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अलाप उर्फ दर्द-ए-धुआं

कहानी


कारखाने के मजदूरों को जैसे ही पता चला कि आज उन्हें वेतन नहीं मिलेगा, उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। कइयों के जेहन में यह सवाल एक साथ गंूजा कि आज रोटी नहीं मिलेगी? कइयों के आंखों के आगे भूख से विलखते अपने बच्चों की तस्वीर घूम गई।
यह बरदाश्त की सीमा से बाहर था। कारखाने में पिछले चार महीने से काम नहीं है, लेकिन इसमें इनका या दोष? माह की आज पंद्रह तारीख है और वेतन का कोई अता-पता नहीं है। मजदूरों को यह कंपनी इतना वेतन भी नहीं देती कि यदि एक माह वेतन न मिले तो उनका दैनिक काम चल जाए। लिहाजा हर श्रमिक के सामने जिंदगी-मौत का सवाल उठ खड़ा हो गया।
कंपनी के इस रवैये से कई श्रमिक काम छाे़ड कर जा चुके हैं। कंपनी भी यही चाहती है। ताकि वह इस कारखाने को आराम से बंद कर सके। श्रमिकों के रहते उसे इसे बंद करने में परेशानी हो रही है। मजदूर अपना हक मांगने लगते हैं। इसकी काट के लिए कंपनी ने यह तरीका खोजा है। उसने इस कारखाने का काम ही बंद कर दिया। लिहाजा मजदूर बेकार हो गए। फिर समय से वेतन देना बंद कर दिया, ताकि पेरशान होर श्रमिक खुद ही कंपनी छाे़डकर चले जाएं...।
जब से उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की हवा चली है, तब से अधिकतर कारखानों का यही हाल है...। हर जगह से श्रमिकों की छंटनी की जा रही है। जो आराम से नौकरी नहीं छाे़डते उन्हें इसी तरह से प्रताड़ित किया जाता है...। श्रमिक संगठन विखर चुके हैं। श्रमिक आंदोलन दम ताे़ड चुका है। मजदूर दिशाहीन हो गए हैं। गाहे-बगाहे आंदोलन होते हैं, जिन्हें फै टरी मालिक सत्ता और पुलिस प्रशासन से मिलकर कुचल देते हैं। पुलिस इस तरह लाठियां भाजती है कि दूसरा श्रमिक आंदोलन होने में सालों लग जाते हैं...। यही नहीं, कई बार तो गु़डों तक सहारा लिया जाता है।
वेतन नहीं मिलने की घोषणा सुनते ही वह आपा खो बैठा। तेजी से दफ्तर में घुसा और कंपनी मालिक को फोन मिला दिया...।
-वाह! जनाब वाह! अच्छा न्याय किया आपने। तबीयत खुश हो गई। वफादारी की, मेहनत की ऐसी ही कीमत मिलनी चाहिए...। आप ठहरे पैसे वाले। हम ठहरे मजदूर। दुनिया आपकी मुट्ठी में है...। हमारे पास या है? श्रम। उसकी भी कीमत आप लगाते नहीं हैं..। वैसे भी आपने हमारे साथ जो किया, वह कोई पहली घटना नहीं है। इतिहास साक्षी है...मेहनत करने वाले तो रोटी की जगह हवा ही खाते हैं...। कभी हवा खाई है आपने? नहीं न। खा कर देखो। हर माह हजारों रुपये जो डा टर को देते हो, बच जाएगा। या स्वाद होता है...। लेकिन आप या जानो। आप तो फाइव स्टार होटल में विदेशी व्यंजन खाते हो..। अपने कारखाने के मजदूरों को समय से वेतन भले ही न दो, लेकिन होटल में रंगरलियां मनाने पर लाखों खर्च करते हो। अपनी घरवाली को देखकर उल्टियां करते हो और होटल में....चलो छोड़ो। या रखा है इन बातों में।
हां-हां, आपका ही पैसा है। मैंने कब कहा कि हमारे पैसे को आप मौज-मस्ती पर उड़ाते हो, लेकिन बाबू जी, सच तो यह है कि उस पैसे में 'हमारा` भी हिस्सा होता है, जिसे आप हड़प जाते हैं और ऐय्यासी करते हैं...।
हां, मैं मूर्ख हंू और पागल भी। बेवकूफ भी। ठीक है, बाबू जी, आपके कहने से, चिल्लाने से सच तो नहीं बदल जाएगा। हकीकत तो यही है कि आप परजीवी कीड़े हैं...। दूसरों का खून चूसकर अपनी सेहत बनाते हैं और ऐय्यासी करते हैं...।
हां-हां पगला ही गया हूं? कोई भी पगला जाएगा। यदि उसके खून-पसीने की कमाई को कोई और खा जाएगा...। आप भी पगला जाएंगे। सचाई जानना चाहते हो तो हवा खाओ हवा। हवा जब अंदर जाती है तो पेट की अंतड़ियां फूल जाती हैं। पेट फूल जाता है तवे की रोटी की तरह। रोटी की हवा निकल जाती है। वह फुस्स हो जाती है, लेकिन हवा खाया हुआ पेट नहीं पचता। गुब्बारे की तरह फूला ही रहता है। आप हवाई जहाज में उड़ते हैं हमारा पैसा खा कर। हम हवा में उड़ते हैं हवा खा कर..।
ठीक कहा आपने। हम मच्छर हैं। कम से कम आपको तो ऐसा ही लगेगा। ऊपर से देखने पर आदमी, आदमी को, आदमी नजर नहीं आता। हम भी जब हवा खा कर उड़ते हैं न तो हमें भी आप जैसे लोग आदमी नजर नहीं आते...।
अरे साहब दारू पीकर नहीं बोल रहा हंू। आपको तो लगेगा ही। विदेशी जो पिये हो। हमारी झुग्गी में तो पानी भी नहीं आता। दारू कहां से मिलेगी? ये थूक लीला हंू अपना। पानी पिया हंू नाली का। नाली के पानी में कीड़े होते हैं। पेट में जाएंगे तो उत्पात मचाएंगे ही। नशा तो हो ही जाएगा। न उतरने वाला नशा। मरने के बाद उतरने वाला नशा। आपका या ? आप तो विदेशी पीओ, विदेश घूमो और ऐश करो। काम के लिए हम हैं न। अभी हमारे शरीर में बहुत खून है। चूसो, जितना चूस सकते हो...।
या? मैं बदतमीजी कर रहा हंू? हो सकता है आप सही कह रहे हों। आप ही बताइए, जब हम स्कूल ही नहीं गये तो तमीज कहां से सीखें? मां-बाप ने पढ़ाने की बहुत कोशिश की पर कर्म उनके खोटे निकले। वह मेहनत करते रहे, तमीज कोई और सीखता रहा...। एक बाबा आए उन्हें ज्ञान दे गए कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो। उन्होंने इस पर अमल किया। कर्म किया फल की इच्छा ही नहीं की। नतीजा यह हुआ कि उनके कर्म का फल कोई और खा गया...। उसका बेटा स्कूल गया। तमीज सीख गया...। किसी के कर्म का फल खाने के लिए..। रह गए हम। अनपढ़-गंवार, जाहिल-काहिल, बदतमीज-बददिमाग आदि-आदि आप जो भी कहें।
या कहा आपने? बहुत बोलता हंू। या करूं साहब। ले देकर यह जुबान ही बची है। हड़ताल करें तो भी तो आपको दि कत होती है। आपके सभ्य समाज को नागवार गुजरता है। आपकी रफ्तार जो रुक जाती है। अब यह जुबान ही हमारा अस्त्र है। हमारा परमाणु बम है। जानता हंू, एक दिन आप इसे भी छीन लेंगे। लेकिन हो सकता है कि उससे पहले यह बम विस्फोट कर जाए और आपके अस्तित्व को ही मिटा जाए..। वैसे भी हवा खाने वाले मरने से नहीं डरते..। आप भी जानते हैं कि हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए पूरा आकाश है...। हमें भी हमारे हिस्से की धूप चाहिए...। चांदनी चाहिए...। यदि नहीं मिलेगी तो हम ऐसे ही भौंकते रहेंगे...। शब्दबाण चलाते रहेंगे...।
ठीक कह रहे हैं आप कि मैं पगला गया हंू। यांे न पगलाऊं! आज घर में बीवी-बच्चे हवा भी नहीं खा पाएंगे। बहुत कोशिश की पर हवा भी अंतड़ियों में छेद करके निकल जाती है। आपके कारखाने के धुएं ने हवा को भी खाने लायक नहीं छाे़डा है...। ऐसा आज ही नहीं कई दिनों से हो रहा था। आज किसी लिखने वाले ने बताया कि हवा प्रदूषित हो गई है। वह खाने योग्य नहीं रही। अच्छी हवा खानी हो तो खरीदो...। है न कमाल। हवा प्रदूषित कर दो, फिर उसे बेचो। आपकी चांदी ही चांदी है साहब...।
या कहा आपने? लिखने वाले मूर्ख हैं? केवल सपने देखते हैं? या करें साहब? सपने जो बाजार में नहीं बिकते...। इसलिए देख लेते हैं। हम भी देख लेते हैं पर पूरा कहां हो पाता है? आप तो हमारे सपने भी ताड़ लेते हो। आपके लिए हमारे सपने खतरनाक हो जाते हैं...। आप हमारे सपनों को मर जाने के लिए मजबूर कर देते हैं..। जो मजबूर नहीं होता उसे मार डालते हो..। हत्या कर देते हो। तुम हत्यारे हो। हमारे और हमारे सपनों के हत्यारे...।
हां, साहब मैं सचमुच पगला गया हंू। अब देखो न सोचा था समय पर वेतन मिल जाएगा तो ये करूंगा वो करूंगा। ठंड आ गई है। बच्चों के लिए गर्म कपड़े बनवाना है। गरमी होती तो चल जाता। चलता या है। मच्छर काटते हैं तो उछलते हैं बच्चे। मिमियाते हैं जैसे बकरा कटते समय मिमियाता है। तो साहब आपने वेतन ही काट लिया। ठीक किया आपने। साले भूख से मर जाएंगे तो आबादी ही कम होगी। आबादी कम करने का कितना बढ़िया समाधान खोजा है आपने...। आपको तो सरकार इनाम देगी। वैसे भी आप तो देश की अर्थव्यवस्था के कर्णधार हैं, बंटाधार तो हम हैं..। जनसंख्या बढ़ाकर देश को चौदहवीं सदी में ले जा रहे हंै...।
अरे-अरे बाबू साहब। आप तो नाराज हो गए। गाली दे रहे हो। कुत्ता कहा आपने। ठीक है, हम कुत्ते हैं। लेकिन आप हमें नहीं पालेंगे। यकीन करें, पाल कर देखें, हम कुत्ते से भी ज्यादा वफादार होंगे। ऐसी वफादारी करेंगे कि कुत्ते भी शरमा जाएं...।
देखो साहब, बहन की गाली मत दो। एक ही बहन थी। उसने भी आत्महत्या कर ली। कार वालों ने बलात्कार किया था। शर्मशार हो गई। नहीं जी पाई। ठीक कहा आपने, हमें शर्म नहीं आनी चाहिए। शरमाने लायक है ही या हमारे पास? अरे बलात्कार ही तो किया था आठ-दस लोगों ने। मर तो वह मौके पर ही गई थी। लेकिन पुलिस और डा टरों ने कहा कि आत्महत्या की है। यह सब तो झूठ बोलते नहीं। जाहिर भी है, जिसका नमक खाते हैं उससे नमकहरामी कैसे कर सकते हैं...? कानून तो आप लोगों की जेब में होता है न...। या यों कहें कानून तो बनता ही आप लोगों के लिए है...। जैसे यह लोकतंत्र है। कहने को तो यह जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए है, लेकिन यह जनता द्वारा, पैसे वालों का, पैसे वालों के लिए है...। जनता तो केवल वोट देती है। नेता चुनती है। नेता नीति बनाते हैं। जिसमें सभी होते हैं। केवल जनता नहीं होती..। वोट देने वाले नहीं होते...। पैसे देने वाले महत्वपूर्ण हो जाते हैं...।

ठीक कहा आपने। हमारे शरीर से बदबू आती है। लेकिन कभी सोचा है कि यों आती है बदबू? जितना पैसा देते हो उससे तो परिवार वाले भर पेट भोजन भी नहीं कर पाते। फिर नहाएं कहां से? साबुन, शैंपू कहां से लाएं? कहां से लाएं कपड़े? श्रम से पसीना निकलता है, परफ्यूम नहीं...। यह भी या व्यवस्था है कि हम जिन वस्तुआें को तैयार करते हैं, बनाते हैं, उन्हीं के लिए तरसतें हैं... यों? किसान अनाज पैदा करता है लेकिन मरता भूख से है। परिवार सहित आत्महत्या करता है...।
आपने हमें कुत्ता कहा। ठीक ही कहा। हम कुत्ते तो ही हैं। आवारा कुत्ते। जिन्हें कोई नहीं पूछता। जो रोटी देखकर दुम हिलाता है... यह हमारी फितरत में आ गया कि हम मर जाएंगे, लेकिन एकजुट होकर अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाएंगे। आपने ठीक ही कहा। हमारे रहनुमाआें को आपने खरीद लिया है। वह आपके पालतू कुत्ते हो गए हैं। उन पर आपके उपदेश का असर है।
उस दिन आपने ठीक ही उपदेश दिया था कि समस्त कर्मों को मानसिक रूप से मुझे समर्पित करके, मुझे ही परमगति मानते हुए तथा बुद्धि के द्वारा योग का आवलोकन करके तू निरंतर मुझमें चित्त को लगा.. अपने चित्त को तू मुझमें लगाकर तू मेरी कृपा से समस्त बाधाआें को पार कर लेगा। किंतु अहंकार के कारण मेरे वचनों को नहींं सुनेगा तो तू नष्ट हो जाएगा। हे श्रमजीवियो, मैं सर्वभूतों से हृदय मंे स्थित हूं और अपनी 'माया` से तुम सब को इस प्रकार भरमाता हूं मानो तुम मंत्रमुग्ध हो या आस त हो। इसलिए हे श्रमजीवियो तुम सब प्रकार से मेरी शरण में आ जाओ। मेरी कृपा से तुम परम शांति और सुख प्राप्त करोगे।
या ज्ञान की बरसात की थी साहब आपने। मेरे एक मित्र का कहना है कि ऐसा ही भाषण श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था तो महाभारत हुआ था, लेकिन आप तो महाभारत दबाने के लिए यह कह रहे हो...। आप या सेाचते हो कि हम आपके इस झांसे में आ जाएंगे? कदापि नहीं। आपकी चाल को हम सब समझ गए हैं...।
या कहा? चुप रहूं। नहीं तो नौकरी से निकाल दोगो? आप और कर भी या सकते हैं। लेकिन इसका या करोगे। अब हमने हवा खा कर जीना जो सीख लिया है...। उड़ना सीख लिया है...। जहां से आप जैसे लोग छोटे और बौने नजर आते हैं...। जानवर नजर आते हैं..। ठीक कहा आपने। मैं बहुत बोलने लगा हूं। यही जुबान हमारी मिसाइल जो ठहरी...। अब इसे निशाने पर ही दागना है। चूकना नहीं है। अभ्यास जारी है। लक्ष्य पता है। एक दिन यह अपने निशाने पर ही गिरेगी...। धमकी नहीं दे रहा। बता रहा हूं। कब तक चलेगा जमूरे का खेल। अब जमूरे ने भी खेल सीख लिया है। अब वह उस्ताद को उस्ताद नहीं कहेगा...। उस्ताद शब्द को ही दफना देगा। संसार के शब्दकोश से इसे निकाल फेंकेगा...।
या कहा आपने? ऐसा नहीं होगा? अरे नहीं जनाब। अब तो ऐसा ही होगा। तुमने पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया है। हम उसे साफ करेंगे। योंकि इससे हमारा जीना मुहाल हो गया है...। कल ही मरी है मेरी छह माह की बच्ची। न उसकी मां की छाती से दूध उतरा न मैं बाजार से दूध खरीद पाया। योंकि तुमने इस लायक छाे़डा ही नहीं। बारह घंटे काम करवाता है और उसके मुताबिक पैसे नहीं देता। जो देता है वह भी समय पर नहीं देता। आखिर कब तक हमें भूखों मारोगो? मैंं पूछता हूं कब तक? कब तक तू हमारी कमाई पर ऐश करता रहेगा.. कब तक?
या कहा? मैं बकवास कर रहा हूूं? हां, मैं बकवास कर रहा हूं, या करूं मैं? तीन दिन से घर में चूल्हा नहीं जला है। बच्चे भूख के मारे बिलख रहे हैं। घरवाली बीमार पड़ी है। उसका इलाज नहीं करवा सकता। खुद तीन दिन से अन्न नहींं खाया। जब पेट में भूख के मारे चूहे कूद रहे हों तो कोई प्रवचन तो नहीं कर सकता न? तुम वेतन नहीं दे रहे हो। हमें भूखों मार रहे हो। तो या मैं बकवास भी नहीं कर सकता?
या! तुमने मुझे नौकरी से निकाल दिया? ठीक है। ऐसी नौकरी का फायदा ही या, जिसके होते हुए भी भूखोंं मरे आदमी। लेकिन तुम एक बात मेरी भी सुन लो। आज तुमने मुझे नौकरी से निकाला है एक दिन मैं तुम्हें इस देश से निकाल दूंगा...। पूरी दुनिया में तुम्हें ठिकाना नहीं मिलेगा...। कहते हुए उसने फोन का चोंगा पटक दिया। लंबी सांस ली। आसमान की तरफ देखा। आसमान काले बादलों से अच्छादित था...। ऐसा लग रहा था कि कभी भी बारिश हो जाएगी...। वह आगे बढ़ा तो अन्य श्रमिक उसके पीछे चल पड़े...। सभी के हाथ ऊपर उठे हुए थे...। मुठि्ठ यां भिंची थीं...। मंुह से नारे निकल रहे थे...।

- ओमप्रकाश तिवारी

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कविता

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