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तो सभी धर्मों की सार्वजनिक गतिविधियों पर रोक लगे

वैसे तो हमारा संविधान धार्मिक आज़ादी का हक देता है। किसी भी नागरिक का यह मौलिक अधिकार भी है। लेकिन कई बार सरकारें और उसके समर्थित संगठन व लोग नागरिक अधिकारों का हनन करते हैं। उसमें भी दिक्कत तब होती है जब किसी समुदाय विशेष को निशाने पर लिया जाता है। कुछ नेताओं के हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य की वजह से देश का बंटवारा हो गया। लेकिन यह नफरत गयी नहीं। कुछ संगठनों ने आज़ादी के बाद से ही नफरत फैलानी शुरू कर दी थी। कालांतर में वह सियासी दल बनाकर सत्ता में आ गए। उनके लिए संविधान कोई मायने नहीं रखता। नागरिककों के मूल अधिकारों का हनन वे अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं और ऐसा ही व्यवहार करते हैं। इसके लिए उनके पास अपने तर्क और तथ्य भी हैं जो वह स्वयं गड़ते हैं और कुतर्क करते है। जब इससे भी नहीं पर पाते तो हिंसक हो जाते है। मूलतः वे हिंसक ही हैं। मानवीयता का तो केवल चोला पहने हैं। यदि सार्वजनिक जगह में नमाज नहीं पढ़नी चाहिए तो शोभायात्रा या नगर कीर्तन भी नहीं निकलना चाहिए। एक के लिए धार्मिक आज़ादी दूसरे के लिए पाबंदी नहीं होनी चाहिए।

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