हम बदनामी कैसे कह सकते हैं? इसमें तो हमारा फायदा है। वैसे भी जितनी इंसल्ट होनी थी हो चुकी है। अब तो इस खबर के प्रसारण में हमारा लाभ है। थिंक्स ए बिजनेस मैन।
- फिर भी लोग तंज करंेगे। मेरा तो जीना हराम हो जाएगा। मैं जिस समाज से हूं वहां तो यह सब स्वीकार ही नहीं है। अमर ने प्रतिवाद किया।
- क्या बकवास करते हो? किस समाज में स्वीकार नहीं है। कहां क्या नहीं हो रहा है? सेक्स के मामले में कौन कितना कमिटेड है यह सभी जानते हैं। आये दिन सेक्स संबंधों को लेकर हत्याएं होती हैं। क्यों? इसका मतलब है कि यह गंदगी हमारे-तुम्हारे सभी समाज में है। फिर डर किस बात का? लोग कुछ दिन चर्चा करंेगे फिर अपने काम में व्यस्त हो जाएंगे। वैसे भी जब तुम सेलिब्रेटी हो जाओगे तो कौन पूछने जा रहा है कि शादीशुदा हो। फिर भी दूसरी औरत से संबंध क्यों हैं? क्या घटिया सवाल है यह? अरे भाई मेरी जिंदगी है चाहे जैसे जिऊं। नौकरी चली जाती है तो आप दे देते हैं? खाना-कपड़ा आप देते हैं। जो सेक्स संबंधों पर इतनी बारीक नजर रखते हैं। यह अधिकार आपको किसने दिया?
वह अभी बातों में ही उलझे थे कि चैनल पर ‘मानसून रोमांस’ कार्यक्रम फिर चालू हो गया। एंकर खेद जता रहा था कि तकनीकी खराबी के कारण कार्यक्रम दिखाने में देरी हुई। इसके लिए खेद है। इस पर रमेश जोर से हंसे।
-साला तकनीकी खरीबी। बोलो न साले फट गई थी। रमेश के मुुंह से यह शब्द निकलना था कि सभी उनकी तरफ देखने लगे। उन्हें भी एहसास हुआ कि वह गलत कह गये। उन्होंने तुरंत सॉरी बोली।
चैनल ने इस कार्यक्रम का प्रस्तोता लड़की को बनाया था। इसके लिए बाकायदा सेट बनाया गया था। लड़की खड़ी होकर कार्यक्रम को प्रस्तुत कर रही थी। इससे उसकी शारीरिक भाषा भी दर्शक पढ़ सकते थे। वह कह रही थी कि दिल्ली में इस बार मानसून देरी से आया। लोग गर्मी से बेहाल थे। बारिश हुई तो इस कदर रोमांचित हो गये कि अपनी सुध-बुध खो बैठे। जो जहां जिस हाल में था वहीं भीगने लगा। जाहिर है कि इंतजार के बाद बारिश हुई तो उसका आनंद ही कुछ और था। इस पल को कोई भी प्रकृति प्रेमी क्यांे गंवना चाहता? सभी झूम उठे। मदमस्त हो गये। फर्क इतना रहा कि कुछ अपनी सीमा में रहे और कुछ हद पार कर गये। जैसे ये जोड़ा। स्क्रीन पर अनु और अमर का किसिंग सीन।
सवाल यह है कि इस प्रेमी जोड़े ने गलत क्या किया? भाई मौसम बेईमान हो तो पैर फिसल ही जाते हैं। हम आप सब से जानना चाहते हैं कि आप इस पर अपनी क्या राय रखते हैं? इन्होंने सही किया कि गलत? यदि आपको लगता है कि इन्होंने ठीक किया तो? अपने मोबाइल के मैसेज बॉक्स में जाकर हां टाइप करें और यदि आपको लगता है कि इनकी हरकतें गलत हैं तो नहीं लिखकर हमें इस नंबर पर एसएमएस कर दें। हम आपकी राय इसी कार्यक्रम में दिखाएंगे। फिलहाल समय है एक ब्रेक का। ब्रेक के बाद हम ‘मानसून रोमांस’ के साथ फिर आपके साथ होंगे। तब तक आप हमें मैसेज भेजें। युवती मुस्कुरा कर अदृश्य हो गई।
लगभग सभी चैनलों ने इसी विषय पर एक घंटे का प्रोग्राम दिखाया। किसी चैनल पर डॉक्टर कह रहा था कि बारिश और सेक्स का घनिष्ठ संबंध है। बरसात में सारी वर्जनाएं टूट जाती हैं। नर-नारी इतने रोमांटिक हो जाते हैं कि वह सेक्स मंे डूब जाते हैं। यही कारण है कि बहुत सारे सेक्सोलॉजिस्ट संतान विहिन लोगों को बारिश का आनंद लेने को कहते हैं। यही नहीं बाथरूम बारिश का आनंद लेने की भी सलाह देते हैं।
डॉक्टर के मुंह से बाथरूम बारिश का जिक्र सुनते ही अनु को विक्रम याद आया। वह भी अपनी ऐआशी के लिए बॉथयम के शॉवर का इस्तेमाल करता है। उसे अपने साथ घटी घटना याद आई।
एक चैनल पर कोई कवि कह रहा था कि बारिश और प्यार का संबंध ऐसे ही है जैसे स्त्री और पुरुष का संबंध। चोली और दामन का संबंध। वर्षा की बूंद शरीर पर पड़ते ही सिहरन उठने लगती है। मन वैसे ही उद्लेदित होने लगता है जैसे चांदनी रात में समुद्र। भीगने वाले सभी सीमाएं तोड़ देना चाहते हैं।
कई चैनलों ने बारिश वाले फिल्मी गीतों और दृश्य को लड़ी पिरोकर पूरे एक घंटे का कार्यक्रम बना डाला। जाने अनजाने चैनलों को एक ऐसा मुद्दा मिल गया था जिसे उन्होंने खूब इस्तेमाल किया। कई चैनलों ने इस पर बढ़िया कार्यक्रम भी दिखाया। कुल मिलाकर मामला केवल अनु-अमर की क्लीपिंग तक ही सीमित नहीं रहा। चैनलों ने इनके बहाने बारिश-सावन-फायर-फिल्मी बरसारत-साहित्य में बरसात- बरसात और सेक्स जैसे विषयों को जोड़ते हुए अच्छी टीआरपी हासिल की।
सभी चैनलों पर लोगों ने कार्यक्रम देखा। देखने के बाद शायद ही किसी को लगा कि चैनलों ने कुछ गलत दिखाया। या अमर अनु ने गलत किया। सेक्स-बारिश-मानसून को ऐसे जोड़ दिया गया कि भाव यह रहा कि फिर तो ऐसा हो ही जाता है...। इन्होंने किया तो क्या गलत किया?
रात दस बजे भोजन करने के बाद अमर ने कविता विला से चलने की इजात मांगी तो उसे रोक लिया गया। रोकने वालों में रमेश आगे थे। उन्होंने ही कहा कि इतनी रात गये कहां जाओगे? यहीं सो जाओ। सुबह प्रेस कांफ्रेंस की तैयारी भी करनी है।
अमर को वहीं रुकना पड़ा। उसके लिए एक अलग कमरे मंे सोने की व्यवस्था की गई। 
सभी अपने कमरे में लेट गए। लेकिन नींद किसी को नहीं आ रही थी।
- आप अनु को कुछ ज्यादा ही बढ़ावा नहीं दे रहे हैं? कविता ने रमेश से पूछा।
- नहीं। मैं तो मौके का फायदा उठा रहा हूं। वैसे भी वह जितना आगे बढ़ गई है। अब हम उसे रोक नहीं पाएंगे। तुम्हें क्या लगता है कि उसे हमारी सलाह अच्छी लगेगी? वह हमारी बात मान जाएगी? हम दबाव डालेंगे तो वह बगावत कर देगी। जीनियस लड़कियां हमेशा अपने से जीनियस पर भरोसा करती हैं और प्यार करती हैं। ऐसा मेरा मनना है। अनु की नजर में अमर जीनियस है। बेशक उसे अंग्रेजी नहीं आती और वह गरीब है। शादीशुदा हैै। बच्चे भी हैं लेकिन वह जीनियस है। यही अनु को पसंद है।
- ऐसे संबंध लंबे नहीं चलते।
- हो सकता है न चले। हो सकता है अनु अमर से शादी के लिए दबाव डाले और वह न माने।
- यह भी हो सकता है कि वह बिना शादी किये ही उसके साथ संबंध बना ले।
- हां, वह कर सकती है। लेकिन उसका पीछे हटना मुश्किल है। वह आगे बढ़ चुकी है।
- अमर का घर बर्बाद हो जाएगा। वह पहली पत्नी को तलाक दे सकता है। फिर उसका और बच्चों का क्या होगा?
- यह सोचना अमर का काम है। हमारा नहीं। यदि ऐसा होता है तो दोषी अमर ही होगा। हम नहीं। अनु भी नहीं। उसने अमर से प्यार किया है। वह उसे जरूर पाना चाहेगी। यह तय करना अमर का काम है कि वह किसके साथ रहना चहाता है। उसे अपने बीवी बच्चों से प्यार है या अनु से।
- आपको नहीं लगता कि वे एक खतरनाक खेल खेल रहे हैं। ऐसे खेल में हमारी बेटी भी शामिल है। कल को उसके बुरे परिणामों से उसे भी दो चार होना पडे़गा?
- लीक से हटकर चलने वाले परिणामों की चिंता नहीं करते। वैसे भी उनका सीरियल आएगा। यदि वह चल गया तो यह सेलिब्रेटी हो जाएंगे। फिर मुझे नहीं लगता कि इनकी जिंदगी मैं कोई तूफान आएगा। यदि आया भी तो यह लोग उसे संभाल लेंगे। कोई बच्चे नहीं हैं कि उन्हें हमारी सलाह की जरूरत है। दोनों तीस के उपर हैं। दो-चार साल की मौज मस्ती के बाद यदि वे अलग भी हो जाएंगे तो उन्हें कोई पछतावा नहीं होगा।
उधर अपने कमरे की लाइट बंद करके अनु अमर के कमरे में ही आ गई। यही अमर भी चाहता था। वह खुद ही सोच रहा था कि यदि अनु न आई तो उसे उसके कमरे में जाना पड़ेगा। लेकिन उसे विश्वास था कि अनु जरूर आएगी।
कमरे में आते ही वह बिस्तर पर लेटे अमर के पास लेट गई।
- क्या कर रही हो? अमर ने सवाल किया। कोई देख लेगा तो क्या कहेगा?
- अभी टीवी स्क्रीन पर देखकर जो कह रहा होगा वही कहेगा।
- मेरा मतलब मम्मी-पापा इधर आ गये तो?
- आ जाएं तो आ जाएं। वैसे भी अब तो उन्हें भी पता चल गया है कि मैं तुमसे प्यार करती हूं। यदि तुम इस घर में हो तो मैं अपने कमरे में अकेले तो नहीं रह सकती।
- कहां खो गये? अमर को विचारमग्न देख अनु ने टोका। किसकी याद आ गई? क्या आपकी पत्नी मुझसे अधिक सुंदर हैं?
- नहीं यार। जैसे हालात में फंसा हंू ऐसे में तो नानी याद आ गई। पत्नी तो दूर की बात है।
- तुम चिंता न करो सब ठीक हो जाएगा।
- कुछ ठीक नहीं होगा। मेरा परिवार तबाह हो जाएगा अनु।
- परिवार तबाह नहीं होगा। मैं तुमसे प्यार करती हंू। तुम्हें बर्बाद नहीं कर सकती। शादी के लिए कभी नहीं कहंूगी। तुम अपने परिवार से बचाकर थोड़ा सा स्नेह मुझे दे देना मैं उतने में ही खुश रह लंूगी।
अमर नेहा को स्नेह भरी नजरों से देखता है।
- तुम कितनी सुुंदर हो। विचार भी उतने ही संुदर हैं। जानती हो अनु, मैं तुमसे उतना ही प्यार करता हंू जितना कि अपने परिवार से लेकिन यदि मैं तुम्हारे साथ रहता हंू तो मेरा परिवार बर्बाद हो जाएगा और यदि परिवार के साथ रहता हंू तो तुमको खो दंूगा। मैं किसी से दूर नहीं रहना चाहता।
- हम सब साथ रहेंगे। अनु ने अमर के सीने पर अपने सिर को रखते हुए कहा।
दोनों देर रात तक मतलब और बेमतलब की बातें करते रहे।
बाहर शाम से ही बादल घिर आए थे। दोनों बिस्तर में जैसे ही लेटे बाहर जोरदार बिजली चमकी और बादलों की गड़गड़ाहट देर तक सुनाई दी। धीरे-धीरे पानी की बंूदें आसमान से गिरनी शुरू हुईं जो बाद में तेज हो गईं। पूरी रात कभी तेज तो कभी धीमी बारिश होती रही। बीच-बीच में बिजली चमकती और बादल गड़गड़ाते रहे...।
- ओमप्रकाश तिवारी

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