Skip to main content

कहानी डर के साये में

कहानी

-ओमप्रकाश तिवारी



विजय अपनी सीट पर लेटा एक पुस्तक पढ़ने में ध्यानमग्न था।

- हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान। वह जोर से चीखा। विजय के हाथ से पुस्तक गिरते-गिरते बची। इधर-उधर देखा तो निगाह बोगी के दरवाजे पर खड़े व्यक्ति पर अटक गई। वहां एक भगवाधारी व्यक्ति हाथ में डंडा लिए और माथे पर श्रीराम नाम लिखी पट्टी बांधे खड़ा था।

- सब साले चोर हैं। नाली के कीड़े हैं। पूरे देश को गंदा करके रख दिया है। कहते हुए उसने डंडे से दरवाजे को पीटा तो विजय उठकर बैठ गया। विजय की दिलचस्पी किताब से हटकर उस व्यक्ति में हो गई।

- भगवान राम का मंदिर जरूर बनेगा। हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान, जिंदाबाद-जिंदाबाद। वह लगभग चीख रहा था। उसकी इस हरकत से डिब्बे में बैठे लोगों का ध्यान उसकी तरफ चला गया था। लगभग सभी उसी को देख रहे थे। उसकी हरकतों से विजय आशंकित हो गया। विजय की निगाह अपनी किताब पर पड़ी तो वह और डर गया...। किताब उसकी विचारधारा से मेल नहीं खाती थी। विजय ने सोचा यदि इसे पता चल गया तो...। कुछ भी कर सकता है। हाथ में डंडा है...। पता नहीं और भी कुछ लिए हो...। याद आया गुजरात का गोधरा ट्रेन कांड और उसके बाद की स्थितियां...।

- साले झूठ बोलते हैं। पूरे देश में गंदगी फैला रखी है। मच्छर की तरह फैलते जा रहे हैं। बोगी से बाहर डंडे को लहराते हुए वह बोले जा रहा था। उसके पास खड़े लोग सहमे हुए थे। उसकी हरकतें 'पागल` जैसी लग रही थीं, लेकिन इस किस्म के 'पागलों` का क्या भरोसा? वे अपने 'पागलपन` में कुछ भी कर सकते हैं। विजय सोचकर ही डर गया।

इस बीच वह दरवाजा बंद करके चुपचाप फर्श पर बैठ गया। उसकी देखादेखी कुछ और लोग भी वहीं बैठ गए। विजय ने राहत की सांस ली। हालांकि विजय की आंखों से नींद भाग चुकी थी। अब उसका मन उस पुस्तक को पढ़ने में भी नहीं लग रहा था। उसे डर लग रहा था कि यदि उसने पुस्तक पढ़नी शुरू की और इस आदमी को पता चल गया तो...। एक अज्ञात आतंक उसके मन-मस्तिष्क पर हावी हो गया...। विजय को अतीत की एक घटना याद आने लगी।

कालेज पहुंचते ही पहली सूचना जो मिली वह यह थी कि किसी मुसलमान ने अवध बिहारी चौबे की पालतू नीलगाय को गोली मार दी है। धीरे-धीरे कालेज का माहौल गरमा गया और दो पीरियड भी पढ़ाई नहीं हुई थी कि कालेज के प्रांगण में एक पे़ड में टंगी घंटी किसी ने टन-टना दी...। इसका मतलब था आज की छुट्टी।

क्लास से बाहर निकलते छात्र कह रहे थे कि नीलगाय का मतलब गाय होता है.... गाय हमारी माता है...हम इसकी पूजा करते हैं...उसे एक कटुए ने मांस खाने के लिए मार डाला... उस कटुए को छो़ड़ना नहीं है....हां, नहीं छोड़ना है...।

यह ऐसा समय था जब स्कूलों-कालेजों में भी कई बार साधु-संतों और पंडितों ने गाय की महत्ताा को बताया था...। सत्यनारायण भगवान की कथा हो, तो गाय का दूध ही खोजा जाता...। जिस घर में गाय न हो वह मांग कर, खरीदकर व्यवस्था करता, लेकिन करता जरूर। इसलिए छात्रों का उद्वलित होना स्वाभाविक लग रहा था...।

छात्रों में गुस्सा ही नहीं यह नफरत भी दिख रही थी कि एक मुसलमान ने उनकी पूज्यनीय गाय माता की नस्ल की नीलगाय की हत्या कर दी है...। वह भी मांस खाने के लिए.... यह अपराध है...। कटुए ऐसा क्यों करते हैं...? कभी हमारे आराध्य देव भगवान श्रीराम की जन्मभूमि हड़प लेते हैं..., तो कभी हमारी पूज्यनीय गाय माता को मांस खाने के लिए मार डालते हैं...। इन्हें सबक सिखाना ही होगा...। कई छात्रों ने सार्वजनिक घोषणा कर दी...।

छात्रों की भीड़ कालेज प्रांगण से निकलकर समसुद्दीन की आटा चक्की की तरफ बढ़ने लगी। आगे-आगे बजरंगी और उसके साथी नारे लगाते हुए चल रहे थे। बाजार के दुकानदार फटी आंखों से छात्रों के बढ़ते हुजूम को देख रहे थे। उनकी आंखों में एक ही सवाल था कि क्या हो गया?

अवध बिहारी चौबे के चरित्र से सभी परिचित थे। वह पिछले पांच सालों से बारहवीं में पढ़ रहा है। लोग यह भी कहते कि वह कालेज केवल बदमाशी करने के लिए आता है। उसका नाम भी इस कालेज में नहीं है। वह प्राइवेट पढ़ रहा है। कालेज रोज आता है और हर दिन किसी न किसी से उसकी मारपीट होती है। लगभग ऐसा ही हाल उसके साथियों का भी है। आज ही नहीं, उसने इससे पहले भी कई बार कालेज की घंटी बजाई है। शिक्षक ही नहीं, प्रधानाचार्य तक खड़े देखते रहे गए। उसके पिता किसी हिंदू संगठन के बड़े नेता हैं। वे बड़ी पहुंच वाले हैं। भगवान श्रीराम के भक्त हैं। श्रीराम मंदिर आंदोलन के लिए सक्रिय हैं। जो कहते हैं, वह होकर रहता है...। लोग उन्हें पूजने की हद तक चाहते हैं...।

छात्रों की भीड़ जैसे ही समसुद्दीन की आटा चक्की पर पहुंची तो तोड़फोड़ शुरू हो गई। आटा चक्की पर कोई आदमी नहीं मिला तो भीड़ ने वहां लगे आम-अमरूद, नींबू और केले के पेड़ों को तहस-नहस कर डाला। पेड़ों की एक-एक डाल तो़ड़ डाली। आटा-चक्की तो़ड़ डाली। मोटर को उखाड़ कर फेंक दिया। इसी धमाचौकड़ी में एक छात्र घायल हो गया।

इसे चोट कैसे लगी? कई छात्रों ने एक साथ पूछा। एक छात्र जो उसके साथ था, बताने लगा कि अमरूद की डाल तोड़ते समय उसका हाथ फिसल गया और वह जमीन पर गिर पड़ा। गिरते समय अमरूद की कोई टूटी डाल उसके पेट में घुस गई।

- चुपकर, क्या बकवास करता है। इसे गोली लगी है। चौबे दौ़ड़कर उस लड़के के पास आया और बताने वाले लड़के को डांटते हुए कहा। घायल लड़के के जख्म से खून बह रहा था।

- लेकिन गोली की आवाज तो सुनाई नहीं दी? कइयों ने शंका व्यक्त की तो चौबे ने कहा कि नजदीक से गोली मारी गई है। साइलेंसर लगाकर... इसीलिए सुनाई नहीं दी। मैंने उसे गोली मारते देखा है।

- फिर पकड़ा क्यों नहीं? कइयों ने प्रश्न किया।

- कोशिश की पर वह भाग निकला।

- किधर गया?

- उधर। बजरंगी ने सामने जंगल की तरफ इशारा किया।

- पहले इसे अस्पताल तो ले चलो। किसी ने कहा।

- नहीं, इसे पहले थाने ले चलते हैं। इसकी रिपोर्ट लिखवानी होगी। यह पुलिस केस है। चौबे ने कहा और घायल छात्र को लेकर अपने दो दोस्तों की मदद से उठाकर थाने की तरफ चल पड़ा। वह तांगे पर बैठा जख्मी छात्र को लेकर जा रहा था। पीछे-पीछे छात्रों का हुजूम चल रहा था। देखने वाले हैरान थे। लोगों को जब यह पता चला कि समसुद्दीन ने एक छात्र को गोली मार दी है तो किसी अनहोनी की आशंका से सहम गए...।

एक जोरदार झटके के साथ ट्रेन रुक गई। उसने दरवाजा खोल लिया था। स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक दाढ़ी वाले को देखकर वह चीखा था कि सालों ने देश पर कब्जा कर रखा है। इन्हें देश से खदेड़ना ही होगा। हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान। जिंदाबाद-जिंदाबाद। उसने डंडे को दरवाजे पर पीटते हुए नारा लगाया। विजय उसे देखने लगा। विजय को आश्चर्य हो रहा था कि उसकी इस हरकत से सभी यात्रियों को परेशानी हो रही थी, लेकिन कोई कुछ नहीं बोल रहा था...। इसी बीच ट्रेन फिर चल पड़ी। इसी के साथ चल पड़ी विजय की अतीत की ट्रेन...।

थाने पहुंचने तक घायल लड़का बेहोश हो गया था। दारोगा ने रिपोर्ट लिख ली और घायल छात्र को अस्पताल भिजवा दिया। लेकिन चौबे इससे संतुष्ट नहीं हुआ। वह इस बात पर अड़ गया कि समसुद्दीन को गिरफ्तार किया जाए। इस पर दारोगा भी अड़ गया। उसका कहना था कि रिपोर्ट लिख ली है, गिरफ्तारी भी हो जाएगी। पहले लड़के का उपचार तो हो जाए। उसका बयान लेना जरूरी है।

- उसका बयान लेना क्यों जरूरी है? जब हम कह रहे हैं कि उसे समसुद्दीन ने गोली मारी है, तो मारी है। चौबे ने अपनी जिद के पक्ष में तर्क दिया।

- यह सब तो ठीक है, लेकिन घायल लड़के का बयान जरूरी है।

- तो आप उसे गिरफ्तार नहीं करेंगे?

- मैंने इनकार तो नहीं किया।

- नहीं, आप उसकी तरफदारी कर रहे हैं।

- मैं उसकी तरफदारी क्यों करूंगा?

- क्योंकि आप भी मुसलमान हैं और वह भी।

- आपको गलतफहमी हो गई है।

- गतलफहमी तो आपको हो गई है।

- क्या तुम बता सकते हो कि समसुद्दीन ने उसे गोली क्यों मारी? दारोगा कड़ककर बोला। तुम लोग उसकी चक्की पर क्या करने गए थे?

- उसने मेरी गाय की हत्या की है।

- अच्छा, अब गाय भी मार डाला उसने! जब गाय को मारा तो तुमने उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई? रिपोर्ट लिखवाई नहीं और खुद ही बदला लेने चले गए। ऐसी बदमाशी नहीं चलेगी। दारोगा ने कहा।

- मैं तुझे अच्छी तरह से जानता हूं। तू भी कटुआ है इसलिए एक कटुए की तरफदारी कर रहा है। चौबे सीधा तू-तड़ाक पर आ गया। वह कुर्सी से उठा और जिस झोपड़ी के नीचे दारोगा बैठा था उसमें जाने का प्रयास किया, लेकिन संख्या में कम होने के कारण उसने मूकदर्शक बनना ही बेहतर समझा। इस बीच चौबे एंड पार्टी ने थाने का फोन काट दिया, लेकिन तब तक दारोगा घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक को दे चुका था। बजरंगी के चेलों ने इस बीच आसपास के इंटर कालेजों को भी इसकी सूचना दे दी थी। लिहाजा वहां के छात्र भी कालेज की घंटी टन-टनाकर मैदान में आ डटे थे। इससे थाने के चारों तरफ छात्र ही छात्र नजर आ रहे थे। उनमें से अधिकतर छात्र अपना धर्म ही निबाह रहे थे। कई केवल मजा ले रहे थे। कई अपने घरों को चले गए। कई इस जिज्ञासा में रुक गए कि आगे क्या होता है।

छात्र जब थाने में तो़ड़फोड़ कर रहे थे तो दारोगा ने कई बार गोली चलाने और लाठीचार्ज की धमकी दी, लेकिन छात्रों की संख्या को देखते हुए उसकी हिम्मत नहीं हुई।

चौबे एंड पार्टी थाने पर अपनी जीत का जश्न मना ही रही थी कि पीएसी की दस गाड़ियां आ गईं। उसमें से धड़ाधड़ पीएसी के जवान उतरने लगे। छात्रों की भीड़ ने उनकी तरफ देखा और हंगामा करने में व्यस्त हो गई। चूंकि जवानों की संख्या अब भी कम थी इसलिए वे कुछ करने की बजाए केवल छात्रों की हरकतों को देखते रहे। दस मिनट बाद ही पीएसी की दस गाड़ियां और आ गईं और उनके साथ ही आ गए एसपी।

एक भद्दी गाली के साथ उसने फिर डिब्बे के दरवाजे पर डंडा मारा था। जिसकी आवाज से विजय चौंक गया। पलट कर देखा तो वह गेट खोलकर इधर-उधर के छड़ को पकड़े खड़ा था और जो मन में आ रहा था बोले जा रहा था। इतना साफ था कि वह एक समुदाय विशेष के प्रति अपनी घृणा व्यक्त कर रहा था। - सनकी कहीं का। विजय ने मन ही मन कहा औ फिर करवट बदलकर लेट गया। नींद तो उसे आनी नहीं थी इसलिए वह फिर अतीत के सूत्रों को जोड़ने लगा।

एसपी ने जीप के नीचे पैर रखा ही था कि किसी ने उन्हें गाली दे दी, लेकिन एसपी ने उसे सुना-अनसुना कर दिया। पहले छात्रों की भीड़ की तरफ देखा, फिर जवानों की तरफ और चुपचाप थाने के अंदर चला गया। जैसे ही एसपी दारोगा के पास पहुंचा छात्रों की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया। आदेश मिलते ही पुलिस हरकत में आ गई और छात्रों की धरपकड़ शुरू हो गई। गिरफ्तारी के भय से आतंकित छात्रों ने इंट-पत्थरों को अपना हथियार बना लिया और लगे पुलिस जवानों पर बरसाने। ऐसा होते ही पुलिस वाले पीछे हटने लगे तो एसपी ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। फिर क्या था, पुलिस वाले आंख बंद करके लगे लाठियां बरसाने। अंधाधुंध पिटाई से भयभीत छात्रों ने भागना शुरू कर दिया। साथ ही वे इंर्ट और पत्थर भी फेंकते रहे। इस प्रक्रिया में कभी पुलिस वाले छात्रों को खदेड़ते तो कभी छात्र पुलिस वालों को रपट लेते। यह खेल लगभग दो घंटे तक चलता रहा। इस बीच जब छात्र पुलिस वालों पर हावी होने लगे तो एसपी ने हवा में फायरिंग कर दी। गोली चलने की आवाज से छात्र सहम गए। वे खेतों की तरफ भागे, लेकिन कुछ छात्र अब भी पुलिस वालों से जूझ रहे थे। इसी बीच एक छात्र को गोली लगी और वह तड़प कर ढेर हो गया...। चौबे चीख-चीखा कर कहने लगा कि पुलिस ने हमारे एक साथी को मार डाला। हम इसका बदला लेंगे। कई और छात्रों ने उसके सुर में सुर मिलाया।

एसपी ने इस बात का खंडन किया। उसने ऐलान किया कि इसकी जांच की जाएगी और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। उसके इस बयान से भी छात्र शांत नहीं हुए।

चौबे कह रहा था कि खून का बदला खून। जिस पुलिस वाले ने गोली मारी है, उसे भी गोली मारी जाए। उसके साथ कई और छात्रों ने एक साथ कहा कि हां, गोली मारी जाए।

एसपी ने छात्रों की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया। पुलिस वाले छात्रों को पकड़-पकड़ कर जीप में डालने लगे। उनके हत्थे जो भी छात्र चढ़ता उसे वह उठाकर सीधे गाड़ी में फेंक देते। उनकी इस हरकत को देखकर कई छात्र भाग खड़े हुए। बाकी छात्रों ने पथराव तेज कर दिया। पुलिस वाले भी आरपार की सोचकर पिल पड़े। इस प्रक्रिया में जहां कई छात्र घायल हो गए, वहीं कई पकड़े गए। पथराव में कई पुलिस वाले भी घायल हुए। इस बीच चौबे एंड पार्टी गिरफ्तार हो चुकी थी और बहुत सारे छात्र दूर खड़े होकर तमाशा देखने लगे। इसके बाद छात्रों और पुलिस में मुश्किल से दस मिनट संघर्ष हुआ। जिन्होंने तेजी दिखाई पकड़े गए और जिन्होंने समझदारी दिखाई वह अपने घर चले गए।

उस दिन के हंगामे के बाद किसी भी गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए तीनों कालेजों को तीन दिन के लिए बंद कर दिया गया। चौथे दिन विजय जब कालेज गया तो पता चला कि गिरफ्तार किए गए छात्र जमानत पर छूट गए हैं, लेकिन पुलिस ने इतना पीटा है कि वह कई दिन तक कालेज आने की स्थिति में नहीं हैं। दूसरी जानकारी यह मिली कि समसुद्दीन की चक्की पर जो छात्र घायल हो गया था, उसकी मौत हो गई है। वह अपने मां-बाप का इकलौता था। यह भी पता चला कि समसुद्दीन की गिरफ्तारी तो हुई, लेकिन वह जमानत पर छूट गया। हां, दारोगा को निलंबित कर दिया गया है।

यह भी पता चला कि समसुद्दीन ने नीलगाय को गोली नहीं मारी थी। बजरंगी और समसुद्दीन का खेत अगल-बगल में हैं। चौबे की पालतू नीलगाय अँसर समसुद्दीन के खेत को चर (खा) जाती थी। उसने इस बात का विरोध किया तो दोनों में तकरार हो गई। आर्थिक रूप से समसुद्दीन चौबे पर भारी था। इस कारण चौबे उससे जलता था। जब तकरार हो गई तो चौबे ने समसुद्दीन को सबक सिखाने की ठान ली। उस दिन जब उसकी पालतू नीलगाय समसुद्दीन के खेत में चर रही थी तो चौबे ने नीलगाय को गोली मार दी...। अगले दिन कालेज आकर हंगामा कर दिया...।

कालेज में यह बात भी दबी जुबान चर्चा में थी कि थाने में प्रदर्शन के दौरान गोली से मरने वाला छात्र पुलिस की गोली से नहीं, बल्कि चौबे की गोली से मरा था...।

- अपना टिकट दिखाओ। किसी ने तेज आवाज में कहा तो विजय ने उसकी तरफ देखा। सामने टीटीई था, जो उस भगवाधारी से टिकट मांग रहा था, लेकिन उसके पास टिकट नहीं था। इसके बदले वह कोई पास दिखा रहा था।

- नहीं, नहीं, यह नहीं चलेगा। टीटीई गुस्से में कह रहा था। वह टीटीई को समझाने का प्रयास कर रहा था। कई धार्मिक बातों का भी उल्लेख कर रहा था।

- तुऔहारी यही दिक्कत है। बनते देशभक्त हो और काम गैरकानूनी करते हो। ऊपर से शोर भी मचाते हो। आज तो छोड़ रहा हूं, लेकिन ध्यान रखना, आगे से नहीं छोडूंगा। टीटीई ने उसे चेतावनी देकर बाकी के लोगों का टिकट चेक करने लगा। विजय अपनी सीट पर लेट गया। थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई।

सपने में वह देखता है कि ट्रेन में आग लग गई है। ट्रेन में चीख-पुकार मच गई है। सभी अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं। कई लोग जिंदा जल रहे हैं, तो कई लोगों ने प्राण रक्षा के लिए ट्रेन से छलांग लगा दी। विजय भी आग की लपटों में घिर गया है। उसके मुंह से जोर की चीख निकल पड़ती है।

आंख खुलने पर वह देखता है कि कोई उसे जगा रहा है। उसके दिल की धड़कनें तेजी से धड़क रही हैं और वह पसीने से तर-बतर है।

ट्रेन तड़तड़ाती हुई भागी जा रही थी।

रात के नौ बजे थे। सवारियां अपनी-अपनी सीट पर पसर चुकी थीं। जिनके साथ बच्चे थे, वह महिला सोने को जा रही थी। विजय की निगाहें भगवाधारी व्यक्ति को खोजने लगी...।

-----------समाप्त -------------

संपर्क : ओमप्रकाश तिवारी, अमर उजाला, ए-५, स्पोर्ट्स एंड सर्जिकल काम्प्लेक्स, कपूरथला रोड, जालंधर-१४४००२१, पंजाब

मोबाइल : 09915027209
op.tiwari16@gmail.com

Comments

Popular posts from this blog

कविता

डर ---- तेज बारिश हो रही है दफ्तर से बाहर निकलने पर उसे पता चला घर जाना है बारिश है अंधेरा घना है बाइक है लेकिन हेलमेट नहीं है वह डर गया बिना हेलमेट बाइक चलाना खतरे से खाली नहीं होता दो बार सिर को बचा चुका है हेलमेट शायद इस तरह उसकी जान भी फिर अभी तो बारिश भी हो रही है और रात भी सोचकर उसका डर और बढ़ गया बिल्कुल रात के अंधेरे की तरह उसे याद आया किसी फिल्म का संवाद जो डर गया वह मर गया वाकई डरते ही आदमी सिकुड़ जाता है बिल्कुल केंचुए की तरह जैसे किसी के छूने पर वह हो जाता है इंसान के लिए डर एक अजीब बला है पता नहीं कब किस रूप में डराने आ जाय रात के अंधेरे में तो अपनी छाया ही प्रेत बनकर डरा जाती है मौत एक और डर कितने प्रकार के हैं कभी बीमारी डराती है तो कभी महामारी कभी भूख तो कभी भुखमरी समाज के दबंग तो डराते ही रहते हैं नौकरशाही और सियासत भी डराती है कभी रंग के नाम पर तो कभी कपड़े के नाम पर कभी सीमाओं के तनाव के नाम पर तो कभी देशभक्ति के नाम पर तमाम उम्र इंसान परीक्षा ही देता रहता है डर के विभिन्न रूपों का एक डर से पार पाता है कि दूसरा पीछे पड़ जाता है डर कभी आगे आगे चलता है तो कभी पीछे पीछे कई

संतान मोह और मानव सभ्यता

कविता ...... सन्तान मोह और मानव सभ्यता ....... क्या दो जून की रोटी के लिए जिंदगी पर जिल्लतें झेलता है इंसान? पेट की रोटी एक वजह हो सकती है यकीनन पूरी वजह नहीं हो सकती दरअसल, इंसान के तमाम सपनों में सबसे बड़ा ख्वाब होता है परिवार जिसमें माता-पिता नहीं होते शामिल केवल और केवल बच्चे होते हैं शामिल इस तरह हर युवा संतान की परिधि से बाहर हो जाते हैं माता-पिता जरूरी हो जाते हैं अपने बच्चे जब उनके बच्चों के होते हैं बच्चे तब वह भी चुपके से कर दिए जाते हैं खारिज फिर उन्हें भान होता है अपनी निरर्थकता का लेकिन तब तक हो गई होती है देरी मानव सभ्यता के विकास की कहानी संतान मोह की कारूण कथा है जहां हाशिये पर रहना माता-पिता की नियति है संतान मोह से जिस दिन उबर जाएगा इंसान उसी दिन रुक जाएगी मानव सभ्यता की गति फिर न परिवार होगा न ही घर न समाज होगा न कोई देश छल-प्रपंच ईर्षा-द्वेष भी खत्म बाजार और सरकार भी खत्म जिंदगी की तमाम जिल्लतों से निजात पा जाएगा इंसान फिर शायद न लिखी जाए कविता शायद खुशी के गीत लिखे जाएं... #omprakashtiwari

कविता : आईना तुम आईना नहीं रहे...

आईना अब तुम आईना नहीं रहे तुम्हारी फितरत ही बदल गयी है डर गए हो या हो गए हो स्वार्थी गायब हो गई है तुम्हारी संवेदनशीलता बहुत सफाई से बोलने और दिखाने लगे हो झूठ जो चेहरा जैसा है उसे वैसा बिल्कुल भी नहीं दिखाते बल्कि वह जैसा देखना चाहता है वैसा दिखाते हो हकीकत को छिपाते हो बदसूरत को हसीन दिखाने का ज़मीर कहां से लाते हो? क्या मर गयी है तुम्हारी अन्तर्रात्मा?  किसी असुंदर को जब बताते हो सुंदर तब बिल्कुल भी नहीं धिक्कारता तुम्हारा जमीर?  आखिर क्या-क्या करते होगे किसी कुरूप को सुंदर दिखाने के लिए क्यों करते हो ऐसी व्यर्थ की कवायद?  क्या हासिल कर लेते हो?  कुछ भौतिक सुविधाएं?  लेकिन उनका क्या जो तुम पर करते हैं विश्वास और बार बार देखना चाहते हैं अपना असली चेहरा जैसा है वैसा चेहरा दाग और घाव वाला चेहरा काला और चेचक के दाग वाला चेहरा गोरा और कोमल त्वचा वाला चेहरा स्किन कहने से क्या चमड़ी बदल जाएगी?  काली से गोरी और गोरी से काली खुरदुरी से चिकनी और चिकनी से  खुरदुरी हो जाएगी?  नहीं ना जानते तो तुम भी हो मेरे दोस्त फिर इतने बदले बदले से क्यों हो?  क्यों नहीं जो जैसा है उसे वैसा ही दिखाते और बताते ह