आपने तो अच्छा विश्लेषण किया मेरा। लेकिन आपको जानना चाहिए कि मैं ऐसा क्यों हंू? शायद इसके लिए मेरे हालात जिम्मेदार हों लेकिन मैं निराशावादी नहीं हूं। मैं भाग्यवादी भी नहीं हूं। जो हो रहा है भाग्य में लिखा था, यह मानकर नहीं चलता। ईश्वर की मर्जी है, जो करेगा, भगवान करेगा। जो देगा भगवान देगा। ऐसे बेवकूफी भरे तर्कों-शब्दों की जगह मेरे शब्दकोश में नहीं है। अंधेरे कोने भाग सात कशिश और तपिश ----------- अमर कमरे मंे अकेला है। अनिल ड्यूटी पर गया है। सागर नौकरी की तलाश में गया है। अमर को जालंधर जाना था लेकिन उसने जाना दो दिन के लिए टाल दिया है। उसने यह फैसला क्यों लिया, वह खुद भी नहीं समझ पाया। समय गुजारने के लिए वह टीवी देख रहा है। आम चुनाव के बाद सत्ता में वापसी करने वाली पार्टी का वित्तमंत्री बजट भाषण पढ़ रहा है। वित्तमंत्री भाषण अंग्रेजी में पढ़ रहा है। टीवी चैनल वाले उसका हिंदी तर्जुुमा करके अपने दर्शकों के सामने परोस रहे हैं। अमर की निगाह टीवी पर थी लेकिन दिमाग कहीं और था। वह सोच रहा था कि जिस देश में 70 प्रतिशत लोग हिंदी भाषी हों उस देश का वित्तमंत्री वजट भाषण...