समय साक्षी ---------- सूर्यालोकित स्वर्गलोक की रंगीनियां उसे भी पसंद हैं लुभाती और ललचाती भी हैं लेकिन प्रभावित नहीं कर पातीं चमकती किरणों की सचाइयों को जनता है वह कहां से मिलती है उनकी आभा को ऑक्सीजन कभी कभी सोचता है वह जाहिल ही क्यों नहीं बना रहा आस्था के समुद्र में डुबकी लगाता किसी का देवालय बनाने किसी का पूजाघर तोड़ने की बहसों और साजिशों में व्यस्त रहता अपने धर्म के लिए आक्रामक रहता दूसरे के धर्म के लिए कुतर्क गढ़ता रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाने के लिए किसी संन्यासी से योग सीखता फिर केंचुए की तरह रेंगते हुए चढ़ जाता स्वर्ग की सीढ़ियां और बन जाता विदूषक कथित सर्वशक्तिमान किसी नरपिशाच का लेकिन नहीं वह तो लिखना चाहता है आज के समय की पंचपरमेश्वर पर लिख नहीं पा रहा अब और ताकतवर हो गए हैं तमाम अलगू चौधरी रेहन पर रखे बैलों का निचोड़ रहे हैं कतरा कतरा न एक अलगू चौधरी हैं न कम है बैलों की संख्या उसे तलाश है किसी पंचपरमेश्वर की जो उसके कथा के चरित्रों के साथ कर सके न्याय वह बार बार सोचता है कथा सम्राट प्रेमचंद होते तो कैसी पंचपरमेश्वर लिखते क्या बा...