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डूबते सूरज की ओर

कहानी

सियाराम ने साइकिल पर बैठकर जैसे ही पैंडल पर जोर लगाया खटाक की आवाज के साथ चेन उतर गई।
गुस्से में सियाराम ने मां-बहन की गाली दी। फिर साइकिल से उतर कर चेन ठीक करने लगे। चेन चढ़ा ही रहे थे कि किसी ने पूछा।
- साइकिल खराब हो गई?
सियाराम ने चेन छाे़डकर आवाज की तरफ देखा और मुस्करा कर बोले -हां भाई।
- किसी कबाड़ी को बेच दो। अब यह चलने लायक नहीं है।
- पुरानी होने पर कोई घरवाली को बदल देता है या? सियाराम ने चुहल की।
- अरे भाई, दुनिया मोटरसाइकिल और कार से चलने लगी है, आप कम से कम नई साइकिल तो ले लो।
- दुनिया और मेरी तुलना नहीं हो सकती न। सियाराम ने लंबी सांस ली और चेन ठीक करके साइकिल पर बैठ गए।
- लगता है कचहरी (अदालत) से आ रहे हो?
- हां भाई।
- या हुआ?
- होना या है। फिर तारीख मिल गई है।
- कब तक मिलती रहेगी तारीख?
- अब या बताएं। अपने वश में तो कुछ है नहीं। १८ साल हो गए। अभी तक बहस तक नहीं हुई है।
- मेरी मानो तो समझौता कर लो।
- किससे?
- जिससे मुकदमा लड़ रहे हो।
- एक हाथ से ताली बजती है या?
- अरे यार प्रयास करके तो देखो। कहते हुए वह सड़क से अपने घर की तरफ मु़ड गया। वह सियाराम का शुभचिंतक नहीं था। यह बात वह अच्छी तरह से जानते थे। लेकिन उसे कुछ कहना भी उन्हें अशोभनीय ही लगा। बातचीत करते हुए दोनों बाजार से काफी दूर आ गए थे। इस बीच उस आदमी का गांव आ गया तो वह अपने रास्ते हो लिया।
अब सियाराम साइकिल की गति बढ़ाने के लिए जल्दी-जल्दी पैंडल मारने लगे। पेट में चूहे कूद रहे थे। ऐसे में वह घर शीघ्र पहंुच जाना चाह रहे थे, लेकिन जैसे ही वह पैंडल जल्दी-जल्दी चलाने की कोशिश करते चेन उतर जाती। इसके अलावा सड़क में जगह-जगह बने गढ्डे अलग से परेशान कर रहे थे। उनकी वजह से साइकिल तेज चलाना मुश्किल हो रहा था। कहने को यह हाइवे है, लेकिन सड़क की हालत गांव की पगडंडी से भी बदतर है। गड्ड ों में सड़क को खोजना पड़ता है।
दरसअल, सियाराम पर उनके पड़ोसियों ने कोई आठ मुकदमें कर रखे हैं। जिसमें से हर महीने किसी न किसी की तारीख पड़ती ही है। सियाराम हर माह अपने गांव से २७ किलोमीटर दूर अदालत में पेशी भुगतने जाते हैं। यह सिलसिला पिछले १८ सालों से बदस्तूर चला आ रहा है।
तारीख वाले दिन सियाराम सुबह ही उठते हैं। नित्य-क्रिया करते हैं। जानवरों को चारा डालते हैं। नहाते-धोते हैं और पूजा-पाठ करके दो-चार रोटियां खा कर साइकिल लेकर घर से निकाल पड़ते हैं। घर से तीन किलोमीटर साइकिल से जाते हैं। इसके बाद कसबे के एक परिचित के यहां साइकिल खड़ी करते हैं और फिर जीप या बस पकड़ कर शहर यानी अदालत जाते हैं।
आज सुबह वह दो रोटी खाकर ही पेशी भुगतने चले गए थे। आज दो मुकदमों की तारीख थी। अदालत में अपनी बारी का इंतजार करते रहे। लंबी प्रतीक्षा के बाद नंबर आया तो फिर मिल गई तारीख...।
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सियराम के गांव का चौराहा। चाय की दुकान पर कई लोग बैठे थे। उनके हाथों में चाय के कप के अलावा आज के अखबार के एक-एक पन्ने थे। उनके बीच कोर्ट के एक निर्णय पर बहस छिड़ी थी। लगभग सभी एक सुर में कह रहे थे कि जिस तरह से अदालत निर्णय दे रही है उससे लगने लगा है कि न्याय हमारे देश में अब भी जिंदा है। इधर अदालत ने कुछ फैसले ऐसे सुनाए हैं कि लोगों की आस्था फिर से न्याय के प्रति बढ़ गई है। अब या पैसे वाला और या नेता, कोई भी कानून से बड़ा नहीं रह गया है। अदालत ने किसी को नहीं बख्शा है। जिसने अपराध किया उसे सजा दी है। पैसा और सत्ता की ताकत को भी अपनी औकात बता दी है।
इसी बीच उन्हीं में से किसी ने कहा -तभी तो नेता लोग न्यायिक सक्रियता का राग अलापने लगे हैं। कहने लगे हैं कि न्यायपालिका को अपने हद में रहना चाहिए।
लेकिन इस आदमी की बात को किसी ने नहीं सुना। सभी इसी चर्चा में मशगूल रहे कि अदालत किसी को नहीं छाे़डेगी। वहां देर है लेकिन अंधेर नहीं है।
इन्हीं के बीच गांव का एक आदमी बैठा इनकी बातों को सुन रहा था। वह इनकी बातों से सहमत नहीं था। वह इन्हें मूर्ख नहीं तो अज्ञानी जरूर समझ रहा था, लेकिन इनकी बातों पर वह हंस नहीं रहा था। उसे गुस्सा भी नहीं आ रहा था, लेकिन जब बात अधिक खिंच गई तो वह बोल ही पड़ा।
- देर होना या अंधेर नहीं है?
उसके सवाल पर चुप्पी छा गई। लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे। इसी बीच दुकान के बाहर शोर मचा।
- अरे उठाओ भाई।
- चोट तो नहीं लगी?
- डा टर के पास ले चलना होगा।
- लगता है, धुस्स चोट आई है।
- पैर टूट गया लगता है।
- सिर में चोट लगी है।
- हाथ भी टूट गया लगता है।
- कोई पानी लाओ भाई।
यह सभी लोग सियाराम को उठाए हुए थे। सियाराम बेहोश थे। उन्हें अभी-अभी एक मोटरसाइकिल वाला ट कर मार कर भाग गया था। वह सड़क से सीधे खाई में आ गिरे थे।
लोगों ने सियाराम को खाई से बाहर निकाल कर एक जगह लिटाया। एक आदमी ने उनके मंुह पर पानी के छींटे मारे तो उन्होंने आंखें खोलीं।
- कैसी है तबीयत? ठीक हैं? एक साथ कई लोगों ने पूछा। सियाराम एकटक सभी को देखते रहे। उनके मंुह से आवाज ही नहीं निकली।
- इनके घर खबर दे दो भाई। किसी ने अपनी राय दी। उसकी बात का सुनना था कि सियाराम ने उठने का प्रयास किया। इसमें वह सफल हुए। उठकर खड़े हो गए। दो कदम चले तो लोगों ने खुशी व्य त की।
-बच गए भाई। बच गए।
- कोई गंभीर चोट नहीं आई है।
- किस्मत से ही बच गए।
- भगवान की बड़ी कृपा थी।
- थाे़डे में ही बड़ी ग्रह कट गई। नहीं तो उसने तो उठाकर फेंक ही दिया था।
- मेरे घर तो खबर नहीं भिजाई? सियाराम ने लोगांे से पूछा।
- अभी नहीं।
- भिजवानी है या?
- डा टर को दिखाना है?
- नहीं। मैं ठीक हंू। घर चला जाऊंगा। घर वाले बेकार ही परेशान हो जाएंगे।
- इसीलिए तो, घर किसी को भिजवाया नहीं।
- थाे़डी देर और होश में न आते तो आपके बेटे को फोन कर देता। यह देखो मोबाइल हाथ में निकाल लिया था। एक युवक ने अपनापन दिखाया।
- तेरे पास नंबर कहां है? उसकी डींग की किसी ने हवा निकालनी चाही।
- इस मोबाइल में है। चाचा कई बार इससे फोन कर चुके हैं। यों चाचा? उसने सियाराम से समर्थन हासिल कर लिया।
दरअसल, सियाराम उसके मोबाइल से मिस्ड काल करवाते हैं अपने इकलौते बेटे के पास। फिर बेटा उन्हें फोन करता है। उसकी योजना अभी भी मिस्ड काल करने की ही थी।
सियाराम चाय-पानी पीकर साइकिल को ठीक-ठाक कराकर घर के लिए चल पड़े। वह दुाकन से थाे़डी ही दूर गए थे कि दुकान में चुपचाप बैठे आदमी ने अदालत के फैसलों पर बहस कर रहे लोगों से बोला।
- हमारी न्यायपालिका कितनी सक्रिय है और वहां कितना न्याय मिलता है जरा इनसे पूछिए।
उसका इशारा सियाराम की तरफ था। जो अपनी पुरानी साइकिल से घर की तरफ जा रहे थे। खडंजे की सड़क पर खड-खड कर रही थी...।
इस समय वह पश्चिम दिशा की तरफ जा रहे थे और उनके ठीक सामने सूरज डूबने वाला था....।

-ओमप्रकाश तिवारी

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