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अंधेरे कोने : उनके कल्चर की कॉमन बात

सुबह के आठ बज रहे हैं। जल्दी से उठी और अलमारी से कपड़े निकालकर पहने। फ्रेश होकर नहाने लगी। नहाते समय उसकी आंखों के सामने रात के सीन नाच गये। उसे अंदर से कै उठी, लेकिन हुई नहीं...
अंधेरे कोने
 
भाग चार
उनके कल्चर की कॉमन बात
और एक मेरा पति था।
अनु अतीत के जंगल में भटक गई। शादी को एक महीना ही हुआ था। विक्रम का नया चेहरा सामने आ गया था।
उस दिन अनु के सास-ससुर घर पर नहीं थे। विक्रम का इंतजार करती वह अपने बेडरूम में लेटी थी। तभी किसी लड़की के साथ हंसता हुआ विक्रम आया था। दोनों सीधा बेडरूम में ही आ गये थे। शराब के नशे में धुत थे। उन्हें इस हालत में देखकर अनु भौचक रह गई।
- सी इज योर वाइफ? लड़की ने विक्रम की तरफ देखते हुए और अनु की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा था।
- यश डार्लिंग।
- यू आर लकी विक्रम। योर वाइफ इज ए वेरी ब्यूटीफुल।
- तुम कौन सी कम हो। कहते हुए विक्रम ने लड़की को बाहों में भर लिया। उनकी इस हालत से अनु असहज हो गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे।
- तो आज डबल पार्टनर ...?
- तुम्हारी दूसरी सहेली आई ही नहीं नहीं तो ...
- तुम भी साले बहुत हरामी हो...
अनु जाने लगी तो विक्रम ने उसका हाथ पकड़ लिया।
- कहां जा रही हो ?
- मुझे जाने दो।
- कैसी वाइफ हो यार। पति बेडरूम में और तुम...?
- जब बाहर वाली बेडरूम में आ जाए तो पत्नी के लिए जगह कहां बचती है?
- बाहर वाली तो .... तुम तो सदा के लिए।
- मैं किसी की जागीर नहीं ...
- बाहर क्या यार को बुला रखा है? विक्रम का इतना कहना था कि अनु को गुस्सा आ गया। उसका हाथ स्वतः ही उठ गया। लेकिन विक्रम ने उसका हाथ पकड़ लिया।
- भड़कती क्यों हो ?  इसे देखो। शादीशुदा है, लेकिन मेरे साथ आई है। आखिर इसमें बुरा ही क्या है...। विक्रम ने अनु को बेड पर बैठा दिया।
-  जल्दी करो। तुम यदि सोच रही हो कि बच जाओगी, तो ऐसा होने वाला नहीं है।
- शरमा रही है यार। लड़की बोली।
- लगता है इसका चीरहरण करना पड़ेगा।
विक्रम ने अनु के शर्ट पर हाथ लगाया तो अनु ने झटक दिया। इस पर लड़की बोली।
- यार विक्रम, इसे कौन सी सोसाइटी से पकड़ कर लाये हो? यह तो हमारे कल्चर को नहीं जानती। फिर वह अनु से मुखातिब हुई।
- जानती हो मैडम। मैं भी शादीशुदा हूं। मेरा पति भी ऐसा करता है। एक नहीं दस-दस लड़कियों से संबंध हैं उसके। और दस-दस लड़कों से मेरे। कुछ मैरिड और कुछ अनमैरिड हैं।  आज मैं इसके साथ आई हूं। कल तुम्हें मेरे पति का इंटरटेनमेंट करना है।  शादी से पहले ..और बाद में भी ...एेसे ही चलता है...
अनु ने उस लड़की को ऐसे घूरा लगा कि उसे वह खा जाएगी। इस पर लड़की क्रोधित हो गई।
- ऐसे क्यों घूर रही हो? घूरने से बच जाओगी क्या? चलो विक्रम इसका चीरहरण करते हैं। दोनों लग गये अनु के वस्त्र उतारने में। अनु ने बहुत हाथ पैर झटके लेकिन उसकी एक न चली।
बेड पर लेटी अनु की आंखें दरिया बन गई थीं...
- विक्रम इस ठंडे गोश्त को यहीं पड़े रहने दो।  लड़की ने कहा तो दोनों अनु को छोड़कर अलग हो गये। अनु को लगा कि उसे मुक्ति मिल गई। अनु उठी तो देखा बाथरूम का दरवाजा खुला है ...। अनु को लगा कि वह इन पर थूक दे लेकिन वह जल्दी से उठी और कपड़े पहनने लगी। उसने सोचा कि जब तक ये लिजलिजे कीड़े फ्री होंगे तब तक वह भाग जाएगी।
अनु जैसे ही कमरे से निकलने को हुई दोनों ने आकर उसे पकड़ लिया।
- क्या मैडम? अपने हसबेंड के साथ ऐसा कर रही हो तो मेरे हसबेंड के साथ क्या करोगी? वह बहुत कमीना है।  दोनों ने उसे खींच कर फिर बेड पर गिरा दिया..
- विक्रम इस ठंडे गोश्त को पानी में भिगो-भिगो कर उबालो। लड़की ने कहा तो विक्रम अनु को लेकर बाथरूम में चला गया।

शॉवर से बूंदें अनु के शरीर पर पड़ती तो उसे लगता जैसे पत्थर बरस रहा है.. उसने खुद को हालात पर छोड़ दिया था।

उसकी आंख खुली तो अपने आपको बेड पर निर्वस्त्र पाया। विक्रम और लड़की जा चुके थे। निगाह घड़ी पर पड़ी तो देखा सुबह के आठ बज रहे हैं। जल्दी से उठी और अलमारी से कपड़े निकालकर पहने। फ्रेश होकर नहाने लगी। नहाते समय उसकी आंखों के सामने रात के सीन नाच गये। उसे अंदर से कै उठी, लेकिन
 हुई नहीं। जल्दी से बॉथरूम से बाहर निकली और कपड़े पहन कर नीचे आ गई। नीचे विक्रम और वह लड़की ब्रेकफास्ट कर रहे थे। उसे देखते ही विक्रम बोल पड़ा।
- अरे डार्लिंग तुम उठ गई? आओ ब्रेकफास्ट कर लो। विक्रम के शब्द अनु के कानों में तीर से लगे। उसे लगा कि जैसे कोई सोहदा उसे छेड़ रहा है। वह वापस जाने लगी तो विक्रम ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया।
- मैं रात के लिए शर्मिंदा हूं। आई एम वेरी सॉरी। मुझे माफ कर दो । आइंदा ऐसा कभी नहीं होगा। विक्रम ने अनु को बाहों में भर लिया और कानों के पास मुंह लाकर कहा। लेकिन अनु पर उसकी बातों का असर नहीं पड़ रहा था। वह एक निर्णय कर चुकी थी। वह विक्रम से कोई बात भी नहीं करना चाहती थी। वह सोच रही थी इसके मां-बाप आ जाएं तो वह सारी बात का खुलासा करके अपने मम्मी-डैडी के घर चली जाएगी।
जब अनु टस से मस नहीं हुई तो विक्रम ने उसे गोद में उठा लिया और ले जाकर डायनिंग टेबल के पास एक कुर्सी पर बैठा दिया।
- आई एम सॉरी यार। मैं अपनी बेवकूफी के लिए माफी तो मांग रहा हूं। आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी। कान पकड़ता हूं। तुम्हारी कसम।
- तुम ऐसी लिजलिजी हरकत हर रोज करो। लेक‌िन मुझे मुक्त कर दो। मेरी अब तुम्हारे साथ एक भी पल निभने वाली नहीं है।
- इतना गुस्सा ठीक नहीं होता। लड़की ने अनु को समझाना चाहा लेकिन उसके बोलते ही अनु भड़क गई।
- तू चुप ही रह, कालगर्ल्स कहीं की।
- देखो, गाली मत दे।
- अच्छा, करेगी वेश्यागीरी और कहेगी गाली मत दे। तेरे लिए गाली बनी ही नहीं है। तुझे गाली देकर अपनी जुबान गंदी नहीं करनी है।
- विक्रम इसे समझा। यह सारी हदें पार कर रही है। इस सड़ी हुई कुतिया को कहां से उठा लाया तू।

- छत्तीस कुत्तों से तो तू ... । बोलती दूसरे को है। साली कल्चरड बन रही है। अपना भला चाहती है तो अभी यहां से भाग जा नहीं तो...
- नहीं तो क्या कर लेगी तू? लड़की तमक कर खड़ी हो गई।
बात बिगड़ती देख विक्रम बीच में आ गया। लड़की को पकड़ लिया। उसे वह घर से बाहर ले जाने लगा।
- तू अभी घर चल मैं इसे देख लूंगा। 
- इसकी ... पर चार लात मारकर भगा यार। इसे पूरी जिदंगी कैसे झेलेगा ?
- तू सझेगी नहीं। दरअसल यह लड़की नहीं खजाना है। खजाने पर लात नहीं मारते।  रही बात पूरी जिंदगी की तो उसे किसने देखा है।
- अच्छा। इसीलिए सॉरी बोली जा रही है।
- तू क्या समझ रही थी?
- लेकिन मेरा हसबेंड इसे छोड़ने वाला नहीं है।
- तू चिंता न कर, सब ठीक हो जाएगा।
विक्रम लड़की को उसकी कार में बैठा आया। वह अंदर आया ही था कि अनु बाहर निकलने लगी। उसने उसे पकड़ लिया।
- कहां जा रही हो?
- तुमसे मतलब?
- तुम्हारा प‌ति हूं।
- प‌ति थे।
- तलाक ले लिया?
- समझ लो हो ही गया।
- इतना आसान नहीं है अनु बेबी। न तो तुम्हें तलाक मिलेगा न ही इस घर से  जा सकती हो।
विक्रम ने अनु को पकड़ लिया और लगभग खींचते हुए अंदर ले आया।
- देखो नाश्ता-वगैरह करो और मजे करो। हां, तुम्हें यह सब अच्छा नहीं लगता तो नहीं करेंगे। लेकिन तलाक, कभी नहीं दे सकता।
अनु चुप रही। उसे गुस्सा आ रहा था लेकिन वह जानती थी कि इस समय वह कुछ नहीं कर सकती। किसी तरह उसे इस घर से निकलना होगा। उसके बाद ही कोई कदम उठाया जा सकता है।
इसी बीच विक्रम के मम्मी-डैडी आ गये। उनके आते ही विक्रम अपनी मम्मी को एक किनारे ले जाकर रात की घटना को बताया और कहा कि इसे रोको नहीं तो करोड़ों की संपत्ति निकल जाएगी।
- तो क्या इसे यह सब अच्छा नहीं लगता?
- नहीं। नाराज है, तलाक की बात कर रही है।
- तू पागल तो नहीं हो गया है। उसे अच्छा नहीं लगता तो मत कर। धीरे-धीरे आदत डाल।  मैं समझाती हूं।
- मां से आश्वासन पाकर विक्रम चला गया। उसकी मां अनु के पास आई और उसे उसके कमरे में ले गई। अनु ने रात की घटना को विस्तार से बताया।
- तू चिंता न कर मैं सब ठीक कर दूंगी।
- मम्मी जी यह सब कितना लिजलिजा है।                                                                                                                - पागल हो गई है तू। तुझे अच्छा नहीं लगता तो नहीं करेगा। यह सब तो पत्नी की मर्जी से ही होता है। इसमें जबरदस्ती थोड़े न चलती है। वैसे यह सब तो हमारी सोसाइटी में चलता ही है।
- मम्मी जी !!!!!!!! अनु ने अपनी सास को आश्चर्य से देखा।
- ठीक है यार। मुझे भी पहले अच्छा नहीं लगा। लेकिन विक्रम के डैडी ने ...
अनु का मुंह खुला का खुला रह गया।
- तो आप भी !!!!
- इसमें मुंह फाड़ने की क्या बात है पागल। जवानी बार-बार आती है क्या?
सास की बात सुनकर अनु ने माथा पकड़ लिया। उसे लगा जैसे दिमाग फट जाएगा।
- तू चिंता न कर, मैं विक्रम को समझा दूंगी। उसकी सास ने कहा।
अनु ने सोचा कि इस घर से तो कैसे भी हो भागना ही पड़ेगा। लेकिन वह यह भी समझ गई थी कि यह काम इतना आसान नहीं है। कम से कम वह नाराजगी दिखाकर तो नहीं निकल पाएगी। उसे इन सब का विश्वास जीतना होगा। चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। एक दो बार की जिल्लत से यदि जिंदगी को मुक्ति मिलती है तो उसे भी सहना पड़ेगा।
धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। इस तरह एक सप्ताह निकल गया।

 शनिवार को विक्रम ने पार्टी रखी और अपने सभी दोस्तों को बुलाया। इस पार्टी के दिन विक्रम के मम्मी-डैडी कहीं चले गए। दरअसल, उनकी पार्टी कहीं और थी। जो खेल यहां युवा पीढ़ी खेलने वाली थी वही खेलने वह लोग भी निकल गये थे...।
पार्टी में सभी ने जमकर खाया-पीया। जब सब नशे में झूमने लगे तो पर्ची में सभी की पत्नी के नाम लिखे गये। फिर पर्चियों को एक कटोरी में रख कर मिला दिया गया। उसके बाद एक-एक करके लोग पर्ची निकालते और जिस औरत का नाम निकलता उसे लेकर वह किनारे चला जाता। हर बार जब किसी की पर्ची निकलती तो सभी जोर से चीखते...। अनु को समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। वह  तमाशबीन की तरह इसे देख रही थी। तभी उसके नाम का एलान किया गया। एक हट्टा-कट्टा युवक उसे पास आकर उसे बाहों में भरने का प्रयास ‌क‌िया। इस पर अनु चीख पड़ी।
- क्या बदतमीजी है। तुम्हारी पत्नी उधर है।
- आज की रात तुम मेरी रानी मैं तुम्हारा राजा। मेरी पत्नी किसी और की रानी बन चुकी है।
तभी उस दिन वाली लड़की अनु के पास आई और बोली कि यह मेरा हसबेंड है। आज की रात यह तुम्हारे साथ..। इसकी लाटरी खुली है, तुम्हारे नाम की। आज मैं फिर तुम्हारे हसबेंड के साथ...। इसका ख्याल रखना। लड़की मुस्कुराते हुए विक्रम को लेकर चली गई।
एक-एक कर सभी अपने कमरों में चले गये। बाहर रह गये तो वह आदमी और अनु। अनु की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। हालांकि, उसका दिमाग तेजी से चल रहा था। वह अभी सोच ही रही थी कि वह व्यक्ति उसके पास आया और बाहों में भर लिया। अनु कसमसा कर रह गई। कसावट इतनी तगड़ी थी कि उसके वश का नहीं था कि उससे छूट पाती। वह आदमी उसे कमरे में भी नहीं ले गया। वहीं उसके कपड़े उतारने लगा।
- तुम्हें शर्म नहीं आती? अनु ने उस राक्षसनुमा आदमी से कहा।
- शर्म किस बात की?
- तुम्हारी वाइफ किसी और के साथ और तुम किसी और की पत्नी के साथ..।
- ये तो ले दे का खेल है।
- कल फिर दोनों साथ होंगे?
- होंगे और नहीं भी होंगे। उसने बड़ी बेशर्मी से कहा।
- तुम लोगों का यही कल्चर है?
- और तुम्हारा?
- मेरे कल्चर में पति-पत्नी का एक पवित्र रिश्ता होता है। यह शर्मनाक है और इससे बड़ा पतन और कोई हो भी नहीं सकता।
- किस सड़ी हुई सोसाइटी की बात कर रही हो? हम लोग जिस सदी में जी रहे हैं उसका कल्चर है अधिक से अधिक उपभोग। वह वस्तु का हो या जवानी का...।
- चाहे वह अनैतिक ही क्यों न हो?
- क्या नैतिक है और क्या अनैतिक इसकी परिभाषा तो हमी तय करेंगे। उपभोक्तावाद की अपनी नैतिकता है। यह अधिक से अधिक उपभोग को नैतिक मानता है। यही है उसका मूल्य। इसी सिद्धांत को हम लोग फालो कर रहे हैं...।
- औरत को उपभोग की वस्तु मानते हो?
- कमॉन बेबी। हम खुद भी उपभोग की वस्तु हैं। तुम मुझे भोगो और मैं तुम्हें। तुम टिपिकल भारतीय नारी की तरह क्यों रियेक्ट कर रही हो? क्या तुम्हें हमारे इस कार्यक्रम के बारे में नहीं बताया गया था?
- मुझे जानकारी होती तो यहां न होती।
- कमाल है यार। अब तुम मेरा समय खराब कर रही हो। देखो सभी ऐश कर रहे हैं और हम बहस कर रहे हैं। तुम्हें यदि नहीं बताया गया तो यह तुम्हारे हसबेंड की मिस्टेक है। उससे निपट लेना, अभी तो...
- मुझे नहीं करना कुछ।
- कमॉन बेबी। मुझे जबरदस्ती करने के लिए विवश मत करो।
- तुम सब ऐसा क्यों करते हो?
- मौज-मस्ती के लिए।
- यह सुख तुमको अपनी पत्नी से नहीं मिलता? किसी एक से नहीं..
- रोज-रोज एक ही खाना कोई खाता है?
- पत्नी खाना नहीं है। वह तुम्हारी जीवन सांगिनी है।
- जीवन सांगिनी माई फुट। औरत केवल और केवल सेक्स पार्टनर होती है...। अब वह किसी और के साथ है और तुम मेरी पार्टनर हो...। वीमेन इज ए ओनली सेक्स पार्टनर...समझी।
- यह पत्नी का अपमान है। वीमेन की इंसल्ट है।
- हम उसे फोर्स नहीं कर रहे हैं। इसमें उसकी सहमति है।
- लेकिन मैं तो सहमत नहीं हूं।
- तुम सहमत नहीं हो और योर हसबेंड प्लेइंग विद माइ वाइफ। मैं इसे कैसे बर्दाशत कर सकता हूं।
- अच्छा। मैं सहमत हो जाऊं तो बर्दाश्त कर लोगे? यानी तुम मुझसे बदला लोगे? अभी तो कह रहे थे कि तुम्हारी अपनी नैतिकता है लेकिन यह कैसा मूल्य है? कितनी घटिया मेंटालिटी है तुम्हारी वीमेन के प्रति। वीमेन इज नॉट योर प्रापर्टी। नॉट ऐ सेक्स पार्टनर। तुम लोगों की यदि यही थिंकिंग है तो पति-पत्नी के रिश्ते का दिखावा क्यों? जब इसकी पवित्रता को मानना ही नहीं तो रिश्ता क्यों बनाते हो?
- देखो यार, तुम बहस बहुत कर रही हो। मेरे पास इतना समय नहीं है।
- रेप करोगे मेरे साथ?
- नहीं मानोगी तो करना पड़ेगा?
- एेसा करके क्या मिलेगा तुम्हें? ऐसा नहीं हो सकता कि हम लांग ड्राइव पर चलें?
- इतनी रात को?
- हर्ज क्या है?
- मैं नशे में हूं।
- मैं तो नहीं हूं।
- प्रस्ताव तो तुम्हारा अच्छा है, लेकिन हम जल्द वापस आएंगे। उसके बाद तुम्हें वही करना होगा जो मैं कहूंगा।
- अाेके।
वह व्यक्ति तैयार हो गया तो अनु को लगा कि वह बचने में कामयाब हो जाएगी। लेकिन वह बाहर निकलने ही वाले थे कि विक्रम आ धमका। उन्हें बाहर जाते देखकर सारा माजरा समझ गया। उसने उस व्यक्ति को बाहर जाने से मना किया। उसके कान में फुसफुसाया कि यह तुझे बेवकूफ बना रही है। बाहर निकली तो फुर्र हो जाएगी। फिर तो मेरे भी हाथ नहीं आएगी। इस पर उस आदमी ने विरोध किया। उसका कहना था कि तुमने अपनी पार्टनर को बताया नहीं। वह समझती नहीं है। उसके साथ जबरदस्ती करनी पड़ेगी। तुम सब साले मौज कर रहे हो और यह मेरा भेजा फ्राई कर रही है। विक्रम ने उससे कहा कि वह उसे कमरे में ले जाए, उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। यह उसकी पहली पार्टी है इसलिए ऐसा रिएक्ट कर रही है। विक्रम अनु के पास आया और बाल खींच कर बोला कि तुम्हारा प्लान चलेगा नहीं। भलाई इसी में है कि यह जैसा कहे वैसा करो। इसी में तुम्हारी मुक्ति है। तुम यहां से भाग नहीं सकती। चाहे जो भी कर लो।
अनु को ऐसा गुस्सा आया कि उसने विक्रम के मुंह पर थुक दिया। इस पर विक्रम ने उसे जोर का झापड़ मारा। बदले में अनु ने भी एक झापड़ उसे रसीद कर दिया। मारपीट सुनकर अन्य लोग भी वहीं आ गये। अनु गुस्से में चीख रही थी कि तुम सब लोगों को जेल की हवा खिलाउंगी। मेरे साथ यदि किसी ने जबरदस्ती की तो मैं पुलिस को बुला लूंगी। तुम सबकी सारी मस्ती उतर जाएगी। यदि यह न कर पाई तो जान दे दूंगी। सुसाइड नोट मैंने पहले ही लिख लिया है। तुम सब जेल जाओगे।
उसकी इस धमकी का असर हुआ। सबने एक दूसरे को देखा उसके बाद सभी ने तय किया कि वह पार्टी यहीं खत्म करते हैं। विक्रम अपनी पत्नी को संभालो। सभी का यही कहना था कि यदि उसकी वाइफ तैयार नहीं तो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। यह खेल सहमति का है। यहां कोई रेप करने नहीं आया है।
सभी जाने लगे तो वह आदमी चीखा।
- ऐसा नहीं हो सकता। तुम सब साले अपना काम कर लिए तो घर चल दिए। यहां यह मुझे भाषण देती रही और तुम सब... मैं बिना इसके साथ ... नहीं जाऊंगा।
किसी तरह लोगों ने उसे समझाया तब जाकर वह माना।
एक-एक करके सभी अपने घर चले गये।
अनु ने भी अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। वह सोच रही थी कि आज तो बच गई, लेकिन ऐसे कितने दिन बच पाएगी? किस आदमी से शादी कर ली। उसका दिमाग यही सोच रहा था कि कैसे इस घर से भागूं?
भागने की युक्ति सोचने में ही दो तीन घंटे निकल गए। इसके बाद वह कमरे से निकली तो पूरे घर में अंधेरा छाया था। बाहर लाॉबी में धीमी रोशनी वाले बल्ब जल रहे थे। वह पहली मंजिल से नीचे आ गई। यहां पार्टी के अवशेष बिखरे पड़े थे। कहीं बोतल लुढ़की थी तो कहीं खाने-पीने की चीजों के पत्तल पड़े थे। कुछ कमरों के दरवाजे खुले थे। कुछ अधखुले तो कुछ बंद थे। नीचे सात कमरे थे। हॉल में रखे सोफे पर विक्रम लेटा था। उसे देखते ही अनु घबरा गई। साला यहां लेटा पड़ा है। इसे शक है कि मैं भागने की फिराक में हूं। जग रहा होगा। यही सोचती वह उसके करीब आ गई। उसने गौर से देखा। विक्रम के हाव-भाव से लगा कि वह सो रहा है। उसे थोड़ी तसल्ली हुई। वह दबे पांव दरवाजे की तरफ बढ़ी। एक कदम दरवाजे की तरफ जाती तो पलट कर पीछे जरूर देख लेती। जैसे-तैसे मुख्य गेट पर पहुंची तो वहां ताला लटक रहा था। अब क्या होगा? उसके दिमाग में यह सवाल कौंध गया। उसने दीवार पर नजर दौड़ाई। वह ऊंची थीं। उसके ऊपर नुकीले लोहे के सरीये लगे थे। उनको पार करने की तो प्रोफेशनल चोर भी नहीं सोच सकते थे, अनु की क्या बिसात। 
- बाहर जाना है बिटिया? अनु इधर-उधर देखती और युक्ति सोच ही रही थी कि राम किशुन प्रकट हो गये।
- हां अंकल।
- मुझे पता था कि आप इस घर से जाना चाहती हैं।
- आपको पता था?
- हां, बड़े लोग सोचते हैं कि उनके घर के नौकर मूर्ख होते हैं। वे कुछ समझते ही नहीं। लेकिन बिटिया, इस उम्र में बहुत कुछ देखा है। हम भी जानते हैं लेकिन मजबूरी में देखकर भी नहीं देखते। जुबान होते हुए भी नहीं खोलते। कान होते हुए भी नहीं सुनते।
- अंकल बात करने का समय नहीं है।
- जानता हूं बिटिया। मैं गेट खोल देता हूं आप चली जाओ लेकिन इसके बाद मेरा क्या होगा? साहब ने कहा है कि दरवाजा नहीं खोलना है। यदि कोई खुलवाये तो उन्हें बताएं।
राम किशुन की बात सुनकर अनु एक पल के लिए रुकी फिर बोली कि आप भी मेरे साथ चलो।
- लेकिन।
- देखो, अंकल इस समय लेकिन के लिए समय नहीं है। जो होगा देखा जाएगा। फिलहाल हम यहां से भागते हैं।
राम किशुन ने गेट का ताला खोला। पहले अनु बाहर निकली फिर राम किशुन। बाहर एक कार खड़ी थी। अनु ने उसकी चाबी पहले ही ले ली थी। जल्दी से स्टार्ट किया और भाग खड़ी हुई।
घर आकर अपने मम्मी-डैडी को सारी बात बताई। उन्होंने उसका बिक्रम से तलाक दिलवा दिया। हालांकि बिक्रम जल्दी तैयार नहीं हो रहा था लेकिन रमेश के रसूख के आगे उसकी एक न चली। 
- बाप रे, बड़ी मुश्किल से जान बची। अनु ने कहा तो सामने बैठा अमर चौंक गया।
- किसकी? किससे जान बची? अमर पूछ बैठा।
- किसी से नहीं। अनु ने झेंपते हुए कहा। मैंने कुछ कहा क्या?
- नहीं आपने कुछ नहीं कहा। आप तो बड़ी देर से चुप हैं। पता नहीं किस दुनिया में हैं। दो बार वेटर आया। मैंने उसे इशारे से मना किया कि मैडम योगा कर रही हैं उन्हें डिस्टर्व न करो। हां, दो बोतल ठंडा जरूर मंगवा लिया। मजे की बात तो यह है कि समय-समय पर आप ठंडा पीती रहीं। यहां बैठी भी रहीं फिर भी यहां नहीं रहीं। कहां खो गईं थीं?
- अतीत की एक घटना में खो गई थी।
- इसका अंदाजा तो मैंने लगा लिया था लेकिन यह अतीत सुखद नहीं था?
- आपको कैसे पता?
- जब आप अपने अतीत को फिर से जी रहीं थीं तो मैं यहां बैठा आपका चेहरा देख रहा था। उस समय चेहरे के भाव बता रहे थे कि अतीत में आपने बहुत कष्ट सहे हैं।
- हां, अतीत में कुछ ऐसे दर्द मिले हैं, जिन्हें चाहकर भी नहीं भूल सकती। जब जब भूलने की कोशिश करती हूं वह वर्तमान बनकर सामने खड़ा हो जाता है।
अनु ने पूरी बात अमर को बिस्तार से बता दी। जानकर अमर को आश्चर्य हुआ। उसके मुंह से केवल इतना ही निकला कि ऐसे भी लोग हैं। फिर वह थोड़ी देर चुप रहा। अनु भी खामोश रही। संवाद को आगे अमर ने बढ़ाया।
- अतीत अच्छा हो या बुरा भूला नहीं जा सकता। हम उससे कुछ सबक लेकर वर्तमान में वैसे फैसले लेने से बच सकते हैं।
- सही कह रहे हैं।
- अब चलेें?
- हां, काफी देर हो गई है। अनु ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर डालते हुए कहा। लो अब तो शो भी छूट गया। आप भी कमाल के आदमी हैं। इतनी देर तक बैठे रह गये और कुछ बोले भी नहीं। मैं अभी और ऐसे ही खोई रहती तो? आपको मुझे अतीत से वर्तमान में लाना चाहिए था।
- मैं ये पाप क्याों करता?
- इतनी देर आप क्या करते रहे?
- आपको देखता रहा? अमर के जवाब से अनु शरमा गई।
- लोग क्या सोचते होंगे?
- लोगों के पास समय कहां है? यहां आने वाले तो सभी अपनी दुनिया में खोये हैं। कौन क्या कर रहा है? इससे किसे मतलब है? बगल में ही कोई मर भी जाए तो शायद ही इन्हें पता चले। दरअसल, जब आप सोच रहीं थीं तो मैं यही सब देख रहा था।
- अभी तो आप ने कुछ और ही कहा था?
- वह भी सही है और यह भी।
- कोई मुझसे भी सुंदर दिखी?
- तन से तो आप से सुंदर कोई नहीं दिखी।
- और मन से?
- वह देखने से पता नहीं चलता। बाहर से सुंदर दिखने वाले मन से इतने कुरूप होते हैं कि जानने के बाद उनके साथ एक क्षण भी नहीं रहा जा सकता। यह दुनिया ऐसे लोगाें से भरी पड़ी है।
- तो आपकी इस कसौटी पर मैं कितनी खरी उतरी?
- मेरी कोई कसौटी नहीं है। आदमी के व्यवहार से स्वतः ही पता चल जाता है। रही बात आपकी तो अभी मैं कह सकता हूं कि आपकी सुंदरता संपूर्णता में है। इसमें दाग-धब्बे नहीं हैं, लेकिन आदमी में कई परतें होतीं हैं। बिल्कुल प्याज की तरह आदमी का भी चरित्र हाेता है। एक एक करके खुलता है। वह चाहे आप हों या मैं। वैसे भी इनसान गलतियों का पुतला होता है, लेकिन उसमें विवेक होता है। एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए किसी भी इनसान को सतत प्रयास करते रहना चाहिए। तभी उसकी सुंदरता में निखार आता है।
दोनों रेस्टोरेंट से बाहर आ गये। अमर ने आसमान की तरफ देखा। चांद निकला था,  लेकिन उसकी रोशनी धरती पर दिखाई नहीं दे रही थी। यहां पर तो संगमरमर के पत्थर का सफेद और काला फर्श बिजली की दूधिया रोशनी में नहाया था। लोग आ-जा रहे थे। किसी को भी इस बात की फिक्र शायद ही थी कि आसामान में चांद निकला है।
अमर ने सोचा आदमी प्रकृति से कितना विरक्त हो गया है। उसे अपनी कृत्रिमता में ही मजा आ रहा है। उसे अपने गांव की याद आई। चांदनी  रात में घर के बाहर चारपाई डाल कर लेटना और चांद को निहारना। बचपन में दादी से किस्से सुनना। चांद के धब्बों के बारे में दादी कहती थीं कि वहां एक बुढ़िया बैठी चरखा कात रही है। उसी की परछाई हमें दिखाई देती है। हम लोग गौर से देखते तो लगता कि वाकई कोई बुढ़िया चरखा कात रही है। और अब पता चला है कि चांद पर तो पानी है। आम आदमी को चांद को इस सौंदर्य में बेशक रुचि नहीं है। लेकिन वैज्ञानिक चांद पर बस्ती बसाने पर तुले हैं। कई लोग पहले ही चांद पर जमीन के टुकड़े बेच रहे थे, अब तो सभी कहेंगे की ये चांद मेरा है। वैज्ञानिकों ने चांद पर पानी खोज कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। लगता है अगला वर्ल्ड वार चांद के लिए होगा। दुनिया के ताकतवर देश उसे अपना उपनिवेश बनाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे में पानी की खोज एक उपलब्धि है या युद्ध की पूर्वपीठिका?
- अब आप कहां खो गये? अनु ने कहा तो अमर ने झटके से सामने देखा। वहां उसे देखती अनु खड़ी थी। अमर ने अनु को देखा और मुस्कुरा दिया।
- चांद को देखो। उसने अनु से कहा। अनु ने चांद को देखा और फिर अमर को देखने लगी।
- क्यों कुछ एहसास हुआ?
- हां, चांद में मुझे आपका चेहरा नजर आया?
- मैं ये तो नहीं कह सकता कि यह अच्छा है, क्योंकि यदि ऐसा है तो कभी यह चांद आपको आग का गोला नजर आ सकता है। फिर आपको इससे विरक्ति हो जाएगी। चांदनी रात की कशिश को बर्दाशत करना मुश्किल होता है। आपने जो कहा उससे तो यही लगता है कि आप एक गंभीर संकट की ओर अग्रसर हैं। बेहतर होगा कि आप सावधान हो जाएं। वैसे भी वैज्ञानिकों ने चांद पर पानी खोज लिया। चांद को लेकर कभी भी युद्ध छिड़ सकता है। लड़कियां यदि उसमें लड़कों का चेहरा देखने लगी तो गजब ही हो जाएगा।
- अरे जनाब आप तो सीरियस हो गये। ऐसे क्यों घबरा गये। मैंने अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं। शादी का प्रस्ताव नहीं रखा।
- ऐसा कहती तो इसका उत्तर हां और ना हो सकता था, लेकिन आपने जो कहा वह एक खतरे का संकेत है।
- रिलेक्स, रिलेक्स। मुझे चांद में कुछ नहीं दिखा। केवल चांद दिखा।
- यह तो और भी चिंता की बात है।
- क्यों?
- क्योंकि इस उम्र में चांद में केवल चांद नहीं दिखना चाहिए। अमर ने चुहल की।
- कमाल है यार। कभी कुछ कहते हो कभी कुछ। कोई स्टैंड भी है आपका? अनु ने मुस्कुराते हुए कहा।
 - हां, है न। 
- तो चांद में क्या दिख रहा है?
- दादी अम्मां का चेहरा।
- लेकिन मुझे तो उमसें तुम्हारी दादी के पोते का चेहरा दिख रहा है।
- बहुत गड़बड़ है। इस उम्र में इतनी दूर तक देखना।
- अब है तो है। मैं क्या कर सकती हूं? कई बार कुछ चीजें ऐसी हो जाती हैं, जिन पर आदमी का वश नहीं चलता। आजकल मेरे साथ ऐसा ही हो रहा है और इसके लिए...
- मैं दोषी हूं...? अनु ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया तो अमर ने उसे पूरा करते हुए कहा।
- मैंने तो ऐसा नहीं कहा।
- कहने का मतलब तो यही था?
- आपको ऐसा लगा तो ठीक है। वैसे घर कब जा रहे हो?
- अनु को लगा कि बात बदलना ही उचित रहेगा।
- दो दिन बाद।
- इतनी जल्दी? यहां का काम हो गया?
- हां, जिसके लिए आया था वह तो हो गया। अब तो यार दोस्तों से मिलना है।
- यहीं नौकरी क्यों नहीं कर लेते?
- क्या कह रही हो मैडम। इस मंदी में नौकरी? मीडिया वाले छंटनी कर रहे हैं।
- जरूरी है कि मीडिया में ही काम करो?
- नहीं, लेकिन मैं और कुछ कर भी नहीं सकता। आपको तो मालूम ही है कि आजकल प्रोफेशनल युवाओं की प्रोफेशनल डिग्री की तरह मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं तो एमए हूं वह भी हिंदी साहित्य में। ऐसा व्यक्ति आज के जमाने में फिट नहीं है। अब तो एमबीए, एमसीए, एमएससी, बीबीए, बीटेक, आईटी पता नहीं क्या-क्या डिग्रियां लेकर लोग घूम रहे हैं। ऐसे लोगों के सामने मेरी क्या बिसात?
- आपको नहीं लगता आपको भी ऐसी ही पढ़ाई करनी चाहिए थी।
- लगता है, क्यों नहीं लगता। लेकिन एक तो मैं देहती आदमी हूं। दूसरे उस समय ऐसी डिग्रियां प्रचलन में नहीं थीं। यह तो देश में उदारीकरण के बाद ऐसी डिग्रियों की बाढ़ आ गई है। पहले शिक्षा के विद्यालय हुआ करते थे आज धन कमाने के लिए इंटीट्यूट खुल गए हैं। आज की शिक्षा प्रोफेशनल पैदा कर रही है। जिसे श्रमिक कहा जाए तो अधिक उपयुक्त होगा। शिक्षा ज्ञान की वस्तु नहीं रही। शिक्षा लोगों को किसी एक काम के कथ‌ितताौर पर याोग्‍य बना रही है। परिणाम स्वरूप आदमी इंसान नहीं बन पा रहा है। इंसानियत, मानवता, सामाजिकता, संवेदनशीलता से उसका नाता खत्म होता जा रहा है। लाोगाों में कमीनगी बढ़ती जा रही है।
कहा जा रहा है कि यह प्रतिस्पर्धा का युग है। लेकिन क्या आप जानती हैं? इस देश के बच्चों की आधी आबादी कुपोषित है। कुपोषित लोगों का खाये-पिये-अघाये लोगों से कैसा मुकाबला? आपकों नहीं लगता कि यहां शेर का मुकाबला बकरी से कराया जा रहा है। ऐसे बेमेल मुकाबले में कौन जीतता है? मैं भी तो कुपोषित क्लास का हूं। ऐसे प्रोफेशनल कोर्सों के लिए पैसे कहां से लाता?
अमर को याद आया। सावन का महिना था। सावें की फसल लगभग पक कर तैयार थी। लेकिन पिता ने उस खेत को रेहन पर रख दिया। पकी फसल को रेहन पर लेने वाला काट ले गया। पिता को कुछ पैसे मिले थे। जिससे उन्होंने कुछ दिन के लिए परिवार के भोजन की व्यवस्था की थी। उसी में से कुछ पैसे लेकर उसका बड़ा भाई नौकरी की तलाश में किसी शहर चला गया था। शहर में जिस परिचित के पास गया था उसने उसे देखते ही नसीहत दी थी कि सवन चिरैया न घर छोड़े न बंजारा वन को जाए...।
अमर ने यह बात अनु को बताई तो वह चुप हो गई। अमर के प्रति उसकी चाहत और बढ़ गई। उसने खुद से कहा कि कुछ भी हो आदमी है ईमानदार। ऐसे लोग आजकल कहां मिलते हैं।
- देसी ब्वाय कह कर अनु मुस्कुराई तो अमर उसका मतलब समझ गया। उसे याद आया कि कल ही तो वह बस में यात्रा कर रहा था तो उसके बगल में एक लड़की आ कर बैठी। काले ड्रेस में थी। जींस का पैंट और टाइट टी-शर्ट। आंखों पर काला चश्मा। हाथ में महंगा मोबाइल था। पीठ पर बैग टांग रखी थी। उसके बस में प्रवेश करते ही बस में खामोशी सी छा गई और अधिकतर आंखें उसे देखने लगीं...।
वह किसी प्रोफेशनल कोर्स में इंट्रेस देने के लिए किताब लिए थी। लड़की पहले तो अमर से दूर बैठी लेकिन बस में जैस-जैसे भीड़ बढ़ी वह अमर से सट गई। अमर चाह कर भी उसे नहीं देख पा रहा था, क्योंकि उसे देखने के लिए उसकी तरफ घूमना पड़ता। यह अमर के व्यक्तित्व के खिलाफ था। लड़की जब उतरने लगी तो अपने बैग को पीठ पर टांग लिया। अब वह अमर के बिल्कुल सामने थी। बैग पर लिखा था देसी गर्ल। आइ एम माडर्न जनरेशन गर्ल। और भी कुछ लिखा था जो अमर नहीं पढ़ पाया। बस रुक गई तो वह बस से उतर गई। उसके उतर जाने के बाद अमर को ध्यान आया कि वह भी उतर जाता तो लड़की से पूछता कि इसका मतलब क्या है? लेकिन जब तक वह यह सोच पाता तब तक बस ने गति पकड़ ली थी। और वह सोचता ही रहा कि लड़की के पीठ पर टंगे बैग पर लिखी इबारत का क्या मतलब है?
- क्या सोचने लगे देसी ब्वाय?
- देसी गर्ल के बारे में सोच रहा था। अमर ने जवाब दिया और बस वाली लड़की के बारे में अनु को बताया।
- हां, मैंने भी कुछ लड़कियों को देखा है। दरअसल, एक फिल्म आई थी उसके एक गाने में इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है। उसी का असर है।
- देसी गर्ल तो कहीं से भी देसी नहीं लग रही थी।
- देसी ब्याय ही कहां देसी लग रहा है। अनु ने मुस्कुराते हुए कहा।
- आप मजाक कर रही हैं। हकीकत तो यह है कि सामने यह जो मॉल दिख रहा है। अभी-अभी हम जिस रेस्टोरेंट से निकले हैं वहां जाने की मेरी हिम्मत नहीं होती। एक अनजाना भय मन-मस्तिष्क पर छा जाता है कि यह जगह मेरे लिए नहीं है। पता नहीं कौन बेइज्जत कर दे। कह दे कि अपनी औकात देखो। जहां काले शीशे लगे हों वहां जाने में पसीना छूट जाता है। मेरी कोशिश रहती है कि ऐसे स्थानों पर न जाना पड़े। सच तो यह है कि यह मॉल मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।
- तो क्या आप कभी किसी मॉल में गये ही नहीं?
- अकेले जाने की हिम्मत नहीं होती। बेटों को लेकर जाता हूं। उनके रहने से एक हौंसला रहता है। मैं तो खेत में ही खुद को सहज पाता हूं।
- इतने सालों से शहर में कैसे रह लिए?
- मजबूरी। हमारे खेत हमें बुलाते ही नहीं।
- खेत क्या आदमी है कि तुम्हें बुलाएंगे?
- खेती से गुजारा हो पाता तो शहर क्यों आते? पिताजी चार भाई थे। फिर चार भाइयों को दो-दो, तीन-तीन बेटे हो गये। इस तरह जमीन का एक-एक टुकड़ा बंट गया। अब स्थिति ऐसी है कि यदि सभी गांव में घर बनाने लगें तो उसके लिए भी जमीन कम पड़ जाएगी। ऐसे में जीविका कहां से चलेगी? शहर में रहना हमारी मजबूरी है। हम गांव जा नहीं सकते और शहर में सहज नहीं हो पाते।
हर पल गंवई संस्कार आड़े आ जाते हैं। हां, हमारे बच्चे शहर में सहज हैं। उन्हें शायद ही गांव की याद आती है। वह तो हम परिवार सहित साल में एक बार गांव चले जाते हैं। एक महीने के लिए। इसी से उनमें भी कुछ गांव की संस्कृति बची है। नहीं तो किसी दिन वह पूछते कुआं क्या होता है? बैल कैसे होते हैं? हालांकि, गांवों से भी कुआं और बैल गायब हो गए हैं। पीने के लिए पानी हैंडपम्प लग गये हैं। खेत जोतने के लिए टैªक्टर। ऐसे मंे कुआं और बैल बीती सदी की वस्तुएं हो गये हैं।
- गांव भी तेजी से बदल रहा है। अनु ने पूछा।
- बदलाव एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। परिर्वतन हर जगह होता है और हो रहा है। गांव भी बदल रहा है। पहले गांवों में कच्चे मकान हुआ करते थे। अब वहां भी पक्के मकान बन रहे हैं। गांवों की आधी आबादी पक्के मकानों में रहने लगी है। बिजली भी आ गई है। यह और बात है कि रोज चार-पांच घंटे से अधिक नहीं रहती। शाम को अभी भी दिये या लालटेन से ही काम चलाना पड़ता है।
पढ़ने के लिए अधिकतर बच्चों और युवाओं को लालटेन का ही सहारा लेना पड़ता है। लेकिन जिस तेजी से बाजार फैल रहा है। उससे गांव भी अछूता नहीं है। टीवी के माध्यम से, अखबार और होर्डिंग्स के माध्यम से बाजार गांवों के प्रत्येक घर के आंगन तक पहुंच चुका है। गांव के लोग भी अधिकतर वस्तुओं की खरीदारी ब्रांड के नाम से करने लगे हैं। यही नहीं गांवों से युवा पीढ़ी तो गायब ही हो गई है। अधिकतर बुजुर्ग ही बचे हैं। जो युवा बचे हैं। वे या तो ठीक-ठाक घरों के हैं, या पढ़ रहे हैं या उनका कोई ठिकाना नहीं है शहर में या वह बदमाशी में लग गये हैं।
अमर बोल ही रहा था कि अनु का मोबाइल बज गया। वह जल्दी ही पहुंचती हूं कह कर मोबाइल ऑफ कर देती है। अमर से कहती है कि घर जाना पडे़गा। मम्मी-डैडी आ गये हैं। वैसे भी 11 बज गये हैं। हम लोग कल फिर मिलते हैं। अमर ने भी कहा कि बातों-बातों में समय का ख्याल ही नहीं रहा। अमर अपना मोबाइल देखता है उसमें पंद्रह मिस्ड कालें थीं। देखता है तो अनिल की थीं। दरअसल, रेस्टोरेंट में उसने अपने मोबाइल को साइलेंट पर लगा दिया था इससे उसे कॉल आने का पता ही नहीं चला।
चलते हैं। हमारे भी दोस्त आ गये होंगे। अमर ने अनु से कहा।
दोनों अनु की कार के पास पहुंचते हैं। अनु अमर से घर तक छोड़ने का प्रस्ताव रखती है लेकिन अमर टाल देता है। हालांकि अंदर से उसकी इच्छा थी कि अनु उसे घर तक छोड़ दे लेकिन वह कह नहीं पाया। अनु भी सोचती है कि यदि ऐसा हो तो थोड़ा समय और मिल जाता। लेकिन घर जल्दी जाना था इसलिए अमर को छोडकर चली गई। अमर वहां खड़ा उसे जाते देखता रहा।
- ओमप्रकाश तिवारी

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