कहानी
ओमप्रकाश तिवारी
- अम्मा, यह रास्ते में पड़ा था। बच्चे बोले।
- जो भी रास्ते में पड़ा मिलेगा, तुम सब उसे उठा लाओगे? अम्मा गुस्से में बोलीं।
- इसे चोट लगी है। कौवे ने चोच मार-मार कर घायल कर दिया है। यह भाग नहीं सकता। बेचारा मर जाएगा। बच्चों ने अपने बचाव में तर्क दिया।
- तो मैं क्या करूं?
-अम्मा यह मर जाएगा। अम्मा के नाती ने वकालत की। उसकी दिली इच्छा थी कि अम्मा मान जाएं। अब तक अम्मा भी उसकेपास आ गई थीं। उन्होंने बिल्ली के बच्चे को देखा। घाव गहरा था और खून बह रहा था। अम्मा का दिल पसीज गया। उन्होंने पास खड़ी नातीन से कहा - यहां खड़ी-खड़ी मुंह क्यों देख रही है, जरा सरसों का तेल और हल्दी गरम करके ला।
अम्मा ने बिल्ली के बच्चे को अपने हाथ में ले लिया। जो साड़ी पहनी हुईं थी उसी से बिल्ली के बच्चे का घाव को पोछने लगीं।
-कहां मिला यह? अम्मा ने बच्चों से पूछा।
-जंगल के किनारे, खेत को जाने वाले रास्ते में पड़ा था। एक कौवा इसे चोच मार रहा था।
- तुम लोगों ने मारा नहीं कौवे को? अम्मा ने नाती से कहा।
- कैसे मारता, हमें देखकर तो वह उड़ गया।
- ढेला मारना था हरामी कोे। अम्मा ने गुस्से में कहा।
इस बीच एक बच्चा कटोरी में पानी लेकर आया। अम्मा बिल्ली केबच्चे को पानी पिलाने लगीं। साथ ही कहती भी रहीं कि इसे उठाकर तो लाए हो, लेकिन क्या पी कर जिंदा रहेगा यह? अपने यहां दूध तो है नहीं।
बच्चे जब बिल्ली केबच्चे को उठा कर लाए थे तो अम्मा किसी जरूरी काम से खेत जा रही थीं, लेकिन उसका घाव देखकर वह सब कुछ भूल गईं। उन्होंने बच्चे के घाव पर हल्दी तेल लगाया। उसे पानी पिलाया और जब उन्हें लगा कि वह नहीं मरेगा, तभी खेत को गईं। जाते समय बच्चों को हिदायत देती र्गइं कि इसका ख्याल रखना। कौआ यहां भी आ सकता है। कुत्ता भी इसे मार सकता है। इसलिए इसे किसी चीज से ढक देना। इसे खोजने इसकी मां भी आ सकती है। इसलिए कोई बिल्ली आए तो आने देना।
अम्मा खेत में चली गईं। बच्चे बिल्ली के बच्चे की सेवा में लग गए। कोई उसे पानी पिलाता तो कोई उसकी पीठ सहलाता। कोई घाव में हल्दी-तेल लगाता।
अम्मा जब खेत से लौटीं तो बच्चे उन्हें बताने लगे कि अम्मां बिल्ली का बच्चा अब चलने लगा है। वह जी जाएगा। अम्मा उसके लिए दूध नहीं ले सकती क्या? अम्मा पहले तो चुप रहीं, लेकिन दूध लेने की बात पर उन्हें गुस्सा आ गया।
- रवि को पिलाने के लिए दूध ले नहीं पा रहीं हूं। बिल्ली के बच्चे के लिए दूध खरीदूंगी। रवि अम्मा का एक साल का नाती है। धनाभाव के कारण वे उसके लिए दूध की व्यवस्था नहीं कर पा रहीं थीं। उनकी एक भैंस गर्भवती है। लेकिन फिलहाल वे नाती के लिए दूध की व्यवस्था न होने से व्यथित हैं।
बिल्ली के बच्चे को देखकर अम्मा को एक घटना याद आ गई।
उस दिन अम्मा का छोटा बेटा एक घायल तोते केबच्चे को उठा लाया था। अम्मा ने उसकी सेवा करके उसे स्वस्थ कर दिया। बच्चा होने के कारण वह उड़ने के लायक नहीं था इसलिए अम्मा ने उसे पाल लिया। अम्मा ने तोते को पाल तो लिया, लेकिन उनके पास उसे रखने की समस्या थी। खुला छोड़े दें तो कुत्ते-बिल्ली खा जाएं। बाहर उड़ने के लिए छोड़ दें तो कौए या दूसरे पक्षी मार डालें। चोट ठीक होने तक उन्होंने उसे झौआ-खांची के नीचे ढंककर रखा, लेकिन इस तरह उसे अधिक दिन तक नहीं रखा जा सकता था। वैसे भी आदमियों केबीच रहने के कारण तोते की आदत भी आदमियों में रहने की हो गई थी। वह मिठ्ठू बोलने लगा था।
अम्मा ही नहीं तोते को रखने के लिए पिंजरे की चिंता उनके बेटे को भी थी। अम्मा और उनका छोटो बेटा किसी न किसी बहाने से पिंजरा खरीदने केलिए पैसा बचा रहे थे।
जिस दिन बेटा पिेंजरा लेकर आया अम्मा बहुत खुश हुईं। तोते के बच्चे को पिंजरे में बंद करकेपिंजरे को घर के दरवाजे के सामने टांग दिया। पिंजरा पाकर मिठ्ठू भी बहुत खुश हुआ। अब उसके पास पिंजरे में हमेशा कुछ-न-कुछ खाने-पीने के लिए जरूर रहता। दरवाजे से बाहर कोई निकलता तो उससे बातें जरूर करता। वह घर का अहम सदस्य बन गया। दिन में उसे पिंजरे से बाहर छोड़ दिया जाता तो वह इधर-उधर घूमकर फिर पिंजरे में आ जाता। इससे अम्मा को यकीन हो गया था कि वह कहीं नहीं जाएगा।
उस दिन शाम का धुंधलका होते ही मिठ्ठू तेज-तेज आवाज में बोलने लगा। अम्मा उसके पास गईं और बड़ी देर तक उससे बातें करतीं रहीं। अम्मा को अपने पास देख मिठ्ठू शांत हो गया, लेकिन अम्मा केवहां से हटते ही वह फिर जोर-जोर से बोलने लगा। अम्मा फिर उसके पास आईं तो वह चुप हो गया। अम्मा को लगा कि मिठ्ठू उनके साथ खेल खेल कर रहा है। यह सोचकर वह मुस्कराते हुए वहां से चली गईं।
लेकिन मिठ्ठू तो घबराया हुआ था। उसके घबराने का कारण था दरवाजे के पास चारपाई केनीचे बैठा बिल्ला। जिसकी आंखें हल्के अंधेरे में चमक रही थीं, जिसे अम्मा नहीं देख पा रहीं थीं और मिठ्ठू देख रहा था। मिठ्ठू को यह आशंका सता रही थी कि बिल्ला कहीं आज भी उस पर हमला न कर दे। इसलिए वह अपने पास अम्मा की उपस्थिति चाह रहा था पर इस बार अम्मा ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उन्हें कोई जरूरी काम याद आ गया था।
अम्मा केहटते ही चारपाई के नीचे छिपे बिल्ले ने पिंजरे पर हमला बोल दिया। इससे पिंजरे का दरवाजा खुल गया। उड़ने में अनाड़ी मिठ्ठू जान बचाने के लिए पिंजरे से बाहर निकल आया। उसका बाहर निकलना था कि बिल्ले ने उसकी गर्दन अपने मुंह में दाब ली। मिठ्ठू चीं-चीं करता रहा। जब तक अम्मा और घरवाले दौड़ते बिल्ला घर से निकल पास के जंगल में गायब हो गया। पीछे रह गया घड़ी के पेंडृलम की तरह झूलता तोते का पिंजरा....।
अम्मा का छोटा बेटा लठ्ठ लेकर बिल्ले के पीछे भागा, पर बिल्ला उसके हाथ नहीं आया। थक हार कर बेटा वापस आ गया।
उस दिन अम्मा के घर में मातम छा गया। लगा जैसे परिवार का कोई सदस्य मर गया हो। भोजन बना, अम्मा को छोड़कर सभी ने भारी मन से भोजन किया। अम्मा खाने बैठीं तो खाया नहीं गया और रोने लगीं। वह मुंह जूठा करकेचारपाई पर लेट र्गइं और सारी रात उन्हें नींद नहीं आई। जब भी आंख लगती मिठ्ठू उनके सामने आ जाता।
इस घटना के बाद से अम्मा और उनके छोटे बेटे के दिल में बिल्ली जाति के प्रति नफरत पैदा हो गई। इसके बाद तो उनकी मौजूदगी में कोई बिल्ला या बिल्ली घर में घुसने ही नहीं पाता।
आज एक नन्हें मासूम घायल बिल्ली के बच्चे को देखते ही अम्मा को मिठ्ठू की याद आ गई। इसी की तरह वह भी आया था।
अम्मा ने फैसला लिया कि जब तक बिल्ली की बच्चा चलने-फिरने और अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो जाता, तब तक वह इसी घर में रहेगा। धीरे-धीरे बिल्ली के बच्चे का घाव भर गया और वह चलने-फिरने लगा। अम्मा ने उसके लिए दूध की भी व्यवस्था कर दी।
रात को उसे या तो ढक दिया जाता या कोई आदमी उसे अपने पास लेकर सोता। दिन में उसे खांची या झौआ के नीचे ढक दिया जाता ताकि कुत्ता या बिल्ला उस पर हमला न कर सकें। अम्मा को उम्मीद थी कि उसकी मां एक-न-एक दिन उसे खोजते हुए जरूर आएगी। इसीलिए उन्होंने बच्चों को यह हिदायत दे रखी थी कि बिल्ली आए तो बच्चे के पास जाने देना ताकि वह अपने बच्चे को अपने साथ ले जा सके।
एक दिन शा को अम्मा खेत र्से आइं और आंगन में चारपाई डालकर बैठ र्गइं। यहीं पर उनकी बड़ी बेटी भी बैठी थी, जो आज ही ससुराल से आई थी। अम्मा उसी से बातें कर रही थीं। तभी एक बिल्ली घर में आई। उसे देखते ही अम्मा ने बच्चों को अगाह किया कि देखो बिल्ली आई है, इसे बच्चे के पास जाने देना। यह भी देख लेना कि कहीं यह बिल्ला न हो। बिल्ला हो तो उसे बच्चे के पास जाने मत देना, नहीं तो वह उसे मार डालेगा। इस पर उनकी बेटी ने कहा कि लगती तो बिल्ली ही है। यह लोग अभी चर्चा कर ही रहे थे कि वह उस कमरे में घुस गई, जहां बिल्ली का बच्चा रखा था। अम्मा ने सोचा कि चूंकि वह उस घर में घुसी है इसलिए बिल्ली ही होगी। उन्होंने बच्चों से बिल्ली के बच्चे को खोल देने को कहा। बच्चों ने उनकी आज्ञा का पालन किया। बिल्ली कमरे में घुसने के बाद अंधेरे में छिप गई थी। जब बच्चों ने बिल्ली के बच्चे को खोला तो वह आंगन की तरफ बढ़ने लगा। अभी वह अम्मा की चारपाई तक आया ही था कि बिल्ली के वेश में घुसा जंगली बिल्ले ने उस पर हमला बोल दिया और बच्चे की गर्दन मुंह में दबा कर भाग खड़ा हुआ। बच्चा म्याऊं-म्याऊं करता रह गया।
यह देखकर सभी सकते में आ गए। तत्काल किसी को कुछ नहीं सूझा। जब तक बच्चे बिल्ले का पीछा करते वह घर से निकल कर पास के जंगल में गायब हो चुका था।
निराश अम्मा चारपाई पर धड़ाम से गिर पड़ीं। लेटे-लेटे ही बोलीं कि इसीलिए कह रही थी कि इसे मत पालो। मर जाने दो। आखिर मर ही गया न। इतने दिन तक परेशान होते रहे और वह मुआ एक ही झटके में काम तमाम कर गया। उन्हें बिल्ली के बच्चे के साथ मिठ्ठू की भी याद आ गई और उस रात उन्होंने फिर खाना नहीं खाया।
संपर्क : 61, शक्तिविहार, फेस-1, माजरा, देहरादून।
मोबाइल : ९७५९१८९५५९ 9536901397
ओमप्रकाश तिवारी
अम्मा
----
- अरे नालायकों इसे क्यों उठा लाए? घायल बिल्ली के बच्चे को देखते ही अम्मा चीख पड़ीं।----
- अम्मा, यह रास्ते में पड़ा था। बच्चे बोले।
- जो भी रास्ते में पड़ा मिलेगा, तुम सब उसे उठा लाओगे? अम्मा गुस्से में बोलीं।
- इसे चोट लगी है। कौवे ने चोच मार-मार कर घायल कर दिया है। यह भाग नहीं सकता। बेचारा मर जाएगा। बच्चों ने अपने बचाव में तर्क दिया।
- तो मैं क्या करूं?
-अम्मा यह मर जाएगा। अम्मा के नाती ने वकालत की। उसकी दिली इच्छा थी कि अम्मा मान जाएं। अब तक अम्मा भी उसकेपास आ गई थीं। उन्होंने बिल्ली के बच्चे को देखा। घाव गहरा था और खून बह रहा था। अम्मा का दिल पसीज गया। उन्होंने पास खड़ी नातीन से कहा - यहां खड़ी-खड़ी मुंह क्यों देख रही है, जरा सरसों का तेल और हल्दी गरम करके ला।
अम्मा ने बिल्ली के बच्चे को अपने हाथ में ले लिया। जो साड़ी पहनी हुईं थी उसी से बिल्ली के बच्चे का घाव को पोछने लगीं।
-कहां मिला यह? अम्मा ने बच्चों से पूछा।
-जंगल के किनारे, खेत को जाने वाले रास्ते में पड़ा था। एक कौवा इसे चोच मार रहा था।
- तुम लोगों ने मारा नहीं कौवे को? अम्मा ने नाती से कहा।
- कैसे मारता, हमें देखकर तो वह उड़ गया।
- ढेला मारना था हरामी कोे। अम्मा ने गुस्से में कहा।
इस बीच एक बच्चा कटोरी में पानी लेकर आया। अम्मा बिल्ली केबच्चे को पानी पिलाने लगीं। साथ ही कहती भी रहीं कि इसे उठाकर तो लाए हो, लेकिन क्या पी कर जिंदा रहेगा यह? अपने यहां दूध तो है नहीं।
बच्चे जब बिल्ली केबच्चे को उठा कर लाए थे तो अम्मा किसी जरूरी काम से खेत जा रही थीं, लेकिन उसका घाव देखकर वह सब कुछ भूल गईं। उन्होंने बच्चे के घाव पर हल्दी तेल लगाया। उसे पानी पिलाया और जब उन्हें लगा कि वह नहीं मरेगा, तभी खेत को गईं। जाते समय बच्चों को हिदायत देती र्गइं कि इसका ख्याल रखना। कौआ यहां भी आ सकता है। कुत्ता भी इसे मार सकता है। इसलिए इसे किसी चीज से ढक देना। इसे खोजने इसकी मां भी आ सकती है। इसलिए कोई बिल्ली आए तो आने देना।
अम्मा खेत में चली गईं। बच्चे बिल्ली के बच्चे की सेवा में लग गए। कोई उसे पानी पिलाता तो कोई उसकी पीठ सहलाता। कोई घाव में हल्दी-तेल लगाता।
अम्मा जब खेत से लौटीं तो बच्चे उन्हें बताने लगे कि अम्मां बिल्ली का बच्चा अब चलने लगा है। वह जी जाएगा। अम्मा उसके लिए दूध नहीं ले सकती क्या? अम्मा पहले तो चुप रहीं, लेकिन दूध लेने की बात पर उन्हें गुस्सा आ गया।
- रवि को पिलाने के लिए दूध ले नहीं पा रहीं हूं। बिल्ली के बच्चे के लिए दूध खरीदूंगी। रवि अम्मा का एक साल का नाती है। धनाभाव के कारण वे उसके लिए दूध की व्यवस्था नहीं कर पा रहीं थीं। उनकी एक भैंस गर्भवती है। लेकिन फिलहाल वे नाती के लिए दूध की व्यवस्था न होने से व्यथित हैं।
बिल्ली के बच्चे को देखकर अम्मा को एक घटना याद आ गई।
उस दिन अम्मा का छोटा बेटा एक घायल तोते केबच्चे को उठा लाया था। अम्मा ने उसकी सेवा करके उसे स्वस्थ कर दिया। बच्चा होने के कारण वह उड़ने के लायक नहीं था इसलिए अम्मा ने उसे पाल लिया। अम्मा ने तोते को पाल तो लिया, लेकिन उनके पास उसे रखने की समस्या थी। खुला छोड़े दें तो कुत्ते-बिल्ली खा जाएं। बाहर उड़ने के लिए छोड़ दें तो कौए या दूसरे पक्षी मार डालें। चोट ठीक होने तक उन्होंने उसे झौआ-खांची के नीचे ढंककर रखा, लेकिन इस तरह उसे अधिक दिन तक नहीं रखा जा सकता था। वैसे भी आदमियों केबीच रहने के कारण तोते की आदत भी आदमियों में रहने की हो गई थी। वह मिठ्ठू बोलने लगा था।
अम्मा ही नहीं तोते को रखने के लिए पिंजरे की चिंता उनके बेटे को भी थी। अम्मा और उनका छोटो बेटा किसी न किसी बहाने से पिंजरा खरीदने केलिए पैसा बचा रहे थे।
जिस दिन बेटा पिेंजरा लेकर आया अम्मा बहुत खुश हुईं। तोते के बच्चे को पिंजरे में बंद करकेपिंजरे को घर के दरवाजे के सामने टांग दिया। पिंजरा पाकर मिठ्ठू भी बहुत खुश हुआ। अब उसके पास पिंजरे में हमेशा कुछ-न-कुछ खाने-पीने के लिए जरूर रहता। दरवाजे से बाहर कोई निकलता तो उससे बातें जरूर करता। वह घर का अहम सदस्य बन गया। दिन में उसे पिंजरे से बाहर छोड़ दिया जाता तो वह इधर-उधर घूमकर फिर पिंजरे में आ जाता। इससे अम्मा को यकीन हो गया था कि वह कहीं नहीं जाएगा।
उस दिन शाम का धुंधलका होते ही मिठ्ठू तेज-तेज आवाज में बोलने लगा। अम्मा उसके पास गईं और बड़ी देर तक उससे बातें करतीं रहीं। अम्मा को अपने पास देख मिठ्ठू शांत हो गया, लेकिन अम्मा केवहां से हटते ही वह फिर जोर-जोर से बोलने लगा। अम्मा फिर उसके पास आईं तो वह चुप हो गया। अम्मा को लगा कि मिठ्ठू उनके साथ खेल खेल कर रहा है। यह सोचकर वह मुस्कराते हुए वहां से चली गईं।
लेकिन मिठ्ठू तो घबराया हुआ था। उसके घबराने का कारण था दरवाजे के पास चारपाई केनीचे बैठा बिल्ला। जिसकी आंखें हल्के अंधेरे में चमक रही थीं, जिसे अम्मा नहीं देख पा रहीं थीं और मिठ्ठू देख रहा था। मिठ्ठू को यह आशंका सता रही थी कि बिल्ला कहीं आज भी उस पर हमला न कर दे। इसलिए वह अपने पास अम्मा की उपस्थिति चाह रहा था पर इस बार अम्मा ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उन्हें कोई जरूरी काम याद आ गया था।
अम्मा केहटते ही चारपाई के नीचे छिपे बिल्ले ने पिंजरे पर हमला बोल दिया। इससे पिंजरे का दरवाजा खुल गया। उड़ने में अनाड़ी मिठ्ठू जान बचाने के लिए पिंजरे से बाहर निकल आया। उसका बाहर निकलना था कि बिल्ले ने उसकी गर्दन अपने मुंह में दाब ली। मिठ्ठू चीं-चीं करता रहा। जब तक अम्मा और घरवाले दौड़ते बिल्ला घर से निकल पास के जंगल में गायब हो गया। पीछे रह गया घड़ी के पेंडृलम की तरह झूलता तोते का पिंजरा....।
अम्मा का छोटा बेटा लठ्ठ लेकर बिल्ले के पीछे भागा, पर बिल्ला उसके हाथ नहीं आया। थक हार कर बेटा वापस आ गया।
उस दिन अम्मा के घर में मातम छा गया। लगा जैसे परिवार का कोई सदस्य मर गया हो। भोजन बना, अम्मा को छोड़कर सभी ने भारी मन से भोजन किया। अम्मा खाने बैठीं तो खाया नहीं गया और रोने लगीं। वह मुंह जूठा करकेचारपाई पर लेट र्गइं और सारी रात उन्हें नींद नहीं आई। जब भी आंख लगती मिठ्ठू उनके सामने आ जाता।
इस घटना के बाद से अम्मा और उनके छोटे बेटे के दिल में बिल्ली जाति के प्रति नफरत पैदा हो गई। इसके बाद तो उनकी मौजूदगी में कोई बिल्ला या बिल्ली घर में घुसने ही नहीं पाता।
आज एक नन्हें मासूम घायल बिल्ली के बच्चे को देखते ही अम्मा को मिठ्ठू की याद आ गई। इसी की तरह वह भी आया था।
अम्मा ने फैसला लिया कि जब तक बिल्ली की बच्चा चलने-फिरने और अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो जाता, तब तक वह इसी घर में रहेगा। धीरे-धीरे बिल्ली के बच्चे का घाव भर गया और वह चलने-फिरने लगा। अम्मा ने उसके लिए दूध की भी व्यवस्था कर दी।
रात को उसे या तो ढक दिया जाता या कोई आदमी उसे अपने पास लेकर सोता। दिन में उसे खांची या झौआ के नीचे ढक दिया जाता ताकि कुत्ता या बिल्ला उस पर हमला न कर सकें। अम्मा को उम्मीद थी कि उसकी मां एक-न-एक दिन उसे खोजते हुए जरूर आएगी। इसीलिए उन्होंने बच्चों को यह हिदायत दे रखी थी कि बिल्ली आए तो बच्चे के पास जाने देना ताकि वह अपने बच्चे को अपने साथ ले जा सके।
एक दिन शा को अम्मा खेत र्से आइं और आंगन में चारपाई डालकर बैठ र्गइं। यहीं पर उनकी बड़ी बेटी भी बैठी थी, जो आज ही ससुराल से आई थी। अम्मा उसी से बातें कर रही थीं। तभी एक बिल्ली घर में आई। उसे देखते ही अम्मा ने बच्चों को अगाह किया कि देखो बिल्ली आई है, इसे बच्चे के पास जाने देना। यह भी देख लेना कि कहीं यह बिल्ला न हो। बिल्ला हो तो उसे बच्चे के पास जाने मत देना, नहीं तो वह उसे मार डालेगा। इस पर उनकी बेटी ने कहा कि लगती तो बिल्ली ही है। यह लोग अभी चर्चा कर ही रहे थे कि वह उस कमरे में घुस गई, जहां बिल्ली का बच्चा रखा था। अम्मा ने सोचा कि चूंकि वह उस घर में घुसी है इसलिए बिल्ली ही होगी। उन्होंने बच्चों से बिल्ली के बच्चे को खोल देने को कहा। बच्चों ने उनकी आज्ञा का पालन किया। बिल्ली कमरे में घुसने के बाद अंधेरे में छिप गई थी। जब बच्चों ने बिल्ली के बच्चे को खोला तो वह आंगन की तरफ बढ़ने लगा। अभी वह अम्मा की चारपाई तक आया ही था कि बिल्ली के वेश में घुसा जंगली बिल्ले ने उस पर हमला बोल दिया और बच्चे की गर्दन मुंह में दबा कर भाग खड़ा हुआ। बच्चा म्याऊं-म्याऊं करता रह गया।
यह देखकर सभी सकते में आ गए। तत्काल किसी को कुछ नहीं सूझा। जब तक बच्चे बिल्ले का पीछा करते वह घर से निकल कर पास के जंगल में गायब हो चुका था।
निराश अम्मा चारपाई पर धड़ाम से गिर पड़ीं। लेटे-लेटे ही बोलीं कि इसीलिए कह रही थी कि इसे मत पालो। मर जाने दो। आखिर मर ही गया न। इतने दिन तक परेशान होते रहे और वह मुआ एक ही झटके में काम तमाम कर गया। उन्हें बिल्ली के बच्चे के साथ मिठ्ठू की भी याद आ गई और उस रात उन्होंने फिर खाना नहीं खाया।
संपर्क : 61, शक्तिविहार, फेस-1, माजरा, देहरादून।
मोबाइल : ९७५९१८९५५९ 9536901397
Comments