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विखंडित चेहरे वाला भगवान

पूर्व प्रधानमंत्री की मौत पर चिंतित शि तमान
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एक विकासशील देश के पूर्व प्रधानमंत्री की मौत की खबर सुनकर दुनिया के देशों पर अपनी दादीगीरी की धौंस जमाने वाले देश के राष्ट्रपति की चिंताएं बढ़ गइंर्। उस व त वह सोने जा रहा था, जब उसे यह समाचार मिला कि तरभा देश के पू र्व प्रधानमंत्री वरा का देहांत हो गया। उसकी चिंता का कारण वरा की मौत नहीं, बल्कि अपने देश के पूर्व राष्ट ्रपति का फोन पर दिया यह आदेश था कि वरा को स्वर्ग में स्थान दिलाने की व्यवस्था करो। वह हमारा खास आदमी था। हमने जो कहा उसने किया। आज हमारी नीतियां तरभा सहित तमाम देशों में लागू हो रही हैं तो उसका श्रेय वरा को ही जाता है। मैंने वरा को वचन दिया था कि उसे नरक में नहीं जाने देंगे। वह डरा हुआ था जब मैंने उसे अपनी नीतियां तरभा देश में लागू करने के लिए कहा था। उसका कहना था कि ऐसा करके वह नरक में जाएगा। तब मैंने उसे आश्वस्त किया था कि उसे नरक में नहीं जाने दंेगे।
- यह नरक-स्वर्ग या बला है? कारीमा देश के वर्तमान राष्ट ्रपति शबू ने अपने देश केपूर्व राष्ट ्रपति से कहा।
- जब वरा ने स्वर्ग और नरक की बात कही थी तो मेरी भी समझ में नहीं आया था, लेकिन यह सोचकर आश्वासन दे दिया कि कहीं भी हो हम खोज निकालंेगे। आखिरकार हमसे कौन बच पाया है? जो यह स्वर्ग-नरक बच जाता? वैसे भी हमारे लिए तो शर्म की बात थी कि हम स्वर्ग-नरक को ही नहीं जानते। हमने ठान लिया तो हम जानेंगे ही।
- जाना कैसे आपने?
- चूंकि यह मामला धार्मिक लगता था इसलिए मैंने सबसे पहले तरभा के एक चर्चित धर्मगुरु को पकड़ा। उसने बताया कि उसके धर्म में मान्यता है कि धरती पर अच्छा काम करने वाला स्वर्ग जाता है और बुरा काम कने वाला नरक लोक में। स्वर्ग जाने वाले को सारी सुख-सुविधाएं मुफ्त में बिना काम किये मिलती हैं और नरक में जाने वाले को बहुत सारे कष्ट भोगने पड़ते हैं। नरक का राष्ट ्रपति यमराज है और स्वर्ग का इंद्र है।
- ऐसा भी कोई देश है इस धरती पर?
-ऐसा ही सवाल मंैने भी उस धर्मगुरु से किया था। इस पर वह हंसा था। उसका कहना था कि यह सब बकवास है।
- फिर तुम्हारे धर्म में लोग नरक जाने से डरते यों हैं? वह स्वर्ग ही यों जाना चाहते हैं? मैंने उससे पूछा था।
- यह सब हम धर्मगुरुआें का फैलाया भ्रम है। हम स्वर्ग का लालच देकर और नरक का डर दिखाकर ही जनता को अपने वश में करते हैं। उन पर शासन करते हैं। मेहनत जनता करती है, ऐश हम करते हैं। यह कह कर वह धर्मगुरु मुस्कराया था। उसकी मुस्कान में मुझे साजिश नजर आई। मुझे लगा कि वह सच बताना नहीं चाहता। उसकी बातों पर मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था। मेरे मन में सवाल उठा कि उसकी झूठ पर लोग यकीन यों करेंगे? उस देश में लोग सदियों से ऐसा यकीन करते आ रहे हंै तो जरूर इसमें सचाई होगी। मंैने अपनी खुफियां एजेंसियों को स्वर्ग-नरक की खोज में लगा दिया। एक दिन इन्होंने स्वर्ग और नरक को खोज ही निकाला।
- जैसे मैंने कराइ में रासायनिक हथियार खोज निकाले। शबू ने उत्तसाहित होकर कहा।
- नहीं, यह तो तुम्हारा और तुम्हारी खुफिया एजेंसियों का झूठा प्रचार है। तुम वहां के विशाल तेल भंडार पर कब्जा करना चाहते थे। जिसमें मद्दास रोड़ा बना था। इसलिए उसकी सत्ता को गिराना था। उसकेलिए तुम्हें कोई बहाना चाहिए था। सो तुम्हारी खुफिया एजेंसियों ने वैसा ही किया, जैसा तुम चाहते थे। लेकिन स्वर्ग-नरक है। यह सच है। वरा नरक में नहीं जाएगा। यह भी सच है। हालांकि उसकी सेवा करने के लिए नरक के राष्ट ्रपति ने पूरी व्यवस्था कर ली है। लेकिन अब तुम्हें वरा को स्वर्ग पहुंचाना है। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाओगे तो यह तुम्हारी नहीं, हमारे देश की आज तक की सबसे बड़ी और शर्मनाक पराजय होगी।
ऱ्यदि ऐसा है तो मैं अभी व्यवस्था करता हूं। शबू ने कह तो दिया, लेकिन उसकी चिंता बढ़ गई। वह बेचैन हो गया। उसने अपने सुरक्षा सलाहकार को तत्काल तलब किया। वह पल भर मेंं हाजिर भी हो गया। दोनों ने सलाह-मश्विरा करने के बाद अपनी खुफिया एजेंसी केचीफ को बुलाया। चीफ केसामने जैसे ही शबू ने सारी बात रखी वह मुस्कुराया।
- तुम हंस रहे हो? शबू गुस्से में बोला।
- हंस इसलिए रहा हूं कि जिस काम के लिए आप परेशान हैं, वह हो जाएगा, बल्कि हो गया होगा। मिस्टर वरा को स्वर्ग के कर्मचारी इज्जत से ले जा रहे होंगे।
- ऐसा कैसे हो सकता है?
- ऐसी व्यवस्था मंैने कर दी है।
- बिना मुझसे पूछे?
- आपसे या पूछना? आप भी तो वही करते, सो जो देशहित में था उसे मैंने कर दिया।
- अच्छी बात है, लेकिन कोई काम करने से पहले पूछ लिया करो भाई। आखिरकार मैं राष्ट ्रपति हूं।
- जी, आगे से ध्यान रखेंगे। यह कह कर करीमा देश की खुफिया एजेंसी का चीफ चला गया। उसके बाद शबू का सलाहकार भी चला गया। शबू भी निश्चिंत हो चुका था। वह अपने वेडरूम में सोने चला गया।
धर्मगुरु को यमराज का फोन
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तरभा देश के एक धर्मगुरु स्नान करने केबाद पूजा करने जा रहे थे कि उनका मोबाइल बज उठा। पूजा में बिघ्न उन्हें अच्छा नहीं लगा। मुंह से बेसाख्ता निकला कि ससुरा यह यंत्र व त-बेव त अपना मुंह खोल देता है। अब इसका गला टीपना पड़ेगा। उन्होंने मोबाइल उठाया और उसकी स्क्रीन पर दिख रहे नंबर को देखकर चकरा गए। कहां का नंबर हो सकता है? किसका फोन हो सकता है? यही सोचते हुए फोन को आन करके कान से लगा लिए।
- महाराज आपके होते हुए या हो रहा है! उधर से अवाज आई।
- या हो रहा है?
- आपको पता नहीं है?
-नहीं भाई, मुझे कुछ नहीं मालूम।
- मालूम नहीं है या मुझे बेवकूफ बना रहे हो?
- या बकवास कर रहे हो? कौन हो तुम?
-अच्छा! तो अब मुझे भी नहीं जानते।
-हां, नहीं जानता। कौन हो तुम?
-मैं यमराज हूं। उधर से एक गर्वीली और गंभीर आवाज आई। उत्तर सुनकर धर्मगुरु हंस पड़े। बोले -तू यमराज है? देख साफ-साफ बता, फिल्मी डायलाग मत बोल। तेरे जैसे मेरे पास कई यमराज हंै....।
- जानता हूं, लेकिन मैं असली यमराज हूं। नरक लोक का मालिक।
- मुझे नरक में ले जाना चाहता है?
-अभी तो नहीं, लेकिन अपका भी नंबर आएगा। आपके कर्म भी नरक में जाने वाले ही हैं।
- या बकवास कर रहा है? किस नरक की बात कर रहा है? कहां होता है यह? स्वर्ग-नरक तो हमारी काल्पनिक संरचना हैं। यथार्थ में ऐसा कोई लोक नहीं है। हम धर्मगुरुआें ने समाज पर शासन करने के लिए स्वर्ग-नरक की कल्पना की है। इस लोक के सारे पात्र भी काल्पनिक हैं। फिर तू कहां से आ गया?
ऱ्यह ठीक है कि स्वर्ग-नरक आपकी कल्पना की देने हैं, लेकिन अब यह हकीकत में बदल गया है। कारीमा देश ने इसे मूर्त रूप प्रदान कर दिया है। कारीमा आपके देश की नीतियों में हस्तक्षेप तो करता ही था, अब आपके धर्म मंे भी टांग अड़ाने लगा है। यह आपके लिए ठीक नहीं है।
-तू अपनी बकवास बंद कर और यह बात अच्छी तरह से समझ ले कि कल्पना कभी यथार्थ में नहीं बदलती।
- यह तो ठीक है, लेकिन अब न तो मैं, न ही मेरा लोक काल्पनिक रह गया है। मैं और मेरा लोक एक हकीकत हैं।
- तू अपनी बकवास से बाज नहीं आएगा?
- मैं कोई बकवास नहीं कर रहा। आज आपके देश के पूर्व प्रधानमंत्री वरा की मौत हुई। उनके कर्मों के अनुसार उन्हें नरक में जाना था, लेकिन उन्होंने मरने से पहले ही कारीमा के राष्ट्रपति से यह सुनिश्चित करवा लिया था कि उन्हें नरक में जाने से बचाया जाए। इसलिए आज जब मेरे दूत उन्हें नरक में ला रहे थे तो कारीमा देश के सैनिकों ने हमला कर उन्हें छु़डा लिया और स्वर्ग लोक के लिए चल पड़े।
- फिर किस बात के यमराज हो तुम?
- कारीमा का राष्ट्रपति मुझसे भी बड़ा यमराज है। उसके सैनिकों की इस हरकत के बाद मैंने उससे बात कि तो बोला चुपचाप वही करो जो मैं कहता हूं, नहीं तो तुम्हारा अस्तित्व ही खत्म कर दूंगा। तुम्हारे यहां लोगों को जो यातनाएं दी जाती हैं, वह आमानवीय हैं। यह सब मानवाधिकार का उल्लंघन है। मैं इस आरोप में तुम्हें गिरफ्तार करके जेल में सड़ा दूंगा और तुम्हारे लोक की सत्ता अपने किसी गुलाम के हाथ में दे दूंगा। तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम चुपचाप मेरी बात मान लो, नहीं तो तुम्हारा हश्र भी म ास जैसा कर दूंगा।
-बनते यमराज हो और डर गए? यमराज की बात सुनकर धर्मगुरु के शरीर में सुरसुरी सी होने लगी थी।
- जब आपकी पूरी दुनिया उसके इशारों पर नाच रही है तो मेरी या बिसात? वैसे भी अभी तक तो मैं काल्पनिक लोक का एक पात्र था। आज मेरा वजूद है तो उसकी वजह से। फिर भी मैंने उससे कहा कि तुम भी तो कराइ के सैनिकों के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे हो। कराइ पर झूठ बोलकर हमला किया। अपने स्वार्थ की लिए हर जगह टांग अड़ाते हो। इतना सुनना था कि शबू बिफर पड़ा। बोला कि मैं जो करता हूं वही सही होता है। मैं जिसे सच मानता हूं, वही उचित होता है। तुम कल्पना से यथार्य में मेरी वजह से आए हो। इसको भूलना नहीं। भूल जाओगे तो दुनिया तुम्हें भूल जाएगी।
ऱ्यमराज की बात सुनकर धर्मगुरु सन्न रह गए। उनकी समझ में नहीं आया कि या कहें। उन्होंने हकलाते हुए कहा कि तुम चिंता न करो। मैं देखता हूं। कह कर उन्होंने फोन काट दिया।
यमराज की बात सुनकर धर्मगुरु चिंता में पड़ गए। उन्होंने तो सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो जाएगा। वह पूजा करना भूल गए। उन्होंने सोचा नया भगवान तो पुराने भगवान से भी अधिक शि तशाली है...। अब इसकी पूजा करनी होगी? यदि इसने सचमुच में स्वर्ग और नरक को यथार्थ में ला दिया है तो इससे बढ़ी चिंता और इससे बड़ा भगवान और कौन हो सकता है...?
धर्मगुरु की अंगुलियां मोबाइल पर लिखे अंकों पर दौड़नें लगीं। उन्होंने जल्दी-जल्दी अपने समकक्ष धर्माचार्यों को इसकी जानकारी दी और बैठक बुला ली। सब कुछ तय हो जाने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली।
निर्धारित समय और स्थान पर सभी धर्मगुरु एकात्रित हुए। समस्या पर विचार-विमर्श आरंभ हुआ। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसे हो गया? इसका निराकरण या है?
-इस मामले में हमें उद्योगपतियों से बात करनी चाहिए। वे सरकार पर दबाव बनाकर कारीमा के राष्ट्रपति को रोक सकते हैं। एक धर्मगुरु ने अपनी लंबी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।
ऱ्यह असंभव है। माना कि उद्योगपतियों की हम पर अपार श्रद्धा है लेकिन वह हमारी बात यों मानने लगे? उनकी भी तो कारीमा देश की बहुराष्ट्रीय कंपनियांे से साठ-गांठ है। वे भी तो उनके दबाव में हैं। जो खुद ही दबाव में हो वह किसी की या मदद कर सकता है? और किसी पर या दबाव डालेगा? यह सही है कि पंूजीपति राजनेताआें को चुनाव लड़ने के लिए चंदा देते हैं, लेकिन बदले में सरकार से अपने स्वार्थ के अनुकूल नीतियां बनवाते हैं। आज राजनेता जो फैसले ले रहे हैं, सबमें इनकी सहमति जरूरी होती है। ऐसे में इनसे मदद की उम्मीद करना ही बेकार है। यही नहीं यदि हमने अपने डर को इनके सामने व्य त कर दिया तो यह निडर हो जाएंगे। यदि इन्होंने हमसे डरना छाे़ड दिया तो हमें धन कहां से मिलेगा? अभी यह हमें धन इसलिए देते हैं, योंकि यह हमारे रचे गए झूठ से डरते हैं। इसी का यदि खुलासा हो गया तो यह हमें गुरु तो दूर नौकर भी नहीं रखेंगे। मेरी समझ में हमारा इनकी शरण में जाना उचित नहीं होगा। अपना विचार व्य त करने के बाद दूसरा धर्मगुरु चुप हो गया।
- हमें राजनेताआें से बात करनी चाहिए। एक अन्य धर्मगुरु ने सुझाव दिया।
ऱ्यह भी संभव नहीं है। जो बात उद्योगपतियों पर लागू होती है, वही नेताआें पर भी। वैसे भी यह लोग कारीमा के राष्ट्रपति से पूछे बिना कोई काम नहीं करते। यह तो खुद ही दबाव में हैं। यदि इन्हें वरा वाली बात ज्ञात हो गई तो अनर्थ ही हो जाएगा। इसके बाद तो ये हमारा काम ही लगा देंगे। अभी तो ये हमारी शरण में इसलिए आते हंै, कयोंकि हमसे डरते हैं। हमारे बनाए संसार पर विश्वास करते हैं। हमारे रचे भगवान में इनकी आस्था है। आस्था इसलिए है यांेकि हमारा भगवान शि तशाली है। वह कुछ भी कर सकता है। उसके प्रकोप से भयभीत रहते हैं। जब इन्हें यह ज्ञात हो जाएगा कि हमारे बनाए लोक सच नहीं थे, लेकिन अब उसे किसी और ने सच बना दिया है। यही नहीं उन्हें स्वर्ग में पहंुचाने के लिए नया देवता अवतरित हो गया है तो यह हमें लात मारने में एक सेकेंड की भी देरी नहीं करेंगे।
-फिर उपाय या है?
-मेरे ख्याल से हमें चुप रहना चाहिए। इस मु े पर हम अपनी तरफ से अपनी क्षमतानुसार जो कर सकते हैं, करते रहें। राजनेता, उद्योगपति और आम जनता में धर्म का प्रचार तेज करना होगा। धर्म से जु़डी चमात्कारिक घटनाआें को तेजी से प्रसारित करना होगा। इन्हें बताना होगा कि अधर्मी होते जा रहे हैं। इसका परिणाम यह होगा कि नरम में जाएंगे। जहां इन्हें बहुत यातना सहनी पड़ेगी। इनके बुरे कर्मों के कारण भगवान नाराज हो जाएंगे तो इनका सपना छिन्न-भिन्न हो जाएगा। हम लोगों को कुछ चमत्कार भी करने होंगे। ताकि इनकी आस्था हम पर और हमारे धर्म पर बनी रहे। खास करके उद्योगपतियों और राजनेताआें को भयभीत करके ही हम उनसे अपना मन चाहा काम करवा सकते हैं।
- लेकिन इससे या होगा?
-जब हम उद्योगपतियों और राजनेताआें से यह कहेंगे कि वह जो नीतियां कारीमा देश के दबाव में लागू कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है। उससे जनता को परेशानी हो रही है। समाज में विसंगतियां बढ़ रही हैं। लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। सांस्कृतिक पतन हो रहा है। लोग अराजक होते जा रहे हैं। धर्म पर से आस्था खत्म होती जा रही है। ऐसी स्थिति में पूरी व्यवस्था चरमरा सकती है। जनता व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह कर सकती है। यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा तो ऐसी नीतियों के निर्माताआें को नरक में जाना पड़ेगा। इससे भयभीत होकर नेता कारीमा के राष्ट्रपति पर दबाव बनाएंगे। उनके इस प्रेशर से तंग आकर शबू हमसे बात करेगा। हम उसकी मदद करने के एवज में अपना स्थान स्वर्ग में सुनिश्चित करा लेंगे। इस तरह हमारा काम भी हो जाएगा और किसी को खबर तक नहीं लगेगी।
- लेकिन शबू हमसे बात यों करेगा?
- योंकि वह जानता है कि धार्मिक समस्या का निराकरण धर्मगुरुआें के पास ही है।
सभी धर्मगुरु एकमत हो गए। इसके बाद सभी अपने-अपने आश्रामों के लिए चले गए। निश्चिंत होकर पूजा-पाठ और प्रवचन देने लगे। यही नहीं नरक के भय से मु त होने के बाद इन धर्मगुरुआें ने जमकर मदिरा पान किया और स्वर्ग की जिस मस्ती की कल्पना उन्होंने की थी उसे अपने आश्रमों में साकार कर दिया...। स्वर्ग की अप्सराएं अपने हुस्न से इन्हें मदहोश करने लगीं...। राजनेताआें, नौकरशाहों, उद्योगपतियों और बदमाशों का इनके यहां मजमा लगने लगा। यह लोग भोग-विलास में लिप्त हो गए। यदि इनके खिलाफ कोई अवाज उठती तो इनके पाले बदमाश उनकी हत्या कर देते। राजनेता और नौकरशाह उन्हें कानूनी पचड़ों से बचा लेते...। इस तरह जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा वाली व्यवस्था अपने स्वर्णयुग कमें पहंुच गई....।
स्वर्ग लोक में यातना गृह
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शबू के सैनिक वरा को स्वर्ग लोक में लेकर पहुंचे तो हड़कंप मच गया। स्वर्ग लोक में एक ऐसी आत्मा पहुंची थी जिसके बारे में किसी स्वर्ग लोक कर्मी को जानकारी नहीं थी। इस आत्मा के साथ-साथ सशरीर पहुंचे सैनिक उनके आश्चर्य को और बढ़ा रहे थे। अभी तक स्वर्ग में आने वाली आत्मा को स्वर्ग के देवदूत ससम्मान लाते थे। पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई आत्मा अपने साथ सशरीर आदमी लेकर आई थी।
स्वर्ग के पहरी ने जब द्वार खोलने से मना किया तो शबू के सैनिक जबरन घुस गए। द्वारपालों को खूब मारा-पीटा भी। इसकी खबर मिलते ही स्वर्ग के राजा आग बबूला हो उठा। उनके नियम को अभी तक किसी ने चुनौती नहीं दी थी। आज ऐसी हिमाकत किसने कर दी। वरा को सैनिकों सहित राजा के दरबार में लाया गया।
-कौन हो तुम लोग ? किसे लेकर आए हो? या चाहते हो?
-हम लोग कारीमा देश के सैनिक हैं। तरभा के पूर्व प्रधानमंत्री वरा की आत्मा लेकर आए हैं। हमारे राष्ट्रपति का आदेश है कि वरा अब यहीं रहेंगे।
-लेकिन वरा के लिए स्वर्ग में तो कोई जगह नहीं है। इन्हें नरक में ही जाना होगा।
-वरा यहीं रहेंगे। इनके लिए आपको यहीं जगह बनानी होगी नहीं तो.....।
- नहीं तो या?
- नहीं तो हम आप और आपके इस लोक का अस्तित्व ही खत्म कर देंगे। शायद आपको नहीं पता कि अभी तक आप कल्पना लोक के काल्पनिक राजा थे। मेरे देश के राजा ने आपको और आपके इस वैभव को मूर्त रूप दिया है। आप हमारी बौद्धिक संरचना और संपत्ति हैं।
ऱ्यह आपकी गलतफहमी है महोदय। मेरा अस्तिव मूर्त रूप में पहले से ही था। तुमने कोई संरचना नहीं की है, न ही हम तुम्हें जानते हैं। यदि मैं यह मान भी लूं कि तुमने मुझे और मेरे लोक को सृजित किया है तो भी यह सच है कि मैं या मेरा लोक या मेरी व्यवस्था सदियों पुरानी है।
-हम बहस नहीं करते। सच चाहे जो भी हो, वरा यहीं रहेंगे
ऱ्यदि मैं इनकार कर दूं तो?
-तो हम आपको बर्बाद कर देंगे।
-चूंकि मैं शांति में विश्वास करता हंू और हिंसा में मेरा विश्वास नहीं है इसलिए मेरे पास तुम्हारी तरह न तो सेना है न ही हथियार। सो मैं वरा को रख लेता हूं, लेकिन इन्हें धरती पर किये गए अपने कर्मों की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी।
-वरा यहीं रहेंगे। इसके बाद तुम्हें जो करना हो करो। हमारा काम था इन्हें यहां तक पहुंचाना। आगे तुम जानो और यह वरा। यह कहकर कारीमा के सैनिक चले गए। उनके जाने के बाद वरा को घबराहट होने लगी। उसका दम फूलने लगा।
- इसकी रहने की व्यवस्था यातना गृह में कर दी जाए। राजा ने आदेश दिया तो दो देवदूत वरा को ले जाकर एक कमरे में छोड़ दिए।
कमरे की दीवरें चांदनी की तरह सफेद थीं। उन पर कुछ भी नहीं टंगा था। एक कोने में एक टीवी सेट लगा था। कमरे में एक बेड था। उस पर बिस्तर लगा था। वह लंबी यात्रा के कारण वरा थक गया था। बेड पर आंख बंद करके लेट गया और सोचने लगा कि यह कैसा स्वर्ग लोक है? सुना था यहां तो बहुत अराम होता है? कष्ट होता ही नहीं। फिर इस यातना गृह का या मतलब? वह सोच ही रहा था कि कमरे में केवल अधोवस्त्र पहने एक स्त्री ने प्रवेश किया।
-सो गए या वरा? अपना नाम स्त्री की आवज में सुनकर वरा चौंका। सामने औरत को देखकर बैठ गया।
-थकान के कारण झपकी लग गई थी। वह सकुचाते हुए बोला।
-कैसा लग रहा है? स्त्री ने पूछा।
-ठीक है, लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई की स्वर्ग में यातना गृह का या मतलब?
-धीरे-धीरे सब समझ जाओगे। स्त्री मुस्कुराई और अपने अधोवस्त्रों को उतार कर फेंक दिया। वरा ने आंखें बंद कर लीं।
- या कर रही हो? वरा के मुंह से बरबस ही निकल गया। स्त्री ने वरा के प्रश्न का कोई जवाब न देकर उससे चिपट गई। हाथों से वरा की छाती को सहलाया, होंठों को वरा के होंठों पर रख दिया। कुछ ही पल में वे निढाल होकर अलग हो गए...। स्त्री उठी अपने अधोवस्त्रों को पहना और चली गई, चुपचाप। उसके जाने के बाद फिर एक स्त्री आई। उसने भी वरा के साथ वही किया जो पहली स्त्री कर गई थी। उसके जाने के बाद फिर एक स्त्री आई और उसने भी वही सब किया जो उससे पहले वाली औरतों ने किया था। बाद वाली औरत चुपचाप नहीं गई।
-वरा स्वर्ग लोक अच्छा लग रहा है? स्त्री ने अधोवस्त्रों को पहनते हुए पूछा।
वरा कुछ नहीं बोला। उसकी समझ में ही नहीं आया कि या जवाब दे। इससे पहले कि वह कुछ बोलता युवती ने अपना अगला सवाल दाग दिया।
-ऐसे ही स्वर्ग लोक की कल्पना की थी ना तुमने?
वरा फिर चुप रहा।
-तुमने मुझे पहचाना?
-नहीं।
- मैं तुम्हारे देश की लड़की हूं। हमें यहां इसी काम के लिए लाया गया है। मेरी तरह यहां न जाने कितनी लड़कियां हैं। सब जबरन पकड़कर लाई गई हैं। यहां सबसे यही काम कराया जाता है। किसी के लिए हमारा शरीर याताना दायक है, तो किसी के लिए मनोरंजन का साधन। जब हमारी जवानी ढल जाती है तो हमें जहर देकर मार दिया जाता है। वरा से कुछ बोला नहीं गया। वह चुप रहा।
-ऐसा यों किया वरा तुमने? जिस स्वर्ग को तुमने अपने लिए खरीदा वह नरक से भी बदतर है। तुमने अपने देश के लाखों-करोड़ों लोगों को जीते जी नरक में धकेल दिया। अपने सुख के लिए। तुम्हें या सुख मिला? जानते हो यह हमारा स्वर्ग लोक नहीं है। यह कारीमा देश की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बनाया स्वर्ग लोक है। यहां धरती के देशों के तुम्हारे जैसे लोग आते हैं। उनके साथ ऐसा ही बर्ताव किया जाता है। यह एक चाल है। अभी इस कमरे में जो हुआ, उसकी फिल्म बनाई गई है। उसे यह कंपनी दुनिया भर में बेचेगी और पैसा कमाएगी। यह सुनकर वरा का चेहरा काला पड़ गया। दर्द का समुद्र उसके चेहरे पर हिलोरे लेने लगा। दर्द के सागर की उत्पात मचातीं लहरें उसकी चेतना को झकझोर रही थीं।
लड़की ने कमरे में लगा एक स्वीच दबाया तो टीवी सेट पर जो तस्वीर उभरी उसे देखकर वरा का मुंह खुला रह गया। थोड़ी देर पहले जिन तीन लड़कियों से उसने शारीरिक संबंध बनाए थे उसी की फिल्म चल रही थी। वरा ने माथा पकड़ लिया। -कृपया इसे बंद कर दो।
-चैनल बदलने से कोई फायदा नहीं होगा, योंकि यहां पर अधिकतर ऐसी ही फिल्में दिखाई जाती हैं। आपकी तसल्ली के लिए मैं चैनल बदलती हूं।
लड़की चैनल बदलने लगी, लेकिन सभी चैनलों पर वैसी ही फिल्म चल रही थी। लड़की चैनल पर चैनल बदलती रही। एकाएक उसकी अंगुलियांे ने हरकत करनी बंद कर दी। टीवी स्क्रीन पर जो दृश्य चल रहा था उसे देखकर वह अवाक थी।
-वरा यह देखो। वरा भी देखने लगा। एक गोल मेज के ईद-गिर्द सात लोग सूट-बूट पहने बैठे हैं। उनकी निगाहें उस कमरे में लगे एक टीवी पर टिकी हैं। दूर-दूर तक फैली गंदी बस्तियों को कैमरा अपने दामन में समेट रहा है। उसकी सूक्ष्म निगाह हर एक बस्ती की प्रत्येक वस्तु और गतिविधियांे को टटोल रही है। बस्ती के लोग मैले-कुचैले कपड़ों में इधर-उधर आ-जा रहे हैं। कुछ लोग आपस में लड़ रहे हैं। गंदे-गंदे बच्चे फटे कपड़े पहने मिट्टी में लोट-पोट रहे हैं। बस्ती में ऐसा एक भी आदमी नहीं है जिसे तंदुरुस्त कहा जा सके। बहुत सारे लोग तो बीमार हैं, फिर भी कोई न कोई काम कर रहे हैं। कैमरा दुनिया के तमाम देशों की ऐसी तमाम बस्तियों में घूमता है और फिर अपना रुख बदल लेता है। अब उसकी जद में हजारों नवयुवकों की भीड़ है। सभी नारे लगा रहे हैं। कैमरा पूरी दुनिया में ऐसी भीड़ को ढ़ूंढकर अपने अंदर कैद करता है और दिखाता है।
- मलीन बस्ती वाले तो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, लेकिन यह युवकों की भीड़ हमारे लिए खतरा है। गोल मेज के ईद-गिर्द बैठे उन सातों में से एक ने कहा। यह दृश्य यही लोग देख रहे थे। इसी समस्या पर विचार -विमर्श के लिए यह लोग बैठे थे।
-खतरा हमें इन युवकों से ही नहीं, मलीन बस्ती से भी है। समझदारी इसी में है कि हम इन खतरों को समूल नष्ट कर दें।
-हम इन सब को काम तो दे नहीं सकते। वैसे भी जब कारखानों में कंप्यूटरयुक्त रोबेट लगाए हों तो आदमी के लिए काम कहां बचता है? इस धरती पर ऐसे लोग फालतू हैं। इनका मिट जाना ही ठीक है। इन्हें मार देना चाहिए।
-नहीं, यह हमारी समस्या का निदान नहीं है। यदि हमने इन्हें मार दिया तो हम भी मर जाएंगे। धरती पर यह लोग हैं इसलिए हम हैं, हमारी व्यवस्था है। हमारा साम्राज्य है। इन्हीं से हैं हमारी सुख-सुविधाएं।
-लेकिन यह हमारे खिलाफ हैं। इनका इस्तेमाल हमारे विरोधी कर रहे हैं। इन्हें सबक सिखाना ही होगा।
- हमें इनका इस्तेमाल करना होगा।
- हम इन्हें मौत तो नहीं दे सकते, न ही इनका जीवन सुधार सकते हैं। यदि ऐसा करने लगे तो हमें भारी नुकसान होगा। लेकिन हमें इन्हें काम तो देना ही होगा। हमें अपना चेहरा थोड़ा मानवीय और थोड़ा उदार बनाना होगा। इससे हमारी अलोचना कम होगी और हमारा काम भी बन जाएगा। हमारे विरोधी गोलबंद भी नहीं हो पाएंगेे।
- लेकिन हमें करना या होगा?
- हमें करना यह चाहिए कि कुछ कल्याणकारी योजनाएं चलाएं। समाज कल्याण के लिए बेरोजगारी भत्ता वगैरह दें। कुछ ऐसे करखाने चलाएं जहां इन्हें काम मिल सके।
-इससे या होगा?
-इससे यह इस व्यवस्था से जु़डे रहेंगे। हम इन्हें सपने दिखाएंगे। इन्हें हम बताएंगे कि तुम भी धनी बन सकते हो पर इन्हें बनने नहीं देंगे। सपने कराे़डों लोग देखेंगे पर पूरा किसी एक का ही होगा। लेकिन उसी चक्कर में सभी इस व्यवस्था में जिंदा रहेंगे।
-हंू, समझा! जैसे अभी आप कह रहे थे कि तरभा और नची भविष्य के विकासति देश हैं, लेकिन उन्हें बनने नहीं देंगे।
-आपने बिलकुल सही पकड़ा। दुनिया में शि तशाली तो हमारी बिरादरी ही रहेगी। हमारी खुफिया एजेंसी यह विश्लेषण तरभा और नची के लिए ही नहीं, बल्कि हमारे लिए किया है। हमेंं सावधान करने के लिए। हम इन्हें विकसित देश कभी नहीं बनने देंगे, लेकिन इन्हें इसका एहसास भी नहीं होने देंगे कि हम इनके विकास में बाधा हैं। आखिरकार यह लोग हैं तभी तो हम हैं। हा हा हा।
सभी हंसते हैं - हा हा हा हा हा हा हा ।
- तो हां, हमें धरती के उन लोगों को, जिन्हें अभी हमने स्क्रीन पर देखा अपने लिए उपयोग करना होगा। उन्हें लालच देकर, सपने दिखाकर छोटे-मोटे काम देकर। इस तरह वह जिंदा रहेंगे, लेकिन हमारे लिए।
-मैं इससे सहमत नहीं हूं। ऐसे लोगों को पालना बेवकूफी होगी। ये हमारी तर की में व्यवधान हंै और हमारी सभ्यता पर कलंक।
- लेकिन आप भूल रहे हैं कि यह हमारी जरूरत हैं। सस्ते श्रम के लिए, हमारी सेना के लिए, दवाआें के प्रयोग केलिए हम इनका इस्तेमाल करते हैं। यह नहीं रहेंगे तो हम इन कामों के लिए आदमी कहां से लाएंगे? यह हमारे लिए वस्तु हैं। इनका हमें उपयोग करना है, वस्तु की तरह, लेकिन मानवीय तरीके से। आखिरकार हम भी इंसान हैं।
-टीवी स्क्रीन से सातों महानुभाव गायब हो गाए। लड़की ने उन्हें चैनल बदलकर खोजने की कोशिश की पर नाकाम रही। स्क्रीन पर फिर अश्लील फिल्म चलने लगी। खीज कर उसने टीवी बंद कर दिया।
-देखा आपने? इनकी सोच कितनी घातक और घिनौनी है। आप जैसे सत्ताधारियों को लालच देकर यह लोग पूरी दुनिया में अपनी मनमानी चला रहे हैं। लोग भूख से, प्यास से, गंदगी से, बीमारी से मर रहे हैं, लेकिन इनको किाी की परवाह नहीं है। वैसे तो यह मानवाधिकार के ठेकेदार बनते हैं, लेकिन सब दिखावे के लिए। आज यह लोग अपनी योजना में कामयाब हैं तो आप जैसे लोगों की वजह से। लड़की ने वरा की तरफ गुस्से से देखा।
ऱ्यह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं होंगे। वरा ने कहा।
-होंगे नहीं, हो गए हैं। लड़की ने मुस्कुराकर कहा। उसने टीवी चालू कर दिया।
ऱ्यह देखिए आपके देश की तस्वीर।
टीवी स्क्रीन पर महानगरों का अलीशान इलाका उभरता है। बहुमंजिली शानदार कोठियां, साफ-सुथरी सड़क, उन पर दौड़ती महंगी गाड़ियां, गाड़ियों में महंगे कपड़े पहनकर बैठे लोग। उनके हाथों मेंं कंप्यूटर और कान में मोबाइल फोन लगा है। वह गाड़ियों में भी काम कर रहे हैं। (दृश्य को दिखाते हुए कोई कमेंटरी भी करता चल रहा है) यह लोग हमेशा काम करते दिखते हैं। मौज-मस्ती भी खूब करते हैं। होटल जाते हैं, और एक रात में कई लड़कियां बदलते हैं। लड़कियां जो एक रात के लिए लाखों लेती हैं। होटल वाले इनके इन क्रिया-कलापों की फिल्म बनाते हैं और उसे बेचकर कराे़डों रुपये कमाते हैं। धनबलियों के इन कारनामों को मलीन बस्ती वाले भी देखते हैं और मस्त हो जाते हैं। धनबलियों के इन इलाकों में राजनेता, उद्योगपति, नौकरशाह रहते हैं। इनकेयहां आते हैं धर्मगुरु। सत्ता, पैसा, धर्म और बाहुबल का गठजाे़ड क्रूरता का तां़डव करता है। आम जनता को अपने हाल पर छाे़डकर ये सभी ऐय्याशी में मस्त रहते हैं। धर्मगुरुआें के आश्रामों में बाझ औरतें गर्भवती हो जाती हैं। धर्मगुरु शाम को भगवान की आरती के बाद रंगीन दुनिया में खो जाते हैं, जहां होती हैं कई निर्वस्त्र औरतंे और उन्हें पाठ पढ़ाते धर्मगुरु।
धर्मगुरु पैसों वालों को साक्षात दर्शन देते हैं जबकि गरीबों को आश्रम में लगे टीवी सेट पर। धर्मगुरु के चेलों की नजर आश्रम में आने वाली लड़कियोें, औरतों की चुनरियों पर होती है। जो जंच गई, वह गायब हो जाती है और रात को धर्मगुरु के रंगशाला में मिलती है। निर्वस्त्र धर्मगुरु उन्हें काम केगुण सिखाते हैं फिर उसकी फिल्म बनती है और बिकती है पूरी दुनिया मेें। उससे भी कमाया जाता है पैसा। महानगर के इस इलाके में वे लोग भी रहते हैं जो राजनेताआें और धर्मगुरुआें और पैसे वालों केलिए हत्या, लूटपाट और मारपीट करते हैं। उनका अच्छा-खासा दबदबा है। ऐसे लोगों के गुर्गे मलीन बस्तियों मेंं रहते हैं। इनके आका कभी नहींं पकड़े जाते, जबकि यह जो करते हैं आका के कहने पर करते हैं।
महानगर का यह इलाका मलीन बस्तियों से चारों तरफ से घिरा है। देखकर लगता है जैसे दरिद्रता के समुद्र में संपन्नता के टापू। शहर के प्रत्येक चौराहे पर बेरोजगारों की भीड़। सुबह अपने श्रम को बेचने के लिए चौराहों पर खड़े होते हैं लोग। बहुत सारे लोग इन्हें सपने दिखाते हैं और लूटकर फरार हो जाते हैं। यहां दिनोंदिन संपन्नता बढ़ रही है। उसी गति से असमानता और गरीबी भी बढ़ रही है। कुछ लोग इसकी चिंता करते हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। वे संगठित नहीं हैं। कोशिश करते हैं संगठित होने की, तो उन्हें बिखेर दिया जाता है। सत्ता मानवीय चेहरे की आड़ में कू्रर से क्रूरतम हो गई है। सत्ता प्रमुख बहुत मीठा बोलता है, लेकिन उसका तंत्र ठीक उसके विपरीत काम करता है।
- देखा आपने या दशा हो गई आपके देश की? आप कहते हैं कि उनके मंसूबे कामयाब नहीं होंगे। लड़की ने कहा।
ऱ्यह अपनी कब्र खुद खोद रहे हैं। अधिक दिन ऐसा नहीं चलेगा। इनकी चाल एक दिन तार-तार हो जाएगी। वरा ने जवाब दिया।
- पता नहीं कब ऐसा होगा? कहते हुए लड़की वरा को गले लगा लेती है।
-हम काफी देर से बातें कर रहे हैं। हमारी गतिविधियों पर उनकी निगाह है। हमें अपना काम करना होगा। नहीं तो हम मुसीबत में फंस जाएंगे। लड़की ने दबी जुबान से कहा और वरा को उत्तेजित करने के लिए उसके संवेदनशील अंगों पर अपना कोमल स्पर्श करने लगी।
वे 'काम` में मग्न थे कि टीवी स्क्रीन से धमाके की आवाज सुनाई दी। वह झटके से अलग हो गए। देखा धरती के किसी देश में गरीबों ने विद्रोह कर दिया है। उन्होंने महानगरों के अलीशान कोठियों को तहस-नहस कर सत्ता अपने हाथ में ले ली है....। वरा लड़की की तरफ देखकर मुस्कुराता है।

- ओमप्रकाश तिवारी
मुख्य उपसंपादक
अमर उजाला, जालंधर- २१,
मोबाइल : ०९९१५०२७२०९

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