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लड़की

कहानी
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लड़की
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- ओमप्रकाश तिवारी

सुबह होते ही घर के मर्द बारातियांे को चाय-नाश्ता कराने में मशगूल हो गए। औरतें उसे तैयार करने में जुट गइंर्। कहने को सभी को उसे विदा करने की खुशी है, लेकिन सभी उदास हैं। वह तो रोए ही जा रही है। पिछले एक हफ्ते से रो रही है फिर भी आंसू हैं कि सूखने का नाम ही नहीं ले रहे। बहनें सोच रही हैं कि इस बेटी को विदा करने के बाद मां-पिता जी बेटियों के भार से मु त हो जाएंगे। बुआ सोच रही हैं कि भैया ने इस बेटी को विदा करके गंगा नहा लिया। मां सोच रही है कि उसके कलेजे का टुकड़ा अपने घर जाकर सुखी रहे। एक अज्ञात भार उतरने का जहां उन्हें संतोष है, वहीं तमाम आशंकाआें का भार उनकी छाती पर बढ़ता जा रहा है। ससुराल वाले उसके साथ पता नहीं कैसा बर्ताव करंेगे? दामाद जी कैसे होंगे? सास कैसी होगी? कहीं दहेज को लेकर बखे़डा न खड़ा कर दें। यह सोचते ही उनकी रूह कांप गई। दहेज के लिए घटी वह तमाम घटनाएं सवान की घटा की तरह मन-मानस पर छा गइंर् और दिमाग की नसें बिजली की तरह गड़गड़ाने लगीं...।
उसकी आठ, दस और बारह साल की भतीजियां भी उदास हैं। वे आज खेल नहीं रही हैं। न ही अपनी बुआ के पास जा रही हैं, योंकि बुआ रो रही है। इस कारण उन्हें भी रोना आ रहा है। वे बुआ को दीदी कहती हैं, योंकि उनका बड़ा भाई जब से बोलना शुरू किया, इस बुआ को दीदी ही कहता आ रहा है। उसी का अनुशरण वे भी कर रही हैं।
- दीदी रो यों रही हैं? सबसे छोटी वाली ने अपनी बड़ी बहन से पूछा।
- अपने घर जा रही हैं न इसलिए । बड़ी बहन के इस उत्तर से छोटी का कौतूहाल और बढ़ गया।
- उनका घर तो यही है, फिर किस घर जा रही हैं? उसके सवाल का जवाब बड़ी बहन की समझ में नहीं आया। जवाब मझली ने दिया।
- अपने दूल्हे के घर जा रहीं हैं।
- दूल्हा या होता है? छोटी ने फिर सवाल दागा। बड़ी फिर सोच में पड़ गई।
- दूल्हे का मतलब पति होता है। मझली ने जवाब दिया।
- पति या होता है? छोटी ने फिर प्रश्न दागा।
- पति का मतलब हसबेंड होता है। बड़ी को छोटी के सवालों से गुस्सा आ गया। - कब से दिमाग खाए जा रही है। तेरी समझ में कुछ नहीं आएगा।
ज्यों-ज्यों लड़की की डोली (कार) में बैठने का समम नजदीक आ रहा था, वह दहाड़े मार कर रोने लगी थी। उसे देखकर ऐसा लगता जैसे कोई कसाई गाय को काटने के लिए ले जा रहा हो...। कभी वह मां से लिपटती तो कभी बहनों से। उसके सामने जो भी पड़ जाता उसके पांव पकड़ लेती और अपना साथ न छु़डाने का निवेदन करती। हर कोई उसे गले लगा लेता। रोता और सांत्वना देता कि यह तो रीति है। या कर सकते हैं। न चाहते हुए भी सभी चाहते कि वह ससुराल जाए।
लड़की को पकड़ कर कार में बिठा दिया गया। इस दौरान उसका विरोध और तीव्र हो गया। उसे लेकर उसकी एक बहन और नाइन कार में बैठी, तब जाकर उसे संभाला जा सका। कार में बैठने के बाद भी वह कोशिश कर रही थी कि वह बाहर आ जाए। उसे लेकर जैसे ही कार आगे बढ़ी कई हाथ एक साथ आगे बढ़े और स्थिर हो गए...।
उसके जाने के बाद घर वालों को घर विरान लगने लगा। द्वार पर खाली चारपाइयां उन पर पड़े बेतरतीब तकिये। खाली कुर्सियां और इधर-उधर बिखरे दोने, पत्तल ओर कुल्हड़ देखकर लगता कि कोई लुटेरा लूटपाट करके भाग गया हो।
लड़की के दोनों भाई कुर्सी पर बैठ गए तो पिता चारपाई पर लेट गए। उनकी शरीर में अथाह पीड़ा उतर आई। लगा किसी ने शरीर का सारा खून निचाे़ड लिया हो। लड़की के चाचा भी एक चारपाई पर पसर गए। सभी थके थे, लेकिन स्वयं को किसी अज्ञात भार से मु त समझ रहे थे...। पिता की यह चौथी और अंतिम बेटी थी। इसलिए बेटी की विदाई की जहां उन्हें पीड़ा थी, वहीं यह सोचकर हल्का महसूस कर रहे थे कि चलो बेटियों के भार से मुि त मिली...।
लड़की के बड़े भाई की चिंता बढ़ गई थी। वह सोच रहा था कि इतना खर्च शादी-ब्याह में होता है तो वह अपनी तीन-तीन बेटियों की शादी कैसे करेगा? प्राइवेट नौकरी आज है कल नहीं। छोटा भाई गौने में आए खर्च को जाे़डने लगा। चाचा की भी दिलचस्पी इसी में थी।
- मैं तो तीस हजार रुपये का कर्जदार हो गया। बड़े ने कहा।
- बीस का तो मैं भी हो गया हंू। छोटे ने कहा।
- इस लड़की ने तो तबाह कर दिया भाई। चाचा ने कहा।
- इतना खर्च करने के बावजूद भी सालों का मुंह सीधा नहीं हुआ। पिता जो अभी तक लेटे हुए थे उठकर बैठते हुए बोले।
- अरे उनका या। उन्हें तो मिल रहा था तो कम ही लगेगा। चाचा ने कहा।
- लड़की सुखी रहे, जो हुआ सो हुआ। पिता को लड़की के भविष्य की चिंता हुई।
- उसे कुछ हुआ तो छोडूंगा नहीं सालों को। छोटे ने दांत पीसते हुए कहा।
- खून मत जला, सब ठीक होगा। चाचा ने छोटे को समझाया।
छोटा अपनी इस बहन को बहुत प्यार करता है। अनजाने में ही उसके दिमाग में एक भय घुस गया है कि उसकी यह बहन ससुराल मेंं सुखी नहीं रहेगी। उसके ससुराल वाले उसे दहेज के लिए परेशान करेंगे। जिंदा जला भी सकते हैं। अपने अवचेतन में व्याप्त इस भय के कारण उसने भरसक प्रयास किया कि उसकी यह बहन पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बन जाए, लोकिन उसके तमाम प्रयासों के बावजूद वह आठवींं से आगे नहीं पढ़ पाई। उसके पढ़ाने के तर्क पर मां-बाप कहते कि लड़की जात है, या करेेगी पढ़कर? कौन सी उसे नाकरी करनी है। उसने अपने मां-बाप को बहुत समझाया पर वह समझने को तैयार ही नहींं हुए।
छोटा घर के अंदर गया तो देखा उसकी तीनों बड़ी बहनें आंगन में बैठी छोटी की तारीफ कर रही हैं।
- काफी मेहनती है बेचारी। कोई भी काम बिना न नकुर के कर देती है। उसके रहते अम्मा-बाबू को काफी राहत थी। अब बड़ी दि कत होगी।
- गाय थी गाय।
- पता नहीं ससुराल मेंं या होगा उसका?
- पता नहीं सास कैसी होगी?
- जेठानी का या स्वाभाव होगा?
- मेरा तो जी धड़क रहा है। पता नहीं ससुराल मेंं कैसा व्यवहार होगा उसके साथ।
- ठीक ही बीतेगी रे। हमारी नेहा कोई ऐसी-वैसी लड़की नहीं है। गुणों की खान है। सभी का दिल जीत लेगी।
बहनें अपनी बातों में मशगूल थीं तभी उनके पास उनकी तीनों भतीजियां आ गइंर्। उन्हें देखकर एक बोली - ये बेचारी ऐसी उदास हैं जैसे इनकी मां ही चली गई।
- मां ही थी इनकी। इनकी मम्मी तो शहर चली जातीं थीं। पीछे तो वही संभाली थी। जैसी देखभाल इनकी उसने की, इनकी मां भी नहीं कर पाती।
छोटा बड़ी देर तक इनकी बातें सुनता रहा। फिर आंगन में पड़ी चारपाई पर लेट गया। बड़ी बहनों की बातें सुनकर वह सोच में पड़ गया कि आज जिसके ससुराल जाने पर यह इतनी उदास हैं, उसी ने जब इस धरती पर जन्म लिया था तो यही बहुत नाराज थीं। उसे डायन कह रही थीं।
वह अतीत के पन्ने पलटने लगा।
तब वह दस साल का रहा होगा। उस दिन वह रात में सो रहा था, लेकिन उसकी नींद अचानक टूट गई। देखा उसकी चारपाई पर बैठी तीनों बहनें किसी को कोस रही हैं।
- रंडी को यही घर मिला था। किसी और घर में पैदा हो जाती। भूखों मरेगी तो पता चलेगा।
- उसका या कसूर है, जब भगवान ही नाराज हों। उसे ही नहींं सूझा कि जिस घर में पहले ही तीन लड़कियां हों, वहां एक को और यों भेजा जाए?
- अम्मा -बाबू की तो किस्मत ही खराब है।
- बेचारे बाबू का तो रोयां-रोयां बिक जाएगा हम लोगों की शादी-गौना करते-करते।
- लड़की होना कितना बड़ा गुनाह है।
- सो तो है।
- हमारे भाइयों की तो किस्मत ही खराब है।
- हमारे लिए बेचारे दर-दर की ठोकरे खाएंगे। मेहनत से जो कमाएंगे वह हमारी शादी-ब्याह में खर्च हो जाएगा।
- दादी मां कहती थीं कि बकरी का चरा सरपत और बेटियांे का चरा घर जल्दी नहीं पनपता।
- यह घर भी नहीं पनपेगा।
- सही कह रही है।
- ये रंडी मरेगी भी तो नहीं।
- मरना होता तो पैदा यों होती। दादी मां कहती थीं कि भाग्यवानों की बेटियां मरती हैं। गरीब की बेटियां नहीं।
- मैं तो इसे कभी गोद नहींं लूंगी।
- मैं तो सोच रही हूं कि उसे गोद मेंं लेकर उसका गला टीप (घोंट) दूं।
-सोच तो मैं भी रहीं हंू, पर ऐसा कर नहींं सकती।
- यों नहीं कर सकती?
- हत्या का पाप लगेगा न? दादी मां कहती थींं कि किसी की हत्या की जाती है तो वह भूत बनता है। भूत बनकर वह मारने वालों से बदला लेता है। यह तो चु़डैल बनेगी। जीना हराम कर देगी।
- हां, यह तो है।
- तो या इसके मरने का कोई उपाय नहीं है?
- है न।
- या?
- यह बीमार पड़े और इसका इलाज ही न करवाया जाए।
- पहले यह बीमार तो पड़े। इलाज तो ऐसे भी नहीं हो पाएगा।
इनकी बातें सुन-सुनकर छोटा तंग हो गया था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह लोग किसके बारे मेंं बातें कर रही हैं।
- तुम सब किसकी बातें कर रही हो? न सो रही हो न सोने दे रही हो। उसने अपनी बहनों से कहा।
- अरे मामा, तुम्हें सोने की पड़ी है। उधर देवी जी आ गई हैं तुम्हारी नींद उड़ाने। बहनों ने कहा तो उसे बात समझ में नहीं आई।
- कैसी देवी जी?
- अब तुम चार बहनों के भाई हो गए हो।
- तो या हुआ? तुम सब इतनी परेशान यों हो? सोओ न।
- हां, तू तो सोएगा ही। जब जागेगा तो पता चलेगा....।
वह सोच ही रहा था कि उसका ध्यान भंग किया उसकी छोटी भतीजी के इस सवाल ने कि दीदी कहां चली गइंर्? जो अपनी एक बुआ से पूछ रही थी।
- अपने घर।
- उनका घर तो यही है।
- यह तो उसका मायका है पगली।
- रेनू कह रही थी कि दीदी अपने दूल्हे के घर गइंर्।
उसकी बात सुनकर सभी बहनें जोर से हंस पड़ीं और एक साथ बोलीं कि अच्छा ऐसा रेनू ने कहा।
- दीदी दूल्हे केयहां यों गइंर्? छोटी के प्रश्न पर सभी असमंजस में पड़ गइंर्।
- जब तू बड़ी हो जाएगी तो खुद ही समझ जाएगी। उनमें से एक ने कहा।
- रेनू कहती है कि बड़ी होने पर मुझे भी दूल्हे के यहां जाना होग?
- सही कहती है।
- मैं तो दूल्हे-उल्हे के यहां नहीं जाती।
- जाना तो पड़ेेगा बच्ची। उनमें से एक ने लंबी सांस लेते हुए कहा।
- नहीं...नहीं... मैं नहीं जाऊं गी। वह पैर पटक कर जोर-जोर से रोने लगी और जमीन पर लोटने लगी।

Comments

L.Goswami said…
antrman tak dahala gayi ye hakikat..kafi sundar likh hai..

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