इस कहानी को पहले तीन भागों में आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर चुका हूँ । अब आप लोगों की सुविधा के लिए पूरी कहानी एक साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ । मेरी बेचैनी : हालांकि वह सपना था, लेकिन उसे भुला पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है। ऐसा नहीं है कि मैं सपना नहीं देखता। सपना देखता भी हूँ और उन्हें सुबह होते ही या फिर एक-दो दिन में भूल भी जाता हूँ , लेकिन यह सपना मौका पाते ही मेरे दिलो-दिमाग पर हावी हो जाता है। इस सपने की कशिश, इसका मीठा दर्द और गुलाबी एहसास मेरे जेहन में हमेशा बना रहता है। मौका मिलते ही सोचने पर विवश कर देता है कि या इसका संबंध मेरी निजी जिंदगी से है? यह सवाल उठते ही मैं सपने के एक-एक तार को जोडने लगता हूँ । फिर भी ऐसी कोई तस्वीर नहीं बनती, जिससे यह लगे कि सपने का संबंध मेरी निजी जिंदगी से है। यह भी सच है कि कई सपनों का संबंध इंसान के जीवन से होता है। कई बार स्मृतियां, जिन्हें हम अपने चेतन में भूल चुके होते हैं, वे सपने के रूप में हमारी चेतना में शामिल हो जाती हैं। तो या मैं किसी को भूल रहा हूँ ? इतनी लंबी जिंदगी भी तो नहीं है। हो सकता है कि बचपन या किशोर-वय की कोई स्मृति है,...