मई माह में चाची जी के देहांत के बाद गांव गया था। एक दिन सुबह कोई 8 बजे खेतों की ओर से मारो-पकड़ों की चीखती चिल्लाती आवाजें आईं। जिज्ञासा वश में भी आवाजों का अनुमान लगाता खेतों की ओर चला गया। देखा कोई 8-10 लड़के जिनकी उम्र 8-18 साल के बीच है हाथों में लाठी-डंडे लिए दौड़े जा रहे हैं। मैंने जोर की आवाज लगाकर पूछा। - क्या मामला है? तुम सब किसके पीछे पड़े हो? - जंगली सूअर है। उसी को खेद रहे हैं। उनमें से एक ने बताया। मैं चुप हो गया। खेत में पिता जी थे उनसे बातें करने लगा। मैंने पिता जी से पूछा। - आसपास जंगल तो है नहीं, यह जंगली सूअर यहां कहाँ से आ गया? पिता जी भी हैरान हुए। बोले कि पता नहीं कहां से आ जाते हैं। आलू और गंजी (शकरकंदी) को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। - क्या आपने जंगली सुअर देखा है? मैंने पिता जी से जोर देकर पूछा। इस पर वह बोले कि देखा तो नहीं, लेकिन कई लोगों की फसल उजाड़ जाते हैं। - क्या अपनी आलू को कभी नुकसान पहुंचाया है? मैंने फिर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि नहीं। जबकि मेरे खेतों के पास एक छोटा जंगल है। पास से बरसाती नहर निकली है। कुछ दशक पहले तक इस इलाके में जंगली सूअर पाए ज...