मेरी मसूरी यात्रा इस पार-उस पार और गगन विचरण की फितरत जिज्ञासु, शंकालु और प्रश्नाकुल बने रहना इंसानी फितरत है। यह हर किसी में कम ज्यादा हो सकती है लेकिन होती हर किसी में है। जिसमें अधिक होती है वह हमेशा समुद्र के उस पार, जमीन के नीचे और गगन विचरण करना चाहता है। आज हम दुनिया को जितना भी जान पाते हैं, हमारे बीच आज जो भी ज्ञान का भंडार है, मानव सभ्यता ने जो विकास किया है, उसमें इंसानी फितरत के इन तीन गुणों-अवगुणों की अहम भूमिका है। अमेरिका और भारत की खोज इसी का परिणाम है। तो पहाड़ोें की रानी के नाम से विख्यात मसूरी भी इसी इंसानी फितरत का नतीजा है। आज जहां मसूरी बसी है और लाखों सैलानी हर साल प्रकृति के नजारे का लुत्फ उठाने पहुंचते हैं, वहां कभी घना जंगल था। बताते हैं कि सहारनपुर से दूरबीन पर दिखने वाली भद्राज मंदिर की चोटी ने गोरों को यहां आने के लिए प्रेरित किया। वर्ष 1814 में ब्रिटिश सर्वेयर जनरल जॉन एंथनी हॉजसन और उनकी टीम के तीन अन्य सदस्यों ने उस समय के गोरखा शासकों से स्वीकृति लेकर कालसी से होते हुए भद्राज पहुंचे थे। उन्हें यह पहाड़ी इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे ...
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Regards
aaj to patarkarita hi bemani lagti hai.
dabaw wahan bhi hain. dabaw yahan bhi hai